जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड एक ट्रस्ट है और यह सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं हैं। केन्द्रीय सूचना आयोग के इस आदेश पर दिल्ली हाईकोर्ट ने पुन: सुनवाई करने को कहा है। सीआईसी के इस आदेश को आवेदक बी आर मिन्हास ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट के जज एस रविन्द्र ने याचिका की सुनवाई के बाद मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला के इस फैसले का असंतोषजनक पाया और कहा कि सीआईसी की तीन आयुक्तों की बैंच इस मामले की फ़िर से सुनवाई करे।
आवेदक बी आर मिन्हास ने नवंबर 2006 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जानकारी मांगी थी कि जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड को वर्षवार कितनी वित्तीय सहायता और किस उद्देश्य से दी गई है। जवाब न मिलने पर उन्होंने सीआईसी में अपील की, लेकिन सीआईसी ने जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड को आरटीआई के दायरे में नहीं माना और आवेदक की अपील निरस्त कर दी थी। इससे पहले ट्रस्ट ने वजाहत हबीबुल्ला से पूछा था कि क्या राष्ट्रीय नेताओं की याद में बने चेरिटेबल ट्रस्ट आरटीआई के दायरे में हैं?
जवाब में हबीबुल्ला ने कहा कि उन पर आरटीआई कानून लागू नहीं होता। शुरूआत में जब यह मामला सूचना आयुक्त ओ पी केजरीवाल के समक्ष आया तो उन्होंने सख्त रुख अपनाया और पीआईओ को सूचना न देने पर सम्मन भी जारी किया। लेकिन जब ट्रस्ट ने हबीबुल्ला का खत दिखाया तो ओ पी केजरीवाल और वजाहत हबीबुल्ला की डिवीजन बेंच गठित की गई। बेंच ने ट्रस्ट के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।
आवेदक ने हाईकोर्ट ने दलील दी कि जब से ट्रस्ट को आर्थिक सहायता मिल रही है तब से वह सरकारी संपत्ति तीन मूर्ति भवन से संचालित है, इसलिए वह आरटीआई के दायरे से कैसे बाहर हो सकता है। हाईकोर्ट ने इन दलीलों को सुनने के बाद सीआईसी को पुन: मामले की सुनवाई करने को कहा है।
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