हिंदी पट्टी के पिछड़े राज्यों में से एक है, उत्तर प्रदेश। सामाजिक रुप से पिछड़ा हुआ और आर्थिक रुप से भी। लेकिन प्रदेश की मुख्यमंत्री बजाए असली मुद्दों पर ध्यान देने के पांच सितारा होटलों में रात्रि -भोज (पार्टी) का आयोजन करती है और वो भी जनता के पैसों पर। सूचना का अधिकार कानून के इस्तेमाल से निकली एक खास रिपोर्ट:-
दलित उत्थान की बात करने वाली मायावती की जन्मदिन की पार्टियां हमेशा से सुर्खियाँ बटोरती रही हैं। वजह, ऐसे मौकों पर होने वाली शाहखर्ची, सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल, कार्यकर्ताओं से मंहगे उपहार लेने जैसे आरोप। खैर ये आरोप तो विरोधी दलों की तरफ से लगाए जाते रहे हैं, लेकिन सूचना का अधिकार कानून के तहत जो जानकारी मिली है, उससे खुद को दलितों की मसीहा मानने में फक्र महसूस करने वाली मायावती की सखसियत के एक अलग ही पहलू का पता चलता है।
आरटीआई से निकली जानकारी के मुताबिक ये पूरा वाकया कुछ यूं है। मई 2007, राज्य विधान सभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत दर्ज कर मायावती सरकार बनाती हैं। 13 मई 2007 को माया सरकार शपथ ग्रहण करती है। और 25 मई 2007 को माननीय मुख्य मंत्री दिल्ली के पांच सितारा होटल ओबरॉय में एक शानदार पार्टी (रात्रि-भोज) का आयोजन करती है। उपलब्ध दस्तावेज के मुताबिक इस रात्रि-भोज में विशिष्ट महानुभावों को आमंत्रित किया गया। हालांकि इस दस्तावेज में इन विशिष्ट महानुभावों के नाम का जिक्र नहीं है।
जाहिर है, विशिष्ट होटल में (पांच सितारा) विशिष्ट महानुभावों को दी गई पार्टी (रात्रि-भोज) का खर्च भी विशिष्ट ही आना था। सो, इस एक रात की पार्टी का खर्च आया 17 लाख 16 हज़ार 8 सौ 25 रुपये। और इस धनराशि का भुगतान स्थानीय आयुक्त, उत्तर प्रदेश शासन, नई दिल्ली के माध्यम से सचिवालय प्रशासन विभाग की ओर से किया गया। यह सूचना राज्य संपत्ति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से उपलब्ध कराई गई है।
हो सकता है कि लोगों को ये रकम मामूली लगे। लेकिन सवाल धनराशि का नहीं है। सवाल पांच सितारा होटल में पार्टी देने का भी नहीं है। मायावती अपने जन्मदिन की पार्टियों पर जितना खर्च करती है उसके मुकाबले 17 लाख की रकम कोई बहुत बड़ी रकम नहीं मानी जा सकती। लेकिन सवाल उस व्यवस्था का है जहां हमारे नुमांइदों को ये सोचने की फुर्सत नहीं है कि जो एक पैसा भी वो अपने उपर खर्च करते है, वो गरीब जनता के हिस्से का होता है। वो गरीब जनता जिसकी प्राथमिकता आज भी रोटी, कपड़ा और मकान है। सवाल हमारे नेताओं की उस मानसिकता का भी है जो उन्हें पांच सितारा होटलों में पार्टी आयोजित करने के लिए प्रेरित करता है। और इसका एक बेहतरीन उदाहरण खुद मायावती ही है जो अपने जन्मदिन समारोह मनाने के लिए अंबेडकर पार्क का ही चुनाव करती थी। लेकिन 2007 के विधान सभा चुनाव तक पहुंचते-पहुंचते जैसे बसपा का नारा बहुजन से बदल कर सर्वजन हो गया, कुछ उसी तर्ज पर सत्ता मिलने के बाद, मायावती की तरफ से दी जाने वाली पार्टियां भी पार्क से निकल कर पांच सितारा होटलों तक पहुंच गई।
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