विभव कुमार
मई 2008 में एनडीटीवी के एनसीआर चैनल पर सूचना के अधिकार पर आधारित एक साप्ताहिक प्रोग्राम शुरु किया गया, जिसमें उन कहानियों को दिखाया जाता है और उस पर चर्चा की जाती है जहां सूचना के अधिकार के इस्तेमाल करने से परिस्थितियां बदल गई हों। प्रोग्राम का नाम है `फाइट फॉर योर राईट्स`। किसी निजी टीवी चैनल द्वारा सूचना के अधिकार के प्रचार प्रसार के लिए एक घंटे का साप्ताहिक प्रोग्राम दिखाया जाना अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम है। लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात है कि इस प्रोग्राम के एंकर हैं अरविंद केजरिवाल। मुझे ये जिम्मेदारी दी गई कि प्रोग्राम के लिए आवश्यक कंटेंट इकट्ठी करने के लिए दिल्ली के विभिन्न विभागों में सूचना के अधिकार का आवेदन करूं।
हमने दिल्ली की अलग अलग कॉलोनियों के पिछले तीन सालों में दिल्ली नगर निगम द्वारा कराये गये विकास कार्यों का विवरण सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किया। इन सूचनाओं को हम सम्बंधित कॉलोनी के निवासियों, सम्बंधित अधिकारियों तथा जन जन प्रतिनिधियों के बीच इसे रखते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में मैने देखा कि प्रोग्राम के प्रसारण के बाद दिल्ली के अन्य भागों से भी लोग हमसे संपर्क करने लगे। वो भी अपनी कॉलोनी के विकास कार्यों से सम्बंधित सूचनाएं निकालना चाहते है। इससे हमारा उत्साह और भी बढा। पहले एपीसोड के बाद हमें बताया गया कि एनसीआर चैनलों पर प्रसारित होने वाले प्रोग्रामों की होड में फाइट फॉर योर राईट्स पहले नंबर पर पहुंच गया है।
शुरुआती एक दो एपिसोड में तो एमसीडी के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को बुलाने में कोई खास परेशानी नहीं हुई, लेकिन तीसरा एपिसोड जिसकी रिकॉर्डिंग पूर्वी दिल्ली के सुंदर नगरी में की गई वहां के इंजीनियर ने आखिरी समय में आने से मना कर दिया। सबसे ज्यादा परेशानी तो राजेंद्र नगर में हुई। रिकॉर्डिंग की सारी तैयारी हो जाने के बाद वहां के इंजीनियर, निगम पार्षद और विधायक सभी ने आने से मना कर दिया क्योंकि वहां के कामों में सबसे ज्यादा गडबडियां पकडी गई थीं। साथ ही विधायक ने अपने लोगों को भेज कर रिकॉर्डिंग के बीच में ही हंगामा खडा कर दिया। बडी मशक्कत के बाद किसी तरह रिकॉर्डिंग पूरी की गई।
इसी तरह दिल्ली से गायब हो रहे बच्चों की खतरनाक तरीके से बढ़ती संख्या और इस मामले में दिल्ली पुलिस की नाकामयाबी को लेकर जो प्रोग्राम किया गया उसमें दिल्ली सरकार तथा केंद्र सरकार की ओर से कोई नहीं आया। किसी तरह आखिरी समय में दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत फोन पर बातचीत करने को तैयार हुए।
मेरे समझ में नहीं आ रहा कि जो नेता मीडिया का अटेंशन पाने के लिए अजीबो गरीब हरकतें करते रहते हैं वही सूचना के अधिकार का नाम सुनते ही बहाने बाजी क्यों शुरु कर देते हैं? भलस्वा जहांगीरपुरी से कांग्रेस के विधायक, जिनको इस बार टिकट नहीं मिल पाया है, ने यहां तक कह दिया कि आप और किसी प्रोग्राम में बुला लीजिए लेकिन इस बार माफ कर दीजिए। बाद में दिल्ली नगर निगम के कुछ अधिकारियों ने बताया कि सूचना के अधिकार से निकली गडबड़ियों के संबंध में अरविंद जिस तरह से सवाल पूछते है उसका कोई जवाब तो होता नहीं। अधिकारी और नेता इन सवालों से बचने के लिए कार्यक्रम में आने से ही मना कर देते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद डॉ। हर्ष वर्धन एक ऐसे नेता हैं जिन्हे हमने जब भी बुलाया वो आये और ना सिर्फ सरकार की बल्कि अपनी पार्टी की नीतियों पर भी बेबाक टिप्पणियां कीं।
प्रोग्राम को मिल रही लोकप्रियता को देखते हुए हमने कुछ एपिसोड दिल्ली के विधान सभा चुनावों को ध्यान में रख कर बनाए। इसके लिए कुछ विधायकों द्वारा उनके विकास निधि से बनी सड़कों में प्रयोग की गई सामग्री के नमूने सूचना के अधिकार के तहत उठाये और उनकी जांच श्री राम लेबोरेटरी में कराई। चौकाने वाला तथ्य यह है कि उठाये गये 12 नमूनों में एक भी पास नहीं हो सका। इन नमूनों को उठाने के लिए मैने दिल्ली नगर निगम में सूचना के अधिकार का आवेदन किया। मेरे आवेदन करने के दूसरे ही दिन दिल्ली नगर निगम के एक जूनियर इंजीनियर का फोन आया कि आपको जो भी सूचना चाहिए ऐसे ही ले जाइये सूचना के अधिकार का आवेदन करने की क्या आवश्यकता है। मैने सोचा चलो यहां तो नमूने आसानी से मिल जायेंगे। लेकिन जब हमलोग उनके ऑफिस में पहुंचे तो उनका रंग ही बदला हुआ था, पहले तो उन्होंने इधर उधर की ढेर सारी समस्याएं बताई कि वो कितनी विषम परिस्थितियों में काम करतें हैं। फ़िर हमे ऑफर दिया कि जो सूचनाएं चाहिए ले जाइए लेकिन नमूना मत उठाइये। काफी बहस के बाद मैने ये प्रस्ताव रखा कि आप हमें वो सड़क बता दें जो आपके हिसाब से सबसे बढ़िया बनी है हम उसी सड़क का नमूना उठा लेंगें। इस पर उनका जवाब सुनकर मैं दंग रह गया। उनके अनुसार पूरी दिल्ली में किसी भी सड़क का नमूना पास नहीं हो सकता। किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर हमने नमूना तो उठा लिया, लेकिन इसके लिए उन्होंने हमसे यह आश्वासन लिया कि नमूने फेल होने पर हम आगे कोई कारवाई नहीं करेंगे और हमसे ये वादा किया अब आगे वो कभी भी इस तरह की गलती नहीं करेंगे। इस तरह की कई और भी घटनाएं होती रहीं। एक बार तो हमारे एक साथी के घर एक राशन दुकानदार 50000 रुपये कैश लेकर पहुंच गया कि इसे रख लीजिए लेकिन सूचना के अधिकार के तहत कोई सूचना मत मांगिए। उसका ऑफर था कि ये तो शुरुआत है, यदि वो उनकी बात मान ले तो आगे भी उनकी सेवा करते रहेंगे।
इस तरह अब तक फाइट फॉर योर राईट्स के 27 एपिसोड प्रसारित किये जा चुके हैं। प्रत्येक एपीसोड अपने आप में एक्सक्लूसिव रहा है। इस नये प्रयोग से यह तो सिद्ध हो गया है कि अगर सूचना के अधिकार का प्रयोग करके कोई न्यूज निकाली जाती है तो वो एक्सक्लूसिव तो होती ही है साथ ही टीआरपी भी बढाती है।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता है और एनडीटीवी से जुड़े हैं)
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