उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्तों पर लगाए जा रहे आरटीआई आवेदकों के आरोपों की कतार काफ़ी लंबी है। जैसे-
आरोप 1- सूचना आयुक्त बिना वादियों का पक्ष सुने जबरन मामलों को निस्तारित कर रहे हैं। राज्य के कार्यवाहक मुख्य सूचना आयुक्त ज्ञानेन्द्र शर्मा ने गाजियाबाद के कमल सिंह जाटव के साथ ऐसा ही किया। जितेन्द्र कुमार बनाम मेरठ कमिश्नर के मामले में आयोग ने केवल प्रतिवादी को बुलाकर पफैसला सुना दिया जबकि वादी बाहर ही खड़ा रहा।
आरोप 2- आयुक्तों की वादियों से कोई सहानुभूति नहीं है। वादी के उपस्थित न होने पर मामला निस्तारित कर दिया जाता है जबकि प्रतिवादी को मौके पर मौके दिए जा रहे हैं।
आरोप 3- आयुक्त दोषी लोक सूचना अधिकारियों पर जुर्माना नहीं लगा रहे और कानून के विपरीत कार्य कर रहे हैं।
आरोप 4- आवेदक सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों को ही अवैध बता रहे हैं। चर्चा है सूचना आयुक्त 65 वर्ष की उम्र पार चुके हैं और गैर कानूनी रफप से कुर्सी पर विराजमान हैं। अपनी उम्र एवं शैक्षणिक प्रमाण पत्रों से जुडे़ दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से कतरा रहे हैं।
आरोप 5- संस्था के लेटरहेड पर सूचना मांगने पर आवेदन निरस्त कर रहे हैं। रंजन कुमार की शिकायत संख्या 4269, मधुसूदन श्रीवास्तव की शिकायत 42700, अशोक कुमार सिंह की शिकायत एस 10-418(सी), मोज्जिमिल अंसारी की शिकायत संख्या एस 262(सी) एवं कुंवर मनोज सिंह की शिकायत संख्या एस 10-173 (सी) को इसी आधार पर निरस्त कर दिया गया।
आरोप 6- लोक सूचना अधिकारियों से रिश्वत लेकर उनके पक्ष उनके पक्ष में फैसले देना।
आरोप 7- राज्य में सूचना के कानून को निष्क्रिय करने में सबसे आगे।
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