मंगलवार, 2 नवंबर 2010

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी आई.ए.एस. अफसर ने लिया सूचना कानून का सहारा

देश के कोने कोने से अधिकारियों की एक ही गुहार है कि सूचना अधिकार कानून तो बहुत अच्छी चीज़ है लेकिन इसने हमारा काम करना मुश्किल कर दिया है। लगभग हर अफसर से आप सूचना अधिकार के इस्तेमाल को लेकर ये शब्द सुन सकते हैं... ``लोग निजी शिकायतों को सूचना अधिकार जैसे बड़े कानून के ज़रिए हल करने के चक्कर में आवेदनों का अंबार लगाए जा रहे हैं... यह कानून तो सरकार के काम में पारदर्शिता लाने जैसे व्यापक कामों में इस्तेमाल होना चाहिए... आदि आदि...´´

लेकिन जब बात अपने उपर आती है तो वे भी सूचना के अधिकार का उपयोग करने से नहीं चूकते। ताज़ा घटनाक्रम में झारखण्ड की एक आई.ए.एस अधिकारी ने इस कानून का इस्तेमाल किया है। उसने अपने खिलाफ लगे आरोपों के जवाब में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दाखिल किया, और अब वो लोक सूचना अधिकारी से मिले जवाब को अपने पाक साफ होने के सबूत के रूप में पेश कर रही हैं।

वर्तमान में पलामू की उपायुक्त पूजा सिंघल पुरवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की खबरें अचानक मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। उन पर आरोप लगाए जा रहे थे कि पलामू से पहले खूंटी ज़िले की उपायुक्त रहते हुए उन्होंने नियम कायदों को ताक पर रखकर जूनियर इंजीनियरों को एडवांस भुगतान कराया। इन खबरों का जवाब देने के लिए पूजा सिंघल ने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन खूंटी ज़िले के उपायुक्त कार्यालय में डाला। उन्होंने जानकारी मांगी कि ``क्या उनके पद पर रहते उनकी तरफ से इंजीनियरों को एडवांस पेमेंट कराया गया?´´ लोक सूचना अधिकारी ने उनके सवालों के जवाब में ``नहीं´´ लिखकर दे दिया।
इस ``नहीं´´ को अब उन्होंने अपनी ढाल बनाकर, अपने खिलाफ लगे आरोपों की पुख्ता काट बनाकर मीडिया के सामने रखना शुरू किया है।

किसी आई.ए.एस. अधिकारी द्वारा सूचना के अधिकार का इस तरह इस्तेमाल करना अच्छी बात है। इस उदाहरण के ज़रिए सूचना कानून की उपयोगिता देश के कोने कोने में लोक सूचना अधिकारियों को भी समझाई जानी चाहिए। लेकिन यहां कुछ तथ्यों और उनसे उठने वाले सवालों पर भी गौर करना होगा:
  • पूजा सिंघल ने 8 अक्टूबर 2010 को अपना आवेदन दाखिल किया।
  • उन्हें मात्र 4 दिन में यानि 12 अक्टूबर 2010 को ही अपने सवालों के जवाब मिल गए। (आम आदमी को तो कानून में 30 दिन की समय सीमा बीतने के बाद ही सूचना मिलती है, वो भी आधी-अधूरी)
  • उन्होंने अपने आवेदन में जानकारी लेने के लिए चन्द सवाल लिखे और लोक सूचना अधिकारी ने उसका जवाब हां/ना में दे दिया...(जबकि आम आदमी के आवेदनों को हमेशा यह कहकर खारिज कर दिया जाता है कि सूचना कानून सवाल जवाब  पूछने की इजाज़त नहीं देता)

2 टिप्‍पणियां:

Tausif Hindustani ने कहा…

कमीनों की कमी नहीं ग़ालिब एक ढूँढो हज़ार मिलते हैं
dabirnews.blogspot.com

honesty project democracy ने कहा…

इस देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों पर बैठे लोग भी नहीं चाहते हैं की जनता का कोई भी काम ईमानदारी और पारदर्शिता हो ......जिसदिन इन पदों पर बैठे लोग जनता के प्रति अपनी जिम्मेवारी को ईमानदारी से निभाने लगेंगे उस दिन शरद पवार जैसे और राजा जैसे लोग मंत्री के पद पर बेशर्मी से चिपके नहीं रह सकेंगे और कोई भी IAS व IPS जनता का काम उसके घर जाकर करेगा...आज हर किसी को पता है की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों पर बैठे लोगों की इक्षा शक्ति ईमानदारी और पारदर्शिता के मामले में मर चुकी है ....यही वजह है की पूरे देश में किसी भी भ्रष्टाचारी को कोई गंभीर सजा नहीं हुयी है और कोमनवेल्थ गेम तथा आदर्श हाऊसिंग घोटाले में भी किसी को सजा नहीं होगा...