मनीष सिसोदिया
सूचना के अधिकार कानून के लिए देश में एक लंबा संघर्ष चला है। इस अभियान में देश के कई सम्मानित एवं वरिष्ठ पत्रकारों ने भी एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका निभाई है। उन्होंने तन-मन-धन से इस अभियान में सहयोग दिया। इसमें एक तरफ प्रभाष जोशी, अजीत भट्टाचार्य, भरत डोगरा, हरिवंश जी जैसे स्थापित नाम रहे जो हर घटना, हर परिस्थिति में इस संघर्ष के साथ बने रहे। तो दूसरी तरफ बड़ी संख्या में युवा पत्रकार इस अभियान से जुड़ते रहे। ये वे लोग थे जो समाज के विकास और उत्थान में कुछ भूमिका निभाने के इरादे से पत्रकारिता में आए थे। इसमें से बहुत से लोगों ने सूचना के अधिकार पर काम करने के लिए दलीय राजनीति और अपराध की पत्रकारिता जिसे मुख्यधारा की पत्रकारिता भी कहा जाता है, छोड़ दी और स्वतंत्र रूप से काम करते हुए या किसी संगठन के साथ जुड़कर अपनी भूमिका निभाने लगे।
2001 में दिल्ली में सूचना का अधिकार लागू होने के साथ ही मैं भी इस अभियान से जुड़ता चला गया। कुछ वर्षों तक जी न्यूज में पत्रकारिता करते हुए ही दिल्ली में अभियान से जुड़ा रहा। इसी क्रम में अपना पन्ना का प्रकाशन भी शुरू किया और इसमें दिल्ली में सूचना के अधिकार के ऐसे प्रयोगों को जो एक पत्रकार की दृष्टि से आम आदमी के लिए बेहद उपयोगी थे, चुन-चुन कर इसमें प्रकाशित करना शुरू किया। धीरे-धीरे इसमें महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से भी समाचार आने लगे। आगे चलकर मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) और नेशनल कैंपेन फॉर राईट टू इन्फॉरमेशन (एनसीपीआरआई) आदि से भी संपर्क बना। 2003 में जब दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में सूचना के अधिकार का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया तो अपना पन्ना का एक विशेषांक निकाला गया। इसमें देश भर में सूचना के अधिकार के इस्तेमाल के प्रेरणादायी उदाहरण प्रकाशित किए गए।
इस दौरान दिल्ली में सूचना का अधिकार कानून था लेकिन शायद ही कोई पत्रकार हो जिसने सूचना के अधिकार कानून की मदद से सूचना निकलवाकर कोई स्टोरी की हो। हां आम लोगों द्वारा इस कानून के इस्तेमाल और उससे निकली सूचनाओं के विश्लेषण पर खूब खबरें प्रकाशित हुईं। विशेषकर इंडियन एक्सप्रेस ने परिवर्तन संस्था के साथ मिलकर कई कॉलोनियों में सूचना के अधिकार शिविर आयोजित किए। इंडियन एक्सप्रेस जैसे समाचार पत्र का सूचना के अधिकार को लेकर अभियान चलाना, रोजाना उसकी खबरें प्रमुखता से छापना और पूरे पेज के विज्ञापन देना। यह एक बड़ी घटना थी जिसने सूचना के अधिकार को सम्मान और लोकप्रियता दिलवाई। लेकिन पत्रकारों में यह कानून चला ही नहीं। उस दौरान मैंने प्रिंट मीडिया के बहुत से पत्रकारों से बात की थी। लेकिन सबका मानना था कि इस कानून के तहत सूचना लेने की प्रक्रिया जितनी लंबी है, उसमें से खबर निकालने की संभावना उतनी ही क्षीण है। यही हाल इलेक्ट्रोनिक मीडिया का भी था। वहां तो सबसे बड़ी समस्या थी कि सूचना के अधिकार की बदौलत खबर बनते कुछ कागज निकल भी आए तो वीजुअल्स कहां से आएंगे। उस वक्त एक ही शॉट या ग्राफिक्स को बार-बार दिखाने की परंपरा तब के टेलीविजन संपादकों की स्वीकृति में नहीं आई थी। बहरहाल, इसके बाद 2005 में देश भर में सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ। उस समय कई समाचार पत्रों के पत्रकारों ने सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने की प्रक्रिया शुरू की। इसमें से अधिकतर पत्रकार ऐसे थे जो मंत्रालयों की बीट देखते थे। लागू होने के 3-4 महीने के बाद अख़बारों में इस कानून के तहत निकलवाई गई सूचना को खबर के रूप में दिया जाने लगा। इसमें हिंदुस्तान टाईम्स, टाईम्स ऑफ इंडिया, एशियन एज, इंडियन एक्सप्रेस प्रमुख थे। हिन्दी के अखबारों में अमर उजाला में इसका प्रयोग उल्लेखनीय रहा जहां पत्रकारों ने सूचना के अधिकार से जानकारी निकलवाकर उसे पहली हेडलाइन तक बनाया। उधर गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में भी कई पत्रकारों ने सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएं निकलवाकर प्रमुखता से प्रकाशित कीं।
वर्ष 2006 में सूचना का अधिकार कानून और पत्रकारिता का रिश्ता और भी प्रगाढ़ हुआ जब देश के आठ मीडिया संस्थान सूचना के अधिकार प्रचार-प्रसार के अभियान में एक साथ शामिल हुए। इसमें एक तरफ एनडीटीवी जैसे चैनल थे, हिन्दुस्तान टाईम्स, हिन्दुस्तान, जैसे राष्ट्रीय अखबार थे तो दूसरी तरफ राज्यों में शीर्ष मुकाम पर स्थित प्रभात खबर, दौरित्री, देशोन्नति जैसे अखबार भी थे। 15 दिन के इस अभियान में सूचना के अधिकार का खूब डंका बजा। यह अभियान एक सफल अभियान था जिसकी बदौलत देश भर में सूचना के अधिकार की लोकप्रियता बढ़ी। 700 संगठनों की मदद से चलाए गए इस अभियान के दौरान करीब 25 हजार लोगों ने सूचना के अधिकार का प्रयोग किया। इसका फायदा यह हुआ कि लोग सूचना के अधिकार कानून की उपयोगिता को अपने खुद के रोजमर्रा के जीवन से जोड़कर देखने लगे। इस अभियान की सफलता ने भी मीडिया में सूचना के अधिकार को एक सम्मान दिलाया। अखबारों और टेलीविजन में सूचना के अधिकार से जुड़ी खबरों को प्रमुखता मिली वहीं खुद दोनों माध्यमों के पत्रकारों ने इसका प्रयोग करना शुरू किया। यहां तक कि इसके तहत जानकारी निकलवाकर चैनलों ने आधे-आधे घंटे के बहुत से कार्यक्रम भी किए हैं।
कहा जा सकता है कि आज सूचना का अधिकार और पत्रकारिता ने एक दूसरे को पूरक के रूप में अंगीकार कर लिया है। इस तरह यह अधिकार और इसके लिए बना कानून पत्रकारिता के कार्य में महत्वपूर्ण सहयोग दे रहा है वहीं पत्रकारिता ने इस कानून के बनने, स्थापित होने और इसे बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
1 टिप्पणी:
media sansthan rti ki puja sirf khabar ke liya karte hain yadi koi rti ko lat mar raha to media sansthan jo kal rti se phayda liya hai ushe kabhar bhi nahi karte.
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