महाराष्ट्र में राज्य सूचना आयोग का एक नया कारनामा सामने आया है और यह मामला है खुलेआम भ्रष्टाचार का. जुलाई 2008 में सूचना आयोग ने करीब सवा सात लाख रुपए के कंप्यूटर व लेपटॉप खरीदे थे. आरोप है कि ये सामान 2008-09 के बजट से नहीं बल्कि बीते वर्ष यानि कि 2007-08 के बजट से खरीदा गया लेकिन कागज़ों में हेराफेरी करते हुए इसका परचेज़ आर्डर पिछले वित्त वर्ष की समाप्ति से ठीक दो दिन पहले जारी हुआ दिखाया गया है. घटना क्रम कुछ इस प्रकार है
- रिकार्ड के मुताबिक 29 मार्च 2008 को कंप्यूटर व लेपटॉप खरीद के लिए आर्डर जारी किए गए.
- सामान सप्लाई करने वाली कंपनियों के साथ खरीद का आदेश जारी करते वक्त शर्त रखी गई थी कि अगर वे 4 सप्ताह के अन्दर सप्लाई नहीं करती हैं तो देरी के लिए उन पर कुल खरीद मूल्य पर 0.05 प्रतिशत का ज़ुर्माना प्रति सप्ताह लगेगा. इस तरह अप्रैल 2008 के अन्तिम सप्ताह तक सप्लाई न होने की स्थिति में सप्लाई करने वाली कंपनियों पर 35,616/- रुपए का ज़ुर्माना लगाया जाना था.
- आयोग के ही रिकार्ड के मुताबिक यह सप्लाई जुलाई 2008 में हुई. लेकिन कंपनियों को पूरा भुगतान कर दिया गया.
- आडिट टीम ने सप्लाई में ढाई महीने की देरी के बावजूद कंपनियों पर पेनल्टी न लगाने के लिए आयोग से जवाब मांगा.
- आयोग ने आडिट ऑब्जेक्शान का जवाब दिया कि कंपनी ने सप्लाई में देरी नहीं की है, सप्लाई तो समय पर हुई है लेकिन परचेज़ आर्डर कंपनी को देने में देरी हुई थी.
अब सवाल यह उठता है कि -
- अगर कंपनी ने समय ने जुलाई 2008 में सप्लाई करके भी 4 सप्ताह की निर्धारित समय सीमा का पालन किया है, जैसा कि सूचना आयोग के जवाब में दावा किया गया है, तो क्या इसका मतलब है कि कंपनियों को परचेज़ ऑर्डर जून 2008 में दिया गया था?
- अगर कंपनियों को यह परचेज़ ऑर्डर जून 2008 में दिया गया था तो 29 मार्च 2008 से लेकर जून 2008 तक यह किसके पास और क्यों पड़ा रहा. यह कोई छोटा मोटा परचेज़ आर्डर नहीं था.
जानकारों की आशंका है कि यह एक घोटाला है जिसमें पिछले वित्त वर्ष के बजट से फर्जी तरीके से खरीद फरोख्त की गई है. इसमें कागज़ों में हेराफेरी की गई है ताकि जुलाई में जारी परचेज़ आदेश को पिछले वित्त वर्ष के अन्तिम सप्ताह में भी दिखाया जा सके.
(सौजन्य : विहार ध्रुवे एवं क्रष्णराज राव)
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लोग तो हमारे बीच के ही हैं...
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