वकीलों को कैदियों से मिलने के लिए किसी ड्रेस कोड की परंपरा का पालन करना जरूरी नहीं है। कैदियों से मिलने के लिए बार काउंसिल द्वारा जारी किया गया पहचान पत्र ही पर्याप्त होगा। यह बात मुंबई के एक वकील ने मुंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले को आधार बनाकर कही। वकील तेगबहादुर ठाकुर ने इससे पहले केन्द्रीय मुंबई कारागार को चिट्ठी में कहा कि जेल अधिकारी वकील और कैदी के रिश्तेदारों में फर्क के लिए काला कोट पहनने को बाध्य नहीं कर सकते। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें जेलों को इस तरह के नियम अपने मेनुअल हटाने को कहा गया था। कोर्ट ने यह निर्णय 1992 में एक याचिका की सुनवाई के बाद दिया था। ठाकुर ने आरटीआई अर्जी के माध्यम से पूछा था कि किस नियम के तहत वकीलों को कैदियों से मिलने के लिए काला कोट पहनने को कहा जाता है। अर्जी के जवाब में कहा गया कि कैदियों के रिश्तेदारों और वकीलों में फर्क हेतु इस तरह के नियम का महाराष्ट्र जेल मेनुअल में प्रावधान है। इसके बाद ठाकुर ने जेल अधिकारियों को महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के निर्णय से अवगत कराया। मुंबई उच्च न्यायालय ने 1992 में एक निर्णय में कहा था कि वकील जब किसी कैदी से जेल में आधिकारिक रुप से मिलने के लिए उसे काला कोट पहनना आवश्यक नहीं होगा। ऐसे में बार काउंसिल ऑफ इंडिया का परिचय पत्र ही काफी होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें