सूचना के अधिकार के तहत मिले दस्तावेजों से पता चला है कि हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग के ड्रग कंट्रोल अधिकारी मंत्रियों से अपनी नजदीकी के चलते अपने पसंदीदा क्षेत्र में पोस्टिंग पाकर मलाई काट रहे हैं। सूचना के अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार रमेश वर्मा ने स्वास्थ्य विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय से मंत्रियों और विधायकों के अफसरों के तबादलों के नोट हासिल किए हैं। उन्होंने पिछले पांच सालों की सिफारिशी नोट की सत्यापित प्रति मांगी थी। उन्हें निचले स्तर के कर्मचारियों के सिफारिशी नोट तो आसानी से मिल गए लेकिन राजपत्रित अधिकारियों के सिफारिशी नोटों की प्रति सूचना आयोग के आदेश और मुख्यमंत्री कार्यालय के निरीक्षण के बाद हासिल हुए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार हिसार में तैनात जिला ड्रग कंट्रोल अधिकारी आदर्श गोयल और अंबाला में तैनात परविन्द्र मलिक ऐसे अधिकारी हैं जो अलग-अलग मंत्रियों की सिफारिश के बल पर अपने मनपसंद क्षेत्र में तैनाती पा चुके हैं। आदर्श गोयल हरियाणा की राजस्व मंत्री और हिसार से विधायक सावित्री जिन्दल की सिफारिश से हिसार में तैनात हैं। सावित्री जिन्दल के सिफारिशी पत्र के बल पर ही पहले भिवानी में स्थानांतरित किए गए आदर्श गोयल का तबादला हिसार कर दिया गया। बावजूद इसके कि हिसार में पहले से ही एक ड्रग अधिकारी मौजूद था और भिवानी में तैनाती के वक्त इन पर दो जिलों का भार था।
इसी तरह अंबाला में तैनात ड्रग कंट्रोल अधिकारी परविन्द्र मलिक ने भी राज्य के कृषि मंत्री हरमिन्द्र सिंह की सिफारिश के बूते यहां तैनाती पाई। मलिक इन्हीं मंत्री महोदय की कृपा से स्वास्थ्य विभाग की मर्जी के खिलाफ अंबाला में टिके हुए हैं। जबकि अंबाला में एक अन्य जिला ड्रग अधिकारी रिपन मेहता पहले से तैनात हैं। स्वास्थ्य विभाग ने पहले परविन्द्र मलिक का तबादला सिरसा जिले में किया गया था जहां लंबे समय से ड्रग कंट्रोल अधिकारी का पद खाली पड़ा था और जिले के पुलिस अधीक्षक ने मुख्य मंत्री कार्यालय से अनुरोध भी किया था कि जिले में नशीली दवाओं को प्रचलन बहुत अधिक है अत: किसी अधिकारी की तैनाती की जाए। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने अंबाला जिले में दो अधिकारी होने के कारण परविन्द्र मलिक का तबादला सिरसा कर दिया। लेकिन मलिक की कृषि मंत्री से सिफारिशी चिट्ठी की बदौलत उन्होंने सिरसा ज्वाइन करने से पहले ही अपना तबादला रद्द करवा लिया।
इन राजपत्रित अधिकारियों के अलावा ऐसे क्लर्क भी हैं जिन्होंने नियुक्ति के कुछ ही दिनों के अंतराल पर दूसरी मालदार सीट पर नियुक्ति के लिए वित्त मंत्री संपत सिंह और हिसार के डाबडा हल्के के विधायक पूर्ण सिंह डाबडा से सिफारिशी नोट लिखवाएं हैं।
ऐसा भी नहीं है कि सिफारिशी नोट किसी एक ही पार्टी के विधयक या मंत्री ने लिखे हों। इसमें वर्तमान सत्ताधरी कांग्रेस पार्टी और पूर्व सरकार इंडियन नेशनल लोकदल के मंत्री और विधायक दोनों शरीक हैं।
इतना ही नहीं, ऐसा भी हुआ है कि किसी अधिकारी का तबादला तीन माह पूर्व मुख्यमंत्री कर दे, बावजूद इसके वह अधिकारी अब तक अपने क्षेत्र में टिका हुआ है। फरीदाबाद में तैनात ड्रग कंट्रोल अधिकारी नरेन्द्र आहुजा का तबादला कैबिनेट सचिव कुमारी शारदा राठौर के कहने पर मुख्य मंत्री ने किया था लेकिन नरेन्द्र आहुजा अब तक फरीदाबाद में ही तैनात हैं। मजे की बात यह है कि इस दौरान तबादले का आदेश न तो रद्द हुआ और न ही लागू और नरेन्द्र आहुजा भी तबादले के संबंध में अपनी अनभिज्ञता जता चुके हैं।
मतलब सापफ है अधिकारियों को जनता, विभाग या उस स्थान से कोई मतलब नहीं है जहां उनकी जरूरत है, अगर मतलब है कि इससे कि उन्हें अपनी सुविधा और पसंद के हिसाब से तबादला मिले। उनके लिए जनता नकली दवा गटके या युवा नशीली दवा खाकर गर्त में जाएं तो चलेगा लेकिन ऐसी जगह तबादला नहीं चलेगा जो उन्हें पसंद न हो। ऐसा करने वाले अधिकारी और उनका साथ देने वाले मंत्री को क्या जवाबदेह नहीं बनाया जाना चाहिए?
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