शनिवार, 13 सितंबर 2008

सवाल से आया साहस

विमल कुमार सिंह

जहां दो व्यक्तियों को ग्रामप्रधन से सवाल पूछने के कारण जेल में ठूंस दिया जाए, वहां के लोग यदि डरने की बजाए सीधे जिला अधिकारी से ही सवाल पूछने लगें तो इसे आश्चर्य नहीं तो और क्या कहा जाएगा। यह आश्चर्यजनक घटना कहीं और नहीं बल्कि आजमगढ़ में घटित हुयी।

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन, परिवर्तन और भारत रक्षा दल के संयुक्त तत्वाधन में आजमगढ़ में 13 अगस्त से लेकर 29 अगस्त तक एक अभियान चलाया गया। इस अभियान के तहत जिले के सैकड़ों लोगों ने सूचना का अधिकार अधिनियम , 2005 के तहत जिला अधिकारी से पूछा कि पिछले चार महीनों में उन्हें जनता की ओर से कुल ऐसे कितने आवेदन प्राप्त हुए जिनमें जिला प्रशासन के अन्तर्गत कार्यरत लोगों (कर्मचारियों एवं निर्वाचित प्रतिनिधियों ) के ख़िलाफ़ शिकायत की गयी है और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का निवेदन किया गया है। इसी के साथ पूछा गया है कि शिकायत किसकी ओर से और कब की गयी? शिकायत पर जांच करने की जिम्मेदारी किस अधिकारी और कब दी गयी? अंत में जिला अधिकारी से प्रत्येक शिकायत पर की गयी कारZवाई का संक्षिप्त विवरण मांगा गया है। इसी तरह जिला अधिकारी को प्राप्त अन्य आवेदनों के बारे में भी जतना की ओर से जानकारी मांगी गयी।

जिला अधिकारी अर्थात डी एम से ही सवाल-जवाब क्यों, यह पूछे जाने पर मार्टिनगंज ब्लॉक के इंद्रसेन सिंह ने बताया कि जिले में नौकरशाही का बहुत खौफ है। सूचना मांगने वालों को परेशान करने की घटनाएं यहां आम हैं। खुद उन्हें गांव मे आए पैसे का हिसाब मांगने के कारण ग्रामप्रधान और स्थानीय अधिकारियों के गुस्से का शिकार होना पड़ा। उन्हें एक फर्जी मुकदमें में फंसा कर दो महीने के लिए जेल भेज दिया गया। ऐसी स्थिति में जरुरी था कि लोगों का डर दूर करने के लिए सीधे स्थानीय प्रशासन के मुखिया यानि डी एम से ही सवाल-जवाब किया जाए और वह भी सामूहिक रुप से। संगठित अभियान होने के कारण जहां नौकरशाही सवाल पूछने वालों को परेशान नहीं कर पाएगी, वहीं लोगों के बीच इस कानून को लेकर जागरुकता भी फैलेगी। इसका परिणाम होगा कि लोग आने वाले समय में बिना डरे इस कानून का इस्तेमाल कर सकेंगे। नौकरशाही के साफ़ संदेश जाएगा कि वह अब अपने उच्च अधिकारियों एवं राजनीतिक आकाओं के साथ-साथ जनता के प्रति भी जवाबदेह है।

सूचना के अधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे देश भर के कार्यकर्ताओं ने आजमगढ़ में चल रहे इस अभियान को अपना पूरा समर्थन दिया। 29 अगस्त को मैग्सैसे पुरस्कार विजेता एवं सूचना के अधिकार को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अरविंद केजरीवाल तथा वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय सहित देश भर के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जिला मुख्यालय में जाकर जिला अधिकारी से वही सवाल पूछा जो सवाल जिले की जनता जिला अधिकारी से पूछ रही थी। इस अवसर पर आयोजित एक प्रेसवार्ता में श्री केजरीवाल ने `आरटीआई फोरम आजमगढ़´ के गठन की घोषणा की। उन्होंने बताया कि जिले में अभियान के समन्वय की जिम्मेदारी आगे से यही फोरम उठाएगा। जिस किसी व्यक्ति ने आरटीआई का इस्तेमाल किया है, वही इसका सदस्य माना जाएगा। जिला प्रशासन को पारदर्शी बनाना इस फोरम का मुख्य उद्देश्य होगा।

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि `आरटीआई फोरम आजमगढ़´ का कोई पंजीकरण नहीं किया जाएगा क्योंकि हम कोई संस्था नहीं बल्कि एक आंदोलन चलाना चाहते हैं। उन्होंने चुनौती दी कि यदि प्रशासन इस फोरम को अवैध मानता है तो वह उनके खिलाफ कारवाई कर सकता है। ज्ञातव्य हो कि जिले के मार्टिनगंज ब्लॉक में दो ग्रामीणों को केवल इसलिए जेल में डाल दिया गया था, क्योंकि बिना पंजीकरण करवाए एक संस्था के पैड पर गांव में आए पैसे का प्रशासन से हिसाब मांगा था। श्री केजरीवाल इन ग्रामीणों से मिलने 28 अगस्त को उनके गांव भी गए। वहां उन्होंने स्थानीय जनता को सूचना के अधिकार के महत्व के बारे में विस्तार से बताया और लोगों का आह्वान किया कि वे संगठित होकर इस कानून का इस्तेमाल करें। निर्दोष ग्रामीणों के खिलाफ चल रहे फर्जी मुकदमें को खत्म करने की मांग करते हुए उन्होंने सरकार को आगाह किया कि यदि सूचना मांगने वालों के साथ इस तरह की ज्यादती चलती रही तो सरकार को खामियाजा भुगतना पडे़गा ।


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

आपने तो बात काफी दूर की कर दी। यहां दिल्ली के करीब गाज़ियाबाद में आप किसी भी महकमे से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग लीजिये, मज़ाल है जो मिल जाये। बार बार कहेंगे तो हो सकता है कोई टालू सा जवाब मिल जाये। निजी तौर पर कोई आपका आवेदन स्वीकार नहीं करेगा। तरह-तरह के बहाने बनाकर आपको इतना परेशान किया जायेगा कि आप बिना सवाल पूछे ही भाग जायें। यूपीसी या साधारण डाक से भेजे गये खतों के बारे में सीधा जवाब होता है हमको मिला ही नहीं। स्पीड पोस्ट और रजिस्ट्री से आप खत भेजेंगे तो लिफाफे से मज़मून भांपकर उसे लौटवा देंगे। जवाब नहीं देने पर अगर लखनऊ जाना भी पड़ा तो मालूम है कि सरकार आने जाने का किराया देगी। इस बहाने विभाग के अफसरों के यहां सलाम भी ठोंक आएंगे। सवाल पूछने वाले को अपना पैसा खर्च करना पड़ेगा। और लखनऊ में बैठे सूचना आयुक्त भी सुन लेंगे इस बात की क्या गारंटी है जनाब। सबसे बुरा हाल नगर निगम और शिक्षा विभाग का है। क्या कोई ध्यान देगा इस बारे में।