दिल्ली में आन्ध्रा बैंक से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने वाले अरूणेश गुप्ता करीब सात साल से पेंशन पाने के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिली है। सूचना का अधिकार कानून भी उनके लिए अधिकारियों और सूचना आयुक्त की मनमानी के आगे नाकाफी साबित हुआ है।
साल 2001 में बैंक से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के समय अरूणेश गुप्ता की पेंशन कानून के नियमानुसार 7 हजार होनी चाहिए थी लेकिन बैंक ने मनमाने ढंग से 4 हजार 155 रूपये की पेंशन बना दी। अरूणेश गुप्ता का कहना है कि बैंक ने उनकी पेंशन के आकलन के समय पेंशन कानून का नियम 35 नहीं लगाया और उनके सेवाकाल के 5 वर्षों को नहीं जोड़ा। उनका कहना है कि बैंक ने अपने एक सर्कुलर में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वालों को 5 साल सेवा काल का अतिरिक्त लाभ देने की बात कही थी लेकिन उन्हें यह लाभ देने से वंचित ही रखा गया। बैंक की इस मनमानी की वजह जानने के लिए उन्होंने अनेक चिटि्ठयां लिखीं लेकिन किसी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया गया। अंतत बड़ी उम्मीद के साथ उन्होंने एक अगस्त 2006 को वित्त मंत्रालय में आवेदन दाखिल कर इसका कारण जानना चाहा। लेकिन वहां से भी निराशा ही हाथ लगी।
मंत्रालय से आवेदन में मांगी गई सूचना न मिलने पर आवेदक ने केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील की, जहां सूचना आयुक्त पदमा बालासुब्रमण्यम ने 31 मार्च 2007 को बिना आवेदक को सुनवाई में बुलाए आदेश पारित कर दिया। आवेदक द्वारा इसकी शिकायत करने और तथ्यों का प्रस्तुत करने पर आयोग ने 15 दिनों के भीतर बैंक को सूचना देने का आदेश एवं कारण बताओ नोटिस जारी किया। मार्च 2008 में सूचना देने का एक एक अन्य आदेश फ़िर पारित हुआ। बावजूद इसके आवेदक को अब तक वांछित सूचनाएं नहीं मिली हैं उल्टा मंत्रालय ने उन पर सूचना का अधिकार कानून को दुरूपयोग करने के आरोप लगाए हैं। इस बीच उनका मामला देख रहीं सूचना आयुक्त पदमा बालासुब्रमण्यम भी सेवामुक्त हो गईं और अब तक उनका मामला लटका हुआ है।
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