शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

ज़िला जज मेरठ के पीआईओ पर जुर्माना लगा, हटा और अब पत्रावली गायब

उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने मेरठ के ज़िला जज कार्यलय के पीआईओ (लोक सूचना अधिकारी) के खिलाफ सूचना नहीं देने के कारण पहले तो 25,000 रूपये का जुर्माना लगया फिर बिना कारण बताये ही जुर्मान हटा कर केस बन्द कर दिया। जब आवेदक ने इस मामले पर पुन: सुनवाई करने का अनुरोध् किया तो सुनवाई के फैसला सुरक्षित कर लिया गया और बाद में आवेदक को सूचना दी गई कि केस की पत्रावली नहीं मिल रही है। अब जब पत्रावली ही नहीं मिल रही है तो ना जुर्माना लगेगा और ना ही सूचना मिलेगी।
यह मामला मेरठ के कृष्ण कुमार खन्ना का है। उन्होंने मेरठ ज़िला जज के अधीन अदालतों में पेशकारों और अहलकारों द्वारा ली जा रही रिश्वत के रोकथाम के लिए ज़िला जज के कार्यालय में 66 आवेदन किये। उनके आवेदनों पर जब कोई कार्यवाई नहीं हुई तो उन्होंने आवेदनों पर की गई कार्यवाई का विवरण आरटीआई के तहत मांगा। कृष्ण कुमार ने आरटीआई का आवेदन 14 मई 2007 को पंजीकृत डाक से भेजा था जिसे ज़िला जज कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी बच्चू लाल ने लेने से मना दिया।

इसकी शिकायत कृष्ण कुमार ने उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में की। आयोग में छ: सुनवाईयों में एक बार भी लोक सूचना अधिकारी या उसका कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं हुआ तो सूचना आयुक्त अशोक गुप्ता ने 11 जनवरी 2008 को उसके खिलाफ 25000 रूपये का जुर्माना लगा दिया। लेकिन अगली सुनवाई पर 16 अप्रैल 2008 को किसी कारण से कृष्ण कुमार उपस्थित नहीं हो सके तो आयुक्त ने एक तरफा फैसला सुनाते हुए जुर्माना हटा दिया और केस समाप्त कर दिया।
कृष्ण कुमार ने अशोक गुप्ता के समक्ष इस आदेश पर पुनर्विचार करने के लिए प्रर्थनापत्र दिया जिसे 30 नवंबर 2009 को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन केस की अगली सुनवाई 30 दिसम्बर 2009 को सूचना आयुक्त ज्ञानेन्द्र शर्मा के समक्ष हुई। ज्ञानेन्द्र शर्मा ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया। लगभग आठ माह गुजरने के बाद भी फैसला नहीं आया तो कृष्ण कुमार इस सम्बंध् में जानकारी लेने आयोग पहुंचे वहां उन्हें बताया गया कि उनके केस की पत्रावली ही नहीं मिल रही है। आयोग के इस जवाब से हतप्रद कृष्ण कुमार का कहना है कि यह एक संवेदनशील मामला है कि जिस केस में लोकसूचना अधिकारी के खिलाफ जुर्माना लगा हो उसकी पत्रावली कैसे खो सकती है इसमें आयोग के कर्मचारियों तथा लोक सूचना अधिकारी के बीच मिलीभगत की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के ऐसे ही हरकतों के कारण आज राज्य के अधिकारियों द्वारा आरटीआई कानून का खुला उल्लंघन हो रहा है और आम जनता का इस कानून पर से विश्वास हटता जा रहा है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से मांग की है कि उनके केस की पत्रावली गायब होने के इस मामले की जांच करा कर दोषियों के खिलाफ शक्त कार्यवाई करें, ताकि आगे से किसी और केस की पत्रावली ना गायब हो।

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