आरटीआई से सिर्फ सूचना मिलती हो, ऐसी बात नहीं है। अगर यकीन न आए तो रेवाड़ी की सपना यादव के इस उदाहरण को ही देख लें। मामला गुडगांव ग्रामीण बैंक में प्रोबेशनरी अधिकारी की नियुक्ति से जुड़ा है। सपना ने भी इस पद के लिए आवेदन किया था। लेकिन उसका चयन नहीं हो पाया। सपना परिणाम से संतुष्ट नहीं थी। आरटीआई के तहत सपना ने चयन प्रक्रिया से सम्बंधित प्रश्न पूछे। 7 दिसंबर 2007 को दाखिल आवेदन में सपना ने लिखित परीक्षा में अपनी मेरिट, चयन के लिए साक्षात्कार और शैक्षणिक योग्यता के लिए भारांक की जानकारी मांगी।
सपना को उम्मीद थी कि उसका निश्चित तौर पर चयन हो जाएगा लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उसने इसका कारण आरटीआई की मदद से जानना चाहा। आवेदन के जवाब में बैंक ने जानकारी दी कि मांगी गई सूचनाएं आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आती। बैंक अधिकारियों ने कानून की धारा 8(१)(डी) की आड़ लेकर सूचना देने से मना कर दिया। प्रथम अपील का भी कोई परिणाम नहीं निकला। बाद में सपना में राज्य सूचना आयोग और फ़िर केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील की। सीआईसी ने अगस्त 2008 में मामले की सुनवाई की और सपना के पक्ष में निर्णय सुनाया। आयोग ने बैंक को सभी सूचनाएं उपलब्ध कराने का आदेश दिया। दिलचस्प रूप से बैंक ने सूचना तो उपलब्ध नहीं कराई अलबत्ता 11 सितंबर 2008 को सपना को फोन कर प्रोबेशनरी अधिकारी के तौर पर बैंक ज्वाइन करने का अनुरोध किया। यह सपना के लिए आश्चर्य की बात तो थी ही साथ ही सपना का आश्चर्य उस वक्त और बढ़ गया जब पांच दिन बाद वह बैंक ज्वाइन करने पहुंची और उसे पता चला कि अन्य पांच छह लोगों को उपरोक्त पद पर नियुक्ति के लिए नियुक्ति पत्र जारी कर दिया गया है।
(अपना पन्ना में प्रकाशित)
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