गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

पांच सालों में कहां पहुंचा है सूचना का अधिकार !

सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को लागू हुए पांच साल हो चुके हैं। पिछले पांच सालों में इस कानून का लाभ खेत में काम करने वाले किसान से लेकर सत्ता के गलियारे में बैठे बडे बडे नेताओं और अधिकारियों सभी ने अपने अपने तरीके उठाया है। आरटीआई का इस्तेमाल करके जहां एक ओर लोगों ने अपने राशन कार्ड और पासपोर्ट बिना रिश्वत दिये बनवाये वहीं दूसरी ओर कॉमनवेल्थ गेम और आदर्श सोसाइटी जैसे बडे घोटालों का भांड़ाफोड भी किया। लेकिन ऐसा नहीं है कि आरटीआई के इस्तेमाल करने वालो को केवल सफलता ही मिल रही है। पांच सालों में कई ऐसे मौके आये है जब कभी सरकार की ओर से कानून में संशोधन करके इसे कमजोर करने की कोशिश की गई तो कभी जिन लोगों का भाण्डाफोड हुआ उन्होंने आरटीआई इस्तेमाल करने वाले लोगों को धमका कर रोकने की कोशिश की और जब वो नहीं माने तो हत्या तक करवा दी। इसी साल पीछले ग्यारह महिनों 10 से भी ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हो रहे इन हमलो के बावजुद भी पांच साल के छोटे से समय में यह कानून आम जनता में जितना लोकप्रिय हुआ है शायद ही कोई और कानून इसकी बराबरी कर सके। आरटीआई की इस लोकप्रियता और इसके इस्तेमाल में आ रही समस्याओं को जानने समझने के लिए अपना पन्ना (स्वराज एवं सुचना का अधिकार पर मासिक पत्रिका)  के पाठकों के बीच एक सर्वे कराया गया। इस सर्वे में कुछ चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। जैसे कि 54% लोगों का कहना है कि उन्हे सूचना के अधिकार कानून के बारे में समाचार पत्र/पत्रिका से पता चला, वहीं 9% को टेलीविज़न और इतने ही लोगों को रेडिय के माध्यम से पता चला। जबकि 13% को किसी स्वयं सेवी संस्था और इतने लोगों को उनके मित्रों या जानने वालों से आरटीआई के बारे में जनकारी मिली। इससे यह तो साफ हो जाता है कि आरटीआई के प्रचार प्रसार में अखबारों और न्यूज़ चैनलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सर्वे में एक और महत्वपूर्ण बात यह निकल कर आई है कि सिर्फ 15% मामलों में ही लोक सूचना अधिकारी कानून के तहत तय समय सीमा में जबाव दे रहे हैं, 55% लोगों को सूचना मिलने में 30 दिनों से ज्यादा समय लगा तो 9% को 60 दिनों से ज्यादा। जबकि 1% को एक वर्ष से ज्यादा समय तक इन्तजार करना पडा वहीं 19% को तो कभी कोई सूचना मिली ही नहीं। इस सर्वे से पारदर्शिता और सुशासन के नाम पर राज कर रही सरकारों की कथनी और करनी में जो अन्तर है वो भी साफ साफ पता चला है। जिन 15% मामलों में 30 दिनों के अन्दर जवाब मिला है उनमें से 76% मामलों में आधी अधूरी सूचना दी गई।
सर्वे के परिणाम से दो बाते तो बिल्कुल साफ होती हैं एक तरफ जहां आम जनता आरटीआई कानून की मद्द से भ्रष्टाचार पर कारगर तरीके से नकेल कसने का प्रयास कर रही है तो दूसरी तरफ सरकार में बैठे भ्रष्ट अधिकारी, नेता और ठेकदार मिल कर कानून की धार को कुन्द करने की हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह है कि जीत किसकी होती है।

7 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

जय हो सूचना के अधिकार की।

बेनामी ने कहा…

प्रशंसनीय प्रयास शुभकामनाएँ!

Unknown ने कहा…

gvcdg

Ram Lakhan ने कहा…

Rti is best way for true know about any gov. scheme/work. So Jai Rti Jai Loktantra.

Unknown ने कहा…

Sir Mene jila Bareilly up ke dm ke doara jansoochna mangi 2 bar me ek bhi bar mujhe koi jankari Nahi di gai ye Mene 28/08/2018 ko mangi khuch bhi siichna uplabad na karai

Unknown ने कहा…

Sai me harendra Yadav gram khargpUr post sona jila bareilly ki manrega ki Jan soochna jila adhikari se mangi to mujhe koi jankari Nahi di

vanderhabel ने कहा…

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