उत्तर प्रदेश में सूचना आयुक्तों के प्रति अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है। इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि राज्यपाल कार्यालय को सूचना आयुक्तों के खिलाफ सितंबर 2008 तक 67 शिकायतें मिल चुकी हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि राज्यपाल कार्यालय की तरफ से एक भी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की गई। यह जानकारी खुद राज्यपाल कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी ने एक आरटीआई आवेदन के जवाब में दी है। सूचना का अधिकार जागरूकता मंच के राम सरन शर्मा ने अक्टूबर 2008 में इस संबंध में राज्यपाल कार्यालय में आरटीआई आवेदन दाखिल किया था।
राम सरन शर्मा ने सूचना आयुक्तों की पृष्ठभूमि, उम्र, वेतनमान, नियुक्ति आदि के संबंध में भी जानकारी मांगी थी। लेकिन इन सूचनाओं को निजी बताते हुए आवेदक को देने से मना कर दिया गया। गौर करने की बात है आवेदक द्वारा मांगी गई सूचनाएं सूचना आयोग के प्रोएक्टिव डिस्क्लोजर के अन्तर्गत आती हैं और यह आयोग की वेबसाइट में स्वैच्छिक रूप से दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। आवेदक ने सूचना आयुक्तों के खिलाफ की गई शिकायतों, उनकी प्रकृति और उन पर की गई कार्रवाई की जानकारी भी चाही थी, लेकिन आवेदनकर्ता को इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। आवेदक का कहना है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि 67 शिकायतों में एक भी कार्रवाई के लिए उपयुक्त नहीं पाई गई? उनका कहना है कि यदि ऐसा है तो शिकायतकर्ताओं की जानकारी और शिकायत की प्रकृति की जानकारी क्यों नहीं दी गई?
सूचना के अधिकार कानून में प्रावधान है कि सूचना आयुक्तों की शिकायत मिलने पर राज्यपाल कानून की धारा 17(१) के तहत सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच की अनुशंसा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट से जांच की इजाजत मिलने पर राज्यपाल कानून की धरा 17(२) के तहत सूचना आयुक्त को सूचना आयोग के कार्यालय में आने से रोक सकता है। इसे सूचना के अधिकार कानून का दुर्भाग्य की कहा जाएगा कि सूचना आयुक्तों की इतनी शिकायतें मिलने के बाद भी राज्यपाल ने जनहित में भी अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया।
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