चिकित्सक भगवान का रुप होते हैं। लेकिन भारत में इस भगवान की जवाबदेयता के लिए कोई कानून नहीं है। चिकित्सकों की लापरवाही और पारदिशZता के अभाव में यदि किसी रोगी को हानि होती है, तो क्या इसका जिम्मेदार समान रुप से चिकित्सक को माना जाना चाहिए ? भारत में उपभोक्ता अदालत की उच्चतम संस्था ``नेशनल कन्ज्यूमर डिसप्यूट रेडरेशल कमीशन´´ ने चिकित्सा सेवा से संबंधित कई कायदे कानून निर्धारित किए है। उदाहरण के लिए राइट्स टू प्रोपर एण्ड ह्यूमेन ट्रीटमेंट और राइट्स टू मेडिकल रिपोर्ट आदि। कमीशन ने इन कायदे कानूनों का निर्धारण उसको मिले कई िशकायतो को आधार पर बनाया है। जिसके अनुसार चिकित्सक को रोगी के दवाई लिखने से पहले उसके सभी छोटे-बडे़ रोग का जानकारी देना होगा। जिसके ना उपलब्ध नहीं कराने पर आदेश का उल्लंधन माना जाएगा। इसके अलावे एक अन्य िशकायत के परिप्रेक्ष्य में आदेश दिया है कि चिकित्सक रोगी को रोग का विवरण बताएं साथ ही इसके सभी उपचार विकल्प और उपचार विकल्प के महत्व और खतरें को बताएं। साथ ही कहा कि अस्पताल या चिक्तिसक रोगी को और रोगी की मृत्यु की दशा में उसके रिश्तेदार को रोगी के पूरा चिकित्सा विवरण उपलब्ध करायें। यह आदेश मेडिकल प्रेिक्टसनर द्वारा रोगियों को लिखे गए दवाई के संबंध में और सूचना के अधिकार के परिप्रेक्ष्प में चिकित्सक और रोगी के बीच बेहतर पारदिशZता और जवाबदेयता के लिए दिया गया है।
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