गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

सबसे बड़ी चुनौती ज़ुर्माना नहीं आयोगों में लंबित मामलों की संख्या है- शैलेष गाँधी

व्यवसायी, इंजीनियर आरटीआई कार्यकर्ता रह चुके और अब केन्द्रीय सूचना आयुक्त बने शैलेष गाँधी ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें जनता की मांग पर सूचना आयुक्त बनाया गया है। जनता को उनसे काफ़ी उम्मीदें हैं और लोग उनसे वह भूमिका निभाने की उम्मीद में बैठे हैं जो आज तक सूचना आयुक्त की कुर्सी पर बैठकर कोई नहीं निभा सका है। पिछले अंक में हमने शैलेष गाँधी की नियुक्ति और उनसे उम्मीदों पर विस्तार से चर्चा की थी। अब जबकि वे पद ग्रहण कर चुके हैं और मामलों की सुनवाई भी शुरू कर चुके हैं तो हमने उनके मन को टटोलने की कोशिश की, यह जानने के लिए कि सरकारी कुर्सी पर बैठने की ठीक शुरूआत में उनके अंदर का आरटीआई कार्यकर्ता क्या महसूस कर रहा है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश -
सबसे पहले तो आपको सूना युक्त बनने पर बधाई
धन्यवाद

सूचना आयुक्त के रूप में सबसे बड़ी चुनौती किसे मानते हैं?
मैं आरटीआई कार्यकर्ता और अब सूचना आयुक्त के रूप में भी पेन्डेंसी को ही सूचना कानून की सबसे बड़ी चुनौती और खतरा मान रहा हूं। क्योंकि इसकी वजह से यदि एक या दो साल बाद सूचना मिलेगी तो आम आदमी इस कानून से दूर भाग जाएगा।

इसे कम करने के लिए क्या करेंगे?
मेरे विचार से दिन में 25 से 30 सुनवाईयां रखी जा सकती हैं। जितनी ज्यादा संभव हो सके सुनवाईयां होनी चाहिए। ऐसा होने पर लोगों को जल्दी सूचना मिलेगी और कानून के प्रति भरोसा जगेगा। मैं गारंटी देता हूं कि 6 महीने बाद मेरे पास आने वाले मामलों की पेन्डेंसी 3 महीने से ज्यादा नहीं रहेगी।

पेंडेंसी का मतलब साफ़ है कि सरकार में बैठे लोग नागरिकों के सूचना को अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं, इसकी क्या वजह सामने आती है?
मुझे लगता है कि नागरिक और सरकार में फर्क नहीं होना चाहिए। सरकार नागरिक से अलग नहीं है। लोकशाही में सरकार अलग हो ही नहीं सकती। हालांकि इसमें बहुत त्रुटियां हैं लेकिन यह सरकार हमारी है और हमें ही इसे सुधारना है। केवल सरकार को दोष देना ठीक नहीं है। खामियां संगठनों और समाज दोनों में हैं।

क्या यह पेंडेंसी पेनल्टी न लगाने की वजह से नहीं है। पेनल्टी न लगाने की वजह से अधिकारियों में इस कानून को लेकर कोई डर नहीं रह गया है, और शायद अब आप भी यह मानने लगे हैं कि पेनल्टी ज़रूरी नहीं है?

पेनल्टी सिर्फ़ एक जरिया है। लोगों को सूचना मिले, मुद्दा यह है। मैं यह नहीं कह रहा कि पेनल्टी नहीं लगेगी। कायदे को सबल बनाने के लिए जब-जब इसका अवमान होगा पेनल्टी जरूर लगेगी। लेकिन मेरा यह मानना है कि दंड और डंडे से सुधार नहीं किया जा सकता। मैं अपने आपको पेनल्टी से नहीं बल्कि इस बात से मापूंगा कि लोगों को सूचना मिले।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जब आपका नाम सूचना आयुक्त के लिए प्रस्तावित किया था तो सोचा था आप दोषी सूचना अधिकारियों के प्रति सख्ती से पेश आएंगे, तो क्या आपके इस रूख से वे ठगा से महसूस नहीं करेंगे?
देश का एक छोटा-सा तबका ऐसा मानता है। बाकी लोग ऐसा नहीं कह रहे। मैंने बराबर लोगों से इस बारे में राय ली हैं। लगभग 70 प्रतिशत लोग मेरे विचारों से सहमत हैं। देश में कुछ आरटीआई कार्यकर्ता ऐसे है जिन्हें कानून से कम और पेनल्टी से अधिक मतलब होता है। उन्हें पेनल्टी लगवाने में बड़ी खुशी मिलती है। कुछ लोगों की राय को देश ही राय नहीं माननी चाहिए। मैं उन लोगों को भी गलत नहीं मानता क्योंकि उनका मकसद भी यही है कि कानून ठीक से काम करे।

जब आपका नाम प्रस्तावित हुआ था तो आपकी तरपफ से घोषणा की गई थी कि आप एक रुपया सेलरी, बिना सरकारी गाड़ी और बंगला लिए सादगी से, सेवा भाव से इस पद पर काम करेंगे? सुनने में आया कि अब आप इस पद बात पर कायम नहीं हैं?
कायम नहीं हूं? यह एक ग्रुप डिसीजन था। उस समय यह विचार आया था। लेकिन बाद में सोचा कि मैं दिल्ली में रहूंगा कैसे? कुछ लोगों ने घर, गाड़ी का सुझाया लेकिन बाद में मुझे यह ठीक नहीं लगा। लगा कि मैं इस जद्दोजहद में उलझ कर रह जाऊंगा । किसी से मांगने से बेहतर लगा सरकार से लूँ । मैनें लोगों के परामर्श करके यह निर्णय बदला।

यह भी सुनने को मिला कि आप अब आरटीआई का इस्तेमाल नहीं करेंगे
यह सही है। पहले सोचा इसका इस्तेमाल करूंगा, लेकिन बाद में विचार आया कि यदि मैं कमीशन में आया तो विचित्रा स्थिति पैदा हो जाएगी। जब दो कमिश्नर किसी विषय पर आमने-सामने होंगे तो आपत्तिजनक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। मैं किसी के आगे ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं करना चाहता।

आयुक्त के पद पर रहते हुए कानून की सफलता के लिए क्या करेंगे?
शुरू के 6 महीनों तक मेरी प्राथमिकता पेन्डेंसी के निपटारे की होगी। उसके बाद पीआईओ के साथ मीटिंग करके इस दिशा में पहल करूंगा। तीसरी प्राथमिकता जनता के बीच जाकर इसके फैलाव और इस पर अमल करने की कोशिश होगी।

2 टिप्‍पणियां:

addictionofcinema ने कहा…

शैलेश जी के सूचना आयुक्त बनने पर सभी को ख़ुशी हुई थी जो आर टी आई की सफलता में आयुक्तों को बाधा मान रहे थे. शैलेश जी की मेहनत के हम सभी नागरिक कायल हैं जो उन्होंने आर टी आई के लिए की है.
मुझे लगता हैकि उनके बारें में किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले उम्हे थोडा समय देना चाहिए की वो अपनी प्राथमिकताओं को तय कर सकें. इंटरव्यू बहुत अच्छा और सार्थक है....बधाई

M.L.Thanvi ने कहा…

अच्छॆ सवालो के स्पस्ट जवाब.लेकिन यह साफ़ है कि हमे श्री गान्धी से उम्मीद अधिक है. एम.एल.थानवी,फलोदी