tag:blogger.com,1999:blog-7141066885956058292024-03-27T13:16:58.640+05:30सूचना का अधिकारआम आदमी का हथियार..Unknownnoreply@blogger.comBlogger330125tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-26349467008775833242012-08-24T15:40:00.002+05:302012-08-24T15:40:25.035+05:30कार फैक्ट्री में रोजगार के लिए निदेशालय से नहीं हुआ संपर्क<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<span class=" transl_class" id="5" title="Click to correct">सिंगूर</span> में टाटा मोटर्स की लखटकिया कार फैक्ट्री के लिए भूमि अधिग्रहण को जायज ठहराते वक्त राज्य सरकार ने कहा था कि इस फैक्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से लोगों को रोजगार प्रदान किया जाएगा। लेकिन हाल ही में राज्य श्रम निदेशालय ने कहा है कि टाटा मोटर्स लिमिटेड ने अब तक फैक्ट्री में रोजगार के लिए हुगली के किसी भी रोजगार कार्यालय को खबर नहीं की <span class=" transl_class" id="3" title="Click to correct">है</span>। <span class=" transl_class" id="4" title="Click to correct">साथ</span> ही आधिकारिक रूप से यह सूचना भी दी गई कि सिंगूर की लघु कार फैक्ट्री में प्रत्यक्ष रूप से बडे़ पैमाने पर रोजगार नहीं दिया जा जाएगा। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत दायर एक कार फैक्ट्री में रोजगार के लिए निदेशालय से नहीं हुआ संपर्क से हुआ हैै। यह अजीZ इंडियन सोसाइटी ऑफ फंडामेंटल एंड हयुमन राइट्स के संयोजक सलिल कापत ने दायर की थी। श्री कापत ने श्रम निदेशालय से अपनी आरटीआई अजीZ में पूछा था कि क्या टाटा मोटर्स लिमिटेड ने निदेशालय से फैक्ट्री में स्थानीय लोगों की नियुक्तियों की प्रक्रिया के संबंध में संपर्क किया है। उन्होंने अपनी अजीZ में निदेशालय से प्रश्न किया कि क्या टाटा मोटर्स ने सिंगूर की लघु कार फैक्ट्री में व्यक्तिगत नियुक्तियों के लिए रोजगार कार्यालयों से संपर्क किया है। श्रम निदेशालय के डिप्टी डायरेक्टर ने अजीZ का जवाब देते हुए कहा है कि टाटा मोटर्स लिमिटेड <span class=" transl_class" id="0" title="Click to correct">ने</span> अब तक हुगली जिले के किसी भी रोजगार कार्यालय में नौकरियों के लिए संपर्क नहीं साधा है। </div>
<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-39898231581200395152011-03-21T12:21:00.000+05:302011-03-21T12:21:05.445+05:30सीबीआई आरटीआई से बाहर होना चाहती है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">सीबीआई ने कार्मिक विभाग से अपील की है कि उसे आरटीआई के दायरे से बाहर कर दिया जाये। इसके पीछे सीबीआई का तर्क है कि आरटीआई के तहत ऐसे आवेदनों की संख्या तेजी से बढ़ी है जिसमें लोग बन्द चुके या कोर्ट में चार्जसीट दाखील हो चुके मामलों की फाईल नोटिंग मांग रहे हैं। इसके कारण सीबीआई की रोजमर्रा के काम पर प्रभाव पड रहा है। साथ ही सीबीआई एक मामला एक फाईल की नीति पर काम करती है। ऐसे में जांच अधिकारी किसी मामले में अपनी बात लिखने से बच रहे है जिससे जांच की निष्पक्षता प्रभावित होती है।</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><div style="text-align: justify;">ऐसा नहीं है कि सीबीआई यह कोशिश पहली बार कर रही हो। आरटीआई क़ानून लागू होने के बाद से ही वह इससे बाहर होने की कोशिश कर रही है। सबसे पहले सीबीआई के पुर्व निदेशक अश्विनी कुमार ने सरकार को पत्रा लिखकर यह मामला उटाया था और अब उनके उत्तराधिकारी ए.पी.सिंहा ने कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर अपील की है कि उन्हें आरटीआई के दायर से बाहर किया जाये। सूत्रों के अनुसार कार्मिक विभाग ने सीबीआई निदेशक के इस अपील पर क़ानून मन्त्रालय से सलाह भी मांगी है।</div></span></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-35827250350613357342011-03-21T12:20:00.003+05:302011-03-21T12:20:34.452+05:30बीएमसी से गायब हुई फाईलें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी होने के साथ साथ अब भूमी और भवन घोटाले की राजधानी भी बनती जा रही है। बृहद मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) के कार्यालय से बान्द्रा, खार और सान्ताक्रुज जैसे इलोकों की 74 बिल्डिंगों की फईले गायब हो गई हैं। इन फाईलों में बिल्डिंग बनाने के लिए दी गई अनुमती से लेकर उनके नक्कशे, कंप्लीशन सर्टिफिकेट और इनमें रह रहे लोगों के पंजीकरण एवं हस्तान्तरण प्रमाण पत्र जैसे महत्वपूर्ण कागजात थें। आरटीआई कार्यकर्ता आफताब सिद्दीकी ने ये सरी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत निकाला है।</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><div style="text-align: justify;">आफताब का कहना है कि जो सूचनाएं मिली उससे पता चला है इन 74 बिल्डिंगों में रहने वाले निवासियों में कौन वैद्य है और कौन अवैद्य इसका पता लगाना बीएमसी के लिए सम्भव नहीं है।</div></span></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-9116428837456536882011-03-21T12:20:00.000+05:302011-03-21T12:20:01.018+05:30बिना मांगे मिलेगा विकास कार्यों का हिसाब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">दिल्ली के लोगों को उनके विधायकों और निगम पार्षदों द्वारा कराये गये विकास कार्यों की जानाकरी बिना मांगे मिलेगी। केन्द्रीया सूचना आयुक्त शैलेष गाँधी ने दिल्ली सरकार और नगर <span id="TRN_39">निगम</span> को आदेश दिया है कि 15 मार्च से पहले दिल्ली के सभी विधायकों और निगम पार्षदों द्वारा उनके फण्ड से कराये गये सभी कार्यों का पूरा विवरण सम्बंधित वार्ड में एक बोर्ड पर लिख कर लगाया जाये।</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><div style="text-align: justify;">शैलेष गाँधी ने इस आदेश में कहा है कि बोर्ड पर सभी कार्यों का नाम, उसके लिए स्वीकत राशि, कार्य आरम्भ और समाप्त होने की तिथि, भुगतान की गई राशि और टेकेदार का नाम आदि अवश्य शामिल हों। साथ ही ये सारी सूचना हिन्दी में होगी और हर साल इसे अपडेट किया जायेगा।</div></span></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-59887096563509437392011-03-21T12:19:00.005+05:302011-03-21T12:19:37.989+05:30पाईप लाईन घोटाला<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">गुजरात के राजकोट ज़िले के विरावल गांव के निवासी रायाभाई जापडीया ने आरटीआई की सहायता से अपने गांव में पीने के पानी की सप्लाई के लिए बिछाई गई पाईप लाईन में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया है। पानी की कमी से जुझा रहे विरावल गांव के लोगों के लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2008 में सराकार ने वहां पाईप लाईन विछाया। लेकिन अधिकारियों और टेकेदार की मिलीभगत से पाईल लाईन सही तरीके से नहीं बिछाई गई। जिसका नुकसान गांव वालों को उटाना पड़ रहा है। रायाभाई ने जून 2008 में ही आरटीआई के तहत इस पाईप लाईन से सम्बंधित सूचनाएं मांगी लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया। जब यह मामला गुजरात सूचना अयोग में गया तो आयोग के आदेश के बाद अधिकारियों की मौजुदगी में रायाभाई ने पूरी परियोजना का निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद पता चला कि सरकारी रिकॉर्ड में तो 2.9 किलो मीटर लिखा था लेकिन वास्तव में सिर्फ 1.5 किलो मीटर ही बिछाई गई। रिकॉर्ड के अनुसार पाईप लाईन की गहराई .90 मीटर होनी चाहिए थी जबकि वास्तव में यह .23 से .55 मीटर तक की थी।रायाभाई ने इसकी शिकायत सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को कर दिया है और उनका कहना है कि आरटीआई से मिली सूचना दोषी अधिकारियों और टेकेदार को दण्ड दिलाने में करगर साबित होगा।</span></div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-4211143923367174692011-03-21T12:19:00.002+05:302011-03-21T12:19:15.759+05:30आरटीआई के जवाब में धमकी मिली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">बाहरी दिल्ली के एक निवासी ने जब सूचना के अधिकार कानून के तहत इण्डियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) से जानकारी मांगी तो उन्हें धमकाया गया। आवेदक ने केन्द्रीय सूचना आयोग से शिकायत कर मामले की जांच कराने की मांग की है। कादीपुर कुशक निवासी विकास कुमार ने इलाके में रसोई गैस की किल्लत को लेकर दो महीने पहले इण्डियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। उन्होंने बताया कि उन पर आवेदन वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाने लगा। आरोप है कि इसके लिए आइओसी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक के कहने पर क्षेत्रीय अधिकारी प्रेम सखूजा ने उससे मिलकर आरटीआई वापस लेने के लिए दबाव बनाया था। लेकिन इसके लिए वह तैयार नहीं हुए। इसके बाद आईओसी द्वारा उन्हें आधी-अधूरी जानकारी देते हुए प्रति पेज दो रुपये के हिसाब से 108 रुपये का ड्राफ्ट जमा कराने को कहा गया। जिसे उन्होंने दो फरवरी को स्पीड पोस्ट के माध्यम से आईओसी को भेज दिया। लेकिन चार फरवरी को उनके मोबाइल पर फोन नंबर 23352390 से एक धमकी भरी काल आई। कॉल करने वाले ने बताया कि वह पुलिस मुख्यालय से बोल रहा है। उक्त व्यक्ति ने कहा कि तुम आरटीआई लगाकर अधिकारियों को ब्लैकमेल करते हो, तुम्हारे खिलाफ यिकायत आई है। अपनी आरटीआई वापस ले लो, वरना पूरी जिन्दगी जेल में कटेगी। उसी दिन 23318508 नंबर से एक फोन इसी सन्दर्भ में आरटीआई लगाने वाले नत्थूपुरा निवासी किशन अत्री के पास भी आया। फोन करने वाले शख्स ने उसे भी धमकाया ओर आरटीआई वापस लेने के लिए कहा। विकास ने बताया कि दोनों नंबरों के बारे में पता करने मालूम हुआ कि दोनों ही फोन नंबर आईटीओ स्थित सेल्स टैक्स के कार्यालय का है। इस बारे में आईओसी के क्षेत्रीय अधिकारी प्रेम सखूजा का कहना था कि उन्होंने आरटीआई वापस लेने के लिए कहा था, ताकि विभाग के अधिकारियों को जवाब देने में समय न बर्बाद करना पड़े। उन्होंने बताया कि उन्होंने आवेदक से मिलकर समस्याओं के निराकरण का आश्वासन भी दिया था, लेकिन आवेदक तैयार नहीं हुए। उन्होंने धमकी देने या दिलवाने की बातों से इंकार किया है।</span></div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-42915617242401477542011-02-04T16:40:00.000+05:302011-02-04T16:40:03.984+05:30अपीलों का जिन्न<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: separate; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span></span></div><div>उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं कि अब हम इन लोक सूचना अधिकारियों का कुछ नहीं कर सकते। यह हताशा सूचना के राज्य के सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने बनारस में सूचना अधिकार पर आधरित कार्यक्रम में व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हरेक आयुक्त 30 से लेकर 100 केस रोज़ाना सुनता है लेकिन इसके बावजूद लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को राज्य सूचना आयोग में जाना पड़ता है। जिससे आयोग का काम लगातार बढ़ता जा रहा है।</div><div>सवाल यह है कि आखिर लोक सूचना अधिकारियों की यह हिम्मत बढ़ाई किसने है? सूचना न देने वाले अधिकारियों पर ज़ुर्माना न लगाना और सूचना आयोग में आम नागरिकों के को डांटना डपटना किसने किया था? इस पर अगर लोक सूचना अधिकारियों का नहीं तो क्या राज्य के आम नागरिकों का हौसला बढे़गा?</div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com44tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-57498362247242216162011-02-04T16:39:00.002+05:302011-02-04T16:39:34.882+05:30रेगिंग में आगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: separate; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span></span></div><div>उत्तर प्रदेश के कालेजों से रैगिंग की सबसे ज्यादा शिकायतें आई हैं। मानव संसाधन मन्त्रालय द्वारा 20 जून 2009 को रैगिंग की शिकायत दर्ज करने के लिए एक हेल्पलाईन शुरू की गई थी। सूचना के अधिकार के तहत सहारनपुर निवासी कुश कालरा द्वारा निकाली जानकारी से पता चलता है कि कुल मिलाकर 658 शिकायतें दर्ज हुई हैं इसमें से सबसे ज्यादा 131 मामले उत्तर प्रदेश से हैं। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल से 86 शिकायतें हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश (65), उड़ीसा (60) और कर्नाटक (31) आते हैं। मणिपुर शायद सबसे दूरस्त है या फिर वहां रैगिंग की प्रवृत्ति कम है। वहां से केवल एक शिकायत दर्ज हुई। </div><div>प्राप्त सूचना से यह भी पता चलता है कि सबसे ज्यादा (333) रैगिंग की शिकायतें इंजीनियरिंग कालेजों से मिलीं। मेडिकल कालेजों से 71 शिकायतें मिलीं। पोलिटेकनिक कालेजों से 59 शिकायतें मिलीं।</div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-19352027213368416832011-02-04T16:38:00.003+05:302011-02-04T16:38:40.795+05:30झारखण्ड सूचना विहीन आयोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: separate; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span></span></div><div>झारखण्ड राज्य सूचना आयोग अपने ही दफ्तर में काम कर रहे अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन और खर्चे की जानकारी देने से बच रहा है। हज़ारीबाग निवासी गणेश कुमार वर्मा (सीटू) ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राज्य सूचना आयोग से पूछा था कि `मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, अवर सचिव को कितना वेतन मिलता है, तथा इनके वेतन, वाहन, ड्राईवर, यात्रा, आवास एवं फोन पर कितना कितना पैसा खर्च हुआ है´। पहले तो आयोग के लोक सूचना अधिकारी ने गणेश वर्मा को चिट्ठी लिखी कि मांगी गई सूचना 953 पृष्ठों में है, अत: 1896 रुपए जमा करके सूचना ले लें। लेकिन जब गणेश वर्मा ने पैसे जमा कराने चाहे तो आयोग के कार्यालय ने पैसे लेने से भी मना कर दिया और आज तक उन्हें सूचना भी नहीं दी गई है। </div><br class="Apple-interchange-newline" /></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-8762440918891097982011-02-04T16:38:00.000+05:302011-02-04T16:38:10.064+05:3020 दिन में नई मार्कशीट<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: separate; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">झारखण्ड में सरायकेला ज़िले की निवासी अनु पाणी ने तमिलनाड़ु के विनायका मिशन विश्विद्यालय से एम.फिल (इतिहास) की परीक्षा दी. अनु ने परीक्षा पास कर ली लेकिन अंक पत्र में उनके पिता का नाम गलत लिखा हुआ था। इसी शिकायत विश्वविद्यालय के जमशेदपुर स्थित अध्ययन केन्द्र से की गई, कोई एक्शन नहीं हुआ, कोलकाता स्थित मुख्य कार्यालय में की तो भी कुछ नहीं हुआ। डेढ़ साल बीतने पर अनु के भाई ए.सी.पाणी ने यूजीसी, विश्वविद्यालय के कुल सचिव तथा परीक्षा नियन्त्रक को पत्र लिखे लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला। हारकर पाणि ने सूचना के अधिकार के तहत यूजीसी तथा एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटीज़ से पूछा कि उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई है। सूचना के अधिकार का आवेदन मिलते ही यूजीसी हरकत में आ गया। उसने तुरन्त विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को नोटिस भेजा। सूचना अधिकार आवेदन दाखिल करने के 20 दिन के अन्दर जमशेदपुर के केन्द्र निदेशक ने अनु और उनके भाई को व्यक्तिगत रूप से बुलाकर नया अंक पत्र सौंपा।</span></span></div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-40566995809221097322011-02-04T16:37:00.002+05:302011-02-04T16:37:37.442+05:30ये है देश का भविष्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: separate; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span></span></div><div>बात शिक्षा पर भाषण देने की हो तो नेता हों या अफसर कोई पीछे नहीं रहेगा लेकिन देश के नेता या अफसर शिक्षा पर कर क्या रहे हैं इसकी बानगी बंगलोर से ली जा सकती है। शहर में नगर निगम के अधीन चल रहे 33 हाई स्कूलों में कुल मिलाकर 379 शिक्षकों की कमी है। कन्नड भाषा के शिक्षकों के 46 पद हैं पर कई साल से केवल 15 लोगों से काम चलाया जा रहा है। तमिल भाषा के 16 पदों में से सिर्फ एक पद पर शिक्षक नियुक्त हैं। `कला शिक्षक´ के 103 पदों में से सिर्फ 46 भरे हैं यानि 67 शिक्षकों की कमी है। भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित विषयों के लिए 92 में से सिर्फ 46 पद भरे हैं, जीव एवं वनस्पति विज्ञान के 27 शिक्षकों में से केवल 16 पद भरे हैं। </div><div>संगीत शिक्षक के 7 पदों में से एक पर भी नियुक्ति नहीं हुई है। ड्राईंग-पेंटिंग के लिए 20 में से 5 पदों पर ही शिक्षक हैं। </div><div>कहते हैं कि देश का भविष्य स्कूल की कक्षाओं में लिखा जाता है। लेकिन जहां तमाम अफसर और नेता भ्रष्टाचार कर अपना भविष्य संवारने में लगे हों वहां भला स्कूलों की चिन्ता कोई करे भी तो क्यों</div><br class="Apple-interchange-newline" /></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-20303965261153022332011-02-04T16:36:00.000+05:302011-02-04T16:36:19.957+05:30नेताजी के साथ मज़ाक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="border-collapse: separate; color: black; font-family: 'Times New Roman'; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: normal; orphans: 2; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFf4WqfFjOULfGVZ56h8ym6K2sFC8L2Q_qlqlT-A-R3XCOae8LeJkHTDN9GttUdWsU-Bh688hB6l7iuDmq7pVU_zgVfb5S6izwE_dT_J_RmdjubR_qa0XpYCPzkSvhWooftLhbrDKvDOCs/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFf4WqfFjOULfGVZ56h8ym6K2sFC8L2Q_qlqlT-A-R3XCOae8LeJkHTDN9GttUdWsU-Bh688hB6l7iuDmq7pVU_zgVfb5S6izwE_dT_J_RmdjubR_qa0XpYCPzkSvhWooftLhbrDKvDOCs/s1600/images.jpg" /></a></div><div>रक्षा मन्त्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उसने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के `आज़ाद हिन्द फौज´ के इतिहास पर आधारित 60 साल पुरानी पुस्तक की पाण्डुलिपि उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। 23 जनवरी को जब देश नेताजी का 115 वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहा था, उसी सप्ताह में रक्षा मन्त्रालय ने तर्क दिया कि वह इस किताब को प्रकाशित करना चाहता है और इसे सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् कराने से `राज्य के आर्थिक हित को नुकसान पहुंचेगा। अत: यह सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् नहीं कराई जा सकती।</div><div>मामला आरटीआई आवेदक अनुज धर और चन्द्रचूढ़ घोष की ओर से दायर आरटीआई आवेदन से संबिन्ध्त है जिन्होंने पी.सी. गुप्ता की ओर से आज़ाद हिन्द फौज के इतिहास पर सरकार की ओर से लिखवाई पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति की मांग की थी। </div><div>आवेदकों ने सूचना आयोग में शपथ पत्र दिया था कि वे इस पाण्डुलिपि का कोई कमर्शियल उपयोग नहीं करेंगे। इसके बाद केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम.एल. शर्मा ने रक्षा मन्त्रालय को पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। लेकिन यह आदेश मिलते ही अचानक 60 साल बाद रक्षा मन्त्रालय का इस पुस्तक से आर्थिक प्रेम जाग गया है और उससे अदालत में गुहार लगाई है कि उसे बचाया जाए।</div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-61635632383935262252011-01-27T17:13:00.002+05:302011-02-18T18:18:32.830+05:30चोरी भी और सीनाज़ोरी भी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: small;"><b>एक और विसिल ब्लोअर को दबाने कि कोशिश </b></span></div><table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCcP47tU0pHSig380RC_BqMTtS52Jb_x541NicMSptmfTHA97MLRkpWF5NwRsJ53y1YKrvV4-f6dcGsGAEQXPPsGKqunFaNu79yR1Iyq79ol0hFVlwGc0D5Mep4z3oDIWg0tdx7MO7iuxa/s1600/satish+kumar.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCcP47tU0pHSig380RC_BqMTtS52Jb_x541NicMSptmfTHA97MLRkpWF5NwRsJ53y1YKrvV4-f6dcGsGAEQXPPsGKqunFaNu79yR1Iyq79ol0hFVlwGc0D5Mep4z3oDIWg0tdx7MO7iuxa/s320/satish+kumar.JPG" width="169" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">सतीश कुमार </td></tr>
</tbody></table><div style="text-align: justify;">दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टीच्युट ऑफ होम इकोनोमिक्स में एक नया घोटाला सामने आया है। कॉलेज बिल्डिंग को किराये पर देकर उससे होने वाली आमदनी कॉलेज की देखरेख कर रहे ट्रस्ट ने अपने खाते में जमा करा लिया। इस घोटाले का खुलासा किया है कॉलेज के ही एक लेब अस्सिसटेंट सतीश कुमार ने। सतीश ने कॉलेज प्रशासन से आरटीआई के तहत कॉलेज परिसर में किराये पर चल रहे एक निजी संस्थान के सम्बंध् में सूचना मांगी। </div><div style="text-align: justify;">आरटीआई के तहत मिली सूचना से पता चला है कि वर्ष 1999 में कॉलेज परिसर का एक हिस्सा एक निजी संस्था नेशनल इंस्टीच्युट ऑफ फैशन डिजाइन (एनआईएफडी) को किराये पर दिया गया। पहले तो किराये के रूप में कॉलेज को हर महीने 1 लाख रूपये की राशि मिलती रही। लेकिन बाद में एनआईएफडी ने कॉलेज का कुछ और हिस्सा भी किराये पर ले लिया, जिससे किराया हर महीने 1.70 लाख रफपया हो गया। किराये से होने वाली यह आमदनी कॉलेज के खाते में न जाकर कॉलेज चला रहे ट्रस्ट के खाते जा रहा है।</div><div style="text-align: justify;">सतीश ने कॉलेज से मिली इस सूचना के आधार पर यूजीसी से आरटीआई के तहत इंस्टीच्युट ऑफ होम इकोनोमिक्स द्वारा जमा किये गये वार्षिक रिपोर्टों की प्रति भी मांगी। वार्षिक रिपोर्ट से पता चला कि कॉलेज ने कभी भी किराये से होने वाली लाखों की कमाई का जिक्र उसमें किया ही नहीं। सतीश का कहना है कि मेरे आरटीआई आवेदन का यह असर तो हुआ है कि आवेदन करने के कुछ ही घंटो के भीतर कॉलेज परिसर से एनआईएफडी के बोर्ड हटा दिये गये। लेकिन साथ ही मुझे बार बार धमकी दी जा रही है कि इस मामले को आगे ना बढाये नहीं तो नौकरी से निकाल दिया जयेगा। पूर्व प्रधनाध्यपिका एस.मलहान ने मुझे बुलाकर ऑफर दिया कि जितना पैसा चाहिए ले लो लेकिन मामले को यहीं खत्म करो। <br />
<a name='more'></a></div><div style="text-align: justify;">सतीश का कहना है कि यूजीसी के नियमों के अनुसार कॉलेज को किराये से होने वाली आमदमी अपने वार्षिक रिर्पोट में दिखाना पड़ता है क्योंकि यह कॉलेज के लिए आय का श्रोत होता है। जब इस पूरे मामले की शिकायत दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपती और यूजीसी से की गई तो वो इसकी जांच कराने की जगह कॉलेज का बचाव करने में जुट गये। सतीश बताते है कि जो शिकायत उन्होंने कुलपती और यूजीसी से की थी उसे कॉलेज के ही प्रधनाध्यापक के पास जांच के लिए भेज दिया गया। बाद में कुलपती कार्यलाय और यूजीसी दोनों ही जगह से उन्हें बताया गया कि चूंकि कॉलेज भवन के निर्माण में ट्रस्ट का आधा पैसा लगा है इसलिए ट्रस्ट किराये से होने वाली आमदनी का उपयोग कर सकता है। </div><div style="text-align: justify;">यूजीसी और कुलपती के इस जवाब से निराश सतीश ने इसकी शिकायत अब सीवीसी और मानव संसाधन मन्त्रालस से किया है। सतीश कहते है ``मैंने तो यह लड़ाई यह सोचकर शुरू की थी कि जिस पैसे का उपयोग छात्रों के हित के लिए किया जाना चाहिए वो कुछ लोगों के स्वार्थपूर्ति के लिए किया जा रहा है। पिछले 11 वर्षों में 3 करोड़ से ज्यादा राशि का गबन किया जा चुका है और अगर तुरन्त कोई कार्यवाई नहीं की गई तो यह राशि बढती ही जा रही है। मुझे अपनी नौकरी की चिन्ता के साथ इस बात की ज्यादा चिन्ता है कि अगर इस मामले में कार्यवाई नही हुई तो आगे कोई और इस तरह के भ्रष्टाचार को सामने लाने की हिम्मत नहीं करेगा। मैं पाठकों से यह अपील करना चाहता हुं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लडाई में मेरा साथ दें ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाई हो सके।´´<br />
<br />
</div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-90930481244704857612011-01-01T15:08:00.003+05:302011-01-02T08:05:14.502+05:30न्यायालय के रजिस्ट्रार पर जुर्माना<span class="Apple-style-span" style="border-collapse: collapse; font-family: arial,sans-serif; line-height: normal;"></span><br />
<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;">आरटीआई के तहत सही समय पर सूचना नहीं देने के कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सहायक रजिस्ट्रार मो. इस्तियाक के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने 25000 रफपये का जुर्माना लगाया है। राज्य सूचना आयुक्त विरेन्द्र सक्सेना ने अजय पोइया के अपील पर सुनवाई के बाद मो. इस्तियाक पर यह जुर्माना लगाया है। अजय पोइया ने एडीशनल चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट भगवान सिंह जब मथुरा में तैनात थें उस समय उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के सम्बंध् में सूचना मांगी थी। जब मामला सूचना आयोग में पहुंचा तो मो. इस्तियाक ने सूचना देने के लिए 40 दिनों का समय मांगा, जिसे आयोग ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद भी अजय को सूचना नहीं दी गई। सूचना आयुक्त विरेन्द्र सक्सेना ने इसे घोर लापरवाही मानते हुए मो. इस्तियाक के खिलाफ 25000 रुपए का जुर्माना लगा दिया। जुर्माने की राशि मो. इस्तियाक के वेतन से काटी जायेगी। सूचना आयुक्त ने यह भी कहा है कि अगली सुनवाई तक सूचना नहीं उपलब्ध् कराने की स्थिति में मो. इस्तियाक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाई का अदेश भी दिया जा सकता है।</span></div><div style="font-size: 13px; text-align: justify;"><br />
</div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-19418974054746519902010-12-31T14:27:00.001+05:302011-01-02T08:01:39.322+05:30महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की झूठ की पोल खुली<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi69GSMMUizbtboNM_yiMfVW3TtavA_1-KFblJ_yLQCYJA7lAOpJI2b2AGYPZuyDN1skW4MNkT2DGWAJQaLhAVxj-7VTpNpAY7F52T5SaoXEajAuJsNeqVTxzH6aGgIvB4xVL3uHs07GozK/s1600/Kripashankar_Singh.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="154" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi69GSMMUizbtboNM_yiMfVW3TtavA_1-KFblJ_yLQCYJA7lAOpJI2b2AGYPZuyDN1skW4MNkT2DGWAJQaLhAVxj-7VTpNpAY7F52T5SaoXEajAuJsNeqVTxzH6aGgIvB4xVL3uHs07GozK/s200/Kripashankar_Singh.jpg" width="200" /></a></div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: justify;">महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह पिछले कुछ महीनों से किसी न किसी कारण से लगातार विवादों में घिरे रहे हैं। अब नया विवाद यह है कि उन्होंने अपने चुनाव घोषणा पत्र में गलत जानकारी दी है। इंटर की परीक्षा में फेल होने के बावजूद अपने चुनाव घोषणा पत्र में उन्होंने बताया है कि वो स्नातक हैं। इस बात का खुलासा हुआ है सूचना के अधिकार से। </div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: justify;">कृपाशंकर सिंह ने 1994 और 1999 के विधानसभा चुनावों में दिये गये घोषणा पत्र में बताया है कि उन्होंने विज्ञान से स्नातक किया है लेकिन 2004 के चुनाव के दौरान दिये गये घोषणा पत्र में कहा है कि उन्होंने 1969 में जय हिन्द इंटर कॉलेज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश से इंटर पास करने के बाद आगे पढ़ाई नहीं की। आरटीआई कार्यकता संजय तिवारी ने जब जय हिन्द इंटर कॉलेज के लोक सूचना अधिकारी से इस सम्बंध् में सूचना मांगी तो उन्हें बताया गया कि कॉलेज के रिकॉर्ड के अनुसार कृपाशंकर सिंह इंटर की परीक्षा में फेल हैं।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-26270265619897280022010-12-31T14:21:00.004+05:302010-12-31T14:25:06.372+05:30कुल कितने भ्रष्ट?<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"></span><br />
<div>आर्मी ने भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे अधिकारियों से सम्बंधित सूचना आरटीआई के तहत देने से मना कर दिया है। एक आवेदक ने आरटीआई के तहत आर्मी से सूचना मांगी थी कि ब्रिग्रेडियर और उससे ऊपर के उन अधिकारीयों का विवरण दें जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के अरोपों की जांच चल रही है या पूरी हो चुकी हो। आर्मी ने सूचना देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि मांगी गई जानकारी को इतना ज्यादा है कि उसे इक्ट्ठा करना सम्भव नहीं है। साथ ही लोक सूचना अधिकारी का यह भी कहना है कि भ्रष्टाचार के अरोपों से घिरे अधिकारीयों की सूचना से किसी तरह का जनहित नहीं जुड़ा है इसलिए भी यह सूचना नहीं दी जा सकती है। </div><div><br />
</div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-61119735765089046482010-12-31T13:53:00.000+05:302010-12-31T13:53:26.619+05:30एम्स: 70 सीटें खाली पडी हैं<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh69AaSrFzviqNelWK2UV0wntyJtWePVF6V1HREy3RGN3Ozf3Z19q0JxLx9rvPJruDw7282rq6jXwg1Z59IRwr4hfP666aRHh2b_rbZGXMEHp-Y6nskVwBmnlhJj6YxGkf9sFgL2lXSxfeb/s1600/AIIMS.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="162" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh69AaSrFzviqNelWK2UV0wntyJtWePVF6V1HREy3RGN3Ozf3Z19q0JxLx9rvPJruDw7282rq6jXwg1Z59IRwr4hfP666aRHh2b_rbZGXMEHp-Y6nskVwBmnlhJj6YxGkf9sFgL2lXSxfeb/s200/AIIMS.jpg" width="200" /></a></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">इस वर्ष एम्स के पी.जी. कोर्स में प्रवेश लेने वाले लगभग 30% छात्र बीच सत्र में नामांकन रद्द करा कर किसी और संस्था में चले गये। जिसके कारण इस हाई प्रोफाइल संस्था की 70 सीटें खाली रह गईं। सूचना के अधिकार के तहत यह जाकारी एम्स प्रशासन ने दी है। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">पिछले तीन सालों में 138 छात्रों ने एम्स का पी.जी. कोर्स प्रवेश लेने के बाद छोड़ा है। 2010 में 240 छात्रों ने प्रवेश लिया जिसमें से 70 छोड़ कर चले गये। 2009 में 180 में से 37 और 2008 में 160 में से 31 छात्रों ने एम्स छोड़ कर किसी और संस्था में प्रवेश लिया। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">इतनी सीटें खाली रहने के बावजूद भी इस वर्ष जुलाई में एम्स प्रशासन ने बिना कोई कारण बताये ओपन काउंसलिंग पर रोक लगा दिया। अब कोई एम्स प्रशासन से यह पूछे कि उनके इस फैसले से करदाताओं का जो लाखों रूपया बर्बाद हो रहा उसकी भरपाई कौन करेगा?</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-87893821041767609282010-12-22T14:26:00.001+05:302010-12-22T15:07:57.197+05:30सूचना अधिकार इस्तेमाल करने वालों को समाज का सलाम<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCOGp29_KkcCpCGoOeuC6GH_YP8Wo2kqfAJhI6uefRwK8rWJRymUEkpTkMhLEd65vFnW0-RylQ4Fn2fRBHLZv_t4RbWnqw2eV-z4HwQZOZsxoGyAS699bFc7G0fkNxgi_-T9mjuBwb94Mq/s1600/rti_new_logo.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCOGp29_KkcCpCGoOeuC6GH_YP8Wo2kqfAJhI6uefRwK8rWJRymUEkpTkMhLEd65vFnW0-RylQ4Fn2fRBHLZv_t4RbWnqw2eV-z4HwQZOZsxoGyAS699bFc7G0fkNxgi_-T9mjuBwb94Mq/s200/rti_new_logo.png" width="111" /></a></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">दूसरे राष्ट्रीय सूचना के अधिकार पुरस्कार के लिए पांच नागरिक ऐसे नागरिकों को चुना गया है जिन्होंने सूचना के अधिकार के तहत न सिर्फ सूचनाएं निकलवाईं बल्कि उन पर आगे काम भी किया। इसके अलावा लोकसूचना अधिकारी की श्रेणी में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के ब्लॉक डवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) प्रदीप कुमार को पुरस्कृत किया जाएगा। उन्होंने लोक सूचना अधिकारी रहते तमाम आवेदनों के सही और पूरी सूचना आवेदकों को उपलब्ध् कराई। उनके पास सूचना मांगने वाले आवेदकों में से सिर्फ एक आवेदक को प्रथम अपील तक जाना पड़ा था।</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">इस बार सूचना अधिकार का इस्तेमाल कर अपने अखबार-पत्रिकाओं के लिए खोजी पत्रकारिता करने वाले वाले पत्रकारों के लिए भी पुरस्कार रखा गया है। आउटलुक पत्रिका के पत्रकार सैकत दत्ता को ज्यूरी ने इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। सैकत दत्ता ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ 2500 करोड़ के चावल निर्यात घोटाले का पर्दाफाश किया बल्कि उसके पीछे लगकर इसे मुकाम तक पहुंचाया। आज इसका साज़िशकर्ता जेल में है और मामले की सीबीआई जांच चल रही है। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiS2TIy6C9HT25ikO6gUnnk23EKln5PouMUcD4CFd2mDhqYHKhXjvoohyphenhyphenmUtES69_K_LjCSYQZmmx7HmerleTMaiKZgdhZGDRLtcmh9JErx9P5m9Y73cD_2x8o8PT0r6arS2__tCQnw-xZY/s1600/jury_ad.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="148" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiS2TIy6C9HT25ikO6gUnnk23EKln5PouMUcD4CFd2mDhqYHKhXjvoohyphenhyphenmUtES69_K_LjCSYQZmmx7HmerleTMaiKZgdhZGDRLtcmh9JErx9P5m9Y73cD_2x8o8PT0r6arS2__tCQnw-xZY/s320/jury_ad.jpg" width="320" /></a>इसके अलावा ज्यूरी ने दस ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी नागरिक सम्मान देने का फैसला लिया जिनके लोग पिछले दिनों इसलिए मारे गए क्योंकि वे सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। इन सब लोगों के परिवारों को सम्मान के साथ साथ एक-एक लाख रुपए की राशि भी भेंट की जाएगी। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;"><br />
</div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: justify;"><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><b>इन्हें मिलेगा सम्मान </b></span></div><div style="font-size: 14px;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: #cc0000;"><u>नागरिक श्रेणी</u></span></b></div><div style="font-size: 14px;"><u>विनीता कामटे, महाराष्ट्र</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>मनोज करवार्सा , हरियाणा</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>रमेश वर्मा, हरियाणा</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>राजन घटे, गोवा</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>अतहर शम्सी, उत्तर प्रदेश</u></div><div style="font-size: 14px;"><br />
</div><div style="font-size: 14px;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: #cc0000;"><u>पत्रकार श्रेणी</u></span></b></div><div style="font-size: 14px;"><u>सैकत दत्ता, आउटलुक पत्रिका</u></div><div style="font-size: 14px;"><br />
</div><div style="font-size: 14px;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: #cc0000;"><u>पीआईओ श्रेणी </u></span></b></div><div style="font-size: 14px;"><u>प्रदीप कुमार, बीडीओ, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश</u></div><div style="font-size: 14px;"><br />
</div><div style="font-size: 14px;"><span class="Apple-style-span" style="color: #cc0000;"><b><u>विशेष सम्मान मरणोपरान्त </u></b></span></div><div style="font-size: 14px;"><u>अमित जेठवा, गुजरात</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>दत्ता पाटिल, महाराष्ट्र </u></div><div style="font-size: 14px;"><u>सतीश शेट्टी, महाराष्ट्र</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>विट्ठल गिटे, महाराष्ट्र</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>सोला रंगा राव, आंध्र प्रदेश</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>शशिधर मिश्रा, बिहार</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>बिसराम लक्ष्मण, गुजरात</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>वेंकटेश , कर्नाटक</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>ललित मेहता, झारखण्ड</u></div><div style="font-size: 14px;"><u>कामेश्वर यादव, झारखण्ड</u></div><div style="font-size: 14px;"><br />
</div></div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-85461339787990321952010-12-17T13:52:00.000+05:302010-12-17T13:52:31.246+05:30सोने के नहीं होते स्वर्ण पदककॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर सूचना मांगने के कई आवेदन डाले गए. इनमें से बहुत से आवेदनों को तो अफसर इधर से उधर भेज रहे हैं. आयोजन समिति के पास दाखिल एक आवेदन के पहले खेल मंत्रालय भेज दिया जाता है. खेल मंत्रालय वापस इसे आयोजन समिति को भेज रहा है. चूहे बिल्ली के इस खेल के बाद भी कुछ सूचना निकल कर सामने आ रही है जिस पर आगे जांच किए जाने की ज़रूरत है. जैसे - <br />
<br />
<b>चिकित्सा: 15 दिन में 15 करोड़ खर्च <br />
</b>- कॉमनवेल्थ गेम्स में एक चिकित्सा केंद्र बनाया गया था. यहां कुल 3665 लोगों को चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई और इस पर कुल 14,99,79,200 रुपया खर्च किया गया. यानि 15 दिन चले सेंटर पर प्रति मरीज़ पर करीब 50 हज़ार रुपए खर्च हुए. इनमें से 46 मरीजों को जीबी पंत अस्पताल में भी रैफर किया गया. 15 दिन में हुए इस खर्चे का हिसाब भी निकाला जाना चाहिए. मरीजों को देखे जाने के रजिस्टर को भी देखना होगा.<br />
<br />
- आयोजन समिति का कहना है कि खेलों के उदघाटन व समापन समारोह पर अलग अलग खर्च बताना संभव नहीं है लेकिन दोनों समारोहों पर कुल 225 करोड़ 43 लाख रुपए खर्च हुए. <br />
<br />
<b>सोने के नहीं होते स्वर्ण पदक<br />
</b>- इसी तरह अगर आप सोच रहे हैं कि खेलों में सोने के तमगे वाकई सोने के होतें हैं तो आपकी जानकारी इस खबर को पढ़कर बढ़ सकती है. कॉमनवेल्थ के दौरान सोने के पदक 5539 रुपए में और चांदी के पदक 4800 रुपए में खरीदे गए. वैसे कुल मिलाकर सोने चांदी और कांस्य के पदकों की खरीद पर 81 लाख रुपए खर्च किए गए.Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-53306747122424162722010-12-17T13:49:00.002+05:302010-12-17T13:54:25.314+05:30शुंगलू समिति के पास कोई अधिकार नहीं<div style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री कार्यालय ने मान लिया है कि कॉमनवेल्थ में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए जो शुंगलू कमेटी बनाइ गई उसका अधिकार और कार्यक्षेत्र तय नहीं है. देश भर में मचे हो हल्ले के बाद प्रधानमंत्री ने बड़े जोर शोर से शुंगलू कमेटी के गठन का ऐलान किया था. लेकिन अभी तक उसका अधिकार और कार्य क्षेत्र तय नहीं है. सूचना के अधिकार कानून के तहत दाखिल एक आवेदन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय से जो जवाब मिला है उसकी फाईल नोटिंग्स से यह खुलासा हुआ है. फाईल नोटिंग्स में लिखा है कि इस बारे में अभी केबिनेट सचिव से सलाह मांगी गई है. फाईल नोटिंग में आगे लिखा गया है कि इस समिति को सीबीआई, सीवीसी, ईडी. या सीएजी. को अधिकार एवं ताकत देने वाले कानूनों से भी कोई अधिकार नहीं प्राप्त है. </div>ऐसे में यह समिति देश की आंख में जांच की धूल झोंकने के अलावा क्या काम कर सकती है.<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjp3KXDcy4QJeZ08c5qBRoDj6ByyA5wB96MYSHsb1qch1R52bifiQopdRf3g0yZ0op0haOvCF89er1bI_DT_sydJcpS4cHVshlBxF5YY78gktcjHI8VvUnL6TAxCjWHyv3XPZ11J_J1VjFB/s1600/file+notings+page+2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><br />
</a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3W6Os3sU84y247Qx084ozb5bGhsZxw05mdlC9H4TazDILr98WdbpYLwvuscsOKm9wjeJXul_Jmyaa2L0wqXfM_v68oA82VgqQGcLKp32XfrjwLMZHbvt4ASoXUTBKq7cnAHdE1tBptN_R/s1600/page+2.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="137" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3W6Os3sU84y247Qx084ozb5bGhsZxw05mdlC9H4TazDILr98WdbpYLwvuscsOKm9wjeJXul_Jmyaa2L0wqXfM_v68oA82VgqQGcLKp32XfrjwLMZHbvt4ASoXUTBKq7cnAHdE1tBptN_R/s320/page+2.png" width="320" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUDHp1QYD1IwmKcl665l-nlByPHerD0m6mV9WZZjgwifkqHsk88RBy5xwyLPSV3iaNtvJ_Mbws2O1UMSiNrGmTNcL9nR9RLb_cVuE0_GFVETGhqIvXs5enVEgLRX2gg5yoDW2LoCU5Kswx/s1600/file+notings+page+6.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="175" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUDHp1QYD1IwmKcl665l-nlByPHerD0m6mV9WZZjgwifkqHsk88RBy5xwyLPSV3iaNtvJ_Mbws2O1UMSiNrGmTNcL9nR9RLb_cVuE0_GFVETGhqIvXs5enVEgLRX2gg5yoDW2LoCU5Kswx/s320/file+notings+page+6.png" width="320" /></a></div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-40181281882862475242010-12-09T13:30:00.000+05:302010-12-09T13:30:00.533+05:30पांच सालों में कहां पहुंचा है सूचना का अधिकार !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9Y76zK7h95WLndDxkgYRWooMCm1hSGAeZsBUP2Qi6_7mUexo_ZfWYRxCBDrAnujpTPtRRP8tu6mVs42TLnkK3JxirdIDiNv6QWampa5zBTk_zjmywrskIgxjKL4AG1IHer5rZo-rQ0Lyf/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9Y76zK7h95WLndDxkgYRWooMCm1hSGAeZsBUP2Qi6_7mUexo_ZfWYRxCBDrAnujpTPtRRP8tu6mVs42TLnkK3JxirdIDiNv6QWampa5zBTk_zjmywrskIgxjKL4AG1IHer5rZo-rQ0Lyf/s1600/1.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;">सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को लागू हुए पांच साल हो चुके हैं। पिछले पांच सालों में इस कानून का लाभ खेत में काम करने वाले किसान से लेकर सत्ता के गलियारे में बैठे बडे बडे नेताओं और अधिकारियों सभी ने अपने अपने तरीके उठाया है। आरटीआई का इस्तेमाल करके जहां एक ओर लोगों ने अपने राशन कार्ड और पासपोर्ट बिना रिश्वत दिये बनवाये वहीं दूसरी ओर कॉमनवेल्थ गेम और आदर्श सोसाइटी जैसे बडे घोटालों का भांड़ाफोड भी किया। लेकिन ऐसा नहीं है कि आरटीआई के इस्तेमाल करने वालो को केवल सफलता ही मिल रही है। पांच सालों में कई ऐसे मौके आये है जब कभी सरकार की ओर से कानून में संशोधन करके इसे कमजोर करने की कोशिश की गई तो कभी जिन लोगों का भाण्डाफोड हुआ उन्होंने आरटीआई इस्तेमाल करने वाले लोगों को धमका कर रोकने की कोशिश की और जब वो नहीं माने तो हत्या तक करवा दी। इसी साल पीछले ग्यारह महिनों 10 से भी ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।</div><a name='more'></a><br />
<div style="text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJd_s9abHhtGDNwbDi1tjZIwZhlxKcmk_6WDtCM0wq9vLDgRdKRnjLBWKQbJW9BJwZt8PF-wsnWliaT9gzTyzFmFBVY4F45BAAbXZBZ2YhXyZyU4-Jq1B5OwhX3RJMB1lFMFL6rPYXn1q2/s1600/2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJd_s9abHhtGDNwbDi1tjZIwZhlxKcmk_6WDtCM0wq9vLDgRdKRnjLBWKQbJW9BJwZt8PF-wsnWliaT9gzTyzFmFBVY4F45BAAbXZBZ2YhXyZyU4-Jq1B5OwhX3RJMB1lFMFL6rPYXn1q2/s1600/2.jpg" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj15rt9wRbmKKRiNz1SRlrT3f1Q9_NnrLnqdTT3jWAQ4s13J4L5_dGQ6e8zmuFatWSFU2C5djDTWyiHuKoSsaVDJ3_3xU1-KUTGs6TAvd-TqH4rXahMEybafx4y9mC1RNXFbvFXm67IUXDk/s1600/3.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj15rt9wRbmKKRiNz1SRlrT3f1Q9_NnrLnqdTT3jWAQ4s13J4L5_dGQ6e8zmuFatWSFU2C5djDTWyiHuKoSsaVDJ3_3xU1-KUTGs6TAvd-TqH4rXahMEybafx4y9mC1RNXFbvFXm67IUXDk/s1600/3.jpg" /></a>आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हो रहे इन हमलो के बावजुद भी पांच साल के छोटे से समय में यह कानून आम जनता में जितना लोकप्रिय हुआ है शायद ही कोई और कानून इसकी बराबरी कर सके। आरटीआई की इस लोकप्रियता और इसके इस्तेमाल में आ रही समस्याओं को जानने समझने के लिए अपना पन्ना (स्वराज एवं सुचना का अधिकार पर मासिक पत्रिका) के पाठकों के बीच एक सर्वे कराया गया। इस सर्वे में कुछ चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। जैसे कि 54% लोगों का कहना है कि उन्हे सूचना के अधिकार कानून के बारे में समाचार पत्र/पत्रिका से पता चला, वहीं 9% को टेलीविज़न और इतने ही लोगों को रेडिय के माध्यम से पता चला। जबकि 13% को किसी स्वयं सेवी संस्था और इतने लोगों को उनके मित्रों या जानने वालों से आरटीआई के बारे में जनकारी मिली। इससे यह तो साफ हो जाता है कि आरटीआई के प्रचार प्रसार में अखबारों और न्यूज़ चैनलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।</div><div style="text-align: justify;">सर्वे में एक और महत्वपूर्ण बात यह निकल कर आई है कि सिर्फ 15% मामलों में ही लोक सूचना अधिकारी कानून के तहत तय समय सीमा में जबाव दे रहे हैं, 55% लोगों को सूचना मिलने में 30 दिनों से ज्यादा समय लगा तो 9% को 60 <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNSbics8ixUeJFP74ja_p84aWmkfBiaeRQALoKGd_5YyG6mTQDvzJxN2VRHRkRIbNbqY-8OIeO7j7ceZAvPg0tgkFKQsAZevncWzrljCSVa14bcG7cfrWpNsKYcfg8ikqyJUqsDXSU-TYx/s1600/4.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNSbics8ixUeJFP74ja_p84aWmkfBiaeRQALoKGd_5YyG6mTQDvzJxN2VRHRkRIbNbqY-8OIeO7j7ceZAvPg0tgkFKQsAZevncWzrljCSVa14bcG7cfrWpNsKYcfg8ikqyJUqsDXSU-TYx/s1600/4.jpg" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjssRJMveq8C5AirD5SSzvZDPcdIuiTIdZeNP_82hXK0aJfNx7elgIcxGhaUXk4bd7v3LwftIdINESwaeA50IhyphenhyphendPtjRIHmJDtFIsd3Gkaz5M6uReXPx84Fjik5atTGMza7H6tRgMvlyM5_/s1600/5.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjssRJMveq8C5AirD5SSzvZDPcdIuiTIdZeNP_82hXK0aJfNx7elgIcxGhaUXk4bd7v3LwftIdINESwaeA50IhyphenhyphendPtjRIHmJDtFIsd3Gkaz5M6uReXPx84Fjik5atTGMza7H6tRgMvlyM5_/s1600/5.jpg" /></a>दिनों से ज्यादा। जबकि 1% को एक वर्ष से ज्यादा समय तक इन्तजार करना पडा वहीं 19% को तो कभी कोई सूचना मिली ही नहीं। इस सर्वे से पारदर्शिता और सुशासन के नाम पर राज कर रही सरकारों की कथनी और करनी में जो अन्तर है वो भी साफ साफ पता चला है। जिन 15% मामलों में 30 दिनों के अन्दर जवाब मिला है उनमें से 76% मामलों में आधी अधूरी सूचना दी गई।</div><div style="text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaaO-4Ozd13otAL9qIskgAOnG-XNwoYjjQzR9PwFM5QNzyldFjnaYZbIU2ctY5Ow9UOMQnCRkouROV4mg4ZCcEUBTa8606NbbJCM4Mx2Kf9JlCg92nYox2hSBKvmoVYi6_OxT9IsdFp6wV/s1600/6.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiaaO-4Ozd13otAL9qIskgAOnG-XNwoYjjQzR9PwFM5QNzyldFjnaYZbIU2ctY5Ow9UOMQnCRkouROV4mg4ZCcEUBTa8606NbbJCM4Mx2Kf9JlCg92nYox2hSBKvmoVYi6_OxT9IsdFp6wV/s1600/6.jpg" /></a>सर्वे के परिणाम से दो बाते तो बिल्कुल साफ होती हैं एक तरफ जहां आम जनता आरटीआई कानून की मद्द से भ्रष्टाचार पर कारगर तरीके से नकेल कसने का प्रयास कर रही है तो दूसरी तरफ सरकार में बैठे भ्रष्ट अधिकारी, नेता और ठेकदार मिल कर कानून की धार को कुन्द करने की हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह है कि जीत किसकी होती है।</div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-25545564136611540232010-12-09T11:33:00.000+05:302010-12-09T11:33:58.187+05:301992 से अब तक हुए बड़े घोटाले<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrXN2fzd9WLU8dVyR-vjGeRHP1h-AP43faIXCtxQo0WXFuGQMkIu4srda0McMwwQurj6p2tSpJroSUUDzsZD8PUpXsZhyelaEwXEkmo-IlsNV5S1tEkdOGEvkPgmhB1lxLDhb17S5VDRyf/s1600/corruption+in+india.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrXN2fzd9WLU8dVyR-vjGeRHP1h-AP43faIXCtxQo0WXFuGQMkIu4srda0McMwwQurj6p2tSpJroSUUDzsZD8PUpXsZhyelaEwXEkmo-IlsNV5S1tEkdOGEvkPgmhB1lxLDhb17S5VDRyf/s400/corruption+in+india.jpg" width="350" /></a></div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><br />
</span></b></div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भ्रष्टाचार का समाधान</span></b></div><div style="font-family: arial; line-height: 25px; text-align: right;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-small;">-मनीष सिसोदिया</span></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">ऊपर दिए गए घोटालों की यह लिस्ट और भी बढ़ाई जा सकती है। और हम सब जानते हैं कि यह बहुत लंबी है। लेकिन यहां मकसद वह सब दोहराना नहीं बल्कि समाधान पर विचार करना है। दरअसल जैसे ही कोई घोटाला सामने आता है तो कुछ जुमले चल निकलते हैं यथा- भारत घोटालों का लोकतन्त्र बन चुका है, भ्रष्टाचार हमारा सामाजिक चरित्र बन चुका है... 'सब के सब चोर हैं'... 'इस देश का कुछ नहीं हो सकता'... 'हर आदमी अपने अपने स्तर पर चोर है'... 'तभी तो चोर नेता चुने जाते हैं'... आदि आदि... और इन सबके बीच असली मुद्दा दबा दिया जाता है कि मर्ज की दवा क्या है। वस्तुत: तो इस शोर में यह सवाल भी दब जाता है कि मर्ज क्या है।</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">मर्ज और दवा की बात करें तो भ्रष्टाचार की घटना के मूल में जाकर विश्लेषण करना पड़ेगा. भ्रष्टाचार को लेकर हमारे देश में दो कारण चर्चा में बने रहते हैं- </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"><ul><li style="text-align: justify;">व्यवस्था यानि शासन में खामी है: देश के तमाम नेता, अफसर भ्रष्ट हो गए हैं, और इनके साथ साथ जज, वकील और पत्रकार भी भ्रष्ट हो गए हैं अत: किसी का कुछ नहीं बिगड़ता।</li>
<li style="text-align: justify;">व्यक्ति में खामी है: देश का लगभग हर आदमी अपने कार्य व्यवहार में ईमानदारी नहीं बरत रहा जिसे आचरण या चरित्र कहकर समझाया जाता है। </li>
</ul></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">आज़ादी के बाद जितने भी आन्दोलन चले हैं, सुधार के कार्यक्रम चले हैं वे कुल मिलाकर व्यवस्था सुधार (बदलाव) या व्यक्ति सुधार पर केन्द्रित रहे हैं। अधिकांशत: ये दोनों धाराएं एक दूसरे से अलग अलग भी चली हैं। ``व्यवस्था बदलाव´´ या ``व्यक्ति-सुधार´´ अभियानों से जुड़े लोग प्राय एक दूसरे के प्रयासों का उपहास उड़ाते देखे जा सकते हैं। <a name='more'></a></div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">लोकतन्त्र को मजबूत करने के जनान्दोलनों की वजह से कई कानून बने, नीतियों बदलीं यहां तक कि सत्ता में वर्षों से जमें बैठे लोगों को जनता ने उखाड़ कर फेंक दिया। लेकिन इन तमाम परिवर्तनों के बावजूद आज अगर भ्रष्टाचार का ग्राफ कम होने की जगह बढ़ा है तो अपनी ही उपलिब्ध् पर सवाल उठाने की ज़रूरत है। इसी तरह व्यक्ति निर्माण, समाज सुधार, धर्म-संस्कृति के तमाम प्रयासों का आकलन भी इसी कसौटी पर होगा कि आज आदमी के मन में बेईमानी, लालच आदि का ग्राफ बढ़ा है या कम हुआ है? व्यक्ति-व्यक्ति के बीच दीवारें गिरी हैं या बढ़ी हैं?</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">आज देश और समाज के जो हालात हैं और उन्हें देख कर लगता है कि ये दोनों ही तरह के प्रयास अगर निरर्थक नहीं तो अधूरे तो साबित हुए हैं। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">वस्तुत: व्यवस्था सुधार के कार्यक्रम देश के लोगों को सुविधाएं दिलाने तक ज्यादा केन्दित रहे हैं। किसके लिए क्या योजना बन जाए, हमारी आवाज़ सुनो और फलां समुदाय को योजनाओं की भीख दो.... फलां फलां चोर को सज़ा देने की नीति बनाओ... योनजाएं बनी हैं और उनसे लाखों लोगों को फायदा हुआ है। चोरों को सज़ा देने के लिए कानून बने लेकिन उन कानूनों के रखवाले चोर हो गए। फिर उन रखवालों की रखवाली के लिए कानून बने और फिर वे सुपर रखवाले भी चोरों की जमात में शामिल हो गए... यह है अब तक के तमाम राजनीतिक-लोकतान्त्रिक संघर्षों की समीक्षा जो हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए और जीते भी। लेकिन किसी भी गांव में चले जाईए, कस्बे-शहरों में लोगों से बात करके देख लीजिए, अधिकतर लोग किसी (राजनीतिक) मसीहा का इन्तज़ार कर रहे हैं कि कोई आए और हमारे यहां के भ्रष्टाचार को खत्म कर दे, हमारी गरीबी दूर कर दे... आदि आदि...</div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">लोकतान्त्रिक संघर्षों के क्रम में सूचना के अधिकार कानून के पांच साल के अनुभव के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि जनता के लिए भीख मांगने से काम नहीं चलेगा। जो कानून इन अधिकारियों और नेताओं को फैसले लेने या राज करने का अधिकार देते हैं उन कानूनों का शिकंजा खत्म कर सत्ता सीधे जनता के पास वापस दे दी जाए। जनता पांच साल में वोट देकर नहीं बल्कि सीधे, रोज़मर्रा के जीवन में इन अधिकारियों और नेताओं को नियन्त्रित करे। गांवों में ग्राम सभाएं और शहरों में मोहल्ला सभाएं (यहां चुनिन्दा लोगों की समितियों की बात नहीं हो रही, इलाके के तमाम नागरिकों को मिलाकर सभा कहा जाता है) अपने अपने इलाके की पंचायतों या नगर निगमों को नियन्त्रित करें। इन पंचायतों या निगमों से सम्मिलित रूप से ज़िला स्तर की व्यवस्थाएं, प्रशासन और पुलिस सहित, नियन्त्रित हों। ज़िला स्तर की पंचायतें राज्य व्यवस्था को नियन्त्रित करें और फिर राज्य व्यवस्था केन्द्र व्यवस्था को। (यही स्वराज अभियान है जिसके बारे में हम समय समय पर अपना पन्ना में सामिग्री प्रकाशित करते रहते है)। अब तो बस ऐसी व्यवस्था का लक्ष्य रखकर काम किए जाने की आवश्यकता है। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">लेकिन जब बाढ़ का पानी घरों में घुसा हो तो मुहाने बन्द करने के अभियानों से ही काम नहीं चलता। मुहाने तो बन्द करने ही पड़ेंगे घर की मरम्मत भी करनी पड़े़गी। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेने के नाम पर जो दिखावा हो रहा है उसकी पोल खोलते हुए एक ऐसा कानून लाने की भी आवश्यकता है जो इन भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठा सके। यहां हम लोकपाल बनाने की बात कर रहे हैं। लोकपाल संस्था के पास जहां भ्रष्ट लोगों के खिलाफ एक्शन लेने के स्पष्ट अधिकार हों वहीं इस संस्था में काम करने वाले लोगों की नियुति एकदम पारदर्शी और जनभागीदारी तरीके से हो। तभी ये लोग भ्रष्टों के खिलाफ एक्शन ले पाएंगे। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">परन्तु भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने या शासन के तरीके बदलने से भर से काम नहीं चलने वाला है। भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है जो कमोबेश हर क्षेत्र में है और देश के हर नागरिक को प्रभावित कर रही है। और इसका निदान हम सिर्फ शासन-प्रशासन या कुछ कानूनों में लिखे शब्दों के सहारे फैसला लेने वाली संस्थाएं, जिन्हें हम न्यायालय कहते हैं, के स्तर पर नहीं निकल सकता। कोई भी कानून आदमी की कल्पनाशीलता से बड़ा नहीं हो सकता। आप चाहे जो कानून बना लीजिए, अगर देश के हर नागरिक के मन में व्यवस्था के प्रति सम्मान नहीं है तो कानून टूटेगा ही। कोई दबंगई से तोड़ेगा तो कोई हेरा फेरी से। अत: भ्रष्टाचार के समाधान पर काम करते वक्त एक और पहलू पर काम करने की ज़रूरत है। यह पहलू है शिक्षा का पहलू। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">देश को ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो खुद भी भ्रष्ट न हों, हर काल, परिस्थिति में अपने समाज व देश के प्रति निष्ठावान रहें तथा भ्रष्टाचार को जो वातावरण चारों तरफ बन गया है उसे ठीक करने में सहभागी हों। सूचना के अधिकार कानून के तहत शिक्षा विभाग से पूछा गया था कि एक ऐसे समय में जब पूरा देश भ्रष्टाचार की समस्या से झूझ रहा है, आने वाली पीिढयों को भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए क्या क्या पाठ पाठयक्रम में शामिल किए गए हैं। शिक्षा विभाग ने बड़ी बेशर्मी से कह दिया कि ऐसे कोई पाठ हमारे यहां नहीं है। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हर पढ़ा लिखा आदमी अपनी ज़िन्दगी का 20 साल शिक्षा व्यवस्था को सौपता है। वह भी इस स्वीकृति के साथ कि जो भी ज़रूरी है सिखाईए। इसके बाद भी अगर हम अपनी एक बड़ी आबादी के मन में यह बात नहीं बिठा पा रहे कि भ्रष्टाचार गलत है, तो क्या इसके लिए शिक्षा व्यवस्था दोषी नहीं है। इस्के उलट लगभग हर पढ़ा लिखा आदमी अगर भ्रष्टाचार को सहते हुए, उसमें शामिल होते हुए या उसे बढ़ावा देते हुए दिखता है तो क्या इस पर गौर करने की ज़रूरत नहीं है कि उसे कुछ गलत पढ़ाया जा रहा है। बीस साल की शिक्षा में जिस आदमी को एक ही मन्त्र समझ में आया हो कि अब अगर कुछ बनना है तो पहले पैसा कमा लो, ऐसे आदमी को भ्रष्ट होने से कौन सा कानून रोक सकता है। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">इस नज़रिए से देखना होगा कि इस भ्रष्टाचार की जड़ शिक्षा में है और इसे बदले बिना कोई कानून-व्यवस्था सफल नहीं हो सकती। शिक्षा के सन्दर्भ में पहले भी बहुत सवाल उठाए गए हैं। कई आन्दोलन अभियान चले हैं लेकिन मोटे तौर पर देखें तो एक सिद्धांत तो सारे भ्रष्टाचार की जड़ है वह है अर्थशास्त्र की वह शिक्षा जिसके तहत आदमी को सिखाया जा रहा है कि आवश्यकताएं असीम हैं साधन सीमित हैं। लगभग हर पढ़े लिखे आदमी को अपनी आवश्यकताएं असीम नज़र आती हैं और इन असीम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए असीम धन कमाने की आवश्यकता कमाना पड़ेगा, यह सीख लेकर लेकर हर पढ़ा लिखा आदमी समाज में प्रवेश कर रहा है। इन आवश्यकताओं को लालच आदि बताते हुए अध्यात्म आदि की शिक्षा में आवश्यकताओं को नितन्त्रित या कम करने की बात भी सिखाने की कोशिश की गई लेकिन इसका समाज पर तो कोई असर नहीं दिखता। यहां तक कि अध्यात्म की दुकान चलाने वाले दुकानदार सबसे अधिक पैसे के पीछे भागते देख जा सकते हैं। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">तब समाधन क्या है? बीस साल की शिक्षा का विकल्प एक लेख में बताना सम्भव नहीं है लेकिन संकेत किया जा सकता है। आदमी की मूलत: दो तरह की आवश्यकताएं हैं. एक तरफ हैं- रोटी, कपड़ा, मकान, गाड़ी, मोबाईल... और भी तमाम तरह की सुविधाएं...। इनका कितना भी फैलाव हो, इनकी एक सीमा रहेगी, ये असीम आवश्यकताएं नहीं है। हर हालत में इनकी एक सीमा है। लेकिन दूसरी तरफ है सम्मान और पहचान। जो असीमीत है वस्तुत: निरन्तर आवश्यकता है। लेकिन इन्हें सामान से नहीं लिया जा सकता। सामान में ढूंढा गया सम्मान और पहचान न तो असीम हो सकता है और न ही निरन्तर. अत: इसके लिए असीम सामान चाहिए और फिर असीम धन। जो बिना भ्रष्टाचार के आएगा नहीं। इसके लिए शोषण करना पड़ेगा। शोषण होगा तो विरोध् और युद्ध भी होगा। </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">धरती के तमाम विश्वविद्यालय और स्कूल कालेज अगर आदमी को सिर्फ यह ध्यान दिलाने में कामयाब हो जाएं उसकी आवशकता क्या हैं और वो कहां से पूरी होंगी. उन्हें तो कम करने की ज़रूरत है और न वे असीम हैं. अगर बीस साल की शिक्षा में यह काम हो जाए तो फिर न तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून की ज़रूरत पड़ेगी और न अभियान की. </div><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px; text-align: justify;">समाधान तो जब भी निकलेगा यहीं से निकलेगा. लेकिन बात फिर वही है कि जब बाढ़ आई हो तो सिर्फ मुहाने बन्द करने से काम नहीं चलेगा. बाढ़ राहत के कार्यक्रम भी चलाने होंगे. </div>Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-92046167614626317942010-12-06T11:00:00.000+05:302010-12-06T11:00:17.760+05:30सेना में पारदर्शिता के लिए आगे आएं<div style="text-align: justify;">-मनीष सिसोदिया</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNiqlTgN5kgQb7_ZOI9bZ2x_ay7jQLHsFk649Qi0ahnaPko3Cj_uNcHtns5aiM4jiNq4pk2ILqV2H3JoPhK8YIun2Ov5rdyEwi5KyWngJHOty3YJPT0WycD-2xBCDpeTqOnlzm7AY9s3i5/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNiqlTgN5kgQb7_ZOI9bZ2x_ay7jQLHsFk649Qi0ahnaPko3Cj_uNcHtns5aiM4jiNq4pk2ILqV2H3JoPhK8YIun2Ov5rdyEwi5KyWngJHOty3YJPT0WycD-2xBCDpeTqOnlzm7AY9s3i5/s200/1.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">आदर्श और सुखना घोटालों ने सेना में भ्रष्टाचार के गम्भीर संकेत दिए हैं। नेता, अफसर, जज, पत्रकार... शायद इनके भ्रष्ट होने की हमें आदत पड़ गई है... और इन सबका भ्रष्ट होना शायद हमें इतना प्रभावित न कर पाए जितना सेना में भ्रष्टाचार कर सकता है। अगर सेना भ्रष्ट हो गई तो इस देश में रहने वालों का क्या हश्र होगा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन जैसे पड़ोसी या फिर अमेरिका जैसे जैकाल मुल्क हमारा क्या हश्र बनाएंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। <br />
लेकिन आदर्श घोटाले की रोशनी में देखें तो हमारी सेना में भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है। जलसेना की ज़मीन पर 31 मंज़िला इमारत बनकर खड़ी हो जाती है, थलसेना अध्यक्ष महाराष्ट्र के निवासी होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाते हैं, अपनी तन्ख्वाह 15 हज़ार रुपए से नीचे बताते हैं और कारगिल के शहीदों की विधवाओं के नाम बने फ्रलैट अपने नाम करा लेते हैं. इसी रोशनी में सेना के कुछ और घोटालों पर रोशनी डालते चलते हैं - </div><a name='more'></a><br />
<br />
<b>2006 :</b> सैन्य कोटे के लिए आवंटित शराब को खुले बाज़ार में बेचने के मामले में कार्ट ऑफ इन्क्वायरी ने मेजर जनरल इकबाल सिंह, चार ब्रिगेडियर और दूसरे सात अफसरों को दोषी ठहराया था। <br />
<br />
<b>2006 :</b> में ही जम्मू कश्मीर में तैनात सैनिकों के लिए सूखी खाद्य सामिग्री की कुछ विशेष चीज़ों की खरीद में घोटाले के लिए लेफ्टिनेंट जनरल सुरेन्द्र साहनी, दो ब्रिगेडियर और आठ अफसर दोषी ठहराए गए। <br />
<br />
<b>2007 :</b> में लद्दाख में तैनात जवानों के लिए फ्रोजेन मीट के ठेके में अनियमितता के लिए लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. दहिया, ब्रिगेडियर बिश्नोई और तीन दूसरे अफसरों को दोषी ठहराया गया।<br />
<br />
<b>2009 :</b> में आयुध् विभाग का का कोई प्रमुख नहीं था क्योंकि इस पद के काबिल तीनों अफसरों पर रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। आरोप पत्र के अनुसार हुए मे.जन.. ए.के. कपूर के पास सेना में शामिल होते वक्त 1971 में 41,000/- रुपए की संपत्ति थी लेकिन 2007 में उनके पास 5.5 करोड़ की अचल संपत्ति थी। <br />
<br />
<b>2006-2008 :</b> कॉलेज आफ मेटेलियल मेनेजमेंट, जबलपुर के मुखिया रहे मेजर जनरल अनिल स्वरूप को संयुक्त राष्ट्र में शांइति अभियान में भेजी गई यूनिट के लिए खरीददारी में अनियमितता बरतने के लिए दोषी पाया गया। जो जनरेटर बाज़ार में 7 लाख में उपलब्ध् थे उन्हें 15 लाख में खरीदा गया। 200 रुपए की कीमत वाली केबल्स को 2000 रुपए में खरीदा गया। अनुमान के मुताबिक यह लूट करीब 100 करोड़ की थी।<br />
<br />
ये घटनाएं तो सिर्फ बानगियां भर है। जब हमने सूचना के अधिकार के तहत लद्दाख में तैनात सैनिकों को भेजे जाने वाले राशन, जैकेट और जूते की गुणवत्ता के बारे में सवाल पूछे तो ये कहते हुए खारिज कर दिया गया कि यह मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती। देश की सुरक्षा के नाम पर सेना में गुपचुप बहुत कुछ चल रहा है। तहलका पत्रिका में हाल में प्रकाशित एक खास रिपोर्ट के अनुसार- <br />
असली घोटाला तो खरीद में होता है। इसमें सबसे उपर आता है आपूर्ति विभाग जो 13 लाख जवानों के लिए रसद सप्लाई का काम देखता है। एक जवान के खाने पर अगर 100 रुपए रोज़ाना भी खर्च किए जाते हैं तो पूरी सेना में हर रोज़ 13 करोड़ का खर्च तो सिर्फ खाद्य खरीद का होता है। अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि यहां हेरफेर की कितनी गुंजाईश है।<br />
<br />
इसी तरह आयुध् विभाग, जो हथियारों की सप्लाई करता है इसका सालाना बजट 8000 से 10,000 करोड़ रुपए है। <br />
<br />
आपूर्ति और आयुध् विभाग के बाद है मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस। इसका सलाना बजट 10,000 से 20,000 करोड़ रहता है। <br />
सेना के एक अधिकारी का कहना है कि हर चेक साईन पर एक से तीन प्रतिशत का कमीशन तय है। इसी तरह हर डील साईन पर करप्शन है। और सवाल सिर्फ यह नहीं है कि क्या हो रहा है। असली सवाल तो यह है कि क्या होने वाला है। तहलका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत अगले चार-पांच साल में करीब सवा दो लाख करोड़ रुपए रक्षा सौदों पर खर्च करने वाला है। रक्षा से जुड़ी बड़ी कंपनियां अपने अपने देशों के नेताओं के साथ दिल्ली के चक्कर काटने लगी हैं। कई भारतीय कंपनियां भी इस बजट पर अपना बिज़नेस टिकाए बैठी हैं। इसी तरह देश के कई बड़े नेता, अफसर, ठेकेदार और दलाल इसमें संभावनाएं तलाश ही रहे हैं। <br />
इस लेख का मकसद सेना की छवि को खराब करना या सैनिकों का मनोबल कम करना नहीं है। क्योंकि सेना के जवान और अफसर जब सरहद पर, या कहीं और भी, जान जोखिम में डाल कर खड़े होते हैं तो उसकी कीमत न तो उन्हें मिल रही सेलरी होती है न इस नौकरी में मिले सुख सुविधाएं। वह एक जज्बे के तहत खड़ा होता है और देश की सुरक्षा जज्बे का मामला है और इस जज्बे की कहीं कोई कीमत हो नहीं सकती। और यह जज्बा है जो आज भी हमें एक सुरक्षित मुल्क बने रहने का भरोसा देता है।<br />
<br />
नेताओं और अफसरों से तो उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे इस जज्बे की कद्र करेंगे। इस जज्बे की कद्र करते हुए हमें सेना को और सैनिकों को भ्रष्टाचार से बचाना है। इसके लिए देश के अधिक से अधिक लोगों को सूचना का अधिकार इस्तेमाल करना होगा। खुद सैनिकों से बात करके ऐसे मुद्दों पर सूचना मांगनी होगी जहां भ्रष्टाचार है या इसकी संभावनाएं हैं। और ऐसा इसलिए नहीं करना है कि हमें अपनी सेना में भ्रष्टाचार उजागर करना है। बल्कि इसलिए करना है कि नेता, अफसरों और दलालों को सन्देश जा सके कि सेना में उनकी घुसपैठ को लेकर देश का आम आदमी सक्रिय है। सचेत है।Javed Khanhttp://www.blogger.com/profile/07633976449840894575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-59601916583644192262010-11-03T11:41:00.000+05:302010-11-03T11:41:07.700+05:30सूचना कानून के दायरे में नहीं 'राजीव गाँधी फाउण्डेशन'<span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">राजीव गाँधी फाउण्डेशन, </span></span> <ul><li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसकी अध्यक्ष सोनियां गाँधी हैं, वही सोनिया गाँधी जिन्हें देश में सूचना के अधिकार को लागू करने का श्रेय दिया जाता है,</span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसकी प्रबन्ध् समिति में योजना आयोग के उपाध्यक्ष, गृह मंत्री जैसे लोग हैं,</span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसका दफ्तर सरकार द्वारा एक अन्य संस्था को प्रदत्त खरबों रुपए की ज़मीन पर चल रहा है, और उस संस्था को दी जाने वाली तमाम सुविधाओं का फायदा उठा रहा है, </span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसके अरबों रुपए के बजट में से 4 फीसदी जनता के दिए गए टैक्स से आता है, </span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसके बनाने की घोषणा केन्द्रीय वित्त मंत्री ने अपने बजटीय भाषण में की थी, </span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसके चलाने के लिए सरकार ने 100 करोड़ रुपए का एक कोष भी बनाया था,</span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसके भवन निर्माण का खर्च शहरी विकास मन्त्रालय ने उठाया,</span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">जिसे कई अन्य प्रकार से भी कर, बिल आदि में छूट प्राप्त है,</span></span></li>
</ul><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">और जिसका दावा है कि वह </span></span><ul><li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">राजीव गाँधी के सपनों को पूरा करने का काम कर रही है,</span></span></li>
<li><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">बच्चों, महिलाओं और दूसरे वंचित तबकों के कल्याण के लिए सैकड़ों योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाता है।</span></span></li>
</ul><div><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">वह राजीव गाँधी फाउण्डेशन संस्था सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आती है। संस्था के अधिकारी तो सूचना के अधिकार के आवेदनों को खारिज करते ही रहे हैं अब केन्द्रीय सूचना आयोग के तीन आयुक्तों की पीठ ने भी एक आदेश में इस पर मोहर लगा दी है कि यह संस्था सूचना अधिकार कानून के दायरे से बाहर है।</span></span></div><div><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;"> </span></span></div><div><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">शानमुगा पात्रों ने सूचना के अधिकार कानून के तहत संस्था से उसकी परियोजनाओं के बारे में जानकारी मागी थी। सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी, एम.एल.शर्मा और सत्यानन्द मिश्रा की एक पूर्ण पीठ ने उनकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि सूचना मांगे जाने के लिए किसी संस्था पर सरकार का परोक्ष या प्रत्यक्ष वित्तीय पोशण ज़रूरी है। आयोग ने कहा कि न तो सरकार का इस संस्था पर मालिकाना हक है और न ही यह सरकार से नियन्त्रित है। इसकी कमाई में महज़ चार फीसदी ही सरकार के पास से आता है अत: इसे वित्तीय सहायता पाने वाली संस्था में भी नहीं रखा जा सकता। पात्रों का तर्क था कि फाउण्डेशन को काफी मात्रा में सरकारी पैसा मिलता है अत: इसे सूचना के अधिकार के दायरे में आना चाहिए। लेकिन आयोग ने इन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। </span></span></div><div><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;"> </span></span></div><div><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: 14px; line-height: 25px;">सवाल यह है कि क्या केन्द्रीय सूचना आयोग में बैठे आयुक्तों ने ``10 जनपथ´´ के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी (वफादारी) निभाई है। आखिर वहां बैठे कई लोगों की नियुक्ति ``10 जनपथ´´ यानि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की मेहरबानी से ही हुई थी।</span></span></div><div style="font-size: 14px; line-height: 1.8;"><br />
</div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-714106688595605829.post-33140673953196195852010-11-02T15:48:00.000+05:302010-11-02T15:48:24.757+05:30भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी आई.ए.एस. अफसर ने लिया सूचना कानून का सहारादेश के कोने कोने से अधिकारियों की एक ही गुहार है कि सूचना अधिकार कानून तो बहुत अच्छी चीज़ है लेकिन इसने हमारा काम करना मुश्किल कर दिया है। लगभग हर अफसर से आप सूचना अधिकार के इस्तेमाल को लेकर ये शब्द सुन सकते हैं... ``लोग निजी शिकायतों को सूचना अधिकार जैसे बड़े कानून के ज़रिए हल करने के चक्कर में आवेदनों का अंबार लगाए जा रहे हैं... यह कानून तो सरकार के काम में पारदर्शिता लाने जैसे व्यापक कामों में इस्तेमाल होना चाहिए... आदि आदि...´´<br />
<br />
लेकिन जब बात अपने उपर आती है तो वे भी सूचना के अधिकार का उपयोग करने से नहीं चूकते। ताज़ा घटनाक्रम में झारखण्ड की एक आई.ए.एस अधिकारी ने इस कानून का इस्तेमाल किया है। उसने अपने खिलाफ लगे आरोपों के जवाब में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दाखिल किया, और अब वो लोक सूचना अधिकारी से मिले जवाब को अपने पाक साफ होने के सबूत के रूप में पेश कर रही हैं। <br />
<br />
वर्तमान में पलामू की उपायुक्त पूजा सिंघल पुरवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की खबरें अचानक मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। उन पर आरोप लगाए जा रहे थे कि पलामू से पहले खूंटी ज़िले की उपायुक्त रहते हुए उन्होंने नियम कायदों को ताक पर रखकर जूनियर इंजीनियरों को एडवांस भुगतान कराया। इन खबरों का जवाब देने के लिए पूजा सिंघल ने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन खूंटी ज़िले के उपायुक्त कार्यालय में डाला। उन्होंने जानकारी मांगी कि ``क्या उनके पद पर रहते उनकी तरफ से इंजीनियरों को एडवांस पेमेंट कराया गया?´´ लोक सूचना अधिकारी ने उनके सवालों के जवाब में ``नहीं´´ लिखकर दे दिया। <br />
इस ``नहीं´´ को अब उन्होंने अपनी ढाल बनाकर, अपने खिलाफ लगे आरोपों की पुख्ता काट बनाकर मीडिया के सामने रखना शुरू किया है।<br />
<br />
किसी आई.ए.एस. अधिकारी द्वारा सूचना के अधिकार का इस तरह इस्तेमाल करना अच्छी बात है। इस उदाहरण के ज़रिए सूचना कानून की उपयोगिता देश के कोने कोने में लोक सूचना अधिकारियों को भी समझाई जानी चाहिए। लेकिन यहां कुछ तथ्यों और उनसे उठने वाले सवालों पर भी गौर करना होगा: <br />
<ul><li> पूजा सिंघल ने 8 अक्टूबर 2010 को अपना आवेदन दाखिल किया।</li>
<li>उन्हें मात्र 4 दिन में यानि 12 अक्टूबर 2010 को ही अपने सवालों के जवाब मिल गए। (आम आदमी को तो कानून में 30 दिन की समय सीमा बीतने के बाद ही सूचना मिलती है, वो भी आधी-अधूरी) </li>
<li> उन्होंने अपने आवेदन में जानकारी लेने के लिए चन्द सवाल लिखे और लोक सूचना अधिकारी ने उसका जवाब हां/ना में दे दिया...(जबकि आम आदमी के आवेदनों को हमेशा यह कहकर खारिज कर दिया जाता है कि सूचना कानून सवाल जवाब पूछने की इजाज़त नहीं देता)</li>
</ul>Unknownnoreply@blogger.com2