गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

सूचना के अधिकार का मेरा पहला प्रयोग

विमल चंद्र पाण्डेय


सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की सफलता की बहुत सारी कहानियां सुनने के बाद भी इसकी ताकत को मैंने खुद आजमा कर नहीं देखा था। हालांकि मैं जितने करीब से इसे देखने का सौभाग्य पा रहा था उससे ये तो साफ था कि यह कानून देश में अब तक बने कानूनों से अलग और ताकतवर है। 2006 की शुरूआत में जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का द्वितीय वर्ष का छात्र था, छुटि्टयों में अपने घर बनारस जाना हुआ। यूं ही एक खयाल आया कि इस कानून का उपयोग यहां किया जाये। इस खूबसूरत शहर में ढेर सारी अनियमिततायें हैं जो इसकी पवित्रता और खूबसूरती में ग्रहण की तरह हैं। मेरे घर से थोड़ी दूरी पर चंदुआ सट्टी नाम की सब्जी मण्डी पड़ती है जहां हर समय गंदगी और गलाजतों का बोलबाला रहता है।
जब मैं घर पहुंचा तो यह गंदगी और बढ़ी हुयी दिखायी दी क्योंकि जहां यह मण्डी लगती है वहां की सड़क बुरी तरह से क्षतिग्रस्त थी। लोगों ने बताया कि इसके लिये उन्होंने अपने स्तर से बहुत कोशिशें की हैं। क्षेत्रीय नेताओं को लेकर नगर निगम तक गये हैं और हर बार ये आश्वासन लेकर लौटे हैं कि सड़क जल्दी ही बना दी जायेगी। सड़क में काम लगा भी दिया गया मगर एक दिन काम हो और दो दिन तक कोई काम न हो। जो सड़क बन भी रही थी उसे देख कर लग रहा था कि इसके बनते ही यह टूटेगी। उस क्षेत्र के लोग और मण्डी में आने वाले लोग सभी अपनी सहूलियत के हिसाब से बचा बचा कर कदम रखते हैं पर इस समस्या का समाधन कैसे हो सकता है, इसकी कोई सूरत नहीं समझ आती। सड़क न बने में थी न निर्माणाधीन में।
मैंने अपने एक दोस्त के साथ सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन तैयार किया जिसमें मैंने कुछ सवाल पूछे। जैसे सड़क बनाने में किस मटेरियल का प्रयोग हुआ है, कौन कौन से अधिकारी इस परियोजना को देख रहे हैं इत्यादि। आवेदन के तीस दिन के भीतर जवाब आना होता है और मैं अपनी छुटि्टयां दस दिन में खत्म होने पर वापस चला आया। इस घटना के करीब बीस दिन बाद मेरे मोबाइल पर एक फोन आया कि आप आकर मटेरियल की जांच कर लें। मैं उस समय दिल्ली में था। मैंने अपने दोस्त को कहा कि वह जाकर मटेरियल की जांच कर ले। दोस्त ने अगले दिन मुझे बताया कि उसने अपनी क्षमता के हिसाब से जांच तो कर ली पर दरअसल उसकी जरूरत थी नहीं क्योंकि जो सड़क बनने के बावजूद टूटी हुयी थी, उस पर दुबारा काम लगा कर उसे एकदम दुरूस्त बना दिया गया है। सड़क में प्रयोग होने वाले मटेरियल की क्वालिटी अच्छी कर दी गई थी। मुझे तो इस सफलता की कुछ उम्मीद थी लेकिन मेरा दोस्त इससे बिल्कुल आश्चर्य में था। इसकी कतई उम्मीद नहीं थी कि मात्र एक आवेदन से ऐसा चमत्कार भी हो सकता है। उसके बाद उसने सूचना का अधिकार पर बहुत सारी किताबें और ब्रोशर्स पढ़े। इस समय वह इसकी गतिविधियों से बिल्कुल एलर्ट रहता है और दूसरों को इसके इस्तेमाल के बारे में बताता रहता है।

(लेखक यूएनआई से जुडे़ हैं)

कोई टिप्पणी नहीं: