बुधवार, 10 जून 2009

फटी व्यवस्था की सिलाई करता एक टेलर मास्टर

एक वर्ष पहले तक मो. शमीम अंसारी महराजगंज जनपद के सिसवा बाजार में टेलर मास्टर के रूप मे जाने जाते थे क्योंकि वह कपड़ों की सिलाई का काम करते थे। लेकिन अब उन्हें प्रशासनिक हलकों में खलनायक और आम लोगों के बीच हीरो के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने सूचना अधिकार कानून के जरिए अपने गांव रूदलापुर और आस-पास के क्षेत्रा में भ्रष्टाचार और सरकारी योजनाओं की गड़बड़ी के आध दर्जन मामलों का पर्दाफाश किया है। लेकिन इसकी उन्हें सजा भी मिल रही है। प्रशासन ने उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है और उन्हें अपनी आजीविका का काम छोड़ना पड़ा है। उन्हें अपना यह अनूठा अभियान बंद करने की निरन्तर धमकी मिल रही है।
मो. शमीम एक दिलचस्प व्यक्ति हैं। उनके पास कुछ वर्ष पहले तक उनको सिलने वाले कपड़ों की नाप और उसको डिलेवर करने की तारीख का हिसाब-किताब रखना पड़ता था लेकिन अब उनके झोले में फाइलों का अम्बार है। उनकी ख्याति अब टेलर मास्टर के रूप में नहीं बल्कि सूचना अधिकार आन्दोलन के एक जुझारू कार्यकर्ता के रूप में है। उन्हें सूचना अधिकार कानून के बारे में जानकारी अक्टूबर 07 में सर्वप्रथम लखनउ में कांग्रेस की एक बैठक में हुई। इसके बाद वह कांग्रेस पार्टी की सूचना अधिकार आन्दोलन से जुड़ गए। उन्होंने सबसे पहले अपने गांव रूदलापुर में राशन कार्ड को बनाने में गड़बड़ी की जांच के सम्बन्ध में पूर्व में की गयी एक शिकायत का उल्लेख करते हुए सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी। जानकारी न मिलने पर वह इस मामले को आयोग तक ले गए। तब उन्हें जानकारी दी गयी। गड़बड़ी की पुष्टि हुई और उन्होंने इसकी जांच कराने के लिए मामले को आगे बढ़ाया। इसके अलावा उन्होंने गांव में पेड़ों की नीलामी, खुद के राशन कार्ड के कम्प्यूटर में दर्ज न होने, गांव की सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्जे और गन्ना विकास विभाग के गोदामों पर अवैध कब्जे के मामले को सूचना अधिकार कानून के तहत मिली जानकारी के जरिए उजागर किया। गांव की सार्वजनिक जमीन पर कब्जे के मामले में उनकी मुहिम के चलते अवैध कब्जेधारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। गांव के पेड़ों की नीलामी के मामले में गड़बड़ी उजागर हुई और पता चला कि गांव के 21 पेड़ गायब हैं। लेकिन इनमें से सिर्फ पांच पेड़ कटने की बात स्वीकार की गयी है और उसकी नीलामी से मिले पैसे न तो तहसील में और न ग्राम पंचायत के खाते में जमा है।
इस खुलासे से गांव के आम लोग तो खुश हुए लेकिन ग्राम प्रधान पति और कुछ अधिकारी उनसे नाराज हो गए। उनके खिलाफ सूचना अधिकार कानून के आवेदन के जरिए अधिकारियों को परेशान करने के आरोप में बीडीओ सिसवा ने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर कोठीभार थाने में एफआईआर दर्ज करा दिया। इस एफआईआर का आधार सूचना अधिकार कानून के एक आवेदन में तीन आवेदनकर्ताओं में से एक का इस तरह के आवेदन बताया गया। हालांकि इस आवेदनकर्ता ने बाद में एक नोटरी बयान हल्फी के जरिए आवेदन करने की बात स्वीकार कर ली।
एफआईआर के अलावा उन्हें कई तरह से परेशान किया गया। कई अधिकारियों ने उन्हें धमकी दी कि यदि उन्होंने अपनी मुहिम बंद नहीं की तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। उनके खिलाफ ग्राम पंचायत की एक जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाकर कार्यवाही करने की कोशिश हुई। मो. शमीम प्रताड़ना की इन कोशिशों से परेशान तो जरूर हुए लेकिन निराश नहीं हैं। अब वह दर्जी का काम छोड़ चुके हैं और पूरी तरह से आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। मुम्बई में कमाने वाले बेटे द्वारा भेजे गए पैसे से वह अपना काम चला रहे हैं। लेकिन वह हारेंगे नहीं बल्कि अपना मुहिम जारी रखेंगे। अगली मुहिम के तहत उन्होंने पेड़ों की नीलामी में गड़बड़ी के खिलाफ न्यायालय के जरिए मुकदमा दर्ज कराने की कोशिश शुरू की है।