भारत का प्रतीष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रवेश परीक्षा प्रणाली पारदर्शिता पर उंगलियॉ उठने लगी है। सूचना के अधिकार कानून के तहत एक खुलासे के अनुसार करीब 1000 परीक्षार्थी संस्थान के कट ऑफ माक्र्स फॉमूला के अनुसार संभवत: चयनित हो सकते थे। लेकिन संस्थान ने इस छात्रों को काउन्सेलिंग के लिए भी नहीं बुलाया। यह परीक्षा 2006 की थी।
परीक्षा के करीब 20 महीने बाद संस्थान ने सामान्य वर्ग के छात्रो में प्राप्तांको का इस कानून के तहत दिया गया। इस परीक्षा में गणित, भौतिकी और रसायन शास्त्र विषयों के प्रश्न होते है। और तीनों विषयों के कट ऑफ मार्क के अंक प्राप्ति के बाद, तीनो विषयों का कुल योग का कट ऑफ मार्क निर्धारित होता है। संस्थान ने वर्ष 2006 के लिए 154 अंक कुल कट ऑफ मार्क रखा था। प्राप्त आंकडे़ के विश्लेषण के बाद 994 छात्र निर्धारित कर्ट ऑफ मार्कस के अनुसार 2006 के परीक्षा में आहर्ता प्राप्त कि थी। लेकिन उन्हें बुलाया नही गया। आंकडे के अनुसार इसमें से एक छात्र 500 के रेंक में भी आ सकते थे। इसके अलावे आठ छात्र का रेंक 500 से 1000 के बीच होता। आई आई टी के पूर्व छात्र और रेमन मेग्सेसे पुरस्कार विजेता श्री अरविंद केरजीवाल के अनुसार प्राप्त जानकारी चौंकाने वाली है। साथ ही ऐसे घटना के कारण आई आई टी के परीक्षा संस्था जे ई ई अपनी साख खो रही है।
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