शनिवार, 30 अगस्त 2008

अदालत ने दिया सरकार को आदेश

इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को फरमान जारी करके मुख्यमन्त्री विवेकाधीन कोष से एक लाख रुपये से अधिक के लाभार्थियों की सूचना देने को कहा है. सूचना का अधिकार का प्रयोग करते हुए कांग्रेस के मुख्या प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री कार्यालय से 12 जून 2007 को एक सूचना के तहत उन लाभार्थियों की सूची मांगी थी जिन्हें 28 अगस्त 2003 से 31 मार्च 2007 के बीच मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से एक-एक लाख रुपये से अधिक की सहायता दी गई थी. जनसूचना अधिकारी द्वारा उक्त सूचना देने से मना करने पर अखिलेश प्रताप सिंह ने राज्य सूचना आयोग में शिकायत की. कार्यवाही किए जाने के पश्चात जनसूचना अधिकारी की और से आदेशों को चुनौती देते हुए न्यायलय में याचिका दायर की गई.
अदालत ने कहा है कि मुख्यमन्त्री विवेकाधीन कोष वास्तव में जनता का कोष है. इस कारण जनता को जानने का अधिकार है कि इस कोष से किसकी सहायता की गई है. इसके बारे में जानकारी देने में कोई बाधा नहीं है.

भगौडे़ पति का पता मिला सूचना कानून से

चित्तौड़ की देवासेना ने सूचना कानून के माध्यम से अपने भगौडे़ पति को खोजने में सफलता पाई है। देवासेना की शादी करीब तेरह वर्ष पहले के एल प्रसाद से हुई थी। शादी के कुछ ही महीने बाद श्री प्रसाद ने तलाक के लिए अदालत में अर्जी दी थी। जिसे अदालत ने खारिज कर दी थी। साथ ही आदेश दिया था कि वह दोनों साथ में रहें। लेकिन आदेश के कुछ ही दिन बाद प्रसाद अचानक गायब हो गए। इसके बाद लंबे समय तक प्रसाद का कोई पता नहीं चला। देवासेना को केवल इतना पता था कि उसके पति ओ एन जी सी में कर्मचारी हैं।
परेशान होकर देवासेना ने सूचना के अधिकार कानून के तहत ओ एन जी सी से अपने पति के वर्तमान तैनाती का पता पूछा। साथ ही जानना चाहा कि उसके पति ने अपने वैवाहिक स्थिति के बारे में ओ एन जी सी को क्या जानकारी दी है। जवाब में ओ एन जी सी के जन सूचना अधिकारी ने इसे निजता के अन्तर्गत मानते हुए देने से इन्कार कर दिया।
अन्तत: मामला केन्द्रीय सूचना आयोग के पास गया। जहां देवासेना में अपने दलील में कहा कि अदालत के आदेश के पालन के लिए उसका उनके पति से मिलना आवश्यक है। साथ में उन्होंने अपने विवाह के कागजात भी पेश किए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने कहा कि सभी सरकारी उपक्रम को सूचना के कानून की धरा ४ खंड नौ अनुसार अपने अधिकारी और कर्मचारी की सूची स्वयं ही प्रकाशित करनी चाहिए। इसके आयोग ने ओ एन जी सी के सूचना अधिकारी को आदेश दिया कि वह 15 कार्यदिवस के अंदर आवेदक को सूचना उपलब्ध करा दे। इसके बाद ओ एन जी सी ने नियत समय सीमा में देवासेना को सूचना उपलब्ध कर दी।

निगम अधिकारियों के वाहनों का सालाना खर्च एक करोड़

मंहगी लक्जरी कारों में घूमने वाले पुणे पिंपरी-चिंचवाड़ निगम अधिकारियों को अब 4 लाख से अधिक कीमत की गाड़ी नहीं मिलेगी। सिर्फ़ महापौर और उपमहापौर ही 6 लाख तक की गाड़ी में घूम सकेगें। यानि अब तक मारूति इस्टीम में सफर करने वाले उपमहापौर को एम्बेसडर गाड़ी से ही काम चलाना होगा। पिछले साल महाराष्ट्र उच्च न्यायालय की पफटकार के बाद राज्य सरकार ने स्थानीय निकायों के अधिकारियों के वाहनों के संबंध में यह दिशानिर्देष जारी किए हैं। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर आरटीआई अर्जी के जवाब में निगम ने यह जानकारी दी है।

आरटीआई से यह जानकारी भी मिली है कि पुणे की पिंपरी-चिंचवाड नगर निगम के अधिकारियों के 63 वाहनों का सालाना ईंधन और मरम्मत खर्च करीब एक करोड़ रूपये है। अधिकारियों के इन वाहनों के ईंध्न पर 74 लाख और मरम्मत पर 26 लाख का खर्चा होता है। इन वाहनों के 63 चालकों का औसत वेतन करीब दस हजार है, जो खर्चों में पर्याप्त वृद्धि करता है। इसके अलावा पंजीकरण और आरटीओ से सम्बंधित खर्चे भी निगम को ही वहन करने पड़ते हैं।


नए दिशानिर्देषों को बताते हुए निगम सचिव शरद काले ने कहा है कि हर अधिकारी प्रतिमाह 150 लीटर तक ईंधन इस्तेमाल कर सकते है। हालांकि सभी लोगों के लिए ईंधन खर्च समान नहीं है। महापौर को सालाना साढ़े तीन लाख मूल्य तक के ईंधन के इस्तेमाल की अनुमति है, जबकि उप महापौर ढाई लाख रूपये तक वाहनों के ईंधन पर खर्च कर सकते हैं। इसके अलावा स्टेंडिंग कमेटी के चेयरमेन 3 लाख, सतारूढ़ दल के नेता २.50 लाख और विपक्ष के नेता भी २.50 लाख तक ईंध्न पर खर्च कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस राशि के अतिरिक्त एक पैसा भी अधिकारियों को नहीं मिलेगा।


जनता के पैसों को पानी की तरह बहाने वाले अधिकारियों पर लगाई गई यह लगाम कहां तक कारगर होगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि यदि इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया तो निगम फिर इसी ढर्रे पर लौट आएगा और जनता की मेहनत का पैसा इसी तरह बहता रहेगा।


गुरुवार, 21 अगस्त 2008

भागीदारी योजना के लंच पर खर्च हुए 1.68 करोड़ रूपये

जनता के जिस धन को विकास योजनाओं में खर्च होना चाहिए, उसे अनावश्क रूप से लंच और डिनर पर खर्च किया गया है। दिल्ली सरकार और नागरिकों के बीच संपर्क बनाने वाली शीला दीक्षित सरकार की बहुआयामी भागीदारी योजना में पिछले पांच वर्षों में लंच और डिनर पर कुल १.६८ करोड़ रूपये खर्च हुए हैं। यह लंच और डिनर अधिकारिओं और रेजीडेन्ट वेलफेयर एसोसिएसन के सदस्यों द्वारा किया गया था। एक अंग्रेजी अखबार द्वारा दायर आरटीआई अर्जी के जवाब में यह खुलासा हुआ है।
भागीदारी योजना शीला दीक्षित सरकार की शुरूआती और लोकप्रिय योजनाओं में से एक है जिसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली है। दस सालों बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब यह योजना विवादों में आई हो। आरटीआई आवेदन से खुलासा हुआ है कि पिछले पांच सालों में सरकार के नौ राजस्व जिलों ने विभिन्न बैठकों और कार्यशालाओं में सिर्फ़ लंच और डिनर पर 16772749 रूपये खर्चे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो प्रतिवर्ष सरकार द्वारा भोजन पर किया गया खर्च 33 लाख रूपये है।
रेजीडेन्ट वेलपफेयर के अनेक लोगों ने सरकार द्वारा जनता के धन के दुरूपयोग की निंदा की है। अनेक सदस्य इस भारी भरकम बिल पर हैरानी जता रहे हैं। उनका कहना है कि बैठकों में उन्हें एक कप चाय के अलावा कुछ नहीं मिला, फिर इतना अधिक बिल कैसे आया? दूसरी ओर भागीदारी योजना के संयुक्त सचिव इस खर्च को पूरी तरह से जायज ठहरा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर कार्यशाला तीन दिन तक चलती है, इसलिए अपना कीमती समय देने वाले लोगों को भोजनपान कराकर आभार प्रकट करना जरूरी होता है।

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

फोन पर सूचना प्राप्ति

बिहार सरकार ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी लेने के उद्देश्य से कॉल सेंटर की स्थापना की है। इसके मध्यम से दूरभाष संख्या 155311 पर राज्य के किसी भी कोने से कोई व्यक्ति किसी कार्यालय या विभाग के लोक-सूचना अधिकारी से सूचना मांग सकता है. इस दूरभाष के माध्यम से वह व्यक्ति अपील भी दायर कर सकता है.
बिहार सरकार का इस सम्बन्ध में नारा है
"सरकार है अब खुली किताब,
फोन लगायें पायें जवाब।
(ये जानकारी मेघदूत पोस्टकार्ड पर छपी है, नीतिश कुमार के चित्र के साथ)

शनिवार, 9 अगस्त 2008

महाराष्ट्र के मंत्रियों ने यात्राओं में उडाए करोड़ों रूपये

महाराष्ट्र के मंत्रियों के अपने कार्यकाल के प्रारंभिक तीन सालों की देशी विदेशी यात्राओं में कुल 7.44 करोड़ रूपये खर्च किए हैं। इस बिल में उनकी यात्राओं और विधानसभा का दौरा दोनों शामिल है। यह आंकडे़ राज्य सरकार के पे एंड अकाउंट ऑफिस ने एक आरटीआई आवेदन के जवाब में उपलब्ध कराए हैं। मंत्रियों का यह यात्रा बिल 1 अप्रैल 2004 से 31 मार्च 2007 तक का है। आरटीआई कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने आरटीआई आवेदन दायर कर इस बारे में सूचनाएं मांगी थीं।
यात्राओं में खर्च करने वालों में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देषमुख सबसे आगे हैं। इस अवधि में उनकी यात्राओं का बिल 63.96 लाख रूपये हैं। अपनी घरेलू यात्राओं में उन्होंने 32.45 लाख और विदेषी यात्राओं में 31.51 लाख खर्च किए हैं।
यात्रा खर्च के मामले में 64 मंत्रियों की लिस्ट में पब्लिक वक्र्स मिनिस्टर अनिल देषमुख दूसरे स्थान पर हैं। अनिल देषमुख की यात्राओं का बिल 47.86 लाख रूपये है। राज्य के टैक्टाइल मंत्री सतीष चतुर्वेदी तीसरे और डेरी विकास मंत्री अनीस अहमद चौथे स्थान पर हैं। सतीष चतुर्वेदी का यात्रा बिल ४१.४ लाख और अनीस अहमद का यात्रा बिल 38.61 लाख रूपये है। राज्य के 12 मंत्रियों का घरेलू यात्रा पर किया गया कुल खर्चा 20 से अधिक है।
मंत्रियों के इस भारी भरकम खर्चे की वजह यात्राओं में अपने सगे संबधियों को अनावष्यक रूप से लेकर जाना भी है। नेताओं का यात्राओं पर किए गए इस फिजूलखर्च का भार आखिरकार जनता को उठाना पड़ता है और यह राषि टैक्स के माध्यम से आम जनता की जेब से ही निकाली जाती है। कार्यकर्ताओं का मानना है कि जनता के धन का दुरूपयोग न हो इसलिए जरूरी है कि मंत्रियों की इस मामले में जवाबदेही तय की जाए।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

सूचना के अधिकार में संशोधन के सुझाव का विरोध

बंगलुरू में सूचना के अधिकार पर आयोजित एक कार्यक्रम में चर्चा उस समय गरमा गई जब उच्च न्यायालय के जज के भक्तवत्सल ने कानून में संशोधन की बात की। उन्होंने जैसे ही कहा कि सूचना के अधिकार का इस्तेमाल गलत इरादों से किया जा रहा है, वहां आए आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया। कार्यकर्ताओं ने इसके बाद न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नारे लगाने शुरू कर दिए। उन्होंने कार्यक्रम को सूचना के अधिकार को नुकसान पहुंचाने वाला बताया। कार्यकर्ताओं का मानना है कि कानून मे संशोधन की बात कह जनता को इस कानून के इस्तेमाल से दूर करने की साजिश रची जा रही है।
जस्टिस भक्तवत्सल की हां में हां मिलाते हुए शिक्षा मंत्री विश्वैश्वर हेगडे कजेरी ने भी सूचना के अधिकार में संशोधन की बात की। उन्होंने संशोधन के लिए जोर देकर कहा कि बहुत से लोग कानून का दुरूपयोग करते हैं, इसलिए सरकार को सूचना प्राप्त करने की उनकी मंशा जाननी चाहिए।
इस मौके पर मुख्य राज्य सूचना आयुक्त के के मिश्रा ने कहा कि मामला सूचना आयोग में आने के बाद करीब एक साल में उस पर सुनवाई हो पाती है, जिससे कानून की प्रभावशीलता पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस प्रक्रिया में तेजी लाने के प्रयास करने चाहिए। सरकार द्वारा सहायता प्राप्त कारेपोरेट सोसाइटी और सिविक बॉडीज को भी उन्होंने कानून अधीन लाने पर जोर दिया।
वे सब कर्नाटक स्टेट चार्टर्ड अकाउंटेंट्स एसोसिएसन और कर्नाटक स्टेट सेकेन्डरी टीचर्स एसोसिएसन द्वारा आयोजित की गई `आरटीआई ट्रेंड अहेड- ए डिस्कशन´ कार्यक्रम के मौके पर बोल रहे थे। कार्यक्रम में आए आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार के प्रति अधिकारिओं के रवैये और कार्यक्रम के उद्देश्य की तीखी आलोचना की।

गुरुवार, 7 अगस्त 2008

केन्द्रीय सूचना आयोग 45 प्रतिशत अपीलों को निरस्त कर देता है

केन्द्रीय सूचना आयोग ने माना है कि वह अपने पास आने वाली 45 प्रतिशत द्वितीय अपील और शिकायतों को व्यावहारिक धरातल पर निरस्त कर देता है। साथ ही यह आयोग ने यह भी माना कि 27 प्रतिशत पंजीकृत अपील और शिकायतें प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास पुन: प्रेषित कर दी जाती हैं। यह तथ्य आरटीआई कार्यकर्ता शैलेश गांधी द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के जवाब से जाहिर हुए हैं। उन्होंने केन्द्रीय सूचना आयोग से अप्रैल 2007 से अप्रैल 2008 तक आयोग के पास आईं अपील और शिकायतों के साथ आयोग द्वारा पंजीकृत किए गए कुल मामलों की जानकारी मांगी थी।

केन्द्रीय सूचना आयोग ने जवाब में बताया कि पिछले एक साल में 22268 आरटीआई की कुल अपील और शिकायतें प्राप्त हुईं जिनमें से मात्र 12411 अपील और शिकायतों का पंजीकरण हुआ। श्री गांधी ने आवेदन में आयोग से यह प्रश्न भी किया कि वह अक्टूबर 2005 से अप्रैल 2008 के बीच पंजीकृत अपील और शिकायतों की संख्या बताए। साथ ही यह जानकारी भी मांगी कि कितनी अपीलों का निपटारा किया गया और कितनी वापस प्रथम अपीलीय अधिकारी को भेज दी गईं। आयोग ने जानकारी दी इस अवधि में कुल 19996 अपील और शिकायतें पंजीकृत की गईं जिनमें से 12895 अपीलों का निपटारा हुआ। निपटाए गए 7206 मामले यानि 56 प्रतिशत में आयोग ने सूचना देने के आदेश दिए। आवेदनकर्ता श्री गांधी ने इस स्थिति पर अफसोस जताया है। उन्होंने बताया कि आयोग को छोटी-छोटी गलतियों के कारण अपीलों को रद्द करने के बजाय व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।


दिल्ली सिक्ख गुरूद्वारा प्रबंधन समिति करे लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति

केन्द्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली सिक्ख गुरूद्वारा प्रबंधन समिति को संसद द्वारा स्थापित लोक प्राधिकरण मानते हुए इसे लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं। आयोग ने समिति को निर्देश दिया है कि वह सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन में आवश्यक मूलभूत सुविधाएं विकसित करे। आयोग ने इसके के लिए समिति को एक माह का समय दिया है। केंद्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने यह निर्णय सेवानिवृत लेफटीनेंट कर्नल अवतार सिंह बेरार की दूसरी अपील की सुनवाई के बाद दिया।
अवतार सिंह ने आयोग में दी गई अपनी अर्जी में दिल्ली सिक्ख प्रबंधन समिति के लोक सूचना अधिकारी के न होने का ध्यान दिलाया था। अवतार सिंह ने आरटीआई आवेदन के माध्यम से समिति के अध्यक्ष से लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय अधिकारी के नाम और पते पूछे थे। समिति की ओर से जब आवेदन को सूचनाएं नहीं मिलीं तो मामला केन्द्रीय सूचना आयोग के पास पहुंचा। आयोग ने सुनवाई के बाद समिति को एक माह के भीतर लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति और आरटीआई के क्रियान्वयन के लिए आधारभूत सुविधाएं विकसित करने के आदेश दिए।

शनिवार, 2 अगस्त 2008

आरटीआई इस्तेमाल करने पर कारगिल स्थानांतरण के बाद निलम्बन

मध्यप्रदेश में देवास जिले के केन्द्रीय विद्यालय के प्राईमरी शिक्षक मांगीलाल कजोडिया को सूचना का अधिकार के इस्तेमाल की सजा मिली है। इस कानून के माध्यम से भ्रष्टाचार उजागर करने के लिए पहले उनका स्थानांतरण कारगिल किया गया, जिसका विरोध करने पर अनेक आरोप लगाकर उन्हें अब नौकरी से निकाल दिया गया है। आरटीआई इस्तेमाल करने से पहले सब कुछ ठीक ठाक था। किसी को मांगीलाल के काम से कोई आपत्ति और शिकायत नहीं थी, लेकिन आरटीआई दायर करने और आयोग का उनके हक में फैसला आने के बाद अधिकारी बौखला गए। इसके बाद शुरू हुआ मांगीलाल को परेशान और प्रताडित करने का सिलसिला।

शिक्षक मांगीलाल अखिल भारतीय केन्द्रीय विद्यालय शिक्षक संघ से जुडे़ हुए हैं। उनका कहना है कि केन्द्रीय विद्यालय संगठन, दिल्ली मुख्यालय इस संघ को खत्म करने पर तुला हुआ है और इसके लिए उसने अनेक षडयंत्र रचे हैं। इन सभी षडयंत्रों की जानकारी कागजों पर उपलब्ध है। मांगीलाल ने अपने आरटीआई के आवेदन में इन्हीं कागजों का विवरण मांगा था। साथ ही आवेदन में उन्होंने संगठन की स्थानांतरण नीति के संबंध में जानकारी मांगी थी।

यह जानकारियों हासिल करने के लिए उन्होंने दिल्ली मुख्यालय में करीब 12 आरटीआई आवेदन दिए। प्रत्येक आवेदन में संगठन से अलग-अलग सूचनाएं मांगी गई। संगठन की ओर से जवाब न मिलने पर मामला केन्द्रीय सूचना आयोग पहुंचा। आयोग ने मंजूलाल के पक्ष में फैसला सुनाया और सख्ती संगठन से मांगी गई सूचनाएं उपलब्ध कराने के आदेश दिए। इसके अलावा आयोग ने मांगीलाल को 5000 हजार रूपये हर्जाने के रूप में देने के आदेश भी दिए। आयोग के फैसले के बाद भी मांगीलाल को सही सूचनाएं नहीं दी गईं।

मांगीलाल द्वारा दिए गए आरटीआई आवेदनों से खार खाकर केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने उनका स्थानांतरण देवास से कारगिल कर दिया। मांगीलाल ने अपने अवैध स्थानांतरण के विरोध में आवाज उठाई और सत्याग्रह पर बैठ गए। स्थानांतरण रद्द करने के लिए धरना, भूख हड़ताल और आमरण अनशन पर बैठने के बाद भी उनका स्थानांतरण रद्द नहीं हुआ। मांगीलाल ने इस संबंध में दिल्ली के आयुक्त को पत्र भी लिखा और कहा कि उनका कारगिल स्थानांतरण औचित्यहीन और बदले की भावना से किया गया है। चिट्ठी में उन्होंने अपील की कि उनका स्थानांतरण रद्द किया जाए।

दिल्ली में केन्द्रीय विद्यालय संगठन के आयुक्त को भेजे गए मांगीलाल के आवेदन पर विचार चल ही रहा था कि 9 जून को सहायक आयुक्त, भोपाल ने उन्हें नौकरी से निकालने का नोटिस जारी कर दिया। नोटिस में कहा गया कि देवस से कार्यमुक्त होने के बाद कारगिल के केन्द्रीय विद्यालय ज्वाइन ने करने पर मांगीलाल ने नौकरी का अधिकार खो दिया है। इसके अलावा भी मांगीलाल पर अनेक आरोप मंडित किए गए। मांगीलाल ने नोटिस को यह कहते हुए चुनौती दी कि 21 मई का उनका आवेदन दिल्ली में विचाराधीन है। उनके आवेदन पर निर्णय होने से पहले इस प्रकार का नोटिस देना विधि सम्मत नहीं है।

मांगीलाल ने अपने साथ होने वाले अन्याय की आवाज को सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे, मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल , लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी सहित अनेक लोगों तक पहुंचाई है।


शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

आरटीआई ने दिलाया मजदूरों को भुगतान

सूचना के अधिकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में धांधली के लिए उत्तरदायी एक सचिव को निलंबित करवा दिया है। साथ ही काम में लगे मजदूरों को करीब 2 लाख रूपये का भुगतान भी संभव हुआ है। मजदूरों के साथ धोखे और योजना के जिम्मेदार सचिव ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत एक तालाब के निर्माण में कार्यरत मजदूरों के भुगतान में अनियमितता बरती थी।

एक आरटीआई आवेदन के जरिए यह खुलासा हुआ है। इस आवेदन में ग्राम पंचायत सर्कल, बांदा से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत इस क्षेत्र की पंचायत द्वारा करवाए जा रहे काम की जानकारी मांगी गई थी। आवेदन में पूछा गया था कि इस योजना के तहत जो तालाब निर्माण का कार्य चल रहा है, उसमें कितने लोगों को काम मिला है और कितनों को मजूदरी का भुगतान किया गया है।

ध्यान देने की बात है कि योजना के तहत बन रहे तालाब का बजट 13 लाख रूपये है और इसमें करीब डेढ़ सौ मजदूर काम कर रहे हैं । आवेदन के बाद जो जानकारी निकलकर आई उससे पता चला कि यहां काम में लगे मजदूरों को एक माह से भुगतान नहीं किया गया है। जबकि नियमानुसार मजदूरों को सात दिनों के भीतर भुगतान मिल जाना चाहिए।

इस प्रकार की धांधली को देखते हुए मुख्य विकास अधिकारी हीरामणि मित्रा ने मौके पर पहुंचे और जांच में सचिव को दोषी पाया गया। दोषी सचिव को तुरंत निलंबित कर दिया गया और दूसरे सचिव का नियुक्त किया गया। इसके अलावा जिन मजदूरों को समय पर मजदूरी नहीं मिली थी, उन्हें करीब 2 लाख की राशि तत्काल आबंटित की गई।