शनिवार, 15 नवंबर 2008

पदमा मैडम ने कहा- सरकार के पास इतनी सूचना देने का समय नहीं है

आपने ज्यादा सूचनाएं मांग ली हैं, आपको कोई काम नहीं है क्या? सरकार के पास इतनी सूचना देने का समय नहीं है। ये वाक्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त पदमा बालासुब्रमण्यम ने मेरठ के विजेन्द्र सिंह से उनकी अपीलों की सुनवाई के दौरान कहे। सूचना आयुक्त सूचना दिलाने में कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा उनकी बातों से आसानी से लगाया जा सकता है।
केन्द्रीय सूचना आयुक्त पदमा बालासुब्रमण्यम के फैसलों से असंतुष्ट आवेदनकर्ताओं की संख्या एक-दो में नहीं बल्कि कईयों में है। विजेन्द्र सिंह भी इनमें से एक हैं। पदमा ने 24 जून को उनकी 28 अपीलों की सुनवाई की थी और 26 जून को आर्डर पास किया जो पूरी तरह से आवेदक के खिलाफ था। आवेदनकर्ता का कहना है कि पदमा ने उनके आवेदनों को बिना पढ़े ही मात्र 5 सूचनाएं देने का फैसला सुना दिया, वह भी आवेदक को अब तक नहीं मिली हैं। आवेदनकर्ता ने अपने समस्त आवेदनों में करीब 250 सूचनाएं मांगी हैं जो गुजरात के बैंक ऑफ़ बडौदा से सम्बंधित हैं।
विजेन्द्र का कहना है कि बैंक ने उन्हें झूठे आरोपों में बर्खास्त कर दिया है। हाईकोर्ट में केस करने के लिए उन्हें आवेदनों में मांगी गई सूचनाओं की जरूरत है। उनका कहना है कि बैंक फंसने के डर से सूचना देने से बच रहा है और सूचना आयुक्त भी बैंक के लोक सूचना अधिकारी के साथ है।
पदमा के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए उन्होंने मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला के पास याचिका भी भेजी, इसके लिए कई रिमांइडर भी भेजे लेकिन उनकी तरफ़ से भी कोई जवाब नहीं मिला। उक्त सूचनाएं प्राप्त करने के लिए वे लगभग 10 हजार रूपये भी खर्च कर चुके हैं। सूचना कानून किसी भी लोक प्राधिकरण से सूचना हासिल करने की गारंटी देता है लेकिन आवेदन दाखिल करने के 11 महीने बाद भी विजेन्द्र को सूचना नहीं मिली है। इसे सूचना कानून का मजाक नहीं तो और क्या कहा जाएगा?

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बाल दिवस के मौके पर कल नये डाक टिकट जारी हुए हैं। देश की राजधानी दिल्ली में संसद मार्ग पर बने विशालकाय डाकघर में आज सुबह जब लोग नये टिकट लेने पहुंचे तो नहीं मिले। फिलेटेलिक ब्यूरो में ये टिकट आये नहीं या खत्म हो गये कोई बताने वाला नहीं मिला, क्योंकि काउंटर खाली पड़ा है। पोस्ट मास्टर साहब का कहना है कि उनको कोई जानकारी नहीं, फिलेटेलिक ब्यूरो वाले ही जाने। ये हाल है देश के उस डाकघर का है जो देश की संसद से मात्र कुछ सौ मीटर की दूरी पर है और जिसकी बिल्डिंग में डाक महकमे के मंत्री बैठते हैं। पिछले एक साल से डाक टिकट जमा करने के शौकीन इसी तरह से परेशान हो रहे हैं। अफसोस इस बात का है कि किसी को फिक्र ही नहीं है कि डाक टिकटों के शौकीन हर बार किस तरह से परेशान होते हैं। शिकायत करें तो किससे? बात वहीं आकर थम जाती है कि इन लोगों का कोई क्या बिगाड़ सकता है। क्या ये मामला सूचना के अधिकार के तहत उठाया जा सकता है?

भागीरथ ने कहा…

bilkul uthaya jaa sakta hai benaami jee.
rti application se iske liye jimmedar logon ke naam aur iska karan jana ja sakta hai.

बेनामी ने कहा…

ICs Of Commission are getting heavy salaries just to speak some lowest quality decisions. Is this the real Democracy ? ICs also must be accountable / punishable like the erring PIOs ; if fond guilty . PM must contitute a National RTI Forum immediately to supervise all the SICs / CIC.

बेनामी ने कहा…

If CIC has been torturing the appellants ; it must be replaced by munsif courts. After all, citizens are not to be harrassed by RTI authorities. Govt must inquire very honestly into complaint of Vijendra Singh ( appellant); & must punish the guilty IC / PIO immediately. Otherwise the RTI Act will meet its natural death very soon. Dishonest ICs must be changed by the Predident of India.

बेनामी ने कहा…

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