उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में सूचना के अधिकार के इस्तेमाल का एक अनूठा मामला सामने आया है। इस कानून के तहत मिली सूचना का ही प्रभाव है कि बहराइच जिले के गांवों में परिवारों ने शराब से तौबा कर ली है। अभी तक सूचना के अधिकार का इस्तेमाल सरकारी फाइलों में छिपे सच को सामने लाने और इस प्रक्रिया में कर्मचारियों पर नियमानुसार काम करने का दबाव बनाने में होता रहा है। सरकारी फाइलें खुलने के डर से ही बहुत से कर्मचारी अपना आचरण सुधर लेते हैं। इसकी हजारों मिसालें दी जा सकती हैं। लेकिन फाइलों से जानकारी बाहर आए और उसका असर समाज पर इस प्रकार पड़े कि लोग शराब पीना तक छोड़ दें, ऐसा पहली बार हुआ है।
यह मामला किसी एक परिवार तक सीमित नहीं है। कई परिवार के लोगों ने शराबी पीनी छोड़ दी है और लोगों का यह सिलसिला अब तक जारी है। यह किस्सा है बहराइच जिले कतरनियाघाट में स्थित वनग्रामों का। यहां के बिछिया बाजार वनग्राम में कई सालों से देशी शराब का ठेका चला आ रहा था। मेहनत-मजूरी करने वाले यहां के लोग अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा शराब पर ही फूंक देते थे। गांव वालों के आर्थिक हालात पहले से ही काफी नाजुक थे, उस पर कुछ परिवारों में परिवार के मुखिया या किसी और की शराब पीने की लत से ये परिवार दरिद्रता से जूझ रहे थे।
देहात समाजसेवी संस्था से जुडे़ सामाजिक कार्यकर्ता जंग हिन्दुस्तानी इस इलाके के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं। उनका मुख्य संघर्ष इन लोगों के अधिकारों को लेकर है। इसमें भी विशेषकर मजूदरी न मिलना, विभिन्न कल्याण योजनाओं का लाभ न मिलना, राशन न मिलना आदि समस्याओं को लेकर पिछले कई सालों से संघर्ष चला आ रहा है। जिसमें सूचना के अधिकार के आने के बाद से उल्लेखनीय सफलता भी मिली है। जंग हिन्दुस्तानी यह देखकर अफसोस करते थे कि वनग्रामों के कई लोग अपनी मेहनत मजदूरी का पैसा घर परिवार में लगाने की जगह शराब में उड़ा देते थे। इससे उनकी आर्थिक स्थिति तो बुरी से बुरी हो ही रही थी इलाके में असामाजिक गतिविधियां भी होती थीं। उन्होंने लोगों को समझाने के लिए पहले भी कोशिश की थी लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हुआ। इसी क्रम में वह जानना चाहते थे कि एक आम परिवार शराब पर कितना पैसा खर्च कर रहा है।
30 जून 2007 को उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत सरकार से पूछा कि इलाके की शराब की दुकान से उसे कितना राजस्व प्राप्त हुआ है। तो पता चला कि पिछले तीन साल में महज उस इलाके में शराब की ब्रिकी से सरकार को 40 लाख 86 हजार 40 रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। इलाके में न तो कोई टूरिस्ट पैलेस और न होटल आदि। कुल मिलाकर कुछ वनग्रामों की आबादी है। राजस्व की इस राशि के हिसाब से करीब 70 लाख रुपये की शराब इलाके में तीन साल के दौरान बिकी थी। जंग हिन्दुस्तानी ने अपने साथियों के साथ गांव-गांव जाकर ऐसे लोगों की सूची तैयार की जो शराब पीते थे। इस प्रक्रिया में पता चला कि इलाके के कुल 300 परिवारों में शराब पी जाती है। इसकी सामान्य गणना करने पर निकल कर आया कि इलाके में हर शराबी प्रतिदिन औसत 20 रुपये की शराब पी रहे थे। जबकि अधिकतर परिवार गरीब थे और किसी तरह मेहनत-मजूरी करके अपने परिवार का गुजारा चला रहा थे। इलाके में दिन भर मेहनत करने के बाद मुश्किल से 50-60 रुपये की मजदूरी मिलती है। शराब पीने वाले लोग इसमें एक तिहाई कमाई शराब में उड़ा रहे थे।
सूचना के अधिकार के तहत मिली इस जानकारी को लोगों के समक्ष रखा गया और उन्हें बताया गया कि वे शराब पर कितना पैसा खर्च कर रहे हैं। लोगों को बताया गया कि जो पैसा बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य, घर-गृहस्थी चलाने आदि में खर्च किया जा सकता था और जिससे गरीबी कम की जा सकती थी, उसे शराब पर बहाया जा रहा है।
इतने पुख्ता तथ्यों के साथ जब बात लोगों के सामने रखी गई तो इसने अपना असर दिखाया। जंग हिन्दुस्तानी ने लोगों को यह भी याद दिलाया कि अपने हक के एक-एक रुपये की खातिर वे लोग जो संघर्ष करते आए हैं वह कुछ मिनटों में नशे में उड़ा दिया जा रहा है। इन बातों ने अपना प्रभाव दिखाया।
लोगों को यह बात धीरे-धीरे समझ में आ गई कि शराब ही उनके दुखों को मूल कारण है। उन्हें एहसास हो गया कि यदि शराब की लत छोड़ दी जाए तो उनकी अधिकांश समस्याएं हल हो सकती हैं। उसी दिन से कुछ ग्रामीणों ने शराब छोड़ने की कसम खाई। गांव में शराब छोड़ने वाले लोगों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी होती जा रही है। जो पैसा पहले वे शराब पर खर्च कर रहे थे, उसे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, कपड़ों आदि पर खर्च करने लगें। कैलाशनगर वनग्राम के गीताप्रसाद कहते हैं- शराब छोड़ने से हमें हद से ज्यादा फायदा हुआ है, पहले हमारा एक भी पैसा बैंक में जमा नहीं था लेकिन अब मेरे 8 हजार रुपये बैंक में जमा हैं। शराब छोड़ चुके शिवचरण का कहना है- पहले हम हद से ज्यादा शराब पीते थे, लड़ाई झगड़ा करते रहते थे। सूचना के अधिकार से पता चलने पर हमने सोचा कि यदि पैसा बचेगा तो हमारे बच्चे पढ़ेगें, हम भूखे नहीं मरेंगे, यही सोचकर शराब छोड़ दी। अब हमारे बच्चे स्कूल जाने लगे हैं और हम सुकून में हैं। कैलाशनगर के द्वारिका प्रसाद ने भी यही सोचकर शराब की लत से मुक्ति पा ली।
3 टिप्पणियां:
भाई साब आपने तो कमाल कर दिया।
aap ka nam janne ki chahat nahi hea aap ka kam bada pyara hea
bahut khusi hui jaan kar ki RTI ki madad se hum logo ko burai se bachakar achhai ki taraf le jaa rahe hain.
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