शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की झूठ की पोल खुली

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह पिछले कुछ महीनों से किसी न किसी कारण से लगातार विवादों में घिरे रहे हैं। अब नया विवाद यह है कि उन्होंने अपने चुनाव घोषणा पत्र में गलत जानकारी दी है। इंटर की परीक्षा में फेल होने के बावजूद अपने चुनाव घोषणा पत्र में उन्होंने बताया है कि वो स्नातक हैं। इस बात का खुलासा हुआ है सूचना के अधिकार से। 
कृपाशंकर सिंह ने 1994 और 1999 के विधानसभा चुनावों में दिये गये घोषणा पत्र में बताया है कि उन्होंने विज्ञान से स्नातक किया है लेकिन 2004 के चुनाव के दौरान दिये गये घोषणा पत्र में कहा है कि उन्होंने 1969 में जय हिन्द इंटर कॉलेज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश से इंटर पास करने के बाद आगे पढ़ाई नहीं की। आरटीआई कार्यकता संजय तिवारी ने जब जय हिन्द इंटर कॉलेज के लोक सूचना अधिकारी से इस सम्बंध् में सूचना मांगी तो उन्हें बताया गया कि कॉलेज के रिकॉर्ड के अनुसार कृपाशंकर सिंह इंटर की परीक्षा में फेल हैं।

कुल कितने भ्रष्ट?


आर्मी ने भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे अधिकारियों से सम्बंधित सूचना आरटीआई के तहत देने से मना कर दिया है। एक आवेदक ने आरटीआई के तहत आर्मी से सूचना मांगी थी कि ब्रिग्रेडियर और उससे ऊपर के उन अधिकारीयों का विवरण दें जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के अरोपों की जांच चल रही है या पूरी हो चुकी हो। आर्मी ने सूचना देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि मांगी गई जानकारी को इतना ज्यादा है कि उसे इक्ट्ठा करना सम्भव नहीं है। साथ ही लोक सूचना अधिकारी का यह भी कहना है कि भ्रष्टाचार के अरोपों से घिरे अधिकारीयों की सूचना से किसी तरह का जनहित नहीं जुड़ा है इसलिए भी यह सूचना नहीं दी जा सकती है। 

एम्स: 70 सीटें खाली पडी हैं

इस वर्ष एम्स के पी.जी. कोर्स में प्रवेश लेने वाले लगभग 30% छात्र बीच सत्र में नामांकन रद्द करा कर किसी और संस्था में चले गये। जिसके कारण इस हाई प्रोफाइल संस्था की 70 सीटें खाली रह गईं। सूचना के अधिकार के तहत यह जाकारी एम्स प्रशासन ने दी है। 
पिछले तीन सालों में 138 छात्रों ने एम्स का पी.जी. कोर्स प्रवेश लेने के बाद छोड़ा है। 2010 में 240 छात्रों ने प्रवेश लिया जिसमें से 70 छोड़ कर चले गये। 2009 में 180 में से 37 और 2008 में 160 में से 31 छात्रों ने एम्स छोड़ कर किसी और संस्था में प्रवेश लिया। 
इतनी सीटें खाली रहने के बावजूद भी इस वर्ष जुलाई में एम्स प्रशासन ने बिना कोई कारण बताये ओपन काउंसलिंग पर रोक लगा दिया। अब कोई एम्स प्रशासन से यह पूछे कि उनके इस फैसले से करदाताओं का जो लाखों रूपया बर्बाद हो रहा उसकी भरपाई कौन करेगा?

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

सूचना अधिकार इस्तेमाल करने वालों को समाज का सलाम

दूसरे राष्ट्रीय सूचना के अधिकार पुरस्कार के लिए पांच नागरिक ऐसे नागरिकों को चुना गया है जिन्होंने सूचना के अधिकार के तहत न सिर्फ सूचनाएं निकलवाईं बल्कि उन पर आगे काम भी किया। इसके अलावा लोकसूचना अधिकारी की श्रेणी में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के ब्लॉक डवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) प्रदीप कुमार को पुरस्कृत किया जाएगा। उन्होंने लोक सूचना अधिकारी रहते तमाम आवेदनों के सही और पूरी सूचना आवेदकों को उपलब्ध् कराई। उनके पास सूचना मांगने वाले आवेदकों में से सिर्फ एक आवेदक को प्रथम अपील तक जाना पड़ा था।
इस बार सूचना अधिकार का इस्तेमाल कर अपने अखबार-पत्रिकाओं के लिए खोजी पत्रकारिता करने वाले वाले पत्रकारों के लिए भी पुरस्कार रखा गया है। आउटलुक पत्रिका के पत्रकार सैकत दत्ता को ज्यूरी ने इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। सैकत दत्ता ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ 2500 करोड़ के चावल निर्यात घोटाले का पर्दाफाश किया बल्कि उसके पीछे लगकर इसे मुकाम तक पहुंचाया। आज इसका साज़िशकर्ता जेल में है और मामले की सीबीआई जांच चल रही है। 
इसके अलावा ज्यूरी ने दस ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी नागरिक सम्मान देने का फैसला लिया जिनके लोग पिछले दिनों इसलिए मारे गए क्योंकि वे सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। इन सब लोगों के परिवारों को सम्मान के साथ साथ एक-एक लाख रुपए की राशि भी भेंट की जाएगी। 

इन्हें मिलेगा सम्मान 
नागरिक श्रेणी
विनीता कामटे, महाराष्ट्र
मनोज करवार्सा , हरियाणा
रमेश वर्मा, हरियाणा
राजन घटे, गोवा
अतहर शम्सी, उत्तर प्रदेश

पत्रकार श्रेणी
सैकत दत्ता, आउटलुक पत्रिका

पीआईओ श्रेणी 
प्रदीप कुमार, बीडीओ, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश

विशेष सम्मान मरणोपरान्त 
अमित जेठवा, गुजरात
दत्ता पाटिल, महाराष्ट्र 
सतीश शेट्टी, महाराष्ट्र
विट्ठल गिटे, महाराष्ट्र
सोला रंगा राव, आंध्र प्रदेश
शशिधर मिश्रा, बिहार
बिसराम लक्ष्मण, गुजरात
वेंकटेश , कर्नाटक
ललित मेहता, झारखण्ड
कामेश्वर यादव, झारखण्ड

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

सोने के नहीं होते स्वर्ण पदक

कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर सूचना मांगने के कई आवेदन डाले गए. इनमें से बहुत से आवेदनों को तो अफसर इधर से उधर भेज रहे हैं. आयोजन समिति के पास दाखिल एक आवेदन के पहले खेल मंत्रालय भेज दिया जाता है. खेल मंत्रालय वापस इसे आयोजन समिति को भेज रहा है. चूहे बिल्ली के इस खेल के बाद भी कुछ सूचना निकल कर सामने आ रही है जिस पर आगे जांच किए जाने की ज़रूरत है. जैसे -

चिकित्सा: 15 दिन में 15 करोड़ खर्च
- कॉमनवेल्थ गेम्स में एक चिकित्सा केंद्र बनाया गया था. यहां कुल 3665 लोगों को  चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई और इस पर कुल 14,99,79,200 रुपया खर्च किया गया. यानि 15 दिन चले सेंटर पर प्रति मरीज़ पर करीब 50 हज़ार रुपए खर्च हुए. इनमें से 46 मरीजों को जीबी पंत अस्पताल में भी रैफर किया गया. 15 दिन में हुए इस खर्चे का हिसाब भी निकाला जाना चाहिए. मरीजों को देखे जाने के रजिस्टर को भी देखना होगा.

-  आयोजन समिति का कहना है कि खेलों के  उदघाटन व समापन समारोह पर अलग अलग खर्च बताना संभव नहीं है लेकिन दोनों समारोहों पर कुल 225 करोड़ 43 लाख रुपए खर्च हुए.

सोने के नहीं होते स्वर्ण पदक
- इसी तरह अगर आप सोच रहे हैं कि खेलों में सोने के तमगे वाकई सोने के होतें हैं तो आपकी जानकारी इस खबर को पढ़कर बढ़ सकती है. कॉमनवेल्थ के दौरान सोने के पदक 5539 रुपए में और चांदी के पदक 4800 रुपए में खरीदे गए. वैसे कुल मिलाकर सोने चांदी और  कांस्य के पदकों की खरीद पर 81 लाख रुपए खर्च किए गए.

शुंगलू समिति के पास कोई अधिकार नहीं

प्रधानमंत्री कार्यालय ने मान लिया है कि कॉमनवेल्थ में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए जो शुंगलू कमेटी बनाइ गई उसका अधिकार और कार्यक्षेत्र तय नहीं है. देश भर में मचे हो हल्ले के बाद प्रधानमंत्री ने बड़े जोर शोर से शुंगलू कमेटी के गठन का ऐलान किया था. लेकिन अभी तक उसका अधिकार और कार्य क्षेत्र तय नहीं है. सूचना के अधिकार कानून के तहत दाखिल एक आवेदन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय से जो जवाब मिला है उसकी फाईल नोटिंग्स से यह खुलासा हुआ है. फाईल नोटिंग्स में लिखा है कि इस बारे में अभी केबिनेट सचिव से सलाह मांगी गई है. फाईल नोटिंग में आगे लिखा गया है कि इस समिति को सीबीआई, सीवीसी, ईडी. या सीएजी. को अधिकार एवं ताकत देने वाले कानूनों से भी कोई अधिकार नहीं प्राप्त है.
ऐसे में यह समिति देश की आंख में जांच की धूल झोंकने के अलावा क्या काम कर सकती है.


गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

पांच सालों में कहां पहुंचा है सूचना का अधिकार !

सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को लागू हुए पांच साल हो चुके हैं। पिछले पांच सालों में इस कानून का लाभ खेत में काम करने वाले किसान से लेकर सत्ता के गलियारे में बैठे बडे बडे नेताओं और अधिकारियों सभी ने अपने अपने तरीके उठाया है। आरटीआई का इस्तेमाल करके जहां एक ओर लोगों ने अपने राशन कार्ड और पासपोर्ट बिना रिश्वत दिये बनवाये वहीं दूसरी ओर कॉमनवेल्थ गेम और आदर्श सोसाइटी जैसे बडे घोटालों का भांड़ाफोड भी किया। लेकिन ऐसा नहीं है कि आरटीआई के इस्तेमाल करने वालो को केवल सफलता ही मिल रही है। पांच सालों में कई ऐसे मौके आये है जब कभी सरकार की ओर से कानून में संशोधन करके इसे कमजोर करने की कोशिश की गई तो कभी जिन लोगों का भाण्डाफोड हुआ उन्होंने आरटीआई इस्तेमाल करने वाले लोगों को धमका कर रोकने की कोशिश की और जब वो नहीं माने तो हत्या तक करवा दी। इसी साल पीछले ग्यारह महिनों 10 से भी ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।

1992 से अब तक हुए बड़े घोटाले


भ्रष्टाचार का समाधान
-मनीष सिसोदिया
ऊपर दिए गए घोटालों की यह लिस्ट और भी बढ़ाई जा सकती है। और हम सब जानते हैं कि यह बहुत लंबी है। लेकिन यहां मकसद वह सब दोहराना नहीं बल्कि समाधान पर विचार करना है। दरअसल जैसे ही कोई घोटाला सामने आता है तो कुछ जुमले चल निकलते हैं यथा- भारत घोटालों का लोकतन्त्र बन चुका है, भ्रष्टाचार हमारा सामाजिक चरित्र बन चुका है... 'सब के सब चोर हैं'...  'इस देश का कुछ नहीं हो सकता'... 'हर आदमी अपने अपने स्तर पर चोर है'... 'तभी तो चोर नेता चुने जाते हैं'... आदि आदि... और इन सबके बीच असली मुद्दा दबा दिया जाता है कि मर्ज की दवा क्या है। वस्तुत: तो इस शोर में यह सवाल भी दब जाता है कि मर्ज क्या है।
मर्ज और दवा की बात करें तो भ्रष्टाचार की घटना के मूल में जाकर विश्लेषण करना पड़ेगा. भ्रष्टाचार को लेकर हमारे देश में दो कारण चर्चा में बने रहते हैं- 
  • व्यवस्था यानि शासन में खामी है: देश के तमाम नेता, अफसर भ्रष्ट हो गए हैं, और इनके साथ साथ जज, वकील और पत्रकार भी भ्रष्ट हो गए हैं अत: किसी का कुछ नहीं बिगड़ता।
  • व्यक्ति में खामी है: देश का लगभग हर आदमी अपने कार्य व्यवहार में ईमानदारी नहीं बरत रहा जिसे आचरण या चरित्र कहकर समझाया जाता है। 
आज़ादी के बाद जितने भी आन्दोलन चले हैं, सुधार के कार्यक्रम चले हैं वे कुल मिलाकर व्यवस्था सुधार (बदलाव) या व्यक्ति सुधार पर केन्द्रित रहे हैं। अधिकांशत: ये दोनों धाराएं एक दूसरे से अलग अलग भी चली हैं। ``व्यवस्था बदलाव´´ या ``व्यक्ति-सुधार´´ अभियानों से जुड़े लोग प्राय एक दूसरे के प्रयासों का उपहास उड़ाते देखे जा सकते हैं। 

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

सेना में पारदर्शिता के लिए आगे आएं

-मनीष सिसोदिया

आदर्श और सुखना घोटालों ने सेना में भ्रष्टाचार के गम्भीर संकेत दिए हैं। नेता, अफसर, जज, पत्रकार... शायद इनके भ्रष्ट होने की हमें आदत पड़ गई है... और इन सबका भ्रष्ट होना शायद हमें इतना प्रभावित न कर पाए जितना सेना में भ्रष्टाचार कर सकता है। अगर सेना भ्रष्ट हो गई तो इस देश में रहने वालों का क्या हश्र होगा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन जैसे पड़ोसी या फिर अमेरिका जैसे जैकाल मुल्क हमारा क्या हश्र बनाएंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
लेकिन आदर्श घोटाले की रोशनी में देखें तो हमारी सेना में भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है। जलसेना की ज़मीन पर 31 मंज़िला इमारत बनकर खड़ी हो जाती है, थलसेना अध्यक्ष महाराष्ट्र के निवासी होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाते हैं, अपनी तन्ख्वाह 15 हज़ार रुपए से नीचे बताते हैं और कारगिल के शहीदों की विधवाओं के नाम बने फ्रलैट अपने नाम करा लेते हैं. इसी रोशनी में सेना के कुछ और घोटालों पर रोशनी डालते चलते हैं -

बुधवार, 3 नवंबर 2010

सूचना कानून के दायरे में नहीं 'राजीव गाँधी फाउण्डेशन'

राजीव गाँधी फाउण्डेशन, 
  • जिसकी अध्यक्ष सोनियां गाँधी हैं, वही सोनिया गाँधी जिन्हें देश में सूचना के अधिकार को लागू करने का श्रेय दिया जाता है,
  • जिसकी प्रबन्ध् समिति में योजना आयोग के उपाध्यक्ष, गृह मंत्री जैसे लोग हैं,
  • जिसका दफ्तर सरकार द्वारा एक अन्य संस्था को प्रदत्त खरबों रुपए की ज़मीन पर चल रहा है, और उस संस्था को दी जाने वाली तमाम सुविधाओं का फायदा उठा रहा है, 
  • जिसके अरबों रुपए के बजट में से 4 फीसदी जनता के दिए गए टैक्स से आता है, 
  • जिसके बनाने की घोषणा केन्द्रीय वित्त मंत्री ने अपने बजटीय भाषण में की थी,  
  • जिसके चलाने के लिए सरकार ने 100 करोड़ रुपए का एक कोष भी बनाया था,
  • जिसके भवन निर्माण का खर्च शहरी विकास मन्त्रालय ने उठाया,
  • जिसे कई अन्य प्रकार से भी कर, बिल आदि में छूट प्राप्त है,
और जिसका दावा है कि वह 
  • राजीव गाँधी के सपनों को पूरा करने का काम कर रही है,
  • बच्चों, महिलाओं और दूसरे वंचित तबकों के कल्याण के लिए सैकड़ों योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाता है।
वह राजीव गाँधी फाउण्डेशन संस्था सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आती है। संस्था के अधिकारी तो सूचना के अधिकार के आवेदनों को खारिज करते ही रहे हैं अब केन्द्रीय सूचना आयोग के तीन आयुक्तों की पीठ ने भी एक आदेश में इस पर मोहर लगा दी है कि यह संस्था सूचना अधिकार कानून के दायरे से बाहर है।
 
शानमुगा पात्रों ने सूचना के अधिकार कानून के तहत संस्था से उसकी परियोजनाओं के बारे में जानकारी मागी थी। सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी, एम.एल.शर्मा और सत्यानन्द मिश्रा की एक पूर्ण पीठ ने उनकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि सूचना मांगे जाने के लिए किसी संस्था पर सरकार का परोक्ष या प्रत्यक्ष वित्तीय पोशण ज़रूरी है। आयोग ने कहा कि न तो सरकार का इस संस्था पर मालिकाना हक है और न ही यह सरकार से नियन्त्रित है। इसकी कमाई में महज़ चार फीसदी ही सरकार के पास से आता है अत: इसे वित्तीय सहायता पाने वाली संस्था में भी नहीं रखा जा सकता। पात्रों का तर्क था कि फाउण्डेशन को काफी मात्रा में सरकारी पैसा मिलता है अत: इसे सूचना के अधिकार के दायरे में आना चाहिए। लेकिन आयोग ने इन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। 
 
सवाल यह है कि क्या केन्द्रीय सूचना आयोग में बैठे आयुक्तों ने ``10 जनपथ´´ के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी (वफादारी) निभाई है। आखिर वहां बैठे कई लोगों की नियुक्ति ``10 जनपथ´´ यानि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की मेहरबानी से ही हुई थी।

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी आई.ए.एस. अफसर ने लिया सूचना कानून का सहारा

देश के कोने कोने से अधिकारियों की एक ही गुहार है कि सूचना अधिकार कानून तो बहुत अच्छी चीज़ है लेकिन इसने हमारा काम करना मुश्किल कर दिया है। लगभग हर अफसर से आप सूचना अधिकार के इस्तेमाल को लेकर ये शब्द सुन सकते हैं... ``लोग निजी शिकायतों को सूचना अधिकार जैसे बड़े कानून के ज़रिए हल करने के चक्कर में आवेदनों का अंबार लगाए जा रहे हैं... यह कानून तो सरकार के काम में पारदर्शिता लाने जैसे व्यापक कामों में इस्तेमाल होना चाहिए... आदि आदि...´´

लेकिन जब बात अपने उपर आती है तो वे भी सूचना के अधिकार का उपयोग करने से नहीं चूकते। ताज़ा घटनाक्रम में झारखण्ड की एक आई.ए.एस अधिकारी ने इस कानून का इस्तेमाल किया है। उसने अपने खिलाफ लगे आरोपों के जवाब में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दाखिल किया, और अब वो लोक सूचना अधिकारी से मिले जवाब को अपने पाक साफ होने के सबूत के रूप में पेश कर रही हैं।

वर्तमान में पलामू की उपायुक्त पूजा सिंघल पुरवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की खबरें अचानक मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। उन पर आरोप लगाए जा रहे थे कि पलामू से पहले खूंटी ज़िले की उपायुक्त रहते हुए उन्होंने नियम कायदों को ताक पर रखकर जूनियर इंजीनियरों को एडवांस भुगतान कराया। इन खबरों का जवाब देने के लिए पूजा सिंघल ने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन खूंटी ज़िले के उपायुक्त कार्यालय में डाला। उन्होंने जानकारी मांगी कि ``क्या उनके पद पर रहते उनकी तरफ से इंजीनियरों को एडवांस पेमेंट कराया गया?´´ लोक सूचना अधिकारी ने उनके सवालों के जवाब में ``नहीं´´ लिखकर दे दिया।
इस ``नहीं´´ को अब उन्होंने अपनी ढाल बनाकर, अपने खिलाफ लगे आरोपों की पुख्ता काट बनाकर मीडिया के सामने रखना शुरू किया है।

किसी आई.ए.एस. अधिकारी द्वारा सूचना के अधिकार का इस तरह इस्तेमाल करना अच्छी बात है। इस उदाहरण के ज़रिए सूचना कानून की उपयोगिता देश के कोने कोने में लोक सूचना अधिकारियों को भी समझाई जानी चाहिए। लेकिन यहां कुछ तथ्यों और उनसे उठने वाले सवालों पर भी गौर करना होगा:
  • पूजा सिंघल ने 8 अक्टूबर 2010 को अपना आवेदन दाखिल किया।
  • उन्हें मात्र 4 दिन में यानि 12 अक्टूबर 2010 को ही अपने सवालों के जवाब मिल गए। (आम आदमी को तो कानून में 30 दिन की समय सीमा बीतने के बाद ही सूचना मिलती है, वो भी आधी-अधूरी)
  • उन्होंने अपने आवेदन में जानकारी लेने के लिए चन्द सवाल लिखे और लोक सूचना अधिकारी ने उसका जवाब हां/ना में दे दिया...(जबकि आम आदमी के आवेदनों को हमेशा यह कहकर खारिज कर दिया जाता है कि सूचना कानून सवाल जवाब  पूछने की इजाज़त नहीं देता)

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

खेल ख़त्म हिसाब किताब शुरू (सरकार पर न छोड़ें, आईए हम खुद अपने पैसे का हिसाब मांगें)

कॉमनवेल्थ खेलों में करोड़ों का वारा न्यारा हुआ है. खेल खत्म हो गए हैं. 
इन खेलों पर जो पैसा खर्च हुआ है वह हमारा पैसा था. अगर यह पैसा हमसे टैक्स के रूप में न वसूला गया न होता तो हम इसे अपने परिवार के किए कई तरह की सुविधा और सामान जुटाने पर खर्च कर सकते थे. अपने आस पास, अपने गांव या शहर की बेहतरी पर खर्च कर सकते थे. लेकिन सरकार ने हमसे वह पैसा टैक्स के रूप में देश का विकास करने के नाम पर लिया और हमने दिया. उस पैसे में इतनी बड़ी हेराफेरी खून खौलाती है. 
हम लोग एक सब्ज़ी वाले से एक एक रुपए का हिसाब मांगते हैं, दूध वाले से एक एक रुपए का हिसाब किताब मांगते हैं, रिक्शा वाले से हिसाब किताब मांगते हैं, यहां तक कि अपने बच्चों को पैसा देते हैं तो उनसे भी पूछते हैं. 
तो फिर क्या अपनी मेहनत के अरबों रुपए की चोरी पर कुछ नहीं पूछेंगे... क्या सिर्फ जांच समिति, सीवीसी, सीबीआई के सहारे बैठे रहेंगे. सरकार के स्तर पर खेलों में हुए घपलों की कुछ जांच आदि की जा रही है. हमारा ऐसा कोई दुराग्रह नहीं है कि यह जांच कारगर नहीं होगी लेकिन भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए कदमों के इतिहास को देखते हुए भरोसा नहीं होता कि यह जांच भी किसी दोषी को सामने ला पाएगी. किसी को दण्ड दिलाना तो दूर की बात है. 

सरकार द्वारा की जा रही जांच का सम्मान करते हुए, हमें लगता है कि सिर्फ सरकार के भरोसे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा. सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हम सबको, देश के अधिक से अधिक लोगों को सवाल उठाने होंगे. हमने अपनी समझ और कुछ साथियों से मिले सुझावों के आधार पर कुछ मुद्दे निकाले हैं और उनके संबन्ध में सूचना के अधिकार आवेदन तैयार किए हैं. यहां हम इन आवेदनों को इस अपेक्षा में प्रकाशित कर रहे हैं कि इन मुद्दों पर अधिक से अधिक लोग सवाल पूछ सके. मुद्दे और भी हो सकते हैं, अगर कुछ साथी अन्य मुद्दों को भी उठाना चाहते हैं तो वे मुद्दे सुझा सकते हैं, सूचना अधिकार आवेदन तैयार करने में हम मदद कर सकते हैं - 

गाड़ियों पर हुआ खर्च
1. 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कॉमनवेल्थ आर्गेनाइज़ेशन कमेटी के पास कुल कितनी गाड़ियां रहीं?
2. इसके बारे में निम्न विवरण भी उपलब्ध कराएं - 
   उपरोक्त में से कितनी ग़डियां किराए पर ली गईं थीं?
   कितनी गाड़ियां समिति की अपनी थीं?
   कितनी गाड़ियां किसी अन्य विभाग या संस्था की ओर से उपलब्ध थीं.
3. उपरोक्त गाड़ियों की सूची निम्न विवरण के साथ उपलब्ध कराएं 
वाहन का प्रकार (बस, कार, ट्रक...इत्यादि)
वाहन रजिस्ट्रेशन संख्या
 4. सितम्बर 2010 से 15 अक्टूबर 2010 के बीच प्रत्येक गाड़ी कितने कितने किलोमीटर चली?

स्वास्थ्य सेवाएं
  1. कॉमनवेल्थ विलेज में कुल कितने चिकित्सा अथवा स्वास्थ्य केन्द्र बनाए गए थे. 
  2. कुल कितने लोगों ने इन केन्द्रों पर उपलब्ध सुविधाओं का लाभ लिया?
  3. इन केन्द्रों के परिचालन पर कुल कितनी राशि खर्च की गई? 
  4. इन केन्द्रों के परिचालन पर कुल कितने चिकित्साकर्मी तैनात किए गए?
  5. इन केन्द्रों से कुल कितने व्यक्तियों को आगे इलाज के लिए किसी अन्य हॉस्पिटल में रेफर किया गया?

उदघाटन समारोह के टिकिट
  1. कॉमनवेल्थ खेलों के उद्घाटन समारोह में टिकिटों की बिक्री से कुल कितनी राशि प्राप्त हुई?
  2. उद्घाटन समारोह के लिए मूल्य के आधार पर कुल कितने प्रकार की टिकिट श्रेणिया(स्लैब) बनाई गई थीं? 
  3. इनमें से प्रत्येक श्रेणी का विवरण निम्न जानकारी के साथ दें 
    1. टिकिट दर
    2. प्रत्येक श्रेणी में बिक्री के लिए उपलब्ध कुल टिकिटों की संख्या
    3. प्रत्येक श्रेणी में बिके कुल टिकिटों की संख्या
    4. प्रत्येक श्रेणी में टिकिटों की बिक्री से उपलब्ध राशि
  4. उद्घाटन समारोह के दौरान स्टेडियम में कुल कितने लोगों के बैठने की व्यवस्था थी?
  5. उपरोक्त में से कुल कितनी सीटों के लिए टिकट बिक्री के ज़रिए उपलब्ध कराने की व्यवस्था थी?

समापन समारोह के टिकिट
  1. कॉमनवेल्थ खेलों के समापन समारोह में टिकिटों की बिक्री से कुल कितनी राशि प्राप्त हुई? 
  2. समापन समारोह के लिए मूल्य के आधार पर कुल कितने प्रकार की टिकिट श्रेणिया(स्लैब) बनाई गई थीं? 
  3. इनमें से प्रत्येक श्रेणी का विवरण निम्न जानकारी के साथ दें 
    1. टिकिट दर
    2. प्रत्येक श्रेणी में बिक्री के लिए उपलब्ध कुल टिकिटों की संख्या
    3. प्रत्येक श्रेणी में बिके कुल टिकिटों की संख्या
    4. प्रत्येक श्रेणी में टिकिटों की बिक्री से उपलब्ध राशि
  4. समापन समारोह के दौरान स्टेडियम में कुल कितने लोगों के बैठने की व्यवस्था थी?
  5. उपरोक्त में से कुल कितनी सीटों के लिए टिकट बिक्री के ज़रिए उपलब्ध कराने की व्यवस्था थी?
कॉमनवेल्थ लेन एवं दिल्ली पुलिस (1)
  1. कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए दिल्ली की सड़कों पर अलग कॉमनवेल्थ लेन बनाई गई थी. इस लेन पर वाहन चलाने के संबन्ध में दिल्ली पुलिस या अन्य संबद्ध विभागों की तरफ से कुछ दिशा निर्देश भी जारी किए गए थे. इन दिशा निर्देशों के जारी किए जाने के संबन्ध में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध कराईए - 
  2. कॉमनवेल्थ (ट्रेफिक) लेन बनाए जाने, उस पर ट्रेफिक पुलिस तैनात करने, एवं अधिकृत वाहनों के अलावा अन्य वाहन चालकों के इस लेन पर आने की स्थिति में ज़ुर्माना लगाने का निर्णय जिन बैठक में लिया गया उस सभी बैठकों के मिनिट्स ऑफ मीटिंग की छायाप्रति उपलब्ध कराएं
  3. उपरोक्त  से संबन्धित फाईलों के फाईल नोटिंग्स की छाया प्रति भी उपलब्ध कराएं.

कॉमनवेल्थ लेन एवं दिल्ली पुलिस (2)
  1. कॉमनवेल्थ (ट्रेफिक) लेन बनाए जाने का निर्णय जिस बैठक में लिया गया उस बैठक के मिनिट्स ऑफ मीटिंग की छायाप्रति उपलब्ध कराएं
  2. कॉमनवेल्थ (ट्रेफिक) लेन पर चलने वाले सामान्य वाहन चालकों पर ज़ुर्माना लगाए जाने का निर्णय जिस बैठक में लिया गया उस बैठक के मिनिट्स ऑफ मीटिंग की छायाप्रति उपलब्ध कराएं. 
  3. उपरोक्त बैठक में भाग लेने वाले अधिकारियों/व्यक्तियों के नाम एवं पदनाम की सूची उपलब्ध कराएं
  4. कॉमनवेल्थ (ट्रेफिक) लेन पर चलने वाले सामान्य वाहन चालकों पर 2000 रुपए का ज़ुर्माना  लगाने (या कोई अन्य प्रावधान करने) का प्रस्ताव किस आधिकारी ने दिया उसका नाम व पदनाम बताएं.

विज्ञापनों पर हुआ खर्च
कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति द्वारा 1 अप्रैल 2010 से इस पत्र का जवाब दिये जाने तक विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिकाओं, समाचार चैनलों को दिए गए विज्ञापनों के संबन्ध में निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध कराएं :
  1. इस दौरान समिति द्वारा विज्ञापनों पर कुल कितनी राशि खर्च की गई?
  2. समिति द्वारा विज्ञापन देने का कार्य किन एजेंसियों के माध्यम से करवाया गया? उनके संबन्ध में निम्नलिखित सूचना दें 
    1. एजेंसी का नाम
    2. एजेंसी को भुगतान की गई राशि
    3. आयोजन समिति ने बगैर विज्ञापन एजेंसी के कितनी राशि के विज्ञापन सीधे जारी किए. 
    4. प्रत्येक एजेंसी द्वारा जारी अथवा समिति द्वारा सीधे समाचार माध्यम को जारी किए गए विज्ञापनों के संबन्ध में निम्नलिखित विवरण उपलब्ध करायें - 
    5. विज्ञापन का विषय/नाम, 
    6. विज्ञापन प्रकाशित/प्रसारित होने की तारीख,  
    7. जिस कम्पनी, अखबार, टीवी चैनल या पत्रिका में विज्ञापन दिया गया उसका नाम व पता,
    8. विज्ञापन के लिए भुगतान की गई राशि, राशि के भुगतान का माध्यम नकद, चेक या किसी अन्य विवरण दें. (यदि चेक से किया गया हो तो चेक नंबर दें, यदि नकद या किसी अन्य माध्यम से किया गया हो तो प्राप्ति रसीद की प्रति दें.)
(यही सवाल दिल्ली सरकार से भी पूछे जाने हैं)

पत्र व्यवहार
पीएमओ
प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा १ अगस्त २०१० से १५ अक्टूबर २०१० के बीच कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के संबन्ध में विभिन्न विभागों के साथ किए गए पत्र व्ययहार की छायाप्रति उपलब्ध कराएं.  (इसमें कृपया इस विषय से संबन्धित विभिन्न ईमेल, आदेशों, दिशा निर्देशों आदि की छायाप्रति भी उपलब्ध कराएं)
सीएमओ
मुखयमंत्री कार्यालय द्वारा १ अगस्त २०१० से १५ अक्टूबर २०१० के बीच कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के संबन्ध में विभिन्न विभागों के साथ किए गए पत्र व्ययहार की छायाप्रति उपलब्ध कराएं.  (इसमें कृपया इस विषय से संबन्धित विभिन्न ईमेल, आदेशों, दिशा निर्देशों आदि की छायाप्रति भी उपलब्ध कराएं)
एलजी कार्यालय
उपराज्यपाल कार्यालय द्वारा १ अगस्त २०१० से १५ अक्टूबर २०१० के बीच कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के संबन्ध में विभिन्न विभागों के साथ किए गए पत्र व्ययहार की छायाप्रति उपलब्ध कराएं.  (इसमें कृपया इस विषय से संबन्धित विभिन्न ईमेल, आदेशों, दिशा निर्देशों आदि की छायाप्रति भी उपलब्ध कराएं)
ओसी.
१ अगस्त २०१० से १५ अक्टूबर २०१० के बीच कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के संबन्ध में प्रधानमंत्री कार्यालय, मुखयमंत्री कार्यालय(दिल्ली सरकार) एवं उपराज्य कार्यालय, दिल्ली के साथ किए गए पत्र व्ययहार की छायाप्रति उपलब्ध कराएं.  (इसमें कृपया इस विषय से संबन्धित विभिन्न ईमेल, आदेशों, दिशा निर्देशों आदि की छायाप्रति भी उपलब्ध कराएं)

उदघाटन समारोह पर खर्च
  1. कॉमनवेल्थ खेलों के उद्घाटन समारोह पर कॉमनवेल्थ आयोजन समिति की ओर से कुल कितनी राशि खर्च की गई?
  2. इस खर्च का मदवार ब्यौरा उपलब्ध कराएं 
  3. कॉमनवेल्थ खेलों के समापन समारोह पर कॉमनवेल्थ आयोजन समिति की ओर से कुल कितनी राशि खर्च की गई?
  4. इस खर्च का मदवार ब्यौरा उपलब्ध कराएं 

सड़कों पर बैनर (व्युकटर)
  1. कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर सड़कों के किनारे फ्लैक्स के बैनर लगाए गए थे.
  2. इन बैनर्स को लगाने का ठेका किस कंपनी को दिया गया था?
  3. इसके लिए कंपनी को कुल कितनी राशि का भुगतान किया गया?
  4. कंपनी ने कुल कितने बैनर लगाए?
  5. ये बैनर किन किन स्थानों पर लगाए गए, उन स्थानों के नाम की सूची उपलब्ध कराएं.

होटलों पर खर्च
  1. कॉमनवेल्थ आयोजन समिति के रिकार्ड के मुताबिक खेलों में शामिल होने के लिए कुल कितने विदेशी खिलाड़ी एवं अन्य प्रतिनिधि अधिकारिक रूप से भारत आए?
  2. इनमें से कितने खिलाड़ी या अन्य प्रतिनिधि कॉमनवेल्थ खेल विलेज में रहे?
  3. इनमें से कितने लोगों को सरकारी खर्चे पर होटल में ठहराया गया?
  4. आयोजन समिति के खर्चे पर होटलों में ठहराए गए लोगों की सूचना निम्न विवरण के साथ उपलब्ध करवाएं 
    1. मेहमान का नाम
    2. मेहमान का देश
    3. होटल का नाम
    4. होटल में ठहरने की अवधि (किस तारीख से किस तारीख तक)
    5. होटल को अदा की गई राशि

प्रतियोगिताओं के जज
  1. कॉमनवेल्थ खेलों की विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए जज के रूप में कुल कितने विशेशज्ञों की सेवाएं ली गईं?
  2. इन विशेशज्ञों के बारे में निम्न सूचना उपलब्ध करावाईए
    1. जज का नाम 
    2. जज का देश  
    3. किस प्रतियोगिता के लिए बुलाया गया
    4. जज को अदा की गई राशि (फीस आदि के रूप में)
    5. जज को लोकल कन्वेंस आदि के रूप में भुगतान की गई राशि
    6. जज को कहां ठहराया गया?
मेडल बनवाने पर खर्च
कॉमनवेल्थ खेलों में विभिन्न खिलाडियों कि दिए गए मेडल्स के बारे निम्नलिखित सूचना उपलब्ध कराईए
1. सोने के कुल कितने मेडल बनवाए गए
2. प्रत्येक मेडल के बनाने पर कितना खर्च आया
3. चान्दी के कुल कितने मेडल बनवाए गए
4. प्रत्येक मेडल के बनाने पर कितना खर्च आया
5. कांस्य के कुल कितने मेडल बनवाए गए
6. प्रत्येक मेडल के बनाने पर कितना खर्च आया
7. मेडल बनवाने का काम किन किन ऐजेंसियों से करावाया गया? उनके बारे में निम्न सूचना दें
ऐजेंसी का नाम एवं पता
8. ऐजेंसी से किस श्रेणी के तथा कितने मेडल बनवाए गए
9. एजेंसी को भुगतान की गई राशि

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

सूचना का अधिकार: अभी भी बची है उम्मीद (कानून बनने के पांच साल के सफर का `हासिल-जमा´)

  • प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की विदश यात्राओं पर पिछले छह साल में देश की जनता का 141 करोड़ रुपया खर्च हुआ है। यह तो विदेशों में उनके ठहरने और गाड़ी आदि की व्यवस्था पर व्यय हुआ है इसमें उनकी हवाई उड़ानों पर हुआ खर्च शामिल नहीं है।
  • उनके मन्त्रिमण्डल के 78 में से 71 मंत्री, महज़ साढ़े तीन साल में 786 बार विदेश यात्राओं पर रहे। विदेश यात्राओं पर इन मन्त्रियों ने कुल मिलाकर 1 करोड़ 2 लाख किलोमीटर की हवाई यात्राएं कीं। इतनी दूरी चलने में धरती के 256 चक्कर लगाए जा सकते हैं।
  • जो कुर्सी बाज़ार में 1000 रुपए में नई खरीदी जा सकती है उसे 15 दिन के कॉमनवेल्थ खेल तमाशे के लिए 4000 रुपए देकर किराए पर लिया जा रहा है। इतना ही नहीं इस तमाशे पर खर्च करने के लिए जनता के टैक्स के वो 725 करोड़ रुपए भी लगा दिए गए जो अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण के लिए बजट में रखे गए थे।
  • कश्मीर में तैनात एक मेजर की मां जानती है कि उसके बेटे की आत्महत्या की कहानी झूंठी है और अब उसकी जानकारी के आगे मजबूर भारतीय सेना को मामले की पुन: जांच करानी पड़ रही है।
  • गाज़ियाबाद ज़िले के सरकारी स्कूलों में नौकरी कर रहे अध्यापक अपनी पहुंच और शायद पैसे के भी बल पर अपनी तैनाती ज़िला मुख्यालय में ही कराकर रखते हैं जिसके चलते दूर दराज़ के 200-400 बच्चों के स्कूलों को मुश्किल से एक अध्यापक नसीब होता है लेकिन शहर में 50-100 बच्चों के स्कूल में भी एक एक दर्जन अध्यापक हैं। यह जानकारी जनता में आती है तो पहुंच और पैसे की ताकत कमज़ोर पड़ जाती है।
ऊपर वर्णित और हज़ारों ऐसे ही अन्य खुलासे हमारे मुल्क के आम आदमी ने किए हैं। उस आम आदमी ने जो लोकतन्त्र के नाम पर पांच साल में एक बार अपना राजा चुनने के लिए तो स्वतन्त्र है लेकिन फिर अगले पांच साल उसी की गुलामी करने को मजबूर भी है। अपने नेताओं और अफसरों को पालता आया और उन्हीं के हाथों पग-पग पर शोषित होता आया आम आदमी आज उनसे अपने खून पसीने की कमाई से हुए खर्चे का हिसाब-किताब मांग रहा है। गुलामी के लंबे इतिहास के बाद हमारे देश में परिवर्तन की बेहद महत्वपूर्ण घटना घट रही है। और इस परिवर्तन का आधार बन रहा है 2005 में लागू सूचना का अधिकार कानून।
13 अक्टूबर 2010 को यह कानून पूरे देश में पांच साल पुराना हो जाएगा। किसानों, मजदूरों और लगभग हर क्षेत्र से जुड़े शुभचिन्तकों के करीब 15 साल के ज़मीनी संघर्ष के बाद बना यह कानून देश के लोगों के जीने का अन्दाज़ बदल रहा है। अनुमान है कि अभी तक इस कानून के अन्तर्गत सूचना मांगने के आवेदन 50 लाख  दाखिल हुए हैं। हर आवेदन से जुड़ा घटना क्रम सूचना के अधिकार के अधिकार के पांच साल का हासिल जमा है।
बिहार के झंझारपुर गांव (मधुबनी ज़िला) में रिक्शाचालक मज़लूम ने 2006 में ही जिस तरह इस कानून का इस्तेमाल किया उससे इसकी ताकत व उपयोगिता को लेकर एक नया भरोसा जगता है। इन्दिरा आवास योजना के तहत 25000 रुपए देने के लिए ब्लॉक डवलपमेंट अफसर (बीडीओ) के दफ्रतर में 5000 रुपए की रिश्वत मांगी जा रही थी। रिश्वत न खिला पाने से लाचार अनपढ़ और गरीब मज़लूम तीन साल से बीडीओ दफ्रतर के धक्के खा रहा था। मज़लूम की मदद गांव के ही सामाजिक कार्यकर्ता अशोक सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने का आवेदन बना कर की। सवाल पूछते ही एक सप्ताह में मज़लूम को 15 हज़ार का चैक मिल गया। एक महीने के बाद जब बाकी के 10000 रुपए लेने गए मज़लूम से रिश्वत मांगी गई तो अनपढ़ मज़लूम ने बीडीओ को कह दिया कि अगर मेरा पैसा नहीं दोगे तो फिर से ``सोचना की अर्जी´´ लगा दूंगा। सोचना और सूचना में फर्क न समझने वाले निरक्षर मज़लूम को एक ही अनुभव में समझ में आ गया कि यह यह कोई बड़ा परिवर्तन हो गया है। और यह समझ ही देश के लाखों मज़लूमों को सच्चे अर्थों में सशक्त बनाती है। सशक्तीकरण के बाकी तमाम प्रयास तो सिर्फ भाषा ही साबित हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के बान्दा ज़िले में एक गांव की सत्ताईस अनपढ़ महिलाओं ने जब शिक्षा विभाग से पूछा कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत उनके बच्चों को किताबें और स्कूल ड्रेस, स्कूल खुलने के छह महीने के बाद भी क्यों नहीं दिए गए हैं तो पूरे ज़िले के तमाम सरकारी स्कूलों में ड्रेस और किताबें बांट दिए गए। बाद में सूचना दी गई कि हमने ज़िले में 1 करोड़ 14 लाख रुपए की ड्रेस और 1 करोड़ 9 लाख की किताबें बांट दी हैं। यह घटना हमें बताती है कि गांव की 27 अनपढ़ महिलाओं ने सूचना के अधिकार कानून के तहत सवाल करते हुए न सिर्फ अपने बच्चों को ड्रेस व किताबें दिलवा दीं बल्कि सवा दो करोड़ रुपए की चोरी भी रोक दी जो दिल्ली और लखनऊ में बैठे ईमानदार अधिकारी भी रोक नहीं सकते थे। 
शायद ऐसी ही संभावनाओं को देखते हुए, कानून बनवाने के संघर्ष के दौरान प्रभाष जोशी जी ने नारा दिया था- ``जानने का हक़-जीने का हक´´। यानि यह महज़ जानने का हक नहीं है जीने का हक़ है। और अच्छी बात ये है कि बीते पांच सालों में यह कानून देश के हज़ारों लोगों के लिए जीने का हक बनने में सफल हुआ है।
लेकिन पांच साल की यात्रा के बाद यह सवाल तो बनता ही है कि क्या इस कानून के आने से उस व्यवस्था की बुनियाद में कोई परिवर्तन हुआ है जिसके चलते लोगों को जीने मात्र के लिए भी सूचना के अधिकार जैसे कानूनों की ज़रूरत पड़ती है। इस कानून के लिए संघर्ष में अगुआ रहे और फिर केन्द्रीय सूचना आयुक्त बने शैलेष गाँधी मानते हैं कि इस तरह के बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। लेकिन थोड़ा गहराई से देखें तो व्यवस्था से लेकर नौकरशाही की मानसिकता तक में अभी कोई बदलाव आया नहीं है।
इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों की संपत्ति को सार्वजनिक किए जाने के मामले में उठा विवाद मानी जा सकती है। दिल्ली निवासी सुभाष अग्रवाल के सूचना अधिकार आवेदन से निकली चिंगारी की तपिश संसद से लेकर सत्ता के हर गलियारे में महसूस की गई और अन्त में माननीय न्यायधीशों को अपनी संपत्ति के खुलासे की स्वत: घोषणा पर सहमत होना पड़ा। इसके अलावा भी बहुत से उदाहरण हैं जहां सूचना मिलने से संघर्ष आसान हुए हैं। लेकिन आज तक किसी बड़े नेता या अधिकारी को आरटीआई के तहत निकली सूचना के चलते कोई सज़ा नहीं मिली। विगत पांच साल में मैंने इस कानून को बचाए रखने औ ठीक से लागू किए जाने के सिलसिले में लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की है। लगभग सभी का मानना रहा है कि सूचना का अधिकार कानून `बहुत अच्छी चीज़´ है लेकिन इसका `दुरुपयोग´ बहुत हो रहा है। लोग अनर्गल सूचना मांग रहे हैं।
सत्ता के गलियारों में ज़रा सी भी भूमिका रखने वाले नेता या किसी भी स्तर के सरकारी कर्मचारी से बात कर लीजिए सबके मुंह से सूचना के अधिकार के बारे में यही प्रतिकिया सुनने को मिलेगी.. ``यह कानून तो बहुत अच्छा है, बहुत ज़रूरी है, लेकिन इसका सदुपयोग नहीं हो रहा है...´´ `सदुपयोग´ और `दुरुपयोग´ की सबकी अपनी परिभाषा है। ज़ाहिर है यह परिभाषा कानून के आधार पर नहीं मानसिकता के आधार पर दी जाती है।
ऊपर वर्णित और इन जैसे हज़ारों उदाहरणों के बाद भी सूचना कानून के पांच साल के अनुभव को अगर एक वाक्य में बयान करें तो कहना गलत न होगा कि यह कानून ऊपर से नीचे तक पसरे भष्टाचार और  साम्राज्यवादी मानसिकता का शिकार हो रहा है। सूचना प्रदान करने वाला पक्ष एक तरफ तो इसी बात से आहत होता है कि भला इस मुल्क के आम आदमी की यह हिम्मत कि वह हमसे सवाल पूछे... दूसरे अपने तथा अपने आकाओं के भ्रष्टाचार को दबाए रखने का दवाब, सवाल पूछने वाले को परेशान करने यहां तक कि उसकी हत्या तक को मजबूर कर रहा है। वर्ष 2010 में ही अब तक नौ ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां लोगों की हत्या संवेदनशील जानकारी सूचना अधिकार कानून के तहत मांगने की हत्या कर दी गई।
अधिकारियों द्वारा डराने धमकाने, जेल में डाल देने या फिर ताकतवर लोगों द्वारा मार पिटाई के मामले तो लगभग हर ज़िले में मिल जाएंगे।
भ्रष्ट और अहंकारी अधिकारियों से तो उम्मीद नहीं थी कि वे इस कानून के आने के बाद लोगों को खुले हाथ से सूचनाएं बांटने लगेंगे लेकिन सबसे अधिक निराश किया है सूचना आयोगों ने। बीते पांच साल में सूचना कानून को सबसे ज्यादा नुकसान सूचना आयुक्त के रवैये से पहुंचा है। सूचना न मिलने पर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग में किसी भी एक दिन आने नागरिकों से बात कर लीजिए, भ्रष्ट अधिकारियों का पक्ष लेने, आवेदको को हड़काने, सूचना न दिलवाने, ज़ुर्माना न लगाने की शिकायत करते ढेरों लोग मिल जाएंगे। इसकी एक वजह रही है सूचना आयोग की ताकतवर कुर्सी पर नियुक्ति की कोई स्पष्ट प्रक्रिया न होने के चलते नेताओं के करीबी लोगों का वहां पहुंच जाना। ज़ाहिर है राजनीतिक कृपा के रूप में कुर्सी पाने वाला व्यक्ति कानून का नहीं अपने `आका´ का ही ख्याल रखेगा।
समीक्षा करें तो तमाम बाधाओं के बाद भी सूचना के अधिकार को एक सफल कानून कहा जा सकता है। क्योंकि जिस तेज़ी से यह लोकप्रिय हुआ है वह अभूतपूर्व है। पांच साल में करीब 50 लाख लोगों द्वारा इस कानून का इस्तेमाल कोई छोटी बात नहीं है। वह भी तब जबकि इसमें बड़ी संख्या गांव में रह रहे लोगों की है। शायद यही वजह है कि पूरी तैयारी के साथ दो बार प्रयासों के बाद भी सरकार इस कानून को बदल कर कमज़ोर बनाने के मंसूबों में कामयाब नहीं हो पायी। लेकिन फिर भी दो स्पष्ट चुनौतियां है। पहली है सूचना आयोग की कुर्सी को राजनीतिक कृपा के साये से मुक्त करना। आयुक्त पद पर नियुक्ति के लिए स्पष्ट प्रक्रिया बनवाने के लिए शायद एक आन्दोलन की ज़रूरत है। और दूसरी चुनौती है सत्ता में बैठे लोगों का इस कानून के प्रति वैमनस्य भाव। इस कानून के प्रावधनों मे फेरबदल कर इसे कमज़ोर करने की योजना तो लंबित है ही नए कानूनों में गोपनीयता बनाए रखने के कड़े प्रवाधान भी लाए जा रहे हैं। जी.एम.फूड़ के संबन्ध् में प्रस्तावित कानून में ऐसे ही प्रावधान लाए जाने से विवाद इसका संकेत है। अगर नए कानूनों को सूचना अधिकार कानून 2005 से ऊपर कर दिया गया तो फिर यह कानून अपने आप ही दम तोड़ देगा।
अगर समय रहते इनका इलाज नहीं किया गया तो कोई बड़ी बात नहीं कि कुछ साल बाद हम इस कानून के खत्म होने पर समीक्षात्मक लेख लिख रहे हों। वर्ना बहराईच के वनग्रामों में इस कानून का सहारा लेकर अपने अधिकारों के लिए लड़ रही महिलाओं के मुताबिक ``इस कानून में दम तो है´´।

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

सूचना के अधिकार को बचाने के लिए आमरण अनशन

वैसे तो सूचना  का अधिकार कानून इस देश के हर नागरिक को सशक्त बनाता है. और इसे कमजोर करने की कोई भी कोशिश अंतत: देश के हर आदमी को कमजोर करेगी. लेकिन हममें से बहुत से लोग जो अपने भ्रष्टाचार, जान पहचान, छल-कपट के गुण, पैसे, दिखावे आदि के दमपर इस तरह की कमजोरी से पार पाने के भ्रम में जी रहे हैं, उन्हें शायद सूचना के अधिकार कानून के कमजोर होने से फर्क नहीं पड़ेगा.  इसलिए उनसे उम्मीद भी नहीं की जा सकती कि सूचना के अधिकार कानून को कमजोर किए जाने की किसी कोशिश के खिलाफ वे बोल सकेंगे.

लेकिन जिन्हें लगता है कि इससे उनके जीने में फर्क पड़ता है.. वे तो बोलें....

महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले के रालेगन सिद्धि गाँव में सूचना अधिकार कार्यकर्ता कृष्ण राज राव भूख हड़ताल पर बैठे हैं. उनकी मांग है कि राज्य में मुख्य सूचना आयोग की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से हो. पांच साल पहले बड़ी उम्मीदों के साथ लागू हुए सूचना अधिकार कानून के सामने आज सबसे बड़ी बाधा सूचना आयुक्त ही बने हुए हैं. हो भी क्यों न ? मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री द्वारा राजनीतिक तोहफे के रूप में मिली कुर्सी पर बैठने के बाद भला किसी से उम्मीद कैसे की जा सकती है कि उसमें देश या जनता के बारे में सोचने के लिए कुछ दम बचा होगा.
अब जबकि महाराष्ट्र के मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति होनी है, कृष्णराज राव इसी मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं कि इस नियुक्ति के लिए चयन समिति जिन नामों पर विचार करे वे बाकायदा लोगों के बीच से समिति के पास जाए. इसके लिए आवेदन मंगवाए जाए... और अंतत: जिन लोगों के नामों पर विचार हो वे पारदर्शी तरीके से चयन समिति के सामने लाए जाएं.
अगर सूचना के अधिकार कानून को बचाना है तो देश भर में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की वर्त्तमान परम्परा के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी. वरना दिन दूर नहीं कि हम अपने देश में सरकार के कामकाज में पारदर्शिता लाने का बहुत बड़ा मौक़ा खो देंगे.
कृष्णा राज राव की मांग के समर्थन में आप इन लोगों को इमेल, फैक्स, चिट्ठी भेज सकते हैं....

१. श्री अशोक चौहान (मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र) :
फैक्स : (022) 22029214  फोन : (022) 22025151 / (022)22025222.  ईमेल : ashokchavanmind@rediffmail.com  

२. श्री छगन भुजबल (उप-मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र)
फैक्स : (022) 22024873   फोन :  (022) 22022401 / (022) 22025014.

३. श्री एकनाथ खडसे (नेता, प्रतिपक्ष)
फैक्स :-- काम नहीं कर रहा,  फोन :  (022) 22024262 .  ईमेल : anilsmad2008@rediffmail.com

४. प्रमुख सचिव (सामान्य प्रशासन विभाग)
फैक्स :-- (022) २२०२७३६५ फोन :  (022)22886141..

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

आरटीआई के एक आवेदन से दिल्ली के कंज्यूमर कोर्ट को मिला टाइपिस्ट

-मोहित गोयल
मैं हमेशा सुनता था कि हमारे देश के न्यायालयों में न्याय की जगह तरीख़ मिलती है लेकिन डेढ़ साल पहले मुझे यह समझ में आया कि ऐसा क्यों कहते हैं। मेरा एक केस शालीमार बाग ज़िला कंज्यूमर फोरम में पिछले डेढ़ साल से चल रहा है, जब भी सुनवाई के लिए जाता हूं एक नई तारीख दे दी जाती है। मैंने जब वहां आये लोगों से बात की तो पता चला कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है। पिछले दो सालों से यहां अधिकतर मुकदमों में तारीख़ ही दी जा रही है। छानबीन करने पर पता चला कि इसका मुख्य कारण है टाइपिस्ट की कमी। कोर्ट के ही एक कर्मचारी ने बताया कि इस कोर्ट के लिए सरकार की तरफ से दो टाइपिस्ट स्वीकृत है परन्तु पिछले डेढ़ साल से एक ही टाइपिस्ट के भरोसे ही यहां काम चल रहा।
जब मैं अगली तारीख पर सुनवाई के लिए पहुंचा तो देखा कि जज साहब किसी वकील की बहस से परेशान हो कर कह रहे थे कि आप चाहे तो इस कोर्ट की कामकाज़ की शिकायत स्टेट फोरम को कर सकते है। जब मैंने जज साहब से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि उनके कार्यालय से कई बार स्टेट कंज्यूमर फोरम को लिखा जा चुका है लेकिन कोई कार्यवाई नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि असल में स्टेट फोरम की भी इसमें गलती नहीं है वहां से भी कई पत्र फूड सप्लाई कंज्यूमर फोरम को लिखे गये हैं पर फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। केवल एकमात्र टाइपिस्ट के भरोसे कोर्ट का काम तेजी से नहीं चल पा रहा है और सारे मुकदमे लंबित होते जा रहे हैं।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

महाराष्ट्र सूचना आयोग में भ्रष्टाचार?

महाराष्ट्र में राज्य सूचना आयोग का एक नया कारनामा सामने आया है और यह मामला है खुलेआम भ्रष्टाचार का. जुलाई 2008 में सूचना आयोग ने करीब सवा सात लाख रुपए के  कंप्यूटर व लेपटॉप खरीदे थे. आरोप है कि ये सामान 2008-09 के बजट से नहीं बल्कि बीते वर्ष यानि कि 2007-08 के  बजट से खरीदा गया लेकिन कागज़ों में हेराफेरी करते हुए इसका परचेज़ आर्डर पिछले वित्त वर्ष की समाप्ति से ठीक दो दिन पहले जारी हुआ दिखाया गया है. घटना क्रम कुछ इस प्रकार है
  •  रिकार्ड के मुताबिक 29 मार्च 2008 को कंप्यूटर व लेपटॉप खरीद के लिए आर्डर जारी किए गए.  
  • सामान सप्लाई करने वाली कंपनियों के साथ खरीद का आदेश जारी करते वक्त शर्त रखी गई थी कि अगर वे 4 सप्ताह के अन्दर सप्लाई नहीं करती हैं तो देरी के लिए उन पर कुल खरीद मूल्य पर 0.05 प्रतिशत का ज़ुर्माना प्रति सप्ताह लगेगा. इस तरह अप्रैल 2008 के अन्तिम सप्ताह तक सप्लाई न होने की स्थिति में सप्लाई करने वाली कंपनियों पर 35,616/- रुपए का ज़ुर्माना लगाया जाना था.
  • आयोग के ही रिकार्ड के मुताबिक यह सप्लाई जुलाई 2008 में हुई. लेकिन कंपनियों को पूरा भुगतान कर दिया गया.
  • आडिट टीम ने सप्लाई में ढाई महीने की देरी के बावजूद कंपनियों पर पेनल्टी न लगाने के लिए आयोग से जवाब मांगा.
  • आयोग ने आडिट ऑब्जेक्शान का जवाब दिया कि कंपनी ने सप्लाई में देरी नहीं की है, सप्लाई तो समय पर हुई है लेकिन परचेज़ आर्डर कंपनी को देने में देरी हुई थी.

अब सवाल यह उठता है कि -
  • अगर कंपनी ने समय ने जुलाई 2008 में सप्लाई करके भी 4 सप्ताह की निर्धारित समय सीमा का पालन किया है, जैसा कि सूचना आयोग के जवाब में दावा किया गया है, तो क्या इसका मतलब है कि कंपनियों को परचेज़ ऑर्डर जून 2008 में दिया गया था?
  • अगर कंपनियों को यह परचेज़ ऑर्डर जून 2008 में दिया गया था तो 29 मार्च 2008 से लेकर जून 2008 तक यह किसके पास और क्यों पड़ा रहा. यह कोई छोटा मोटा परचेज़ आर्डर नहीं था.
जानकारों की आशंका है कि यह एक घोटाला है जिसमें पिछले वित्त वर्ष के बजट से फर्जी तरीके से खरीद फरोख्त की गई है. इसमें कागज़ों में हेराफेरी की गई है ताकि जुलाई में जारी परचेज़ आदेश को पिछले वित्त वर्ष के अन्तिम सप्ताह में भी दिखाया जा सके.
(सौजन्य : विहार ध्रुवे एवं क्रष्णराज  राव)

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

माननीयों का इलाज

हरियाणा स्वास्थ्य विभाग सरकारी अस्पतालों को सुबिधाओ  से सुसज्जित करने के चाहे लाख दावे करता हो लेकिन जब बात अपने या अपनों पर आती है तो सरकार को भी निजी अस्पतालों में ही जिन्दगी दिखाई देती है। सरकारी खर्चे  पर अपना व अपने परिवार का इलाज करवाने वाले विधायको  में आधे   से अधिक  अब भी निजी अस्पतालों को ही तवज्जो दे रहे हैं। सीधे  शब्दों में कहें तो वे सरकारी अस्पतालो को अपने उपचार के लायक नहीं समझ रहे हैं। या यूं कहिए प्रदेश की बागडोर हाथ में रखने वाले  विधायको , मुख्य संसदीय सचिवों तक को सरकारी डाक्टरों के अमले पर विश्वास नहीं है।

शनिवार, 18 सितंबर 2010

आरटीआई ने बन्द करवाया अवैध् होटल

लोनावाला के रहने वाले किशोर जैन के घर के सामने उनके पड़ोसी ने होटल खोल लिया, जब किशोर जैन ने लोनावाला नगर पालिका से आरटीआई तहत यह पूछा कि एक आवासिय कॉलोनी में होटल खोलने की इज़ाजत किसने और कैसे दी तो उन्हें पता चला कि होटल गैरकानूनी तरीके से चल रहा। आरटीआई के तहत मिली इस सूचना के आधार पर उन्होंने नगर पालिका से होटल बन्द कराने के लिए शिकायत की पर उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाई नहीं की गई। इसके बाद किशोर जैन अदालत में गये और पिछले महीने  मुम्बई उच्च न्यायालय के आदेश पर गैरकानूनी तरीके से चल रहे होटल को सील कर दिया गया।
सोना चादी  के कारोबारी किशोर जैन की दुकान मुम्बई के बान्द्रा इलाके में है। उन्होंने 1988 में मुम्बई पुने हाईवे पर लोनावाला में जमीन  खरीद  कर घर बनाया। मकसद था शहर की शोरगुल से दूर एक ऐसी जगह हो जहां आराम और शान्ति से रहा जा सके। लेकिन वर्ष 2007 में उनका यह घर उनके लिए अशान्ति और टेंशन का कारण बन गया। उनके घर के सामने वाले बंगले में एक होटल खुल गया, जिसके कारण वहां रात दिन शोरगुल होने लगा। साथ ही बंगले में होटल के हिसाब से गैरकानूनी निर्मण भी करा लिया गया। किशोर जैन को आश्चर्य हुआ कि एक आवासिय कॉलोनी में होटल खोलने की इजा़जत कैसे मिल गई। उन्होंने इसका पता लगाने के लिए फरवरी 2007 में आरटीआई के तहत लोनावाला नगर पालिका से इस सम्बंध् में जानकारी मांगी। जो सूचना उन्हें दी गई उससे पता चला कि नगर पालिका ने उस इलाके में होटल खोलने के लिए किसी को कोई इज़ाजत कभी नहीं दी है।

रविवार, 12 सितंबर 2010

सूचना आयुक्त शैलैष गांधी के कामकाज की पहली जनसुनवाई

सूचना के अधिकार को लेकर यह अपनी तरह की पहली जनसुनवाई थी. इस कानून का इस्तेमाल करने वाले करीब 250 लोग सूचना आयुक्त शैलैष गांधी के कामकाज पर अपनी राय देने और चर्चा करने आए थे. दिल्ली स्थित गांधी शान्ति प्रतिष्ठान  में हुई इस जनसुनवाई में खुद सूचना आयुक्त शैलैष गांधी अपने ही कामकाज की कमियां सुन रहे थे.और वस्तुत: यह जनसुनवाई से ज्यादा एक संवाद की प्रक्रिया की शुरूआत थी जो सूचना के अधिकार कानून को मजबूती देने के लिए बहु प्रतीक्षित थी. कार्यक्रम का संचालन करते हुए अरविन्द केजरीवाल ने शुरू में ही साफ कर दिया था कि यह संवाद सिर्फ सूचना आयुक्त शैलैष गांधी द्वारा सुने गए मामलों को लेकर है. बाकी सूचना आयुक्तों के फैसलों या सूचना कानून की कमियों की चर्चा का यहां कुछ लाभ नहीं होगा.
जनसुनवाई में सबसे बड़ा मुदा उठा - आयोग के आदेश के बाद भी सूचना न मिलना. लोगों ने अपने अपने मामलों के  सजीव उदाहरण देकर सैकड़ों कहानियां सुनाईं जहां उन्हें सूचना आयुक्त शैलैष गांधी के फैसले से तो सन्तुष्टि  तो  थी लेकिन उनके आदेश के महीनों बाद भी उन्हें सूचना नहीं मिली है. आदेश पर अमल न होने के इतने सारे मामलों को खुद सूचना मांगने वालों के मुंह से सुनने के बाद शैलैष गांधी ने भी कबूल किया कि आदेशों पर पर अमल नहीं होना वाकई एक बड़ी समस्या है. उन्होंने घोषणा की कि महीने में कम से कम एक दिन अब वे ऐसे मामलों को देंगे जहां उनके आदेश के बाद भी सूचना उपलब्ध नहीं कराई जा रही है.
हालांकि यह कोई स्थाई समाधान नहीं है और अरविन्द केजरीवाल ने सुझाव दिया कि अगर सूचना देने के  आदेश के बाद भी मामले की सुनवाई जारी रखें और मामले को तब ही बन्द करें जब आवेदक को सूचना मिल जाए तो इसका आसान समाधान निकल सकता है. इस सुझाव पर शैलैष गांधी का तर्क था कि इससे उनके पास लंबित मामलों की संख्या बढ़ जाएगी और अभी वो जिस तरह दो महीने के अन्दर ही अपील पर सुनवाई शुरू कर देते हैं जबकि बाकी आयुक्तों के यहां 8 से 10 महीने का वक्त लगता है, यह क्रम टूट जाएगा. इस पर उपस्थित लोगों ने एक स्वर मे कहा कि अगर आदेशों पर अमल नहीं होगा तो ऐसे सैकडों आदेश हर महीने पारित करने का भी क्या लाभ होगा.

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

नियमों को ताक पर रखकर नियुक्ति

तमाम अयोग्यताओं के बावजूद मुख्यमंत्री के नज़दीकी रहे अधिकारी के पुत्र को मिली सीधे क्लास-1 के पद पर अनुकंपा नियुक्ति

प्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति का एक अनूठा मामला सामने आया है जहां एक अधिकारी की मृत्यू के बाद उनके पुत्र को सीधे अधिकारी बना दिया गया। नियम के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति के तहत केवल क्लर्क या चपरासी स्तर की नौकरी दी जा सकती है। लेकिन इस मामले में सीधे मुख्यमंत्री ने दखल दिया और तमाम नियम कायदों को ताक पर रख दिया गया।
मण्डी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रणबीर सिंह चौहान ने सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल करते हुए इस मामले का खुलासा किया है। मामला इस तरह है कि 2007 में सतर्कता विभाग के ज़िला अटॉर्नी श्री रविन्द्र धैल्टा की मृत्यू 9 पफरवरी 2007 को हो गई थी। 5 मार्च 2007 को उनके पुत्र विकास धैल्टा ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए सीधे मुख्यमंत्री के पास आवेदन किया। दिलचस्प बात यह है कि 13 जुलाई 2007 को इस हिमाचल की केबिनेट ने भी पास कर दिया और 13 सितम्बर 2007 को विकास धैल्टा को बाकायदा अतिरिक्त ज़िला अटॉर्नी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। गौरतलब है कि यह एक क्लास-1 पद है और नियमत: क्लास 1 या क्लास -2 पद पर किसी की नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर नहीं की जा सकती। नियम के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति केवल क्लास-3 या क्लास-4 के पदों पर की जा सकती है।
इसके साथ ही अनुकंपा नियुक्ति उस परिवार के आश्रितों को दी जाती है जिनका कोई अन्य सदस्य सरकारी नौकरी में न हो। लेकिन यहां तो स्वर्गीय रवीन्द्र धैल्टा की पत्नी भी आईपीएच विभाग में सहायक के पद पर कार्यरत हैं। प्राप्त सूचना के मुताबिक विकास धैल्टा ने मुख्यमंत्री के पास लिखे आवेदन में दावा किया था कि पिता की मृत्यू के बाद अपनी मां, दादी और बहन के लालन पालन की ज़िम्मेदारी उनके कंधे पर आ पड़ी है अत: उन्हें अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जाए। आम तौर पर इस तरह के आवेदनों पर फैसला लेने में सरकारी विभाग 8-10 साल लगा देते हैं लेकिन इस मामले में नियुक्ति विभाग, गृह विभाग और वित्त विभाग ने कुछ ही महीनों में सारी कार्रवाई पूरी कर विकास की नियुक्ति भी करवा दी। यहां तक कि चुनाव आचार संहिता लगने के चलते नियुक्ति के लिए चुनाव आयोग से मंजूरी लेने का काम भी आनन फानन में पूरा कर लिया गया।

ज़िला जज मेरठ के पीआईओ पर जुर्माना लगा, हटा और अब पत्रावली गायब

उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने मेरठ के ज़िला जज कार्यलय के पीआईओ (लोक सूचना अधिकारी) के खिलाफ सूचना नहीं देने के कारण पहले तो 25,000 रूपये का जुर्माना लगया फिर बिना कारण बताये ही जुर्मान हटा कर केस बन्द कर दिया। जब आवेदक ने इस मामले पर पुन: सुनवाई करने का अनुरोध् किया तो सुनवाई के फैसला सुरक्षित कर लिया गया और बाद में आवेदक को सूचना दी गई कि केस की पत्रावली नहीं मिल रही है। अब जब पत्रावली ही नहीं मिल रही है तो ना जुर्माना लगेगा और ना ही सूचना मिलेगी।
यह मामला मेरठ के कृष्ण कुमार खन्ना का है। उन्होंने मेरठ ज़िला जज के अधीन अदालतों में पेशकारों और अहलकारों द्वारा ली जा रही रिश्वत के रोकथाम के लिए ज़िला जज के कार्यालय में 66 आवेदन किये। उनके आवेदनों पर जब कोई कार्यवाई नहीं हुई तो उन्होंने आवेदनों पर की गई कार्यवाई का विवरण आरटीआई के तहत मांगा। कृष्ण कुमार ने आरटीआई का आवेदन 14 मई 2007 को पंजीकृत डाक से भेजा था जिसे ज़िला जज कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी बच्चू लाल ने लेने से मना दिया।

क्या संसद से ऊपर है आरटीआई ?

-विष्णु राजगढ़िया
लोकसभा के मौजूदा सत्र में दस अगस्त को दिलचस्प वाकया हुआ। खेल मन्त्री एमएस गिल कामनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों से जूझ रहे थे। इसी दौरान उन्होंने कह डाला कि सांसद चाहें तो सूचना कानून के सहारे ऐसे मामलों के दस्तावेज हासिल कर सकते हैं। इस जवाब ने मानो आग में घी का काम किया। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने नाराज होकर पूछ डाला- ``क्या संसद से भी ऊपर है आरटीआई?´´
लोकतन्त्र की सर्वोच्च संस्था में उपस्थित जनप्रतिनिधियों को किसी भी मामूली भारतीय की तरह सूचना मांगने की सलाह पर ऐसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। लिहाजा कोई सांसद इस सलाह पर शायद ही अमल करे। लेकिन अनुभव बताते हैं कि सूचना कानून के सहारे कोई भी सामान्य नागरिक कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार से जुड़ी ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां आसानी से निकाल सकता है। ऐसी जानकारियां किसी सांसद या विधायक को संसद या विधानसभा में मिलना काफी मुश्किल और शायद असम्भव है।
आखिर मामला क्या है? सूचना कानून में साफ लिख दिया गया है कि जिस सूचना के लिए संसद या विधानसभा को इंकार नहीं किया जा सकता, उसके लिए किसी नागरिक को भी इंकार नहीं किया जायेगा। स्पष्ट है कि आज कोई भी नागरिक हर वैसी सूचना मांग सकता है जो किसी सांसद या विधायक को मिल सकती है। दूसरी ओर, अब तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं बना है कि संसद या विधानसभा में हर ऐसी सूचना मिल सकती है, जो सूचना कानून के जरिये आम नागरिक को प्राप्त है। इसके कारण आज आम नागरिक हमारे जनप्रतिनिधियों की अपेक्षा ज्यादा धरदार तरीके से शासन-प्रशासन को कठघरे में खड़ा करने योग्य दस्तावेजी सबूत हासिल कर रहे हैं।
संसद और विधानसभाओं में सवाल पूछने और जवाब देने के तरीके को देखें तो सूचना कानून से इसका पर्क पता चलता है। आम तौर पर लिखित प्रश्नों में जनप्रतिनिधि को अपनी ओर से कोई विशिष्ट सूचना पेश करते हुए यह पूछना होता है कि यह सच है अथवा नहीं। इसके लिए जनप्रतिनिधि के पास ठोस प्रारंभिक सूचना होना जरूरी होता है। क्या यह सच है, अगर हां तो क्यों शैली में पूछे गये इन प्रश्नों में अगर आपके पास पहले से पर्याप्त सूचना नहीं तो जवाब भी ठन-ठन गोपाल होने की पूरी गुंजाइश रहती है।
इसी तरह, सदन में आये प्रश्नों के जवाबों की भी खास प्रकृति होती है। नौकरशाहों द्वारा तैयार जवाबों के आधर पर सदन में मन्त्री अपना पक्ष रखता है। इसमें सवाल उठाने वाले जनप्रतिनिधि को सारे सम्बंधित दस्तावेज नहीं दिये जाते बल्कि उस पर सरकार का पक्ष रखा जाता है। इसमें सवाल उठाने वाले को दस्तावेजों के अध्ययन के आधार पर जवाबतलब करने का समुचित अवसर प्राय: नहीं मिल पाता।
दूसरी ओर, सूचना कानून ने प्रश्नोत्तर की इन सीमाओं से आगे जाकर सम्बंधित मामले के सारे दस्तावेज हासिल करने की जबरदस्त ताकत दी है। इसमें कोई सवाल उठाने के लिए नागरिक के पास अपनी प्रारंभिक एवं ठोस सूचना की जरूरत नहीं। वह एक साधरण पंक्ति लिखकर कॉमनवेल्थ खेलों की पूरी फाइल मांग सकता है। इस तरह फाइल लेने का कोई सामान्य प्रावधान संसद या विधानसभा में नहीं है।
तब क्या यह कहना अतिश्योक्ति है कि सूचना कानून ने आज हर नागरिक को सांसद और विधायक से भी ज्यादा ताकत दी है?
संसद और विधानसभा के सत्रों को देखें तो यह बात और स्पष्ट हो सकेगी। जनता ने अपने जनप्रतिनिधि चुनकर भेजे। उन्हें नागरिकों की ओर से सवाल पूछने का दायित्व सौंपा गया। लेकिन साल में महज बीस से पचास दिन चलने वाले सदन की प्रक्रिया प्राय: विचारहीन शोरशराबे या औपचारिकताओं में डूबी रहती है। प्रश्नोत्तर काल का ज्यादातर समय हंगामे की भेंट चढ़ जाता है। महालेखाकर की रपटों, बजटों, योजनाओं, कानूनी संशोधनों या विधायकों को कई बार पढ़ा तक नहीं जाता, बहस तो दूर की बात। जनप्रतिनिधियों के लिए सवाल पूछने की गुंजाइश अत्यन्त सीमित रह जाती है। कुछ सवाल पूछे भी गये तो जवाब नदारद। जवाब मिला भी तो कार्रवाई खुदा जाने।
कोई विधायक-सांसद सवाल पूछना चाहे तो कोई जरूरी नहीं कि वह स्वीकृत हो जाये। हुआ भी तो जरूरी नहीं कि सदन में उस पर चर्चा हो। हुई भी तो जरूरी नहीं कि जवाब मिले। एक बार मामला खत्म, तो पिफर अगले सत्रा का इन्तजार। एक दिन में कोई सांसद या विधायक कितने सवाल पूछ सकेगा, इसकी भी सीमा है। उन्हें यह कहकर टाला जा सकता है कि विभाग से सूचना की प्रतीक्षा की जा रही है। ऐसे हजारों उदाहरण पेश किये जा सकते हैं जिनमें सांसद, विधायक के सवालों का जवाब बरसों तक नहीं मिला।
इस तरह, सदन में पूर्ण विफल जनप्रतिनिधि अपने कीमती समय का बड़ा हिस्सा समितियों की बैठकों और टूर-दौरों में, उद्घाटन और अभिनन्दनों में, विवाह और शोक समारोहों की शोभा बनने में गंवा देता है। इससे भी कुछ समय निकला तो दलीय गुटबन्दी।
दूसरी ओर, सूचना कानून में एक माह की समय सीमा लागू है। नागरिकों के सवालों को स्थगित नहीं किया जा सकता। जवाब देना होता है। नहीं दिया तो सूचना आयोग दिला देगा। सूचना मांगने का कोई मौसम नहीं। यही कारण है कि आज कोई सवाल उठाने, जवाब मांगने के लिए नागरिक किसी जनप्रतिनिधि का मुंहताज नहीं। वह हर चीज का हिसाब खुद मांगने, जांच करने को स्वतन्त्र है। साठ साल में संसद और विधानसभा में जितने सवाल पूछे गये, उससे ज्यादा सूचना पांच साल में नागरिकों ने खुद ही हासिल कर ली है।
मजेदार बात यह है कि आज ऐसे सांसदों, विधयकों, पूर्व मन्त्रियों की बड़ी संख्या है जो सूचना कानून का शानदार उपयोग कर रहे हैं। पूर्व सांसद रमेन्द्र कुमार का स्पष्ट मानना है कि एक नागरिक के बतौर उन्हें यह कानून ज्यादा ताकत देता है। विधायक विनोद सिंह के अनुसार जो सूचना एक विधायक के बतौर उन्हें झारखण्ड विधानसभा में नहीं मिल सकी, वही सूचना उन्होंने एक नागरिक के तौर पर सूचना कानून के जरिए आसानी से हासिल कर ली। एक आइपीएस के खिलाफ तत्कालीन एडीजीपी वीडी राम की जांच रिपोर्ट का मामला काफी चर्चित है। माले के चर्चित विधायक महेन्द्र सिंह द्वारा लगाये गये गम्भीर आरोपों के बाद यह जांच गठित हुई थी। लेकिन स्पीकर के आदेश के बावजूद विधानसभा में यह रिपोर्ट पेश नहीं की गई। जिस विधानसभा के कारण वह जांच हुई, उसी विधानसभा को रिपोर्ट नहीं मिली। महेन्द्र सिंह ने इसे बार-बार सदन में उठाया। उनकी हत्या के बाद उनके पुत्रा विधायक विनोद सिंह ने भी सदन में रिपोर्ट पेश करने की मांग की। लेकिन विधानसभा को रिपोर्ट नहीं मिली। इसी बीच विनोद सिंह ने एक नागरिक के बतौर सूचना कानून के सहारे वही रिपोर्ट आसानी से हासिल कर ली।
एक और दिलचस्प उदाहरण। वर्ष 2006 में झारखड विधानसभा में तेजतर्रार विधायक बंधू तिर्की ने विकास योजना की अरबों की राशि बैंकों में जमा रखने पर सवाल पूछे। सदन में जवाब मिला कि सूचना एकत्र की जा रही है। छह महीने बाद फिर यही जवाब। विधायक को कोई सूचना नहीं मिली। यह देखकर इन पंक्तियों के लेखक ने आरटीआई आवेदन देकर सरकार से यही सूचना मांग डाली। देखते-ही-देखते हजारों पृष्ठों की सूचना मिल गई।
किसी भी विषय पर सवाल उठाने के लिए सम्बंधित अधिकारिक दस्तावेजों का अध्ययन आवश्यक है। सूचना कानून ने हर नागरिक को यह ताकत दी है। संसद और विधानसभा के प्रश्नोत्तर की प्रकृति भिन्न है। जनप्रतिनिधियों को अगर अधिकारिक दस्तावेजों का पूर्व अध्ययन करने का अवसर मिले तो उनके द्वारा उठाये गये सवाल ज्यादा धरदार हो सकते हैं। इसलिए समय आ गया है, जब सदन में सवालों और उन पर सरकार के जवाब को ज्यादा सार्थक और परिणामदायक बनाने के लिए सांसदों और विधायकों को सम्बंधित दस्तावेज कुछ दिनों पहले हासिल करने का अवसर मिले। अभी उन्हें सदन में या एक दिन पहले सिर्फ बेहद सीमित जवाब पकड़ा दिये जाते हैं। उन पर पूरक प्रश्नों के जरिये बहुत कुछ निकालना कई बार सम्भव नहीं हो पाता।
इसलिए आज सवाल यह नहीं है कि संसद से भी ऊपर आरटीआई है अथवा नहीं। सवाल सिर्फ इतना है कि इस कानून ने पारदर्शिता और जवाबदेही के जो नये आयाम खोले हैं, उनका सदुपयोग हमारे जनप्रतिनिधि किस प्रकार से करना चाहते हैं। अगर कोई जनप्रतिनिधि सदन के लिए अपने सवाल बनाने में आरटीआई का उपयोग करे तो आसानी से समझ लेगा कि ``क्या संसद से भी ऊपर है आरटीआई?´´

रविवार, 25 अप्रैल 2010

सड़क की खुदाई का विवरण

सेवा में
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकारी अधिनियम  2005 के तहत आवेदन

महोदय,
........ क्षेत्र में दिनांक ......................से दिनांक .................के दौरान सड़क काटने, और उससे बने खड्डों को पुन: भरने के लिए विभिन्न एजेंसीयों द्वारा किए गए सभी कार्यों से सम्बंधित  निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध् कराएं:

1. उन एजेंसियों की सूची जिन्होंने इस दौरान सड़कों में कटिंग या खुदाई का कार्य किया। सड़क काटने का उददेश्य तथा समय भी बताएं?

2.. इन एजेंसीयों द्वारा सड़क काटने के लिए कितनी राशि जमा की राशि जमा कराने की तिथि भी बताएं?

3. उन सभी स्कैचों की प्रति जिसमें उन जगहों को दर्शाया गया हो जहां एजेंसीयों को सड़क काटने के लिए अनुमति दी गई?

4. क्या सभी एजेंसीयों ने स्वीकृत स्थानों पर हीं सड़क काटी या इसमें परिवर्तन भी हुआ?

5. आपके विभाग द्वारा उपरोक्त जमा की गई राशि का उपयोग कहां किया गया उन सभी कार्यों की सूची दें। जिसमें इस राशि का उपयोग किया गया, इसमें सभी कार्यों के नाम, जगह का नाम जहां कार्य किया गया है तथा प्रयेक  कार्य के लिए स्वीकृत राशि का पूरा विवरण हो।

मैं आवेदन फीस के रूप में १० रू अलग से जमा कर रहा हूं।

भवदीय

नाम ...............
पता ...............

किसी सरकारी विभाग में रुके हुए कार्य के विषय में सूचना के लिए आवेदन

(राशनकार्ड, पासपोर्ट, वृद्ववस्था पेंशन, आयु-जन्म-मृत्यू-आवास आदि प्रमाण पत्र बनवाने या इन्कम टैक्स रिफण्ड मिलने में देरी होने, रिश्वत मांगने या बिना वजह परेशान करने की स्थिति में निम्न प्रश्नों के आधार पर सूचना के अधिकार का आवेदन तैयार करे)

सेवा में,
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन

महोदय,
मैने आपके विभाग में .................... तारीख को .................................. के लिए आवेदन किया था। (आवेदन की प्रति संलग्न है) लेकिन अब तक मेरे आवेदन पर सन्तोषजनक कदम नहीं उठाया गया है।
कृपया इसके सन्दर्भ में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध् कराएं

1.    मेरे आवेदन पर की गई प्रतिदिन की कार्रवाई अर्थात दैनिक प्रगति रिपोर्ट उपलब्ध् करायें। मेरा आवेदन किन-किन अधिकारियों के पास गया तथा किस अधिकारी के पास कितने दिनों तक रहा और इस दौरान उन अधिकारियों ने उसपर क्या कार्रवाई की? पूरा विवरण उपलब्ध् कराएं।

2. विभाग के नियम के अनुसार के मेरे आवेदन पर अधिकतम कितने दिनों में कार्यवाही पूरी हो जानी चाहिये थी? क्या मेरे मामले में उपरोक्त समय सीमा का पालन किया गया है?

3.    कृपया उन अधिकारियों के नाम तथा पद बताएं जिन्हें मेरे आवेदन पर कार्रवाई करनी थी? लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।

4.    अपना काम ठीक से न करने और जनता को परेशान करने वाले इन अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? यह कार्रवाई कब तक की जाएगी?

5.    अब मेरा काम कब तक पूरा होगा?

(कुछ अत्तिरिक्त प्रश्न: यदि आवश्यक हो)
6.    कृपया मुझे सभी आवेदन/रिटर्न/याचिका/शिकायत की सूची उपलब्ध् कराएं जो मेरे आवेदन/रिटर्न/याचिका/शिकायत के जमा करने के बाद जमा की गई है। सूची में निम्नलिखित सूचनाएं होनी चाहिए :-
      1.आवेदक/करदाता/याचिकाकर्ता/पीड़ित का नाम
      2. रसीद संख्या
      3. आवेदन/रिटर्न/याचिका/शिकायत की तारीख
      4. कार्रवाई की तारीख

7.    कृपया रिकॉर्ड के उस हिस्से की छायाप्रति दें, जो उपरोक्त आवेदन/रिटर्न/याचिका/शिकायत की रसीद का ब्यौरा रखते हों?

8.    मेरे आवेदन के बाद यदि किसी आवेदन/रिटर्न/याचिका/शिकायत को नम्बर आने से पहले  कार्यान्वत किया गया हो तो उसका कारण बताएं?

9.    इस आवेदन/रिटर्न/याचिका/शिकायत के नम्बर आने से पहले कार्यान्वयन के मामले में, यदि कोई हो तो, सतर्क पूछताछ कब तक की जाएगी?

 मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा हूं।

भवदीय
नाम .................
पता .................

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

9. इन्दिरा आवास योजना का विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
मेरा नाम.................है। मैं.......................पंचायत के.......................गांव का निवासी हूं। मेरे पास रहने के लिए घर नहीं है। इसके बावजूद अभी तक मुझे इन्दिरा आवास योजना के तहत घर आवंटित नहीं किया गया है। इस सम्बंध् में सूचना के अधिकार के तहत निम्नलिखित सूचनाएं दें:

1. सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार क्या मैं इन्दिरा आवास योजना का हकदार हूं? यदि नहीं तो क्यों?

2. यदि हां, तो अब तक मुझे इन्दिरा आवास योजना का आवंटन क्यों नहीं किया गया है? मुझे इन्दिरा आवास योजना का लाभ मिले यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किन अधिकारियों/कर्मचारियों की है? उनका नाम व पद बताएं।

3. मेरे ग्राम पंचायत में पिछले पांच वर्षों में कुल कितने लोगों को इस योजना के तहत घर आवंटित किये गये हैं? उनकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं:
        क. लाभार्थी का नाम
        ख. आवंटन की तारीख
        ग. किस आधार पर आवंटित किया गया
        घ. जिस ग्राम सभा में लाभार्थी का चयन किया गया उस ग्राम सभा की उपस्थिति रजिस्टर की प्रमाणित प्रति दें।

4. क्या उपरोक्त सभी आवंटन बी.पी.एल सूची के आधार पर किया गया है? उपरोक्त पंचायत की बी.पी.एल. सूची की प्रमाणित प्रति दें।

5. इन्दिरा आवास योजना के आवंटन से सम्बंधित सभी शासनादेशों/निर्देशों/नियमों की प्रमाणित प्रति दें।

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

8. रोजगार गारंटी के तहत जॉब कार्ड के आवेदन का विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
मैं.....................ग्राम का निवासी हूं। मैने एन.आर.ई.जी.ए. के तहत दिनांक.................को जॉब कार्ड के लिये आवेदन किया था। इस सम्बंध् में निम्न विवरण प्रदान करें:

1. मेरे आवेदन पर की गई प्रतिदिन की कार्रवाई अर्थात दैनिक प्रगति रिपोर्ट उपलब्ध् करायें। मेरा आवेदन किन-किन अधिकारियों  के पास गया तथा किस अधिकारी के पास कितने दिनों तक रहा और इस दौरान उन अधिकारियों ने उसपर क्या कार्रवाई की? पूरा विवरण उपलब्ध् कराएं।

2. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत रोजगार जॉब कार्ड के लिये आवेदन करने के कितने दिनों के अन्दर जॉब कार्ड बन जाना चाहिए? इससे सम्बंधित नियमों या नागरिक चार्टर या किसी अन्य आदेशों/दिशानिर्देशों की प्रमाणित प्रति उपलब्ध् कराएं।

3. कृपया उन अधिकारियों/कर्मचारियों के नाम तथा पद बताएं जिन्हें मेरे आवेदन पर कार्रवाई करनी थी लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।

4. अपना काम ठीक से न करने और जनता को परेशान करने वाले इन अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? यह कार्रवाई कब तक की जाएगी?

5. अब मेरा जॉब कार्ड कब तक मिल जाएगा?

6. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत रोजगार जॉब कार्ड बनाने के लिए मेरे गांव से अब तक कितने आवेदन प्राप्त हुए है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरणों के साथ उपलब्ध् कराएं:
     क. आवेदक का नाम व पता
    ख. आवेदन संख्या
    ग. आवेदन की तारीख
    घ. आवेदन पर की गई कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण (जॉब कार्ड बना/जॉब कार्ड नहीं बना/विचाराधीन)
    ड. यदि जॉब कार्ड नहीं बना तो उसका कारण बताएं    
    च. यदि बना तो किस तारीख को

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

7. रोजगार गारंटी के तहत मांगे गये काम का विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
मै.....................ग्राम का निवासी हूं। मैने एन.आर.ई.जी.ए. के तहत रोजगार के लिये आवेदन किया था। मेरा जॉब कार्ड संख्या................है। इस सम्बंध् में निम्न विवरण प्रदान करें:

1. आपके रिकॉर्ड के मुताबिक मेरे आवेदन पर क्या कार्यवाही की गई है? क्या मुझे काम दिया गया? यदि हां तो निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध् कराएं:
    क. कार्य का नाम
    ख. काम दिये जाने की तारीख
    ग. काम की स्थिति (चालू है या समाप्त हो गया)
    घ. आवेदन करने बाद मुझे कितने दिन का काम दिया जा चुका है
    ड. काम के बदले भुगतान की गई राशि
    च. राशि का भुगतान किस तारीख को किया गया
    छ. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति जहां मेरे भुगतान से सम्बंधित विवरण दर्ज है

2. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत काम के लिये आवेदन करने के कितने दिनों के अन्दर काम मिल जाना चाहिए? इससे सम्बंधित नियमों/आदेशों/दिशानिर्देशों की प्रमाणित प्रति उपलब्ध् कराएं।

3. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत काम के लिये आवेदन करने के कितने दिनों तक काम नहीं उपलब्ध् करा पाने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है?

4. आपके रिकॉर्ड के अनुसार क्या मुझे बेरोजगारी भत्ता मिलना चाहिए? यदि हां तो क्या मुझे बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा? यदि हां तो इससे सम्बंधित निम्नलिखित सूचनाएं दें:
    क. कब से दिया जा रहा है तारीख बताएं
    ख. कितनी राशि का भुगतान किया जा चुका है, तिथिवार विवरण दें
    ग. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति जहां मेरे भुगतान से सम्बंधित विवरण दर्ज है

5. मेरे गांव में जिन लोगों को जॉब कार्ड दिया गया है उनमें से कितने लोगों ने काम देने का आवेदन किया है उसकी सूची निम्नलिखित सूचनाओं के साथ उपलब्ध् कराएं:
   क. आवेदक का नाम व पता
   ख. आवेदन करने की तारीख
   ग. दिए गये कार्य का नाम
   घ. कार्य दिए जाने की तारीख
   ड. कार्य के लिए भुगतान की गई राशि व भुगतान की तारीख
   च. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति जहां इनके भुगतान से सम्बंधित विवरण दर्ज हैं
   छ. यदि काम नहीं दिया गया है तो क्यों?
   ज. क्या उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है?
 
6. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत तय समय सीमा काम या बेरोजगारी भत्ता नहीं देने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी और कब तक?

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

6. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत जॉब कार्ड, रोजगार व बेरोजगारी भत्ता का विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
......................ब्लॉक के ग्राम........................के सम्बंध् में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध् कराएं:

1. उपरोक्त गांव से एन.आर.ई.जी.ए. के तहत जॉब कार्ड बनाने के लिए अब तक कितने आवेदन प्राप्त हुए है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरणों के साथ उपलब्ध् कराएं:
क. आवेदक का नाम व पता
ख. आवेदन संख्या
ग. आवेदन की तारीख
घ. आवेदन पर की गई कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण (जॉब कार्ड बना/जॉब कार्ड नहीं बना/विचाराधीन)
ड. यदि जॉब कार्ड नहीं बना तो उसका कारण बताएं     
च. यदि बना तो किस तारीख को

2. जिन लोगों को जॉब कार्ड दिया गया है उनमें से कितने लोगों ने काम देने का आवेदन किया है? उसकी सूची निम्नलिखित सूचनाओं के साथ उपलब्ध् कराएं:
क. आवेदक का नाम व पता
ख. आवेदन करने की तारीख
ग. दिए गये कार्य का नाम
घ कार्य दिए जाने की तारीख
ड. कार्य के लिए भुगतान की गई राशि व भुगतान की तारीख
च. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति जहां इनके भुगतान से सम्बंधित विवरण दर्ज हैं।
छ. यदि काम नहीं दिया गया है तो क्यों?
ज. क्या उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है?

3. उपरोक्त गांव से एन.आर.ई.जी.ए. के तहत रोजगार के लिए आवेदन करने वाले जिन आवेदकों को बेरोजगारी भत्ता दिया गया या दिया जा रहा है उनकी सूची निम्नलिखित सूचनाओं के साथ उपलब्ध् कराएं:
क. आवेदक का नाम व पता
ख. आवेदन करने की तारीख
ग. बेरोजगारी भत्ता दिए जाने की तारीख
ड. बेरोजगारी भत्ता के लिए भुगतान की गई राशि व भुगतान की तारीख
च. रिकॉर्ड रजिस्टर के उस भाग की प्रमाणित प्रति जहां इनके भुगतान से सम्बंधित विवरण दर्ज हैं।

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

5. ए.एन.एम. से सम्बंधित विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
..............................ग्राम पंचायत में कार्यरत ए.एन.एम. के सम्बंध् में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध् कराएं:

1. इस ग्राम पंचायत में कार्यरत ए.एन.एम. के बारे में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध् कराएं:
क. नाम
ख. पद
ग. इस पंचायत में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि
घ. कार्यभार/जिम्मेदारी का विवरण
ड. प्रतिदिन ड्यूटी पर आने व जाने का समय

2. उपरोक्त ए.एन.एम. की उपस्थिति रजिस्टर की पिछले छ: महीनों की प्रति उपलब्ध् कराएं।

3. उपरोक्त ए.एन.एम. द्वारा पिछले एक वर्ष में इस गा्रम पंचायत में किये गये टीकाकरण व दवा वितरण की सूची उपलब्ध् कराएं जिसमें निम्नलिखित सूचनाएं अवश्य शामिल हों:
क. लाभार्थी का नाम व पता
ख. लाभार्थी को टीका या दवा दी जाने की तारीख
ग. दवाई व टीका का नाम

4. उपरोक्त ए.एन.एम. अगर समय पर गांव का दौरा नहीं करती है तो उसके खिलाफ क्या कार्यवाही किये जाने की व्यवस्था है? कृपया इस सम्बंध् में नियमों/नीति निर्देशों की प्रतियां उपलब्ध् कराएं।

5. इस पंयायत का कार्यभार सम्भालने के बाद से अब तक उपरोक्त ए.एन.एम. के खिलाफ देर से आने या अनुपस्थित रहने के मामले से सम्बंधित यदि कोई शिकायत हुई है तो उसका विवरण उपलब्ध् कराएं। जिसमे निम्नलिखित सूचनाएं अवश्य शामिल हो:
क. शिकायत करने वाले का नाम
ख. शिकायत का संक्षिप्त विवरण
ग. शिकायत की तारीख
घ. शिकायत पर की गई कार्यवाही का विवरण
ड. शिकायत पर कार्यवाही करने वाले अधिकारी का नाम, पद व पता

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

4. ग्राम पंचायत के खर्चे का विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
..................ग्राम पंचायत के संबध् में निम्नलिखित विवरण प्रदान करे:

1. वर्ष.............के मध्य..................ग्राम पंचायत को किन-किन मदों/याजनाओं के तहत कितनी राशि आंवटित की गई? आवंटन का वर्षवारा ब्यौरा दें।

2. उपरोक्त ग्राम पंचायत द्वारा इस दौरान कराए गए सभी कार्यो से सम्बंधित निम्नलिखित विवरण दें:
क.    कार्य का नाम
ख.    कार्य का संक्षिप्त विवरण
ग.    कार्य के लिए स्वीकृत राशि
घ.    कार्य स्वीकृत होने की तिथि
ड.    कार्य समाप्त होने की तिथि अथवा चालू कार्य की स्थिति
च.    कार्य कराने वाली एजेंसी का नाम
छ.    कार्य शुरू होने की तिथि
ज.    कार्य समाप्त होने की तिथि
झ.    कार्य के लिए ठेका किस दर पर दिया गया?
×ा.    कितनी राशि का भुगतान किया जा चुका है
ट.    कार्य के रेखाचित्र की प्रमाणित प्रति
ठ.    कार्य कराने का निर्णय कब और किस आधार पर लिया गया? इससे सम्बंधित दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति भी उपलब्ध् कराएं।
ड.  उन अधिकारियों/कर्मचारियों का नाम व पद बताएं जिहोंने कार्य का निरीक्षण किया और भुगतान की स्वीकृति दी।
ढ.  कार्य के वर्क ऑर्डर रजिस्टर एवं लेबर रजिस्टर/मस्टर रोल की प्रति उपलब्ध् कराएं।

3. उपरोक्त ग्राम पंचायत में वर्ष........के दौरान कार्यो/योजनाओं पर होने वाले खर्चो की जानकारी निम्न विवरणों के साथ दें:
क. कार्य का नाम जिसके लिए खर्च किया गया
ख. कार्य का संक्षिप्त विवरण
ग. कार्य के लिए स्वीकृत राशि
घ. कार्य कराने वाली एजेंसी का नाम
ड. कार्य शुरू होने की तिथि
च. कार्य के रेखाचित्र की प्रमाणित प्रति,
ख.कार्य कराने का निर्णय कब और किस आधार पर लिया गया? इससे सम्बंधित दस्तावेजों की प्रति भी उपलब्ध् कराएं।

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

3. ग्राम पंचायत की भूमि एवं पट्टे का विवरण

सेवा में, 
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
.................................... में भूमि सम्बन्धी निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध् कराएं:

1.  उपरोक्त ग्राम पंचायत के भूमि के सम्बंध् में निम्न विवरण मानचित्र के साथ उपलब्ध् कराएं:
    (क) कितनी भूमि कृषि योग्य है (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (ख) कितनी भूमि बंजर है (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (ग) चारागाह की भूमि कितनी है (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (घ) ग्राम समाज की भूमि कितनी है (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (च) मरघट की भूमि कितनी है (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (छ) तालाब की भूमि कितनी है (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)

2.  विगत 25 वर्ष में उपरोक्त ग्राम पंचायत के कितने परिवारों को निम्नलिखित से सम्बंधित पट्टे दिया गया है? विवरण मानचित्र के साथ उपलब्ध् कराएं:
    (क) कृषि योग्य पट्टे (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (ख) आवासीय पट्टे (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (ग) खनन योग्य पट्टे (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (घ) वनीकरण पट्टे (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)
    (ज) अन्य कोई पट्टे (रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल सहित)

3.  वर्ष...............से ..............के दौरान उपरोक्त ग्राम पंचायत के कितने भूमिहीन परिवारों को पट्टा दिया गया है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं जिसमें रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल मानचित्र सहित शामिल हो:
    क. पट्टाधारी का नाम
    ख. पट्टाधारी के पिता का नाम
    ग. पट्टाधारी का पता
    घ. पट्टा दिये जाने की तारीख

4.  वर्ष...............से..............के दौरान उपरोक्त ग्राम पंचायत के कितने परिवारों को कृषि योग्य भूमि का पट्टा दिया गया है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं जिसमें रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल मानचित्र सहित शामिल हो:
    क. पट्टाधारी का नाम
    ख. पट्टाधारी के पिता का नाम
    ग. पट्टाधारी का पता
    घ. पट्टा दिये जाने की तारिख

5.  वर्ष...............से..............के दौरान उपरोक्त ग्राम पंचायत के कितने परिवारों को आवासीय पट्टा दिया गया है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं जिसमें रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल मानचित्र सहित शामिल हो:
    क. पट्टाधारी का नाम
    ख. पट्टाधारी के पिता का नाम
    ग. पट्टाधारी का पता
    घ. पट्टा दिये जाने की तारिख

6.  वर्ष...............से..............के दौरान उपरोक्त ग्राम पंचायत के कितने परिवारों को खनन योग्य भूमि का पट्टा दिया गया है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं जिसमें रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल मानचित्र सहित शामिल हो:
    क. पट्टाधारी का नाम
    ख. पट्टाधारी के पिता का नाम
    ग. पट्टाधारी का पता
    घ. पट्टा दिये जाने की तारिख

7.  वर्ष...............से ..............के दौरान उपरोक्त ग्राम पंचायत के कितने परिवारों को वनीकरण पट्टा दिया गया है? इसकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं जिसमें रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल मानचित्र सहित शामिल हो:
    क. पट्टाधारी का नाम
    ख. पट्टाधारी के पिता का नाम
    ग. पट्टाधारी का पता
    घ. पट्टा दिये जाने की तारिख

8.  वर्तमान में ग्राम पंचायत में ग्राम समाज की ऐसी कितनी भूमि शेष है जिसको अभी तक किसी पट्टे के लिए उपयोग नहीं किया गया है? रकबा नम्बर एवं क्षेत्रफल मानचित्र सहित उपलब्ध् कराएं।

9.  ग्राम पंचायत में भूमिहीन परिवारो को पट्टा देने हेतु क्या प्रयास किए गएं हैं? इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के नाम पद एवं पता बताएं। इससे सम्बंधित सभी शासनादेशों एवं निर्देशों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध् कराएं।

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

2. विद्युतीकरण का विवरण

सेवा में,
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
ग्राम ................................... में विद्युत व्यवस्था के सम्बंध् में निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध् कराएं:

1. उपरोक्त गांव के कितने घरो में बिजली का कनेक्शन है? प्रत्येक कनेक्शनधारी का नाम एवं पता बताएं।

2. उपरोक्त गांव जिस ब्लॉक में आता है उस ब्लाक में पिछले 10 वर्षों के दौरान गांवो के विद्युतीकरण के लिए कितनी राशि आवंटित की गई है? वर्षवार विवरण प्रदान करें।

3. क्या उपरोक्त ब्लॉक में विद्युतीकरण एवं उसके रख-रखाव का कार्य किसी ठेकेदार/एजेंसी के माध्यम से कराया जा रहा है? यदि हां तो उससे सम्बंधित निम्न सूचनाएं उपलब्ध् कराएं:
क. कार्य का नाम
ख. कार्य का संक्षिप्त विवरण
ग. कार्य के लिए स्वीकृत राशि
घ. कार्य स्वीकृत होने की तिथि
ड. कार्य समाप्त होने की तिथि अथवा चालू कार्य की स्थिति
च. कार्य कराने वाली एजेंसी का नाम
छ. कार्य शुरू होने की तिथि
ज. कार्य समाप्त होने की तिथि
झ. कार्य के लिए ठेका किस दर पर दिया गया?
×ा. कितनी राशि का भुगतान किया जा चुका है
ट. कार्य के रेखाचित्र की प्रमाणित प्रति
ठ. इस कार्य को कराने का निर्णय कब और किस आधार पर लिया गया? इससे संबिन्ध्त निर्णयों की प्रति भी उपलब्ध् कराएं।
ढ. उन सहायक तथा कार्यपालक अभियन्ताओ के नाम बताएं, जिन्होंने इन प्रत्येक कार्यो का निरीक्षण किया और भुगतान की स्वीकृति दी। इनके द्वारा कार्य के किस भाग का निरीक्षण किया गया?

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)

1. हैण्डपम्पों का विवरण

सेवा में,
लोक सूचना अधिकारी
(विभाग का नाम)
(विभाग का पता)

विषय : सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत आवेदन।

महोदय,
..................................के हैण्डपम्पों के संम्बंध् में निम्नलिखित सूचना उपलब्ध् कराएं।

1.  आपके रिकॉर्ड के मुताबिक उपरोक्त गांव में कुल कितने हैण्डपम्प लगवाए गए हैं? उनकी सूची निम्नलिखित विवरण के साथ उपलब्ध् कराएं:
क. स्थान का नाम जहां हैण्डपम्प लगा है
ख. हैण्डपम्प लगाये जाने की तारीख
ग. हैण्डपम्प लगाने के लिए खर्च की गई राशि
घ. इस राशि का भुगतान किस मद से किया गया
ड. हैण्डपम्प की वर्तमान स्थिति बताएं (चालू व ठीक/चालू लेकिन खराब/बन्द)
च. लगाये जाने के बाद से अब तक कितनी बार मरम्मत की गई है, तिथिवार विवरण दें।
छ. प्रत्येक मरम्मत पर व्यय की गई राशि का विवरण दें।

2.  क्या सरकार द्वारा इन हैण्डपम्पों की नियमित जांच कराई जाती है? यदि हां तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों के नाम, पद व जिम्मेदारियां बताएं।

3.  आखिरी बार इन हैण्डपम्पो की जांच कब की गई? जांच अधिकारी का नाम एवं पद बताएं साथ ही जांच रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति भी उपलब्ध् कराएं।

4. किसी गांव में हैण्डपम्पों की संख्या का निर्धारण किस आधार (जनसंख्या/क्षेत्रफल/विस्तार/अन्य) पर किया जाता है? इससे सम्बंधित नियमों, दिशानिर्देशों व शासनादेशों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध् कराएं।

5.  क्या हैण्डपम्पों के पेय जल की शुद्धता की जांच की गई है? यदि हां तो जांच अधिकारी का नाम एवं पद बताएं साथ ही जांच रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति भी उपलब्ध् कराएं।

6.  क्या हैण्डपम्प लगवाने/मरम्मत पर आने वाली लागत का कुछ भाग गांव वाले वहन करते है? यदि हां, तो इससे सम्बंधित सभी शासनादेशों तथा दिशानिर्देशों की प्रमाणित प्रति दें। उपरोक्त हैण्डपम्पों को लगवाने में किन-किन ग्रामीणों से व कितना धन वसूल किया गया प्रत्येक का नाम एवं पता बताएं।

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू अलग से जमा कर रहा /रही हूं।
या
मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय

नाम:
पता:
फोन नं:

संलग्नक:
(यदि कुछ हो)