शनिवार, 15 नवंबर 2008

अस्पताल को करना पड़ा मुफ्त इलाज

सरकारी अस्पतालों में भी पैसे वालों की ही तूती बोलती है। यदि पैसे नहीं तो इलाज नहीं होता। कुछ ऐसा ही हो रहा है दिल्ली के गुरू तेग बहादुर अस्पताल में, जहां बुलंदशहर से अपनी मां का इलाज कराने आए मुद्दसिर अली से ऑपरेशन के सामान के लिए 30 हजार रूपये मांगे जाते हैं। पैसा न होने पर इलाज करने से मना कर दिया जाता है। मामला उच्च न्यायालय में जाने और न्यायालय के आदेश के बाद अस्पताल को ऑपरेशन करने को मजबूर होना पड़ता है।
दिल्ली आते वक्त मुद्दसिर ने सोचा भी नहीं था कि इस अस्पताल में मां (सैयदा) का ऑपरेशन कराना इतना आसान नहीं होगा। गरीब, विक्लांग एवं ढाई हजार रूपये महीना कमाने वाले मुद्दसिर से सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन के लिए इतनी बड़ी धनराशी मांगी जाएगी। उन्हें नहीं पता था कि लगभग ढाई महीने की जद्दोजहद के बाद ऑपरेशन होगा वह भी सूचना के अधिकार के इस्तेमाल और उच्च न्यायालय के आदेश के बाद। मुद्दसिर को तो सिर्फ़ इतना पता था कि सरकारी अस्पतालों में गरीबों को मुफ्त इलाज किया जाता है। और इसी खातिर वे अपनी बीमार मां को अगस्त में पूर्वी दिल्ली के गुरूतेग बहादुर अस्पताल लाए।
डॉक्टर ने उनकी मां की जांच करने के बाद हिप रिप्लेसमेंट को जरूरी बताया और उन्हें इलाज के लिए जरूरी सामान जुटाने को कहा। डॉक्टर ने मुद्दसिर को एक एजेंट भूपेन्द्र का नंबर भी दिया जो इनकी व्यवस्था कर सकता था। जब एजेंट से संपर्क किया गया तो उसने ऑपरेशन के सामान आदि के लिए करीब 30 हजार की मांग की। गरीब मुद्दसिर के पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए उसने अस्पताल से मुफ्त इलाज की गुजारिश की, लेकिन अस्पताल राजी नहीं हुआ। दो टूक जवाब देते हुए अस्पताल के डॉक्टर ने कहा- जब पैसे का जुगाड़ हो जाए तब आना। सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं की मदद से उन्होंने अस्पताल के लोक सूचना अधिकारी से इस संबंध में लाइफ एंड लिबर्टी के अन्तर्गत जवाब तलब किया। लेकिन अस्पताल ने आरटीआई आवेदन का 48 घंटे में जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। बाद में जो जवाब मिला वह भी ठीक नहीं था।
आवेदन दाखिल करने के तीसरे दिन केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत की गई लेकिन आयोग ने भी लाइफ एंड लिबर्टी के मामले की समय पर सुनवाई नहीं की। इसी बीच मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में चला गया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में अस्पताल को 2 अक्टूबर को मुद्दसिर की मां का मुफ्त में ऑपरेशन करने को कहा। अस्पताल ने यहां भी लापरवाही दिखाई और उच्च न्यायालय द्वारा दी गई तारीख में इलाज नहीं किया। इसके लिए कभी कर्मचारियों की हडताल का हवाला दिया तो कभी ऑपरेशन में जरूरी सामान की गैर मौजूदगी का। अन्तत: अस्पताल को 21 अक्टूबर को मुद्दसिर की मां का मुफ्त ऑपरेशन करना पड़ा। अब सैयदा पूरी तरह स्वस्थ हैं।

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