सोमवार, 21 मार्च 2011

सीबीआई आरटीआई से बाहर होना चाहती है


सीबीआई ने कार्मिक विभाग से अपील की है कि उसे आरटीआई के दायरे से बाहर कर दिया जाये। इसके पीछे सीबीआई का तर्क है कि आरटीआई के तहत ऐसे आवेदनों की संख्या तेजी से बढ़ी है जिसमें लोग बन्द चुके या कोर्ट में चार्जसीट दाखील हो चुके मामलों की फाईल नोटिंग मांग रहे हैं। इसके कारण सीबीआई की रोजमर्रा के काम पर प्रभाव पड रहा है। साथ ही सीबीआई एक मामला एक फाईल की नीति पर काम करती है। ऐसे में जांच अधिकारी किसी मामले में अपनी बात लिखने से बच रहे है जिससे जांच की निष्पक्षता प्रभावित होती है।
ऐसा नहीं है कि सीबीआई यह कोशिश पहली बार कर रही हो। आरटीआई क़ानून लागू होने के बाद से ही वह इससे बाहर होने की कोशिश कर रही है। सबसे पहले सीबीआई के पुर्व निदेशक अश्विनी कुमार ने सरकार को पत्रा लिखकर यह मामला उटाया था और अब उनके उत्तराधिकारी ए.पी.सिंहा ने कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर अपील की है कि उन्हें आरटीआई के दायर से बाहर किया जाये। सूत्रों के अनुसार कार्मिक विभाग ने सीबीआई निदेशक के इस अपील पर क़ानून मन्त्रालय से सलाह भी मांगी है।

बीएमसी से गायब हुई फाईलें


मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी होने के साथ साथ अब भूमी और भवन घोटाले की राजधानी भी बनती जा रही है। बृहद मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) के कार्यालय से बान्द्रा, खार और सान्ताक्रुज जैसे इलोकों की 74 बिल्डिंगों की फईले गायब हो गई हैं। इन फाईलों में बिल्डिंग बनाने के लिए दी गई अनुमती से लेकर उनके नक्कशे, कंप्लीशन सर्टिफिकेट और इनमें रह रहे लोगों के पंजीकरण एवं हस्तान्तरण प्रमाण पत्र जैसे महत्वपूर्ण कागजात थें। आरटीआई कार्यकर्ता आफताब सिद्दीकी ने ये सरी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत निकाला है।
आफताब का कहना है कि जो सूचनाएं मिली उससे पता चला है इन 74 बिल्डिंगों में रहने वाले निवासियों में कौन वैद्य है और कौन अवैद्य इसका पता लगाना बीएमसी के लिए सम्भव नहीं है।

बिना मांगे मिलेगा विकास कार्यों का हिसाब


दिल्ली के लोगों को उनके विधायकों और निगम पार्षदों द्वारा कराये गये विकास कार्यों की जानाकरी बिना मांगे मिलेगी। केन्द्रीया सूचना आयुक्त शैलेष गाँधी ने दिल्ली सरकार और नगर निगम को आदेश दिया है कि 15 मार्च से पहले दिल्ली के सभी विधायकों और निगम पार्षदों द्वारा उनके फण्ड से कराये गये सभी कार्यों का पूरा विवरण सम्बंधित वार्ड में एक बोर्ड पर लिख कर लगाया जाये।
शैलेष गाँधी ने इस आदेश में कहा है कि बोर्ड पर सभी कार्यों का नाम, उसके लिए स्वीकत राशि, कार्य आरम्भ और समाप्त होने की तिथि, भुगतान की गई राशि और टेकेदार का नाम आदि अवश्य शामिल हों। साथ ही ये सारी सूचना हिन्दी में होगी और हर साल इसे अपडेट किया जायेगा।

पाईप लाईन घोटाला

गुजरात के राजकोट ज़िले के विरावल गांव के निवासी रायाभाई जापडीया ने आरटीआई की सहायता से अपने गांव में पीने के पानी की सप्लाई के लिए बिछाई गई पाईप लाईन में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया है। पानी की कमी से जुझा रहे विरावल गांव के लोगों के लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2008 में सराकार ने वहां पाईप लाईन विछाया। लेकिन अधिकारियों और टेकेदार की मिलीभगत से पाईल लाईन सही तरीके से नहीं बिछाई गई। जिसका नुकसान गांव वालों को उटाना पड़ रहा है। रायाभाई ने जून 2008 में ही आरटीआई के तहत इस पाईप लाईन से सम्बंधित सूचनाएं मांगी लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया। जब यह मामला गुजरात सूचना अयोग में गया तो आयोग के आदेश के बाद अधिकारियों की मौजुदगी में रायाभाई ने पूरी परियोजना का निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद पता चला कि सरकारी रिकॉर्ड में तो 2.9 किलो मीटर लिखा था लेकिन वास्तव में सिर्फ 1.5 किलो मीटर ही बिछाई गई। रिकॉर्ड के अनुसार पाईप लाईन की गहराई .90 मीटर होनी चाहिए थी जबकि वास्तव में यह .23 से .55 मीटर तक की थी।रायाभाई ने इसकी शिकायत सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को कर दिया है और उनका कहना है कि आरटीआई से मिली सूचना दोषी अधिकारियों और टेकेदार को दण्ड दिलाने में करगर साबित होगा।

आरटीआई के जवाब में धमकी मिली

बाहरी दिल्ली के एक निवासी ने जब सूचना के अधिकार कानून के तहत इण्डियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) से जानकारी मांगी तो उन्हें धमकाया गया। आवेदक ने केन्द्रीय सूचना आयोग से शिकायत कर मामले की जांच कराने की मांग की है। कादीपुर कुशक निवासी विकास कुमार ने इलाके में रसोई गैस की किल्लत को लेकर दो महीने पहले इण्डियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। उन्होंने बताया कि उन पर आवेदन वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाने लगा। आरोप है कि इसके लिए आइओसी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक के कहने पर क्षेत्रीय अधिकारी प्रेम सखूजा ने उससे मिलकर आरटीआई वापस लेने के लिए दबाव बनाया था। लेकिन इसके लिए वह तैयार नहीं हुए। इसके बाद आईओसी द्वारा उन्हें आधी-अधूरी जानकारी देते हुए प्रति पेज दो रुपये के हिसाब से 108 रुपये का ड्राफ्ट जमा कराने को कहा गया। जिसे उन्होंने दो फरवरी को स्पीड पोस्ट के माध्यम से आईओसी को भेज दिया। लेकिन चार फरवरी को उनके मोबाइल पर फोन नंबर 23352390 से एक धमकी भरी काल आई। कॉल करने वाले ने बताया कि वह पुलिस मुख्यालय से बोल रहा है। उक्त व्यक्ति ने कहा कि तुम आरटीआई लगाकर अधिकारियों को ब्लैकमेल करते हो, तुम्हारे खिलाफ यिकायत आई है। अपनी आरटीआई वापस ले लो, वरना पूरी जिन्दगी जेल में कटेगी। उसी दिन 23318508 नंबर से एक फोन इसी सन्दर्भ में आरटीआई लगाने वाले नत्थूपुरा निवासी किशन अत्री के पास भी आया। फोन करने वाले शख्स ने उसे भी धमकाया ओर आरटीआई वापस लेने के लिए कहा। विकास ने बताया कि दोनों नंबरों के बारे में पता करने मालूम हुआ कि दोनों ही फोन नंबर आईटीओ स्थित सेल्स टैक्स के कार्यालय का है। इस बारे में आईओसी के क्षेत्रीय अधिकारी प्रेम सखूजा का कहना था कि उन्होंने आरटीआई वापस लेने के लिए कहा था, ताकि विभाग के अधिकारियों को जवाब देने में समय न बर्बाद करना पड़े। उन्होंने बताया कि उन्होंने आवेदक से मिलकर समस्याओं के निराकरण का आश्वासन भी दिया था, लेकिन आवेदक तैयार नहीं हुए। उन्होंने धमकी देने या दिलवाने की बातों से इंकार किया है।

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

अपीलों का जिन्न

उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं कि अब हम इन लोक सूचना अधिकारियों का कुछ नहीं कर सकते। यह हताशा सूचना के राज्य के सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने बनारस में सूचना अधिकार पर आधरित कार्यक्रम में व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हरेक आयुक्त 30 से लेकर 100 केस रोज़ाना सुनता है लेकिन इसके बावजूद लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को राज्य सूचना आयोग में जाना पड़ता है। जिससे आयोग का काम लगातार बढ़ता जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर लोक सूचना अधिकारियों की यह हिम्मत बढ़ाई किसने है? सूचना न देने वाले अधिकारियों पर ज़ुर्माना न लगाना और सूचना आयोग में आम नागरिकों के को डांटना डपटना किसने किया था? इस पर अगर लोक सूचना अधिकारियों का नहीं तो क्या राज्य के आम नागरिकों का हौसला बढे़गा?

रेगिंग में आगे

उत्तर प्रदेश के कालेजों से रैगिंग की सबसे ज्यादा शिकायतें आई हैं। मानव संसाधन मन्त्रालय द्वारा 20 जून 2009 को रैगिंग की शिकायत दर्ज करने के लिए एक हेल्पलाईन शुरू की गई थी। सूचना के अधिकार के तहत सहारनपुर निवासी कुश कालरा द्वारा निकाली जानकारी से पता चलता है कि कुल मिलाकर 658 शिकायतें दर्ज हुई हैं इसमें से सबसे ज्यादा 131 मामले उत्तर प्रदेश से हैं। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल से 86 शिकायतें हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश (65), उड़ीसा (60) और कर्नाटक (31) आते हैं। मणिपुर शायद सबसे दूरस्त है या फिर वहां रैगिंग की प्रवृत्ति कम है। वहां से केवल एक शिकायत दर्ज हुई। 
प्राप्त सूचना से यह भी पता चलता है कि सबसे ज्यादा (333) रैगिंग की शिकायतें इंजीनियरिंग कालेजों से मिलीं। मेडिकल कालेजों से 71 शिकायतें मिलीं। पोलिटेकनिक कालेजों से 59 शिकायतें मिलीं।

झारखण्ड सूचना विहीन आयोग

झारखण्ड राज्य सूचना आयोग अपने ही दफ्तर  में काम कर रहे अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन और खर्चे की जानकारी देने से बच रहा है। हज़ारीबाग निवासी गणेश कुमार वर्मा (सीटू) ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राज्य सूचना आयोग से पूछा था कि `मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, अवर सचिव को कितना वेतन मिलता है, तथा इनके वेतन, वाहन, ड्राईवर, यात्रा, आवास एवं फोन पर कितना कितना पैसा खर्च हुआ है´। पहले तो आयोग के लोक सूचना अधिकारी ने गणेश वर्मा को चिट्ठी लिखी कि मांगी गई सूचना 953 पृष्ठों में है, अत: 1896 रुपए जमा करके सूचना ले लें। लेकिन जब गणेश वर्मा ने पैसे जमा कराने चाहे तो आयोग के कार्यालय ने पैसे लेने से भी मना कर दिया और आज तक उन्हें सूचना भी नहीं दी गई है।

20 दिन में नई मार्कशीट

झारखण्ड में सरायकेला ज़िले की निवासी अनु पाणी ने तमिलनाड़ु के विनायका मिशन विश्विद्यालय से एम.फिल (इतिहास) की परीक्षा दी. अनु ने परीक्षा पास कर ली लेकिन अंक पत्र में उनके पिता का नाम गलत लिखा हुआ था। इसी शिकायत विश्वविद्यालय के जमशेदपुर स्थित अध्ययन केन्द्र से की गई, कोई एक्शन नहीं हुआ, कोलकाता स्थित मुख्य कार्यालय में की तो भी कुछ नहीं हुआ। डेढ़ साल बीतने पर अनु के भाई ए.सी.पाणी ने यूजीसी, विश्वविद्यालय के कुल सचिव तथा परीक्षा नियन्त्रक को पत्र लिखे लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला। हारकर पाणि ने सूचना के अधिकार के तहत यूजीसी तथा एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटीज़ से पूछा कि उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई है। सूचना के अधिकार का आवेदन मिलते ही यूजीसी हरकत में आ गया। उसने तुरन्त विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को नोटिस भेजा। सूचना अधिकार आवेदन दाखिल करने के 20 दिन के अन्दर जमशेदपुर के केन्द्र निदेशक ने अनु और उनके भाई को व्यक्तिगत रूप से बुलाकर नया अंक पत्र सौंपा।

ये है देश का भविष्य

बात शिक्षा पर भाषण देने की हो तो नेता हों या अफसर कोई पीछे नहीं रहेगा लेकिन देश के नेता या अफसर शिक्षा पर कर क्या रहे हैं इसकी बानगी बंगलोर से ली जा सकती है। शहर में नगर निगम के अधीन चल रहे 33 हाई स्कूलों में कुल मिलाकर 379 शिक्षकों की कमी है। कन्नड भाषा के शिक्षकों के 46 पद हैं पर कई साल से केवल 15 लोगों से काम चलाया जा रहा है। तमिल भाषा के 16 पदों में से सिर्फ एक पद पर शिक्षक नियुक्त हैं। `कला शिक्षक´ के 103 पदों में से सिर्फ 46 भरे हैं यानि 67 शिक्षकों की कमी है। भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित विषयों के लिए 92 में से सिर्फ 46 पद भरे हैं, जीव एवं वनस्पति विज्ञान के 27 शिक्षकों में से केवल 16 पद भरे हैं। 
संगीत शिक्षक के 7 पदों में से एक पर भी नियुक्ति नहीं हुई है। ड्राईंग-पेंटिंग के लिए 20 में से 5 पदों पर ही शिक्षक हैं। 
कहते हैं कि देश का भविष्य स्कूल की कक्षाओं में लिखा जाता है। लेकिन जहां तमाम अफसर और नेता भ्रष्टाचार कर अपना भविष्य संवारने में लगे हों वहां भला स्कूलों की चिन्ता कोई करे भी तो क्यों

नेताजी के साथ मज़ाक

रक्षा मन्त्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उसने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के `आज़ाद हिन्द फौज´ के इतिहास पर आधारित 60 साल पुरानी पुस्तक की पाण्डुलिपि उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। 23 जनवरी को जब देश नेताजी का 115 वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहा था, उसी सप्ताह में रक्षा मन्त्रालय ने तर्क दिया कि वह इस किताब को प्रकाशित करना चाहता है और इसे सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् कराने से `राज्य के आर्थिक हित को नुकसान पहुंचेगा। अत: यह सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् नहीं कराई जा सकती।
मामला आरटीआई आवेदक अनुज धर और चन्द्रचूढ़ घोष की ओर से दायर आरटीआई आवेदन से संबिन्ध्त है जिन्होंने पी.सी. गुप्ता की ओर से आज़ाद हिन्द फौज के इतिहास पर सरकार की ओर से लिखवाई पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति की मांग की थी। 
आवेदकों ने सूचना आयोग में शपथ पत्र दिया था कि वे इस पाण्डुलिपि का कोई कमर्शियल उपयोग नहीं करेंगे। इसके बाद केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम.एल. शर्मा ने रक्षा मन्त्रालय को पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। लेकिन यह आदेश मिलते ही अचानक 60 साल बाद रक्षा मन्त्रालय का इस पुस्तक से आर्थिक प्रेम जाग गया है और उससे अदालत में गुहार लगाई है कि उसे बचाया जाए।

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

चोरी भी और सीनाज़ोरी भी

एक और विसिल ब्लोअर को दबाने कि कोशिश
सतीश कुमार 
दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टीच्युट ऑफ होम इकोनोमिक्स में एक नया घोटाला सामने आया है। कॉलेज बिल्डिंग को किराये पर देकर उससे होने वाली आमदनी कॉलेज की देखरेख कर रहे ट्रस्ट ने अपने खाते में जमा करा लिया। इस घोटाले का खुलासा किया है कॉलेज के ही एक लेब अस्सिसटेंट सतीश कुमार ने। सतीश ने कॉलेज प्रशासन से आरटीआई के तहत कॉलेज परिसर में किराये पर चल रहे एक निजी संस्थान के सम्बंध् में सूचना मांगी।
आरटीआई के तहत मिली सूचना से पता चला है कि वर्ष 1999 में कॉलेज परिसर का एक हिस्सा एक निजी संस्था नेशनल इंस्टीच्युट ऑफ फैशन डिजाइन (एनआईएफडी) को किराये पर दिया गया। पहले तो किराये के रूप में कॉलेज को हर महीने 1 लाख रूपये की राशि मिलती रही। लेकिन बाद में एनआईएफडी ने कॉलेज का कुछ और हिस्सा भी किराये पर ले लिया, जिससे किराया हर महीने 1.70 लाख रफपया हो गया। किराये से होने वाली यह आमदनी कॉलेज के खाते में न जाकर कॉलेज चला रहे ट्रस्ट के खाते जा रहा है।
सतीश ने कॉलेज से मिली इस सूचना के आधार पर यूजीसी से आरटीआई के तहत इंस्टीच्युट ऑफ होम इकोनोमिक्स द्वारा जमा किये गये वार्षिक रिपोर्टों की प्रति भी मांगी। वार्षिक रिपोर्ट से पता चला कि कॉलेज ने कभी भी किराये से होने वाली लाखों की कमाई का जिक्र उसमें किया ही नहीं। सतीश का कहना है कि मेरे आरटीआई आवेदन का यह असर तो हुआ है कि आवेदन करने के कुछ ही घंटो के भीतर कॉलेज परिसर से एनआईएफडी के बोर्ड हटा दिये गये। लेकिन साथ ही मुझे बार बार धमकी दी जा रही है कि इस मामले को आगे ना बढाये नहीं तो नौकरी से निकाल दिया जयेगा। पूर्व प्रधनाध्यपिका एस.मलहान ने मुझे बुलाकर ऑफर दिया कि जितना पैसा चाहिए ले लो लेकिन मामले को यहीं खत्म करो।

शनिवार, 1 जनवरी 2011

न्यायालय के रजिस्ट्रार पर जुर्माना


आरटीआई के तहत सही समय पर सूचना नहीं देने के कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सहायक रजिस्ट्रार मो. इस्तियाक के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने 25000 रफपये का जुर्माना लगाया है। राज्य सूचना आयुक्त विरेन्द्र सक्सेना ने अजय पोइया के अपील पर सुनवाई के बाद मो. इस्तियाक पर यह जुर्माना लगाया है। अजय पोइया ने एडीशनल चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट भगवान सिंह जब मथुरा में तैनात थें उस समय उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के सम्बंध् में सूचना मांगी थी। जब मामला सूचना आयोग में पहुंचा तो मो. इस्तियाक ने सूचना देने के लिए 40 दिनों का समय मांगा, जिसे आयोग ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद भी अजय को सूचना नहीं दी गई। सूचना आयुक्त विरेन्द्र सक्सेना ने इसे घोर लापरवाही मानते हुए मो. इस्तियाक के खिलाफ 25000 रुपए का जुर्माना लगा दिया। जुर्माने की राशि मो. इस्तियाक के वेतन से काटी जायेगी। सूचना आयुक्त ने यह भी कहा है कि अगली सुनवाई तक सूचना नहीं उपलब्ध् कराने की स्थिति में मो. इस्तियाक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाई का अदेश भी दिया जा सकता है।