
भागीदारी योजना शीला दीक्षित सरकार की शुरूआती और लोकप्रिय योजनाओं में से एक है जिसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली है। दस सालों बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब यह योजना विवादों में आई हो। आरटीआई आवेदन से खुलासा हुआ है कि पिछले पांच सालों में सरकार के नौ राजस्व जिलों ने विभिन्न बैठकों और कार्यशालाओं में सिर्फ़ लंच और डिनर पर 16772749 रूपये खर्चे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो प्रतिवर्ष सरकार द्वारा भोजन पर किया गया खर्च 33 लाख रूपये है।
रेजीडेन्ट वेलपफेयर के अनेक लोगों ने सरकार द्वारा जनता के धन के दुरूपयोग की निंदा की है। अनेक सदस्य इस भारी भरकम बिल पर हैरानी जता रहे हैं। उनका कहना है कि बैठकों में उन्हें एक कप चाय के अलावा कुछ नहीं मिला, फिर इतना अधिक बिल कैसे आया? दूसरी ओर भागीदारी योजना के संयुक्त सचिव इस खर्च को पूरी तरह से जायज ठहरा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर कार्यशाला तीन दिन तक चलती है, इसलिए अपना कीमती समय देने वाले लोगों को भोजनपान कराकर आभार प्रकट करना जरूरी होता है।
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