मंगलवार, 6 जनवरी 2009

उम्मीदों की लौ जगाता सूचना का अधिकार

संतोष झा
मेरठ जिले का नगला शेखू एक ऐसा गांव है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि सूचना का अधिकार कानून अपने मूल मकसद तक पहुंचने में कामयाब हो रहा है। इस गांव के 15-20 किसानों ने आरटीआई का इस्तेमाल किया जिसमें 5 किसानों के कृषि ऋण माफ हो गए हैं। विदित है कि पिछले बजट सत्र के दौरान भारत सरकार ने आने वाले आम चुनावों को भुनाने के लिए 71 हजार करोड़ रफपये का कृषि ऋण माफ करने का ऐलान किया और सरकार आश्वस्त हो गई की किसानों की सारी परेशानियों को अंत हो गया। परंतु सरकार एवं किसानों के बीच बैंक अधिकारियों ने नियम शर्तों का ऐसा मकड़जाल तैयार कर दिया जिसमें छोटे-छोटे किसान कागजी औपचारिकताओं में उलझ गए और सरकार द्वारा दी गई सहूलियत से वंचित रह गए।
इस गांव के इलाहाबाद बैंक की एक शाखा है जिसमें किसानों का बचत एवं ऋण खाता है। सरकार ने किसानों की सुविधा के लिए ग्रीन कार्ड एवं शक्ति कार्ड दे रखे हैं। ग्रीन कार्ड से फसलों के लिए कर्ज मिलता है और शक्ति कार्ड अन्य कर्ज के लिए है। सरकार द्वारा किसानों के कर्ज माफी की घोषणा के बाद गांव के किसानों ने कर्ज माफी के लिए आवेदन किया। वहां के लोगों को कहना है कि छोटे किसानों खासकर जिनके पास एक-दो एकड़ से भी कम जमीन है जो अपनी ऊंची पहुंच भी नहीं रखते हैं और रिश्वत देने में भी असमर्थ हैं, उनका कर्ज माफ करने से यह कहकर मना कर दिया गया कि वे इसके पात्र नहीं हैं। इस बात की जानकारी संजय मलिक द्वारा मिली जो इस गांव के निवासी हैं। जब इस बात की तहकीकात के लिए किसानों के साथ उस गांव के बैंक अधिकारी के पास गए तो अधिकारी ने कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया। जबकि सूचना कानून की धारा 4 कहती है कि हर लोक प्राधिकारी को स्वैछिक घोषणा द्वारा 17 तरह की सूचना जनता तक पहुंचानी पडे़गी। परंतु अधिकारी स्पष्ट तौर पर कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे।
इसके बाद करीब 20 किसानों ने आरटीआई कानून के तहत आवेदन तैयार दाखिल कर बैंक से जवाब तलब किया गया। आवेदन में किसानों ने पूछा कि किस नियम के तहत उनका कर्ज माफ नहीं किया गया है। कई किसानों के आवेदन का जवाब तो बाद में आया परंतु 5 किसानों का कर्ज माफी की चिट्ठी आ गई जिनमें मनवीर सिंह के 50 हजार, जयप्रकाश के 48 हजार, इन्द्रपाल सिंह के 32 हजार, सतवीर के 36 हजार और विनोद कुमार का ११०० रुपये का कर्ज माफ हो गया। पर अभी भी कई किसान कर्ज माफी की बाट जोह रहे हैं।
बैंक कर्ज माफ न करने के लिए किस तरह की बहानेबाजी करते हैं, इसकी एक बानगी देखिए-
अजय मलिक ने फरवरी महीने में 38 हजार का बैंक से कर्ज अपने पिता के नाम पर लिया था। कर्जमाफी के उनके आवेदन को बैंक ने यह कहकर खारिज कर दिया कि गन्ना की फसल उगाने वाले किसान कर्जमाफी के पात्र नहीं है। जबकि क्षेत्र के कई गन्ना किसानों का कर्ज माफ हुआ है जिन्होंने अजय मलिक के साथ ही कर्ज लिया था।
इतना ही नहीं बैंक गरीब किसानों की जानकारी के अभाव का भी खूब फायदा उठा रहे हैं। बैंक ने बिना किसानों की अनुमति लिए उनके बचत खाते से पैसा निकालकर ऋण खाते में डाल दिए। जयपाल सिंह, हुसन सिंह, बृजपाल सिंह आदि इसके उदाहरण हैं। कई खाता धारियों का कहना है कि जैसे ही सरकार ने कर्जमाफी की घोषणा वैसे ही बैंक अधिकारियों ने पिछली तारीख में ही उनके बचत खाते से पैसा निकालकर ऋण खाते में डाल दिया जिससे वे कर्ज माफी के दायरे में नहीं आ सके। इसके स्पष्टीकरण के लिए बैंक अधिकारियों से संपर्क किया गया तो उन्होंने चुप्पी साध ली।
सरकार किसानों के कर्जमाफी को अपनी एक बड़ी उपलिब्ध बता रही है और इसके लिए अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही है। इसके प्रचार के लिए करोड़ों रुपये भी सरकार ने खर्चें हैं। लेकिन वास्तव में किसानों को इसका कितना लाभ पहुंचा है यह गावों में भूख और गरीबी मे जिंदगी जी रहे किसानों की दुर्दशा देखकर पता लगाया जा सकता है। केन्द्र से 1 रुपया चलकर गांव तक आते-आते 15 पैसे हो जाता है, यह बात हमारे प्रधानमंत्री राजीव गाँधी कह चुके हैं, उनके पुत्र राहुल गाँधी भी कह चुके हैं किसानों की 1 रुपये में से केवल 5 पैसा ही पहुंच रहा है। ऊंची विकास दर से बढ़ती हमारी अर्थव्यवस्था क्या इसी 95 पैसे की बदौलत कुलांचे भर रही है?

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