गुरुवार, 31 जुलाई 2008

सूचना के अधिकार ने दिलाई पदोन्नति

उडीसा वन विकास निगम में सेक्सशनल सुपरवाईजर के पद पर पिछले सात सालों से कार्यरत गणपति बहरा का प्रमोशन नहीं हुआ था जबकि उनके कई जूनियरों को प्रमोशन दे दिया गया। हर बार प्रमोशन के वक्त उनकी वरिष्ठता और मेहनत की उपेक्षा की गई। उनकी कार्यप्रणाली और लगन में किसी तरह की कमी नहीं थी। अनेक अधिकारियों ने उनकी एसीआर की तारीफ करते हुए उनकी तरक्की की सिफारिश भी की थी लेकिन प्रमोशन समिति के कानों में इस सिफारियों का कोई असर नहीं हुआ।

विभाग के भीतर इस कदर भ्रष्टाचार और अन्याय को देखते हुए आरटीआई कार्यकर्ता आनंद सामल ने उनके पक्ष में आवाज उठाई और आरटीआई आवेदन से विभाग के लोक सूचना अधिकारी से इस संबंध में जवाब तलब किया। हद तो उस समय हो गई जब लोक सूचना अधिकारी ने आरटीआई आवेदन का कोई जवाब नहीं दिया। विभाग के इस रवैये को देखते हुए आवेदक आनंद ने 35 दिनों तक सूचना का इंतजार करने के बाद सीधे आयोग में इसकी शिकायत की। आरटीआई आवेदन में प्रमोशन की प्रक्रिया और समिति के सदस्यों के बारे में सूचनाएं मांगी गईं थीं।

आयोग में विभाग की शिकायत का असर हुआ और गणपति बहरा को तुरंत सेक्सशनल सुपरवाईजर से सब डिवीजन मैनेजर के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इस प्रकार सूचना के अधिकार ने गणपति बहरा के साथ हो रहे अन्याय को खत्म करने में मदद की।

बुधवार, 30 जुलाई 2008

आरटीआई कार्यकर्ताओं की वार्षिक बैठक: एक रिपोर्ट

दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में 28 और 29 जुलाई को संपन्न हुई सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं की वार्षिक बैठक में केन्द्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग की कार्यप्रणाली के संबंध में अनेक प्रकार की चिंताएं सामने आईं। देशभर के 21 राज्यों के करीब 150 आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने राज्यों के सूचना आयोग की कार्यप्रणाली का जिक्र किया और उन्हें सुधारने के लिए सुझाव दिए। पूरी बैठक में बहस का मुद्दा यह रहा कि क्या आयोग को सुधारने के लिए सीधी कारवाई का वक्त आ गया है? अरविंद केजरीवाल ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि केन्द्रीय सूचना आयोग के खिलाफ सीधी कारवाई करने का वक्त आ गया क्योंकि आयोग को सुधारने के हमारे सभी प्रयास विफल हुए हैं। उन्होंने बताया कि सूचना आयुक्त पदमा बालासुब्रमण्यन ने अब तक किसी भी दोषी लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना नहीं लगाया है। शैलेश गांधी सहित कुछ कार्यकर्ताओं ने सीधी कारवाई से पहले आयोग को सुधारने के अन्य उपायों पर जोर दिया।

अनेक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाए कि सूचना आयोग ही सूचना के अधिकार के सफल कार्यान्वयन में सबसे बड़ी बाधा बन रहे हैं क्योंकि सूचना आयुक्त की आवेदकों की बजाय प्रशासन और सरकार से सहानुभूति है। छत्तीसगढ़ से आए कार्यकर्ताओं ने आयोग द्वारा लोक सूचना अधिकारी से रिश्वत लेने की बात कह आयोग को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने बताया कि राज्य में आयोग पर राजनैतिक दबाब बहुत अधिक है और वहां प्रथम अपीलीय अधिकारी लगभग निष्क्रिय हो चके हैं। सूचना आयोग की कार्यप्रणाली के संदर्भ में अनेक राज्यों की तरफ से जो आंकड़े उपलब्ध कराए गए वह भी काफी चौंकाने वाले थे और आयोग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे थे। मध्य प्रदेश से आई आरटीआई कार्यकर्ता रोल्ली शिवहरे ने बताया कि मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने तीन सालों में मात्र 4 लोगों को दंडित किया है जिनमें 3 दंड उच्च न्यायालय के दखल के बाद हुए हैं। यह आंकडे मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग कार्यप्रणाली बताने के लिए पर्याप्त हैं।

केरल से आए हरि कुमार ने जानकारी दी कि केरल सूचना आयोग प्रति माह मात्र 10 मामलों का निपटारा करता है और वहां सेक्शन 4 की कोई व्यवस्था नहीं है। ध्यान देने की बात है कि केरल में यह स्थिति 7 सूचना आयुक्तों के होने के बाद है।

बैठक में यह भी महसूस किया गया कि देश की जनता को इस कानून के प्रति जागरूक बनाने की जरूरत है ताकि इस मुद्दे पर जन समर्थन प्राप्त हो सके। साथ ही विभिन्न राज्यों के सूचना आयोग में बढ़ते लंबित मामलों पर भी चिंता व्यक्त की गई। लोगों ने एकमत में यह स्वीकार किया कि आयोग में मामलों का निपटारा अतिशीध्र होना चाहिए और सूचना देने में देरी करने वाले लोक सूचना अधिकारियों का जुर्माना लगना चाहिए ताकि लोगों का इस कानून में भरोसा बना रहे। अरविंद केजरीवाल ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह अगले एक साल में अपने-अपने आयोग को सुधारने में ध्यान केंद्रित करें।

सभी कार्यकर्ताओं ने एकतम से माना कि देशभर में आरटीआई बचाओ नाम के अभियान की जरूरत है। इस अभियान में देश में जगह जगह धरने और प्रदर्शन किए जायेंगे, जनता को जागरूक किया जाएगा और आयोग पर ठीक से काम करने का दबाव बनाया जाएगा. इस अभियान को सफल बनाने और आयोग को उत्तरदायी बनाने के लिए कार्यकर्ताओं ने अनेक सुझाव दिए जो निम्नलिखित हैं-
1 अयोग्य सूचना आयुक्तों पर जुर्माना लगना चाहिए
2 आरटीआई को विषय के रूप में छात्रों का पढ़ाया जाना चाहिए
3 सूचनाएं ऑनलाइन हों
4 आरटीआई कार्यकर्ताओं का राष्ट्रीय स्तर का नेटवर्क तैयार हो
5 हस्ताक्षर और एसएमएस अभियान शुरू हो
6 प्रत्येक राज्य में आयोग की कार्यप्रणाली के बारे में अधिक से अधिक चिटि्ठयां राष्ट्रपति को भेजी जाए। पूरे देश में आयोग के गलत निर्णयों के खिलाफ जन सुनवाईयां हों
7 नींद उडाओ अभियान के जरिए लगातार फोन करके आयुक्तों को तंग किया जाए
8 केन्द्रीय समन्वय समिति गठित हो
9 आरटीआई विषय का राजनीतिकरण हो
10 इंगित करो अभियान शुरू हो जिसमें गलत निर्णय देने वाले सूचना आयुक्त को उंगली दिखाई जाए
11 देश के हर जिले में आरटीआई पर कार्यशालाएं और अभियान शुरू हों
12 हर राज्य के राज्यपाल को ज्ञापन भेजा जाए
13 गलत निर्णय देने वाले आयुक्तों को हटाने और अच्छे आयुक्तों को नियुक्त करने का दबाव बनाया जाए
14 घूस को घूंसा अभियान फिर से शुरू हो
15 आयोग के गलत निर्णयों के विरूद्ध ब्लैक फलैग मार्च हो
16 चुनाव घोषणा पत्रों में राजनीतिक दलों को आरटीआई शामिल करने को मजबूर करना चाहिए
17 आरटीआई ग्रीटिंग कार्ड बनें और इन्हें सभी राज्य और केन्द्रीय सूचना आयोग में भेजा जाए
18 राहुल गांधी को वस्तुस्थिति से अवगत कराया जाए
19 आवेदन का शुल्क जमा करने में लचीलापन हो
20 अपीलीय अधिकारी कानून के जानकार हों
21 देश भर में सेक्शन 4 के सम्पूर्ण क्रियान्वयन पर प्रदर्शन हों
22 मीडिया से संबंधित नेशनल बैकअप सपोर्ट विकसित हो
23 हर्जाने की मांग की जानी चाहिए
24 न्यायाधिकरण में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया जाए और जन समर्थन तैयार किया जाये


रविवार, 27 जुलाई 2008

दिल्ली विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना

केन्द्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी दीपक वत्स पर नियत समय पर सूचना न देने पर 5750 रूपये का जुर्माना लगाया है। सूचना देने में 23 दिनों की देरी के लिए वत्स पर यह जुर्माना लगा है। उन्होंने पांडव नगर निवासी नीरज कुमार द्वारा मांगी गई सूचनाओं को 30 दिनों के तय समय सीमा के भीतर नहीं दिया था।
नीरज कुमार ने 21 मार्च 2007 में आरटीआई आवेदन के जरिए दिल्ली विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी से डी एस कोठारी होस्टल, पी जी मेन्स और जुबली हाल हास्टल में रहने वाले छात्रों के नाम और उनके कक्ष संख्या की जानकारी मांगी थी। तय 30 दिनों के अंदर आवदेन का जवाब न मिलने पर नीरज ने 16 मई 2007 में केन्द्रीय सूचना आयोग में इसकी षिकायत दर्ज की। सूचना देने में देरी करने के लिए लोक सूचना अधिकारी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।
नोटिस का जवाब देते हुए विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी ने स्पष्टीकरण दिया कि जनवरी और फरवरी 2007 में विश्वविद्यालय के कर्मचारी लंबी हडताल पर थे जिस कारण आवेदक को सूचनाएं समय पर नहीं उपलब्ध कराई जा सकीं। सूचनाधिकारी ने दलील दी कि हडताल से आधिकारिक कार्य में व्यवधान पड़ा और इसके बाद लोक सूचना अधिकारी बीमार पड़ गए और चिकित्सीय अवकाष पर चले गए। सूचना आयोग विष्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी की दलीलों से संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि जिस माह की यह दलीलें हैं आवेदन उसके बाद प्राप्त हुआ था।
मामले की सुनवाई के बाद 14 जुलाई 2008 को सूचना आयुक्त ओ पी केजरीवाल ने विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी व सहायक रजिस्ट्रार दीपक वत्स पर 5750 रूपये का जुर्माना लगाने का आदेष दिया। साथ ही विश्वविद्यालय के उप कुलपति को आयोग के फैसले को सहयोग करने के निर्देष दिए। आयोग ने स्पष्ट किया की जुर्माने की राषि 10 अगस्त 2008 तक आयोग के पास पहुंच जाए।


शनिवार, 26 जुलाई 2008

सांसदों की ख़रीद-फरोख्त के खिलाफ एकजुटता का आवाहन

प्रिय भाइयों,

22 जुलाई 2008 को अपने देश की संसद में हमें एक ऐसा शर्मनाक नजारा देखने को मिला जिसे देखकर लगा कि क्या हमारा देश, उसके सांसद और पूरा का पूरा लोकतंत्र एक मंडी की तरह बनता जा रहा है, जहां नेता खुलेआम बिकते हैं। लेकिन यह तो सच्चाई की एक अंश मात्र ही है। हम सब जानते हैं कि सरकार गिराने और बचाने के नाम पर जो इस संसद के अंदर और बाहर खेला गया वह उससे कहीं ज्यादा है। जितना सामने आया, इसमें सांसदों के अलावा और भी बहुत लोग शामिल हैं। क्या इन लोगों का जुर्म संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों से कम है ? क्या इन पर देशद्रोह का मुकदमा नहीं चलना चाहिए ? लेकिन अब हम क्या करें। यूं ही चुप बैठे रहें ? अगर यूं ही चुप बैठे रहे तो एक दिन यह सांसद हमें और हमारे देश को बेच डालेंगे।आइए हम सब मिलकर जोरदार तरीके से मांग करें कि

१. सरकार बचाने-गिराने के लिए पिछले एक महीनें में जो सांसदों की खरीद फरोख्त हुई, उसकी निष्पक्ष जांच ऐसे लोगों से कराई जाए जिनपर देश को भरोसा हो। दोषी लोगों को जेल भेजा जाए।

२. आईबीएन चैनल ने जो रिकार्डिंग लोकसभा अध्यक्ष को सौंपी है, उसमें हो रही सांसदों की खरीद-फरोख्त को सभी चैनलों के माध्यम से देश की जनता को दिखाया जाए।

३. भ्रष्ट सांसदों, मंत्रियों, प्रधानमंत्री और अफसरों पर मुकदमा चलाने और जेल भेजने के लिए तुरंत लोकपाल बिल लाकर एक शक्तिशाली एवं निष्पक्ष-स्वतंत्र लोकपाल नियुक्त किया जाए।
सत्ता के गलियारों तक इन मांगों को पहुंचाने के लिए सैक़ड़ों लोग रविवार 27 जुलाई, शाम 6 बजे इंडिया गेट पर एकि़त्रत हो रहे हैं। यह आवाहन किसी संगठन या पार्टी का नहीं, आम लोगों का आम लोगों के नाम है। आपका वहां पहुंचना की आपकी आवाज बनेगा।सभी भाइयों से अनुरोध है कि भारी संख्या में रविवार शाम 6 बजे इंडिया गेट पहुंचकर इस आवाज को बुलंद करें।

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

बुन्देलखण्ड के कुलपति को नोटिस जारी

राज्य सूचना आयोग, उत्तर प्रदेश ने दो अलग-अलग मामलों में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी के कुलपति को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है। आयोग ने अपील का निश्तारण न करने के ख़िलाफ़ कुलपति पर यह कार्यवाही की है।
वादी ठाकुर प्रसाद वैद तथा सूरज बली के दो अलग-अलग मामलों में विश्विद्यालय प्रशासन से सफाई मांगी है. ठाकुर प्रसाद वैद ने कोंच के मथुरा प्रसाद महाविद्यालय की संदान खाते में निहित कृषि भूमि को अवैध रूप से बेच देने के सम्बन्ध में महाविद्यालय से जानकारी मांगी थी। महाविद्यालय के जन सूचना अधिकारी द्वारा सूचना ने देने पर वादी ने प्रथम अपीलीय अधिकारी कुलपति से सूचना प्राप्त करनी चाही. यहाँ से भी सूचना न मिलने पर वादी ने आयोग के सामने अपील की. आयोग ने मामले की गंभीरता को देख कर जन सूचना अधिकारी से निर्धारित समय में सूचना न देने का कारण पूछा और कुलपति से भी मामले के निस्तारण न करने का कारण पूछा. आयोग ने इसे सूचना अधिकार अधिनियम में बाधा पहुचाने का मामला मानते हुए कुलपति को नोटिस जारी कर दंड की चेतावनी दी है.

ई गवरनेंस की ओर एक कदम

यदि कोई आरटीआई आवेदक किसी सरकारी विभाग या मंत्रालय से मांगी गई सूचनाओं से संतुष्ट नहीं है या उसे सूचनाएं नहीं दी गईं हैं तो अब उसे केन्द्रीय सूचना आयोग के दफतरों में भटकने की जरूरत नहीं है। अब वह सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकता है। सीआईसी में शिकायत के लिए वेबसाइट http://rti.india.gov.in में दिया गया फार्म भरकर सबमिट पर क्लिक करना होता है। क्लिक करते ही शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है।
भारत सरकार ने ई गवरनेंस और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केन्द्र के सभी मंत्रालयों से संबंधित सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी थी लेकिन इसके साथ ही अब वेबसाइट के माध्यम से केन्द्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है। इसके अतिरिक्त अपील का स्टेटस भी देखा जा सकता है। सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है।
सरकार की इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेयता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। सूचनाओं को ऑनलाइन करने के पीछे यह मान्यता है कि देश के सभी नागरिक सरकार को कर देते हैं, इसलिए सभी नागरिकों को समस्त सरकारी विभागों से सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार है।
देश में सूचना का अधिकार आने के बाद लगातार मांग की जा रही थी कि सभी सरकारी सूचनाएं ऑनलाइन होनी चाहिए ताकि नागरिकों को सूचनाएं प्राप्त करने में दिक्कतों का सामना न करना पडे़। साथ ही आरटीआई आवेदन एवं अपीलों को ऑनलाइन करने की व्यवस्था की भी जरूरत महसूस की गई जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े

मंगलवार, 22 जुलाई 2008

फेल छात्र हुआ प्रथम श्रेणी से पास

बिहार के मधुबनी जिले के झंझारपुर प्रखंड के लोहना उत्तरी पंचायत निवासी मलय नाथ मिश्र को परीक्षा में फेल कर दिया गया था, लेकिन आरटीआई के माध्यम से जब इसकी जांच हुई तो वे न केवल उत्तीर्ण हुए बल्कि प्रथम श्रेणी भी हासिल की। दैनिक हिन्दुस्तान के स्थानीय संवाददाता मलय नाथ मिश्र नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता और जनसंचार विषय पर दो साल का स्नाकोत्तर कोर्स कर रहे थे।
उन्होंने दूसरे वर्ष की परीक्षाएं दी थीं। अच्छे परीक्षाफल की आस लगाए बैठे मलय नाथ उस समय आश्चर्य हुआ जब परीक्षा में उन्हें फेल कर दिया गया। विश्वविद्यालय से प्राप्त परीक्षाफल को स्वीकार करने के बजाय उन्होंने दिसंबर 2007 में आरटीआई के माध्यम से नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक के यहां इसे चुनौती दी और विश्वविद्यालय प्रशासन से इस संबंध में जवाब तलब किया।
मलय नाथ मिश्र के आरटीआई आवेदन ने असर दिखाया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने आवेदन मिलते ही मामले की जांच की और उसे अपनी भूल का आभास हुआ। जांचोपरांत आवश्यक कारवाई करने के बाद मलय नाथ मिश्र को ६१.२५ प्रतिशत अंक प्राप्त हुए।

बैंक ने किया गरीब किसानों से छल

सुखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड क्षे़त्र के बांदा जिले के गरीब किसानों पर एक तरफ प्रकृति ने कहर बरपा रखा है वहीं दूसरी तरफ बैंक भी किसानों को बदहाली की और धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। सूचना के अधिकार के जरिए बांदा जिले के त्रिवेणी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में अनेक प्रकार की अनियमितताएं उजागर हुईं हैं। आरटीआई के माध्यम से जो सूचनाएं मिली हैं उनसे पता चला है कि इस बैंक ने क्षेत्र के गरीब किसानों के साथ बहुत बड़ा छल किया है।

अप्रैल 2008 में आवेदक राजा भईया यादव द्वारा दायर आरटीआई के माध्यम से पूछा गया था कि इस सूखेग्रस्त जिले के जिन किसानों के क्रेडिट कार्ड बनें हैं, उनकी फसल का बीमा किया गया है या नहीं। यदि बीमा नहीं हुआ है तो इसकी वजह बताएं। आवेदन में उन किसानों की संख्या भी पूछी गई जिन्हें दावा राशि का भुगतान किया गया था।

आरटीआई आवेदन का कोई जवाब नहीं मिलने पर मई में प्रथम अपील दायर की गई। प्रथम अपील से जो जवाब मिले वह आधे-अधूरे थे। प्रथम अपील में जो सूचनाएं उपलब्ध कराईं उसमें यह तो स्वीकार कर लिया गया कि किसी किसान को दावा राशि का भुगतान नहीं किया गया है। लेकिन मांगी गई अन्य सूचनाएं नहीं दी गईं।

अन्तत: मामला राज्य सूचना आयोग पहुंचा। आयोग ने बैंक को निर्देशदिए कि आवेदक द्वारा मांगी गई सूचनाओं को तुरंत उपलब्ध कराए। सूचना आयोग के आदेश का असर हुआ और किसानों के खातों में करीब 1 करोड़ रूपये की राशि स्थानांतरित कर दी गई।


सूचना ई-आवेदन से

सूचना के अधिकार को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अब सरकार ने एक लाख "कॉमन सर्विस सेंटर" खोले हैं, ऐसा सरकारी दावा है. इन केन्द्रों से अब ई-आवेदन किया जा सकता है. सरकार ने यह कदम सूचना के अधिकार में कम पंजीकरण को देखते हुए उठाया है. इससे अब सूचना के लिए हार्ड कॉपी भेजने की समस्या से छुट्टी मिल जायेगी.

इस सुविधा में सूचना प्राप्ति के लिए लगने वाला शुल्क भी इन्हीं केन्द्रों पर जमा किया जाएगा। इन्हीं सर्विस सेंटर्स पर कंप्यूटर पर सूचनाओं को पढ़ा भी जा सकता है. अभी इस तकनीक में इतनी बाध्यता है की पाँच पेज से अधिक की सूचना कंप्यूटर पर अपलोड नहीं की जा सकती है. इससे अधिक के लिए सम्बंधित व्यक्ति को कुरियर चार्ज उसी सेंटर पर जमा करना होगा. इसके बाद सूचना अधिकारी सम्बंधित सूचना को कुरियर से भेजेंगे.

पाँच पेज से कम वाली सूचना व्यक्ति उसी सेंटर के कंप्यूटर पर शुल्क देकर पढने का अधिकारी होगा. सूचना के प्रिंट आउट के लिए दो रुपये अदा करने होंगे. फिलहाल अभी ये सुविधा सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, सुल्तानपुर, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, सीतापुर और रायबरेली में शुरू की गई है. बाद में इसे सभी जिलों में पहुँचाने की योजना है.

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

बैंक में हुआ करोड़ों का गबन

लखनऊ के सीतापुर को-आपरेटिव बैंक में करोड़ों रूपये का घपला हुआ है। बैंक के कर्मचारियों द्वारा किया गया यह घोटाला लगभग 42 करोड़ रूपये का है। आरटीआई आवेदन के माध्यम से आवेदक खालिक मोहम्मद ने अक्टूबर 2007 में उत्तर प्रदेश को-आपरेटिव सोसाइटी के जिला सहायक रजिस्ट्रार कार्यालय से इस संबंध में सूचनाएं मांगी थी।
आवेदक ने गबन की गई कुल राशि, दुरूपयोग की गई राशि और अनियमित राशि के बारे में जानकारी मांगी थी। यह राशि साल 1989-90 से 2005-06 में जिला को- आपरेटिव बैंक, सीतापुर के स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट में दिखाई गई थी। आवेदक ने ऑडिट करने के उत्तरदायी अधिकारियों और स्टॉफ के खिलाफ की गई कारवाई की जानकारी भी मांगी थी। आवेदक अहमद ने उन लोगों के नाम और पद भी पूछे थे जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और विभागीय कारवाई की गई।
नवंबर 2007 में जन सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी में कुल गबन की गई राशि ५७२०११४२.७१ दुरूपयोग की गई राशि का मूल्य २५२७९१३०६.४१ है और अनियमित राशि १०६१५५३९०.०८ बताई गई। जन सूचना अधिकारी आर सी दुबे ने यह जानकारी भी दी कि 6 अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और तीन कर्मचारियों को इस सिलसिले में निलंबित किया गया है।
आवेदक अहमद ने स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट की प्रतिलिपि भी मांगी थी, जो उन्हें उपलब्ध नहीं कराई गई। यह प्रतिलिपि हासिल करने के लिए उन्होंने आयोग में दूसरी अपील दायर की है।

अकादमी की अनुमति के बिना अमेरिका पहुंची माइक्रो फिल्म्स

केरल साहित्य अकादमी के पुस्तकालय की 1238 दुर्लभ पुस्तकों की माइक्रो फिल्म्स जनरल कौंसिल या अकादमी की कार्यकारिणी समिति की अनुमति के बिना यूएस कांग्रेस लाईब्रेरी भेजी गई है। सूचना के अधिकार के तहत अकादमी के जन सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी से यह खुलासा हुआ है। जानकारी अकादमी के पूर्व प्रकाशन अधिकारी सीके आनंदन पिल्लई को दी गई है। ये फिल्में 17 जुलाई 1996 से 26 मार्च 2008 के दौरान इंडो-यूएस प्रोजेक्ट के अन्तर्गत बनाई गईं थीं।
श्री पिल्लई का कहना है कि अकादमी के अधिकारियों ने न तो इंडो-यूस प्रोजेक्ट के बारे में विवरण उपलब्ध कराया और न ही इन दुर्लभ पुस्तकों की माइक्रो फिल्मों को यूएस लाइब्रेरी भेजने की वजह बताई। अकादमी द्वारा दी गई सूचनाओं में कहीं भी इन फिल्मों को यूएस भेजने के लिए कौंसिल या कार्यकारिणी समिति की अनुमति का जिक्र नहीं है। श्री पिल्लई ने इस मामले में उच्च अधिकारियों से संपर्क किया है। उनका कहना है कि जब इन दुर्लभ पुस्तकों की फिल्में बन रहीं थीं तब के एल मोहनवर्मा सचिव और एम टी वासुदेवन नायर अकादमी के अध्यक्ष के पद पर थे।

आवेदक को मिले 10 हजार का हर्जाना

केन्द्रीय सूचना आयोग का एक आदेश देशभर में आरटीआई इस्तेमाल करने वालों के खुशी लेकर आया है। खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें नई दिल्ली में केन्द्रीय सूचना आयोग की सुनवाई में आने के लिए बड़ी मात्रा में यात्रा और होटल आदि खर्चे वहन करने पड़ते हैं। आयोग ने अपने निर्णय में भारतीय प्रतिभूति एवं विनियामक बोर्ड अर्थात सेबी को आदेश दिया है कि वह मुंबई के एक आरटीआई आवेदक को हर्जाने के रूप में 10 हजार रूपये दे। मुंबई निवासी आवेदक योगेश मेहता को पिछले साल केन्द्रीय सूचना आयोग की पांच सुनवाईयों में मुंबई से दिल्ली आने के लिए बाध्य किया गया था।
योगेश मेहता पिछले दो सालों से सेबी से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज डिफाल्टर कमेटी की कस्टडी से गायब हुए शेयरों की जानकारी हासिल करने के लिए संघर्षरत थे। सेबी के अधिकारियों ने जब उन्हें जानकारी दी कि उनका मामला विचाराधीन है तो उन्हें थोड़ी सफलता मिलते दिखी। तत्पश्चात उन्होंने सीआईसी से अपनी अपील वापस लेने की अपील की और आयोग से सेबी के खिलाफ उनकी अपील पर विचार करने को कहा। सेबी के लोक सूचना अधिकारी द्वारा 58 दिनों के बाद आवेदक को जो सूचनाएं उपलब्ध कराईं गईं वह अपूर्ण थीं। सेबी ने सूचना देने में देरी के लिए तर्क दिया कि यह सूचनाएं उसके पास नहीं थीं और इन्हें बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज से हासिल किया गया है।
सूचना आयुक्त ए एन तिवारी ने सूचना देने के देरी के लिए सेबी के लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना तो नहीं लगाया लेकिन उन्होंने कानून की धारा 19 के तहत आवेदक को क्षतिपूर्ति के रूप में 10 हजार रूपये देने के आदेश जरूर दे दिए।

सोमवार, 14 जुलाई 2008

लोकसभा सचिवालय में किया जा सकता है निरीक्षण

केन्द्रीय सूचना आयोग ने अपने निर्णय में एक आरटीआई आवेदक को लोकसभा सचिवालय में विभिन्न पदों की नियुक्तियों के दस्तावेजों को व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। केन्द्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने चाणक्यपुरी से विनोद बाबू की द्वितीय अपील की सुनवाई के बाद यह निर्णय दिया।
आवेदक विनोद बाबू ने सचिवालय से 1997 से 2006 के बीच सचिवालय में खाली पडे़ पदों के बारे में विवरण मांगा था, जिन्हें ने देने से मना कर दिया गया। सचिवालय ने सूचना न देने का बहाना बनाते हुए दलील दी थी कि कंम्यूटर के रिकार्ड से इस प्रकार की जानकारी निकालना समय, खर्चे और मानवीय श्रम के गलत दिशा में मोड़ना होगा। आयोग ने दलील सुनने के बाद पाया कि आरटीआई आवेदन में मांगी गई सूचनाओं को कंप्यूटरीकृत फोरमेट में होने के आधार पर देने से मना नहीं किया जा सकता।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद आयोग ने निर्णय देते हुए कहा कि आवेदक अगले 20 दिनों के भीतर व्यक्तिगत रूप से सचिवालय के अधिकारियों के पास जा सकता है और संबंधित दस्तावेजों की जांच कर सकता है।


शनिवार, 12 जुलाई 2008

उच्चतम न्यायालय और डीओपीटी स्पष्ट करे आरटीआई पर अपने विचार- सीआईसी

न्यायाधीष सूचना के अधिकार के दायरे में आ सकते हैं या नहीं, इस विवादास्पद मुद्दे पर केन्द्रीय सूचना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों व कार्मिक और प्रषिक्षण विभाग से उनके विचार पूछे हैं । आयोग ने अलग-अलग नोटिस जारी कर न्यायालय और विभाग के अधिकारियों को निर्देष दिया है कि वह अपने विचार 11 जुलाई को होने वाली फुल बैंच सुनवाई से पहले प्रस्तुत करें। आयोग ने न्यायाधीषों की संपत्तियों को सार्वजनिक किए जाने या ना किए जाने पर इनके विचार पूछे हैं।
आयोग का यह निर्देष दिल्ली निवासी सुभाष चन्द्र अग्रवाल द्वारा दायर की गई अपील के जवाब में आया है। श्री अग्रवाल ने अपील में पूछा था कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास किये हुए प्रस्ताव पालन किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सभी जजों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा संबंधित मुख्य न्यायधीष को नियमित अंतराल पर भेजना था।
यह प्रस्ताव मई 1997 को 22 न्यायधीषों की उपस्थिति में पारित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायधीष ने की थी। इस बैठक में न्यायधीष वर्मा ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के सभी जजों को नियुक्ति के बाद निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी और अपने संबंधियों की संपत्तियों और निवेष का ब्यौरा देने की बात कही। जजों की बैठक में पास किए गए इस प्रस्ताव में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीष केजी बालाकृष्णन ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि न्यायाधीष सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आते। उनके इस बयान का लोकसभा अध्यक्ष और पार्लियामेंट्री स्टेडिंग कमिटी ऑन लॉ एंड जस्टिस ने आलोचना की थी।

मुरैना न्यायालय अधीक्षक एवं लोक सूचना अधिकारी पर 25 हजार का जुर्माना

मध्य प्रदेश राज्य राज्य सूचना आयोग ने मुरैना जिला न्यायालय अधीक्षक एवं लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे पर 25 हजार का जुर्माना लगाया है। आयोग ने यह निर्णय मुरैना की तहसील कैलारस में वकालत करने वाले आवेदक लज्जाराम पाण्डेय की द्वितीय अपील की सुनवाई के बाद दिया। आयोग ने जिला न्यायालय को आदेश दिया कि लज्जाराम द्वारा मांगी गई सूचनाएं 15 दिनों के भीतर उपलब्ध कराईं जाएं।
लज्जाराम ने 4 जनवरी 2007 में मुरैना जिला न्यायालय के लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत किया था। लेकिन अनगरे ने अपने आप को लोक सूचना अधिकारी होने की बात से इंकार कर दिया और आरटीआई आवेदन लेने से मना कर दिया। तत्पश्चात श्री लज्जाराम ने अपीलीय अधिकारी जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी डी राठी के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत किया।
बी डी राठी को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सूचनाधिकार के तहत अपीलीय अधिकारी नियुक्त किया था। उच्च न्यायालय ने मुरैना न्यायालय अधीक्षक एस आर अनगरे को लोक सूचना अधिकारी के पद पर भी नियुक्त किया था। आरटीआई को जो आवेदन अनगरे को लेना चाहिए उसे अपीलीय अधिकारी ने स्वीकार किया और अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में लापरवाही दिखाई। आवेदन के साथ 10 रूपये का नॉन ज्युडिशियल स्टाम्ट संलग्न था, लेकिन इसके बावजूद आवेदक से 10 रूपये आवेदन शुल्क के रूप में वसूल लिए गए।
इस मामले की विचित्र बात यह है कि आवेदक ने अपीलीय अधिकारी बी डी राठी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में जवाब मांगा था। आवेदक ने राठी द्वारा की गई कारवाईयों के दस्तावेजों को मांग की थी। खुद पर लगे आरोपों का आवेदन उन्होंने स्वीकार किया और फैसला भी सुना दिया। आवेदन पर किसी प्रकार की कारवाई के बिना कानून की धारा 8 का हवाला देते हुए आवेदन निरस्त कर दिया गया।
आवेदन निरस्त होने के बाद लज्जाराम के सामने विचित्र और असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। असमंजस यह था कि अब वह प्रथम अपील कहां दायर करें। गौरतलब है कि प्रथम अपील नियमों के अनुसार अपीलीय अधिकारी बी डी राठी के यहां होनी थी। लेकिन उन्होंने आवेदन स्वीकार किया था और उसे रद्द भी कर दिया था। ऐसी स्थिति में आवेदक ने प्रथम अपील मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के ग्वालियर और जबलपुर के अपीलीय अधिकारियों के पास भेजी। बाद में मामला मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग गया।
सूचना आयोग लगभग एक साल बाद मामले की सुनवाई की और मुरैना जिला न्यायालय के विरूद्ध निर्णय दिया। न्यायालय को आदेश दिया गया कि वह 15 दिनों के भीतर आवेदक द्वारा मांगी गई सभी सूचनाएं उपलब्ध कराए। इसके अलावा मुरैना जिला न्यायालय के लोक सूचना अधिकारी एस आर अनगरे को दोषी मानते हुए 25 हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया गया। आयोग के निर्णय के करीब 50 दिनों बाद आवेदक को सूचनाएं उपलब्ध करा दी गईं।

आकाशवाणी के उपनिदेशक पर 25 हजार का जुर्माना

आकाशवाणी के जन सूचना अधिकारी एवं उपनिदेशक पर नियत समय पर सूचनाएं न उपलब्ध कराने पर 25 हजार का अधिकतम जुर्माना लगाया गया है। केन्द्रीय सूचना आयुक्त ओ पी केजरीवाल ने यह निर्णय रास बिहारी दत्ता बनाम ऑल इंडिया रेडियो के मामले की सुनवाई के बाद दिया। आकाशवाणी ने रास बिहारी के आरटीआई आवेदन का जवाब 240 दिनों के बाद दिया था, जबकि कानून के अनुसार सूचनाएं 30 दिनों के भीतर मिलनी चाहिए थीं।
आवेदक रास बिहारी ने 7 नवंबर 2006 में आवेदन दायर कर ऑल इंडिया रेडियो के जन सूचना सूचना अधिकारी से वद्य वृंदा के कंडक्टर के चयन की जानकारी मांगी थी। 30 दिनों में जवाब ने मिलने पर आवेदन ने 26 दिसंबर 2006 को प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर की। यहां से भी सूचना न मिलने पर आवेदन ने 1 मार्च 2007 केन्द्रीय सूचना आयोग में दूसरी अपील दाखिल की। आयोग ने मामले की सुनवाई के बाद आकाशवाणी के जन सूचना अधिकारी एवं उपनिदेशक एस पी भट्टाचार्य को देर से सूचनाएं देने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया। भट्टाचार्य द्वारा सूचना देने में देरी के लिए प्रस्तुत की गईं दलीलों से आयोग संतुष्ट नहीं हुआ और भट्टाचार्य को दोषी पाया गया।
आयोग ने अपने निर्णय में कठोर रूख अपनाते हुए दोषी जन सूचना अधिकारी एवं उपनिदेशक एस पी भट्टाचार्य को 25 हजार रूपये जुर्माने के रूप में देने का आदेश दिया। आयोग ने कहा जुर्माने की राशि भट्टाचार्य के वेतन से दो किस्तों में काटी जाए। पहली किस्त 10 अगस्त 2008 और दूसरी किस्त 10 सितंबर 2008 तक काट ली जाए।

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग में भारी अनियमितता

परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किया तो चपरासी बनने के लायक नहीं और कम अंक प्राप्त किया तो नायाब तहसीलदार के पद पर बिठा दिया। ऐसी कहानी एक-दो नहीं बल्कि बड़ी संख्या में सामने आए है। ये मामलें है छत्तीसगढ लोक सेवा आयोग का। जहॉ सूचना के अधिकार के तहत परीक्षाथियों के चयन में भारी संख्या में अकल्पनीय भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। अच्छी परीक्षा और अच्छा साक्षात्कार देने के बाद जब कई परीक्षार्थियों का चयन नहीं हो पाया, तो अभ्यार्थियों ने सूचना कानून के तहत इस परीक्षा के उत्तर पुस्तिका दिखाने के मांग की। आयोग ने इसे नियम-कानून का हनन का दलील देकर उत्तर पुस्तिका दिखाने से मना कर दिया। लेकिन बड़ी संख्या में छात्रों के आंदोलन के बाद बात वहॉ के विधानमंडल तक पहुंची तो पहली खेप में 15 छात्रों की उत्तर पुस्तिका दिखाई गई। लेकिन इसके तुरंत बाद केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के तहत और उत्तर पुस्तिका दिखाने से मना कर दिया गया। दिखाइ गई 15 उत्तर पुस्तिका को देखने के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जिसमें पाया गया कि उस 15 उत्तर पुस्तिका में से 9 उत्तर पुस्तिका के जांच में गड़बड़ है। इनमे 300 अंक के एक विषय, जिसमें 60 अंक के 5 प्रश्न थे। जिसके उत्तर पुस्तिका में 60 अंक के उत्तर को 75-75 अंक का मानकर केवल चार उत्तरों को ही जॉचा गया। इसी विषय के कुछ अन्य उत्तर पुस्तिका के 5 प्रश्नों में दो प्रश्न को 50-50 अंक और शेष 3 को 60-60 अंक के आधार पर जांच कर दिया गया था। साथ ही प्रश्न के सही जवाब लिखने पर 20 में से 10 अंक मिले और इसी प्रश्न के असंबंधित उत्तर देने पर एक अभ्यार्थी को 20 में से 13 अंक दे दिया गया था। इसी तरह संक्षिप्त नोट के प्रश्न पर पूर्ण गलत उत्तर लिखने पर भी पूरे अंक दिए गए थे। इसके अलावा अन्य विषय में अनुवाद के सही जबाव देने पर शून्य अंक दिया गया। इस तरह की कई गड़बिड़या पाई है। आयोग द्वारा संचलित न्यायायिक सेवा परीक्षा में एक परीक्षार्थी के पूरे उत्तर पुस्तिका के जॉच के बावजूद बीच के दो पृष्ठ(पेज न 10, 11) को जांच ही नहीं किया गया था। इसी प्रकार आयोग के गूढ़ हथियार स्केलिग प्रणाली में भारी गड़बड़ी पाई गई है। राजेश कुमार(रोल न 105188 वर्ष 2003) के सांिख्यकी के 300 अंक की परीक्षा में स्केलिंग के बाद 304 अंक दे दिया गया था। एक अन्य अभ्यार्थी ग्रजेस प्रताप सिंह(रोल न 66136) अपराध शास्त्र में 233 अंक मिले थे जिनका स्केलिंग बाद शून्य कर दिया गया था। इसके अलावा एक अन्य चयनित छात्र राजू सिंह चौहान (रोल न 31106) ने एक वैकल्पिक विषय में 182 अंक प्राप्त किए थे जिनका अंक स्केलिग के बाद 188 अंक कर दिया गया। इसी तरह दो अन्य छात्र जिन्होंने एक सांख्ययिकी में 235-235 अंक प्राप्त किए थे। स्केलिंग के बाद उसे शून्य बना दिया गया। मानव शास्त्र विषय के छ: विद्यार्थियों (16834, 102564, 40912, 77632, 97129, 102526) ने 300 में प्रत्येक ने 200 अंक प्राप्त किए थे। जिसे स्केलिंग के बाद क्रमश: 170, 210, 205, 196, 196, और 239 कर दिया गए थे। इसी परीक्षा में वषाZ डोगरे का कर्ट माक्र्स से उपर 1290 अंक प्राप्त करने के बाद भी चयन नहीं किया गया। जबकि उससे नीचे 1274, 1273, 1247 अंक प्राप्त करने वाले कई अभ्यार्थियों का चयन कई पदों पर चयनित किया गया है। इसी प्रकार इस परीक्षा की टॉपर रही पदमीनि भोई जिन्होंने कुल अंक 1481 प्राप्त किए थे और स्केलिग के बाद इसका कुल अंक 1501 कर दिया गया। साथ ही कुन्दर कुमार जिन्होंने कुल अंक 1523 अंक प्राप्त किए थे। जिनका स्केलिंग के बाद कुल अंक 1314 कर दिया गया। लेकिन कुन्दन का किसी भी पद पर चयन नहीं सका था। इन्हीं आंकडे़ के आधार पर बिलासपुर उच्च न्यायालय में रिट दायर की गई, तो आयोग के अध्यक्ष अशोक दरवाड़ी ने स्वीकार किया कि आयोग ने परीक्षा में बड़ी मात्रा में गड़बड़ी की है। जिस पर उच्चतम न्यायालय में केस चल रही है। जिन्हें वर्तमान मे जमानत पर रिहा किया गया है। साथ ही आयोग के एक अन्य सदस्य अमोद सिंह फरार है।

आरटीआई इस्तेमाल करने पर हुआ कारगिल तबादला

मध्य प्रदेश में देवस में केन्द्रीय विद्यालय के एक शिक्षक को सूचना का अधिकार कानून इस्तेमाल करने की सजा मिली है। इस कानून के माध्यम से भ्रष्टाचार उजागर करने पर उनका तबादला जम्मू-कश्मीर के कारगिल में किया गया है। शिक्षक मंजूलाल कजोडिया ने आरटीआई कानून के जरिए किताबों की खरीद में की गई धांधली, खेल के मैदान के निर्माण और गैर कानूनी तरीके से पेडों के काटने में भ्रष्टाचार आदि का पर्दाफाश किया था।
मंजूलाल ने तबादले के विरूद्ध अपना अहिंसक विरोध प्रदर्शन बैंक नोट प्रेस के सामने शुरू कर दिया है जिसमें परिसर में ही केन्द्रीय विद्यालय स्थित है। 30 जून तक सत्याग्रह के बाद वह 1 से 15 जुलाई तक भूख हडताल करेंगे। इस भूख हडताल में वह दिन में केवल एक वक्त भोजन करेंगे। इसके बाद भी अगर उनके तबादले का आदेश वापस नहीं लिया जाता तो वह आमरण अनशन पर बैठेंगे।
स्कूल प्रशासन का कहना है कि उनके तबादले का आदेश उच्च अधिकारियों से प्राप्त हुआ है। लेकिन उन्होंने मंजूलाल द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं की। स्थानीय नेता और संगठन केन्द्रीय विद्यालय के खिलाफ भ्रष्टाचार की लडाई में मंजूलाल से साथ आ गए हैं।

छ: महीने से रुका कार्य नौ दिन में

पिछले छ: महीने से टूटे पडे़ सड़क का मरम्मत आर टी आई आवेदन के नौ दिनों के अंदर हो गया। भले ही विभाग ने सड़क मरम्मत में हुई देरी के कारण का जवाब मरम्मति कार्य पूरा होने तक नहीं दिया था। यह घटना है पूर्वी दिल्ली के विजय नगर डबल स्टोरी के ब्लॉक एक और ब्लॉक चार के बीच एक सड़क का। जिसे नगर निगम ने करीब छ: महीने पहले सड़क के अंदर से भूमिगत नाले के निर्माण के लिए तोड़ा था। भूमिगत नाले का निर्माण तो लगभग समय पर हो गया। लेकिन विभाग ने नाले के उपर की सड़क मरम्मत करना बिल्कुल भूल गए। इसके बाद वहॉ के निवासी ने अधिकारियों को इस संबंध में कई िशकायत की लेकिन अधिकारियों के कान में जू तक नहीं रेंगे। परेशान होकर जब दिव्य ज्योति जयपुरियार ने सूचना के अधिकार के तहत इसका कारण जानना चाहा तो आवेदन के नौ दिनों के अंदर ही सड़क मरम्मती का कार्य पूरा हो गया। हालांकि विभाग ने अब तक मरम्मती कार्य में हुई देरी और दोषी अधिकारियों के विषय में कोई जवाब नहीं दिया है।

कोताही बरतने पर सख्त हुआ आयोग

अपने काम में कोताही बरतने वाले अधिकारियों पर सूचना के अधिकार के माध्यम से गाज गिरनी शुरू हो गई है। ऐसी ही एक गाज गिरी है चेन्नई के एक तहसीलदार और उप तहसीलदार पर जिन्होंने समुदाय प्रमाण पत्र बनाने के कोताही बरती थी। तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग ने चेन्नई के जिला कलेक्टर का निर्देश दिया है कि वह तहसीलदार और उप तहसीलदार के खिलाफ कार्रवाई करे। केन्द्रीय सूचना आयोग के चेयरमेन एस रामकृष्णन ने जी थामीजेन्धी की अपील की सनुवाई के बाद यह निर्णय दिया।
दरअसल श्री थामीजेन्धी ने अंतरजातीय विवाह किया था। राज्य सरकार की ओर से अन्तरजातीय विवाह करने वालों को 20000 रूपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। यही राशि प्राप्त करने के लिए उन्होंने समुदाय प्रमाण पत्र के अलावा आवास और आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तहसीलदार और उप तहसीलदार से संपर्क किया था। ताल्लुक कार्यालय में अपनी पत्नी सहित दो महीने में कम से कम 30 चक्कर काटने के बाद भी उनका प्रमाण पत्र नहीं बना।
अन्त में सूचना के अधिकार के माध्यम से थामीजेन्धी ने अपील की लेकिन प्रथम अपील से उनकी समस्या का कोई हल नहीं निकला। अन्तत: मामला राज्य सूचना आयोग के पास पहुंचा। आयोग ने मामले को गंभीरता से लेते हुआ जिला कलेक्टर का निर्देष दिया कि वह इसके लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ तमिलनाडु गवर्नमेंट सर्वेन्ट्स रूल्स के अनुसार कार्रवाई करे और तीन माह के भीतर इसकी जांच रिपोर्ट आयोग के समक्ष प्रस्तुत करे। साथ ही आयोग ने कहा कि कलेक्टर यह सुनिश्चित करे कि आवेदक को 20000 रूपये की राशि प्राप्त हो।

सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय पर लगा क्षतिपूर्ति जुर्माना

केन्द्रीय सूचना आयोग ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के बाद निर्णय दिया कि सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय एक आरटीआई आवेदक दस हजार रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में दे। आयोग ने यह क्षतिपूर्ति जुर्माना आवेदक एफ सी थोमस द्वारा मांगी गई सूचनाओं से संबंधित फाइल न ढूंढने पर लगाया है।
आयोग ने मंत्रालय को लापरवाही बरतने का दोषी पाया और जवाबदेयता में कमी के लिए मंत्रालय की खिंचाई की। साथ ही मंत्रालय की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि आवेदक द्वारा मांगी गई सूचनाएं 1952 से संबंधित हैं जिनकी फाइलों को नहीं ढूंढा जा सकता।
इस पर सूचना आयुक्त एम एम अंसारी ने कहा कि यदि ऐसे स्पष्टीकरण मान लिये जाएं तो सामान्य नागरिक को लोक प्राधिकरण से सूचना मांगने का अधिकार कैसे हासिल होगा। उन्होंने कहा कि ऐसे में तो सभी केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी सरकारी विभागों से संबधित सूचना देने से मना कर देंगे और कानून मजाक बनकर रह जाएगा।

बुधवार, 9 जुलाई 2008

बोम्बे स्टॉक एक्सेंज ने किया सेबी का नियमों का उल्लंघन ?

बोम्बे स्टॉक एक्सेंज ने करीब एक हजार कंपनियों को गैर कानूनी तरीके से डिलिस्टींग कर दिया है। एक्सेंज पर यह आरोप कई इन्वेस्टर संगठनों ने लगाया है। आरोप के अनुसार बोम्बे स्टॉक एक्सेंज ने कंपनियों के डिलिस्टींग में बाज़ार नियामक संस्था ``भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी के निमयावली का उल्लंधन किया है। यह आरोप इन्वेस्टर एजूकेशन एण्ड प्रोटेक्शन फण्ड और मीडास टच इन्वेस्टर एसोसियसन ने लगाया है। जिसके जवाब के लिए आरोप लगाने वाले संस्थाओं ने सूचना के अधिकार के तहत सेबी से डिंलिस्टीग प्रकिया और और परकाशीत सूचना के संबंध में प्रमाण मांगा है। गौरतलब है कि बोम्बे स्टॉक एक्सेंज सीधे सूचना के अधिकार के दायरे मे नहीं आता इस कारण यह जानकारी नियामक संस्था सेबी के माध्यम से मांगी गई है। एसोसियशन के एक उच्च अधिकारी के अनुसार ने डिलिस्टींग प्रकिया के लिए किसी समाचार पत्र में इसका सूचना परकाशीत नहीं करवाया था। इस कारण इन्वेटर को इसकी कोई जानकारी नहीं मिल पाई। साथ ही मीडास टच इन्वेस्टर के निदेशक ने कहा कि हमने सेबी के माध्यम से इस कानून के तहत बोम्बे स्टॉक एक्सेंज से डिलिस्टींग प्रक्रिया के कागजात और किसी मीडिया में परकाशीत सूचना का प्रमाण मांगा है। जिसके जवाब में हमे केवल मीडिया रिलिज उपलब्ध कराई गई और डीलििस्टंग प्रकिया और दी गई सूचना का कोई कागजात नहीं उपलब्ध नहीं कराई गई। सेबी के डिलिंस्टींग नियमावली 2003 के अनुसार कम से कम पांच सदस्य होने चाहिए जो डिलिस्टींग आदेशों को पारित और रेटीफाई करता है। साथ ही कंपनियों को कारण बताओं नोटिस भी भेजा जाता है। और कम से कम दो सूचना किसी राष्ट्रीय अंग्रेजी पत्र में परकाशीत करावाना आवश्यक होता है। इसके बाद एसोसियशन ने फिर से सूचना के अधिकार के तहत एक नया आवेदन दे दिया है।

मिला अधिकार मानवीय और जवाबदेह इलाज का

चिकित्सक भगवान का रुप होते हैं। लेकिन भारत में इस भगवान की जवाबदेयता के लिए कोई कानून नहीं है। चिकित्सकों की लापरवाही और पारदिशZता के अभाव में यदि किसी रोगी को हानि होती है, तो क्या इसका जिम्मेदार समान रुप से चिकित्सक को माना जाना चाहिए ? भारत में उपभोक्ता अदालत की उच्चतम संस्था ``नेशनल कन्ज्यूमर डिसप्यूट रेडरेशल कमीशन´´ ने चिकित्सा सेवा से संबंधित कई कायदे कानून निर्धारित किए है। उदाहरण के लिए राइट्स टू प्रोपर एण्ड ह्यूमेन ट्रीटमेंट और राइट्स टू मेडिकल रिपोर्ट आदि। कमीशन ने इन कायदे कानूनों का निर्धारण उसको मिले कई िशकायतो को आधार पर बनाया है। जिसके अनुसार चिकित्सक को रोगी के दवाई लिखने से पहले उसके सभी छोटे-बडे़ रोग का जानकारी देना होगा। जिसके ना उपलब्ध नहीं कराने पर आदेश का उल्लंधन माना जाएगा। इसके अलावे एक अन्य िशकायत के परिप्रेक्ष्य में आदेश दिया है कि चिकित्सक रोगी को रोग का विवरण बताएं साथ ही इसके सभी उपचार विकल्प और उपचार विकल्प के महत्व और खतरें को बताएं। साथ ही कहा कि अस्पताल या चिक्तिसक रोगी को और रोगी की मृत्यु की दशा में उसके रिश्तेदार को रोगी के पूरा चिकित्सा विवरण उपलब्ध करायें। यह आदेश मेडिकल प्रेिक्टसनर द्वारा रोगियों को लिखे गए दवाई के संबंध में और सूचना के अधिकार के परिप्रेक्ष्प में चिकित्सक और रोगी के बीच बेहतर पारदिशZता और जवाबदेयता के लिए दिया गया है। 

अवकाशों की जानकारी देनी होगी गुजरात विवि के उपकुलपति को

गुजरात राज्य सूचना आयुक्त ने गुजरात विश्वविद्यालय के जन सूचना अधिकारी को आदेश दिया है कि वह विश्वविद्यालय के उपकुलपति की अनुपस्थिति के आंकडे़ 10 दिनों के भीतर आरटीआई आवेदक को उपलब्ध कराए। इस आदेश के बाद गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति परिमल त्रिवेदी को अब तक की अपनी सभी छुटि्टयों की जानकारी मुहैया करानी होगी। सूचना आयुक्त आर एन दास ने यह निर्णय विवि के कला विभाग के डीन डॉक्टर प्रदीप प्रजापति की आरटीआई अर्जी की सुनवाई के बाद दिया।
प्रदीप प्रजापति ने अपने आवेदन में प्रश्न किया था कि अवकाश में जाने के लिए उपकुलपति किसे सूचित करते हैं ? किसकी अनुमति पर वह राज्य से बाहर जाते हैं ? और उनकी अनुपस्थिति में कौन उनका पदभार संभालता है ? विश्वविद्यालय ने इन सूचनाओं को निजी बताते हुए देने से मना कर दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद आयोग ने कहा कि मांगी गई सूचनाएं व्यक्तिगत नहीं हैं बल्कि लोक सेवक के नाते उनकी सेवा से संबंधित हैं। आयोग ने कहा कि विश्वविद्यालय इस प्रकार की सूचनाएं देने से मना नहीं कर सकते। गौरतलब है कि कानून के अनुसार उपकुलपति को अवकाष लेने के लिए कुलपति अर्थात राज्य के गवर्नर से अनुमति लेना अनिवार्य है।
परिमल त्रिवेदी के खिलाफ आरटीआई की लगभग दस अपील गुजरात सूचना आयोग में सुनवाई और फैसले के इंतजार में हैं। इन अपीलों में विष्वविद्यालय में लिए गए उनके निर्णयों के बारे में जानकारी मांगी गई है। आयोग ने विष्वविद्यालय को एम-एड डिपार्टमेंट में की गई नियुक्तियों के संबंध में एक आदेष भी जारी किया है। परिमल द्विवेदी पर आरोप है कि उन्होंने अपनी पत्नी की विभाग में गैर कानूनी तरीके से नियुक्ति करवाई और अन्य आवेदकों को अनदेखा किया।

उच्चतम न्यायालय और डीओपीटी स्पष्ट करे आरटीआई पर अपने विचार- सीआईसी

न्यायाधीश सूचना के अधिकार के दायरे में आ सकते हैं या नहीं, इस विवादास्पद मुद्दे पर केन्द्रीय सूचना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों व कोमिक और प्रशिक्षण विभाग से उनके विचार पूछे हैं । आयोग ने अलग-अलग नोटिस जारी कर न्यायालय और विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह अपने विचार 11 जुलाई को होने वाली फुल बैंच सुनवाई से पहले प्रस्तुत करें। आयोग ने न्यायाधीषों की संपत्तियों को सार्वजनिक किए जाने या ना किए जाने पर इनके विचार पूछे हैं।
आयोग का यह निर्देश दिल्ली निवासी सुभाष चन्द्र अग्रवाल द्वारा दायर की गई अपील के जवाब में आया है। श्री अग्रवाल ने अपील में पूछा था कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास किये हुए प्रस्ताव पालन किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सभी जजों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा संबंधित मुख्य न्यायधीष को नियमित अंतराल पर भेजना था।
यह प्रस्ताव मई 1997 को 22 न्यायधीषों की उपस्थिति में पारित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश ने की थी। इस बैठक में न्यायधीष वर्मा ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के सभी जजों को नियुक्ति के बाद निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी और अपने संबंधियों की संपत्तियों और निवेश का ब्यौरा देने की बात कही। जजों की बैठक में पास किए गए इस प्रस्ताव में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि न्यायाधीश सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आते। उनके इस बयान का लोकसभा अध्यक्ष और पार्लियामेंट्री स्टेडिंग कमिटी ऑन लॉ एंड जिस्टस ने आलोचना की थी।

गोपनीय मानी जाने वाली सूचनाएं हुई हासिल

दीपक फूरिया तरूण मि़त्र मंडल और महाधिकार नामक गैर सरकारी संस्था के सक्रिय सदस्य हैं। यह संस्था सूचना के अधिकार कानून के प्रचार-प्रसार का कार्य करती है। दीपक ने सूचना के अधिकार के तहत मुंबई के होमी भाभा सेंटर फोर साइंस एजुकेषन से सूचनाएं मांगी थीं। होमी भाभा सेंटर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान और एस्ट्रोनामी के उम्मीदवारों का चयन करने वाली एक नोडल एजेन्सी है।
सेंटर से भारतीय भौतिकी और रसायन के ओलिम्पयाड में बैठने वाले छात्रों की लिस्ट, रैंक और प्राप्तांक पूछे गए थे। आरटीआई आवेदन के जवाब में सेंटर के जन सूचना अधिकारी ने न केवल सूचनाएं देने से मना कर दिया बल्कि इस प्रकार की सूचनाओं को निजता पर हमला भी बताया। साथ ही यह दलील भी दी गई कि इस प्रकार की सूचनाएं छात्र और षिक्षक के बीच के पवित्र संबंध को हिंसक बना सकती हैं।
जन सूचना अधिकारी से सूचना ने मिलने पर दीपक फूरिया निराष नहीं हुए। सूचना के अधिकार पर पूर्ण विष्वास के साथ उन्होंने प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास प्रथम अपील दायर की। अपीलीय अधिकारी पेरियास्वामी ने जन सूचना अधिकारी द्वारा दी गईं दलीलों से असहमति जताते हुए उसे निर्देष दिया कि वह आवेदक को मांगी गई सूचनाएं उपलब्ध कराए। इस निर्देष के बाद श्री फूरिया को वह सभी सूचनाएं मिल गई जिन्हें देने से पहले मना कर दिया गया था। गोपनीय मानी जाने वाली जिन सूचनाओं को पहले नहीं दिया जाता था अब वह सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं।


गाजियाबाद नगर निगम ने उड़ाया आरटीआई का मजाक

गाजियाबाद नगर निगम को न तो सूचना के अधिकार की फिक्र है और न ही इस कानून के तहत मांगी गई सूचनाओं की। तभी तो निगम द्वारा न तो नियत समय में जवाब दिया जाता है और न ही मांगी गई सभी सूचनाएं महैया कराई जाती हैं। हैरत की बात तो यह है कि निगम गलत और झूठी सूचनाएं देने से भी नहीं चूकता। निगम के इस रवैये को सूचना के अधिकार कानून का मजाक ही कहा जा सकता है। निगम ने हाल ही में आरटीआई का जवाब एक साल में दिया है, वह भी आधा-अधूरा। यह आधा-अधूरी जवाब भी सूचना आयोग के हस्तक्षेप के बाद दिया गया। निगम की घटिया नागरिक सुविधाओं से त्रस्त होकर शालीमार गार्डन कल्याण समिति ने 23 मई 2007 को आरटीआई दायर की थी। जिसका जवाब करीब एक साल बाद 15 अप्रैल 2008 में दिया गया। समिति ने अपने आवेदन में प्रश्न किया था कि शालीमार गार्डन से संपत्ति कर वसूलने के बदले नगर निगम ने क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध कराईं हैं, इसके लिए कौन अधिकारी उत्तरदायी हैं ? उन्होंने प्रश्न किया कि पिछले पांच वर्षों में यहां की नागरिक सुविधाओं में कितनी राशि खर्च की गई है और अगले 6 महीनों में यहां के लिए क्या योजनाएं हैं ? समिति का आरोप है कि जो सूचनाएं दी गईं हैं वह अधूरी हैं। साथ ही निगम ने अपने एक साल बाद दिए गए जवाब में कहा कि मांगी गई सूचनाएं अभी एकत्र की जा रही हैं। गौरतलब है कि आरटीआई के तहत 30 दिनों में सूचनाएं देने का प्रावधान है।
समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि सूचना न देने के दोषी व्यक्ति पर जुर्माना लगना चाहिए लेकिन जुर्माना लगाया गया है या नहीं इस बारे में उनके पास कोई जानकारी नहीं है। समिति से चेयरमेन प्रदीप गुप्ता ने जन सूचना अधिकारी के अलावा प्रथम अपीलीय अधिकारी पर भी मामले का न निपटाने का आरोप लगाया। साथ ही निगम पर गलत सूचनाएं देने का आरोप भी लगाया।