मनीष सिसोदिया
(सूचना के अधिकार पर काम करने वाले मनीष सिसोदिया के स्कूलों के बच्चों के साथ अनुभव पर आधारित)
पिछले दिनों सूचना के अधिकार की एक वर्कशॉप के सिलसिले में आगरा जाना हुआ। वर्कशॉप कई मामलों में उल्लेखनीय थी। एक तो इसका आयोजन दो छात्रों (रोहित और नेहा) ने किया था जो आगरा के स्कूलिंग करने के बाद अब दिल्ली में आईआईटी और लेडी श्री राम कॉलेज में पढ़ रहे है। उनमें अपने शहर आगरा के लिए कुछ करने की इच्छा है। दूसरे इसमें केवल आगरा के शीर्ष स्कूलों के होनहार लेकिन सूचना के अधिकार `जानने सीखने के इच्छुक´ बच्चों और उनके अध्यापकों, प्रधानाध्यापकों ही बुलाया गया था। यहां `सीखने के इच्छुक´ कहने के पीछे मतलब यह है कि वर्कशॉप के लिए 20 रुपए पंजीकरण फीस रखी गई थी। रविवार का दिन होने के बावजूद 70 से अधिक छात्र और साथ में कई अध्यापक एवं प्रधानाध्यापक भी पहुंचे। इन 70 छात्रों में शहर के लगभग सभी नामी गिरामी पब्लिक स्कूलों के छात्र थे, इनमें से ज्यादातर 10+2 दर्जे के थे।
वर्कशाप की शुरुआत मुझे सूचना के अधिकार की भूमिका बनाते हुए करनी थी। जैसा कि हम अक्सर करते हैं, मैंने बच्चों से पूछा कि आपमें से कितने लोक टैक्स देते है तो एक-दो छात्रों को छोड़कर किसी ने हाथ नहीं उठाया। कुछ ने दबी जबान से कहा कि हम नहीं देते हमारे माता-पिता देते है। कुछ ने कहा तो अभी कमाते ही नहीं हैं।
इसी क्रम में मैंने बच्चों से पूछा कि आपमें से कितने लोगों को डेमोक्रेसी की समझ है? तो लगभग सभी छात्रों ने जोर से हाथ खडे़ कर दिए। पूछने पर एक छात्र ने झटके से दोहरा दिया `डेमोक्रेसी मीन्स गवर्नमेंट बाई द पीपुल, ऑफ द पीपुल, फॉर द पीपुल´ । मैंने पूछा इसका मतलब क्या है तो जवाब आया ` हमारे लिए, हमारी और हमारे द्वारा सरकार´। मैंने आगे पूछा कि इसका क्या मतलब हुआ? आपकी सरकार कैसे हुई? आपके द्वारा कैसे हुई? इसका जवाब उन छात्रों के पास नहीं था।
बहरहाल, विषय को स्पष्ट करते हुए हम आगे बढे़। सूचना के अधिकार पर बात हुई। आम आदमी द्वारा सूचना का अधिकार इस्तेमाल के कुछ उदाहरण उनके सामने रखे तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। सूचना का अधिकार के परिचय के बाद अगला सत्र आवेदन तैयार करने के बारे में था। छात्रों के समूह बनाए गए। एक समूह में कोई एक विषय चुनकर सूचना के अधिकार आवेदन तैयार करना था। सबने अपनी अपनी समझ और जानकारी के आधार पर विषय चुने और आवेदन बनाए। सूचना मांगना और उसके लिए आवेदन बनाना तो खैर अनुभव का मामला था लेकिन आश्चर्य की बात थी कि कई बच्चों को यह भी पता नहीं था कि आगरा विकास प्राधिकरण जैसी कोई संस्था भी शहर में है। आगरा में यही विकास प्राधिकरण ही सड़कें, पुल बनवाने का अधिकतर काम करता हैं। इन्हें अपने नगर निगम के बार में जानकारी नहीं थी। कलेक्टर और एसपी के बारें में नहीं मालूम था। इन छात्रों में से अधिकतर (10 +२) 12वीं कक्षा के छात्र थे। ये शहर के सबसे होशियार बच्चें भले ही न हो लेकिन अपनी उम्र के बच्चों में क्रीमीलेयर से तो थे ही।
इसी क्रम में कुछ बात शिक्षा की चली तो मैंने पूछ लिया कि शिक्षा किसलिए लेते हैं? आपमें से हरेक कम से कम अपनी जिंदगी के 12 साल इस शिक्षा को दे चुका है और आगे की तैयारी है तो किसलिए? इस पर आए जवाब उम्मीद से परे थे। सभी छात्रों ने करीब करीब एक से उत्तर दिए- `एक अच्छा सिटीजन बनने के लिए´, अपने आसपास के बारे में जागरुक बनने के लिए´, `एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए´ वर्कशॉप का समय लगभग खत्म हो रहा था। मुझे लगा कि इन्हें कौन समझाएगा कि अच्छा, जिम्मेदार, सतर्क नागरिक बनने के लिए अपने मौजूदा वातावरण की समझ होना कितना जरुरी है। क्या अपने शहर की सड़कें, साफ सफाई, प्रशासन की जानकारी होना एक अच्छे, सतर्क, जिम्मेदार नागरिक बनने की आवश्यकता नहीं है? घर में इन सब बातों की समझाने के लिए समय नहीं है, स्कूल के पाठ्यक्रम का उद्देश्य अच्छे अंको में पास होना है। जहां डेमोक्रेसी की परिभाषा रटाने से काम चल ही जाता है।
वर्कशॉप के बाद कुछ बच्चों ने व्यक्तिगत बातचीत में माना कि सूचना के अधिकार के बारे में उन्होंने सुना तो था लेकिन यह उनके लिए उपयोगी भी हो सकता है, सोचा ही नहीं था। समाज के प्रति जिम्मेदारी में अपनी भूमिका अभी तक उन्हें सिर्फ वॉलंटियर बनकर यमुना सफाई अभियान में लगने, तो कभी प्लास्टिक कचरे के खिलाफ रैली में ही नजर आती थी। उन्होंने माना कि अपने शहर की सड़कों, नालियों, पार्कों आदि के बारे में वे अधिकार के साथ भी कुछ कर सकते हैं। यह पहली बार जानने में आया है।
(सूचना के अधिकार पर काम करने वाले मनीष सिसोदिया के स्कूलों के बच्चों के साथ अनुभव पर आधारित)
पिछले दिनों सूचना के अधिकार की एक वर्कशॉप के सिलसिले में आगरा जाना हुआ। वर्कशॉप कई मामलों में उल्लेखनीय थी। एक तो इसका आयोजन दो छात्रों (रोहित और नेहा) ने किया था जो आगरा के स्कूलिंग करने के बाद अब दिल्ली में आईआईटी और लेडी श्री राम कॉलेज में पढ़ रहे है। उनमें अपने शहर आगरा के लिए कुछ करने की इच्छा है। दूसरे इसमें केवल आगरा के शीर्ष स्कूलों के होनहार लेकिन सूचना के अधिकार `जानने सीखने के इच्छुक´ बच्चों और उनके अध्यापकों, प्रधानाध्यापकों ही बुलाया गया था। यहां `सीखने के इच्छुक´ कहने के पीछे मतलब यह है कि वर्कशॉप के लिए 20 रुपए पंजीकरण फीस रखी गई थी। रविवार का दिन होने के बावजूद 70 से अधिक छात्र और साथ में कई अध्यापक एवं प्रधानाध्यापक भी पहुंचे। इन 70 छात्रों में शहर के लगभग सभी नामी गिरामी पब्लिक स्कूलों के छात्र थे, इनमें से ज्यादातर 10+2 दर्जे के थे।
वर्कशाप की शुरुआत मुझे सूचना के अधिकार की भूमिका बनाते हुए करनी थी। जैसा कि हम अक्सर करते हैं, मैंने बच्चों से पूछा कि आपमें से कितने लोक टैक्स देते है तो एक-दो छात्रों को छोड़कर किसी ने हाथ नहीं उठाया। कुछ ने दबी जबान से कहा कि हम नहीं देते हमारे माता-पिता देते है। कुछ ने कहा तो अभी कमाते ही नहीं हैं।
इसी क्रम में मैंने बच्चों से पूछा कि आपमें से कितने लोगों को डेमोक्रेसी की समझ है? तो लगभग सभी छात्रों ने जोर से हाथ खडे़ कर दिए। पूछने पर एक छात्र ने झटके से दोहरा दिया `डेमोक्रेसी मीन्स गवर्नमेंट बाई द पीपुल, ऑफ द पीपुल, फॉर द पीपुल´ । मैंने पूछा इसका मतलब क्या है तो जवाब आया ` हमारे लिए, हमारी और हमारे द्वारा सरकार´। मैंने आगे पूछा कि इसका क्या मतलब हुआ? आपकी सरकार कैसे हुई? आपके द्वारा कैसे हुई? इसका जवाब उन छात्रों के पास नहीं था।
बहरहाल, विषय को स्पष्ट करते हुए हम आगे बढे़। सूचना के अधिकार पर बात हुई। आम आदमी द्वारा सूचना का अधिकार इस्तेमाल के कुछ उदाहरण उनके सामने रखे तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। सूचना का अधिकार के परिचय के बाद अगला सत्र आवेदन तैयार करने के बारे में था। छात्रों के समूह बनाए गए। एक समूह में कोई एक विषय चुनकर सूचना के अधिकार आवेदन तैयार करना था। सबने अपनी अपनी समझ और जानकारी के आधार पर विषय चुने और आवेदन बनाए। सूचना मांगना और उसके लिए आवेदन बनाना तो खैर अनुभव का मामला था लेकिन आश्चर्य की बात थी कि कई बच्चों को यह भी पता नहीं था कि आगरा विकास प्राधिकरण जैसी कोई संस्था भी शहर में है। आगरा में यही विकास प्राधिकरण ही सड़कें, पुल बनवाने का अधिकतर काम करता हैं। इन्हें अपने नगर निगम के बार में जानकारी नहीं थी। कलेक्टर और एसपी के बारें में नहीं मालूम था। इन छात्रों में से अधिकतर (10 +२) 12वीं कक्षा के छात्र थे। ये शहर के सबसे होशियार बच्चें भले ही न हो लेकिन अपनी उम्र के बच्चों में क्रीमीलेयर से तो थे ही।
इसी क्रम में कुछ बात शिक्षा की चली तो मैंने पूछ लिया कि शिक्षा किसलिए लेते हैं? आपमें से हरेक कम से कम अपनी जिंदगी के 12 साल इस शिक्षा को दे चुका है और आगे की तैयारी है तो किसलिए? इस पर आए जवाब उम्मीद से परे थे। सभी छात्रों ने करीब करीब एक से उत्तर दिए- `एक अच्छा सिटीजन बनने के लिए´, अपने आसपास के बारे में जागरुक बनने के लिए´, `एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए´ वर्कशॉप का समय लगभग खत्म हो रहा था। मुझे लगा कि इन्हें कौन समझाएगा कि अच्छा, जिम्मेदार, सतर्क नागरिक बनने के लिए अपने मौजूदा वातावरण की समझ होना कितना जरुरी है। क्या अपने शहर की सड़कें, साफ सफाई, प्रशासन की जानकारी होना एक अच्छे, सतर्क, जिम्मेदार नागरिक बनने की आवश्यकता नहीं है? घर में इन सब बातों की समझाने के लिए समय नहीं है, स्कूल के पाठ्यक्रम का उद्देश्य अच्छे अंको में पास होना है। जहां डेमोक्रेसी की परिभाषा रटाने से काम चल ही जाता है।
वर्कशॉप के बाद कुछ बच्चों ने व्यक्तिगत बातचीत में माना कि सूचना के अधिकार के बारे में उन्होंने सुना तो था लेकिन यह उनके लिए उपयोगी भी हो सकता है, सोचा ही नहीं था। समाज के प्रति जिम्मेदारी में अपनी भूमिका अभी तक उन्हें सिर्फ वॉलंटियर बनकर यमुना सफाई अभियान में लगने, तो कभी प्लास्टिक कचरे के खिलाफ रैली में ही नजर आती थी। उन्होंने माना कि अपने शहर की सड़कों, नालियों, पार्कों आदि के बारे में वे अधिकार के साथ भी कुछ कर सकते हैं। यह पहली बार जानने में आया है।
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