पुलिसकर्मी जनता के नौकर हैं, हमारे टैक्स से ही उनके वेतन, खर्चें, गाड़ियां, वर्दी, जूते मिलते हैं। पुलिस विभाग में बैठे लोग हमारी सेवा के लिए हैं, हम पर हुकूमत चलाने के लिए नहीं। यह बातें कोई सामाजिक कार्यकर्ता या समाज सुधरक नहीं बल्कि खुद उत्तर प्रदेश पुलिस के कांस्टेबल सुशील कौशिक कहते हैं। इतना ही नहीं वह भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को जेल भिजवाने की मुहिम में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और ऐसे पुलिसकर्मियों को पकड़वाने पर ईनाम भी दे रहे हैं। वे इसके लिए सहारा ले रहे हैं सूचना के अधिकार का। सूचना के अधिकार के अपने अनुभवों को बता रहे हैं `अपना पन्ना´ को-
पुलिस में रहकर पुलिस के खिलाफ ही आरटीआई इस्तेमाल का विचार कहां से आया?
पुलिस का मतलब कानून व्यवस्था को बरकरार रखना और अपराधियों को जेल भेजना होता है। पुलिस में भर्ती होने के बाद मैनें देखा कि यहां उलट है। पुलिसकर्मी खुद भ्रष्टाचार में लिप्त थे। जनता का काम कम, अपना काम अधिक कर रहे थे। पुलिस वालों का मुख्य काम अधिक से अधिक पैसा कमाना था। पुलिसकर्मी खुद ही अपराधी थे। थाने में अपराधियों को पाकर इन्हें ठीक करना जरूरी समझा और आरटीआई का इस्तेमाल किया। घर में गंदगी रहते हुए बाहर सफाई नहीं की जा सकती।
क्या कभी विभाग के कोप का शिकार भी होना पड़ा?
आरटीआई लागू होने से पहले ही मैं भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की शिकायत उच्च अधिकारियों से करता था। अधिकारियों की गड़बड़ियों की सूचना उनसे ऊपर के अधिकारियों को देता था। इससे मुझे उनके गुस्से का शिकार होना पड़ा क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि एक कांस्टेबल उच्च अधिकारियों से सवाल पूछे। मेरा तबादला कर दिया गया। नोएडा के एसएसपी ने डीआईजी से शिकायत की और जांच भी हुई।
कितना कारगर है आरटीआई? इसके इस्तेमाल से मिली सबसे बड़ी सफलता के बारे में बताएं।
ये वो सुदर्शन चक्र है जो जादू की तरह काम करता है। जो काम विभागों के अनेक चक्कर लगाने से नहीं होता वह एक अर्जी से हो जाता है। सबसे बड़ी सफलता 2005 में ग्राम पंचायत चुनाव के बाद इसके इस्तेमाल से मिली। चुनावों के दौरान बूथ में ड्यूटी करने वाले पुलिसकर्मियों के नाश्ते के लिए पैसा आया था लेकिन अधिकारी इसे हजम कर गए। यह जानकारी मिलने के बाद झांसी, बुलंदशहर, गौतमबुद्ध नगर और बागपत में इस संबंध में आरटीआई से जवाब तलब किया। इसका नतीजा यह निकला की पुलिसकर्मियों को रातोंरात पैसा बांटा गया और अधिकारी भी सतर्क हो गए।
कानून की राह में सबसे बड़ी बाधा कौन सी है?
सबसे बड़ी बाधा राज्य सूचना आयोग हैं। यदि आयोग दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाएं तो यह बहुत कारगर साबित होगा। आयोग में सुधार की बहुत जरूरत है।
आगे की क्या योजनाएं हैं?
पुलिस सुधार के लिए काम करना है। मेरी कोशिश होगी कि जिस उद्देश्य के लिए पुलिस को बनाया गया है, पुलिस वही काम करे। अगर कोई पुलिसकर्मी संगीन अपराध करता है तो सीआरपीसी की धारा 43 के तहत जनता को उसे गिरफ्तार करने का अधिकार है। हम जनता को इस बारे में जागरूक कर रहे हैं।
2 टिप्पणियां:
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good work
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ham sabhi bhrust hain koi thoda koi jyada .jab tak a aam admi nahi sudharaga tab tak bhrastachar kam nahi hoga
islia police ko bhi theek nahi kya ja sakta
pantu phir bhi apka kam achha hai
karte rahia
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