इसमें कोई शक नहीं कि आरटीआई कानून ने गरीब, मजदूर यहां तक कि एक अशिक्षित आदमी को भी सशक्त बनाने का काम किया है। लेकिन, सूचना आयोग और यहां बैठे सूचना आयुक्त के चाल और चरित्र को देखकर एक आम आदमी के लिए इस कानून पर भरोसा रख पाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा ही एक मामला मुजीबुर्र रहमान बनाम केन्द्रीय सूचना आयोग का है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने आयोग के उस आदेश को उलट दिया जिसमें आयोग ने पीआईओ पर जुर्माना लगाने के लिए पहले तो कारण बताओ नोटिस जारी किया और बाद में इसे वापस ले लिया था। हाईकोर्ट का यह फैसला नि:संदेह स्वागतयोग्य है, जिसमें लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाने से ले कर अपीलार्थी को अदालती खर्च तक दिलाने का आदेश दिया गया है। यानि जो काम केंद्रीय सूचना आयोग में बैठे विद्व जनों को करना चाहिए था, वो काम हाई कोर्ट ने किया है।
पूरा मामला कुछ यूं है। साउथ इस्टर्न कोलफील्ड लि. (एसईसीएल) छत्तीसगढ़, के कर्मचारी मुजीबुर्र रहमान ने अपने से जूनियर कर्मचारी को प्रमोशन किए जाने पर नवंबर 2005 में आरटीआई कानून के तहत अपने विभाग से सेवा नियमों के बारे में जानना चाहा, साथ ही सीनियरटी लिस्ट और प्रमोशन नियम के बारे में भी सवाल पूछे थे। पीआईओ ने 30 दिनों के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं कराई। प्रथम अपील करने के बाद भी जब सूचना नहीं मिली तो रहमान केंद्रीय सूचना आयोग पहुंचे।
27 मार्च 2006 को आयोग ने सुनवाई के बाद अपीलार्थी को सभी सूचनाएं मुहैया कराने का आदेश दिया लेकिन डीम्ड रिफ्यूजल के लिए जिम्मेवार डीम्ड पीआईओ (क्योंकि वास्तविक पीआईओ ने सूचना एकत्र करने का जिम्मा एक अन्य अधिकारी को दे दिया था) को जुर्माना लगाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। आयोग ने पीआईओ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने का आदेश भी दिया।
बहरहाल, एसईसीएल ने जैसे-तैसे सूचना मुहैया कराने की खानापूर्ति कर दी। रहमान से कहा गया कि साल 2004-05 के दौरान कोई सीनियरटी लिस्ट नहीं बनाई गई है। दूसरी सुनवाई के दौरान आयोग को बताया गया कि पीआईओ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा रही है। जबकि सच्चाई यह थी कि विभागीय जांच को लटकाया जा रहा था। सुनवाई के बाद आश्चर्यजनक रुप से आयोग ने पीआईओ पर जुर्माना लगाने के लए पहली सुनवाई के दौरान जारी कारण बताओ नोटिस को निरस्त कर दिया।
लेकिन किस्सा यहीं खत्म नहीं होता। एसईसीएल ने रहमान के खिलाफ एक आरोप पत्र जारी कर दिया। आयोग के फैसले से असंतुष्ट रहमान ने 2007 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की। 28-04-2009 को हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आयोग के उस आदेश को गैर कानूनी करार दिया जिसमें पीआईओ पर जुर्माना लगाने के लिए जारी कारण बताओ नोटिस को निरस्त कर दिया गया था। इसके अलावा कोर्ट ने पीआईओ पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना तो लगाया ही, साथ ही अदालती कार्यवाही के लिए याचिकाकर्ता को 50 हज़ार रुपये देने का आदेश भी एसईसीएल को दिया।
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