जब सूचना दिलवाने के जिम्मेदार आयुक्त ही सूचना दिलाने में असमर्थ हों तो बेचारे आवेदक कहां जाएं? ऐसे ही एक आवेदक हैं दिल्ली के गोपालदास, जिन्हें केन्द्रीय सूचना आयुक्त ओ पी केजरीवाल ने सूचना दिलवाने के स्थान पर उच्च अधिकारियों से बात करने की सलाह देकर अपनी जिम्मेदारियों से कन्नी काट ली है। दिल्ली दूरदर्शन केन्द्र में लाइटिंग असिसटैंट के पद पर कार्यरत गोपालदास ने योग्यताओं के बावजूद तरक्की न मिलने पर आरटीआई के तहत इसका कारण जानना चाहा था। लेकिन न तो उन्हें अधिकारियों से इसका संतोषजनक जवाब मिला और न ही सूचना आयुक्त के दरबार से।
दरअसल गोपालदास का 1998 में प्रमोशन होना था और वह इस योग्य भी थे, लेकिन दूरदर्शन दिल्ली केन्द्र ने उन्हें प्रमोशन नहीं दिया। 1999 में दूरदर्शन मुख्यालय, मंडी हाउस ने एक आदेश भी जारी किया जिसमें कहा गया कि जो लाइटिंग असिसटैंट योग्य एवं प्रशिक्षण प्राप्त हैं उन्हें तरक्की दी जाए। मुख्यालय के आदेश के बाद भी गोपालदास को तरक्की नहीं मिली जबकि उनके अनेक जूनियरों को तरक्की दे दी गई। 2006 में उन्होंने पहले दूरदर्शन मुख्यालय और पिफर दिल्ली केन्द्र से आरटीआई के जरिए कुल पांच प्रश्न पूछे। चार प्रश्नों के जवाब तो मिल गए लेकिन उस प्रश्न का संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया जिसमें पूछा गया था कि क्यों दूरदर्शन मुख्यालय के आदेश के बाद भी उनको तरक्की नहीं दी गई।
अपीलीय अधिकारी से भी संतोषजनक जवाब न मिलने पर मामला केन्द्रीय सूचना आयोग में ओ पी केजरीवाल के यहां पहुंचा। आयुक्त ने इस बाबत जब दूरदर्शन दिल्ली केन्द्र के निदेशक और मुख्यालय के डायरेक्टर जनरल से स्पष्टीकरण मांगा तो उन्होंने कहा कि हमारे पास जो सूचना उपलब्ध थी, दे दी। तब सूचना आयुक्त ने प्रमोशन से जुडे़ दस्तावेजों के निरीक्षण की अनुमति आवेदक को दी। लेकिन जब आवेदक निरीक्षण करने गए तो वहां से मुख्य दस्तावेज गायब थे। उनके सामने दो फाइलें रख दी गईं और कहा गया कि जो चाहिए ले लो। जानकारी न मिलने पर जब ओ पी केजरीवाल के यहां शिकायत की गई तो उन्होंने जवाब दिया कि आप उच्च अधिकारियों से इस सिलसिले में बात करें, हम कुछ नहीं कर सकते। गोपालदास ने सूचना आयुक्त पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रारंभ में दूरदर्शन से जुड़े रहने के कारण उनकी सहानुभूति दूरदर्शन के अधिकारियों से अधिक थी। इसी कारण अधिकारियों के साथ नरमी बरती गई।
दरअसल गोपालदास का 1998 में प्रमोशन होना था और वह इस योग्य भी थे, लेकिन दूरदर्शन दिल्ली केन्द्र ने उन्हें प्रमोशन नहीं दिया। 1999 में दूरदर्शन मुख्यालय, मंडी हाउस ने एक आदेश भी जारी किया जिसमें कहा गया कि जो लाइटिंग असिसटैंट योग्य एवं प्रशिक्षण प्राप्त हैं उन्हें तरक्की दी जाए। मुख्यालय के आदेश के बाद भी गोपालदास को तरक्की नहीं मिली जबकि उनके अनेक जूनियरों को तरक्की दे दी गई। 2006 में उन्होंने पहले दूरदर्शन मुख्यालय और पिफर दिल्ली केन्द्र से आरटीआई के जरिए कुल पांच प्रश्न पूछे। चार प्रश्नों के जवाब तो मिल गए लेकिन उस प्रश्न का संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया जिसमें पूछा गया था कि क्यों दूरदर्शन मुख्यालय के आदेश के बाद भी उनको तरक्की नहीं दी गई।
अपीलीय अधिकारी से भी संतोषजनक जवाब न मिलने पर मामला केन्द्रीय सूचना आयोग में ओ पी केजरीवाल के यहां पहुंचा। आयुक्त ने इस बाबत जब दूरदर्शन दिल्ली केन्द्र के निदेशक और मुख्यालय के डायरेक्टर जनरल से स्पष्टीकरण मांगा तो उन्होंने कहा कि हमारे पास जो सूचना उपलब्ध थी, दे दी। तब सूचना आयुक्त ने प्रमोशन से जुडे़ दस्तावेजों के निरीक्षण की अनुमति आवेदक को दी। लेकिन जब आवेदक निरीक्षण करने गए तो वहां से मुख्य दस्तावेज गायब थे। उनके सामने दो फाइलें रख दी गईं और कहा गया कि जो चाहिए ले लो। जानकारी न मिलने पर जब ओ पी केजरीवाल के यहां शिकायत की गई तो उन्होंने जवाब दिया कि आप उच्च अधिकारियों से इस सिलसिले में बात करें, हम कुछ नहीं कर सकते। गोपालदास ने सूचना आयुक्त पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रारंभ में दूरदर्शन से जुड़े रहने के कारण उनकी सहानुभूति दूरदर्शन के अधिकारियों से अधिक थी। इसी कारण अधिकारियों के साथ नरमी बरती गई।
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