शनिवार, 21 जून 2008

उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग की बाबूगिरी



सरकारी काम-काज में पारदर्शिता और जवाबदेयता तय करने के लिए सूचना का अधिकार कानून लाया गया है, लेकिन जब कानून के रखवाले ही लापरवाह हो जाएं तो कानून का कितना असर रह जाता है ? कुछ ऐसा ही हाल है उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग का, जहां एक वित वर्ष में सूचना के अधिकार के लगभग 10000 सीकायत और अपील लंबित पड़ी हैं।
यह आंकडे वषZ 2006 से 2007 के हैं। इस दौरान आयोग को करीब 9946 अपील और आवेदन मिले हैं। यह जानकारी एक रिटायर्ड कोमोडोर लोकेश के बत्रा द्वारा सूचना के अधिकार की धारा 25 के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग से मांगी गई सूचना के जवाब में यह विवरण में आया है।
गौरतलब है कि इस अधिनियम की धारा 25 के अन्तर्गत सभी सूचना आयोगों को वर्ष भर के आवेदन और उस पर हुई कार्यवाईयों के विवरण संबंधित विभाग को देने होते हैं। साथ ही धारा 4 के अन्तर्गत वर्ष भर का विवरण आयोग के वेवसाइट पर होनी चाहिए। श्री बत्रा ने लगातार दो वर्ष का विवरण मांगा था लेकिन पिछले वर्ष का विवरण देने से इन्कार कर दिया गया । साथ ही आयोग ने कहा कि पिछले वर्ष का आंकड़ा अब तक तैयार नहीं किया जा सका है। अधूरी जानकारी प्राप्त होने पर श्री बत्रा ने इस कानून के तहत एक और आवेदन दाखिल किया जिसमें माह वार आवेदनों के विवरण की जानकारी मांगी। साथ ही श्री बत्रा ने कहा कि जब एक वर्ष में इतने आवेदन और अपील ठंडे बस्ते में हो तो जब से यह कानून लागू हुआ है कितने आवेदन कार्यवाई होने के इन्तजार में होंगे इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है ।
केन्द्रीय सूचना आयोग और उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग की वेवसाइट की तुलना करने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग इस कानून की धारा 4 के अन्तर्गत अपनी कारZवाईयों का विवरण अपनी वेवसाइट में उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा है।


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