तमाम अयोग्यताओं के बावजूद मुख्यमंत्री के नज़दीकी रहे अधिकारी के पुत्र को मिली सीधे क्लास-1 के पद पर अनुकंपा नियुक्ति
प्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति का एक अनूठा मामला सामने आया है जहां एक अधिकारी की मृत्यू के बाद उनके पुत्र को सीधे अधिकारी बना दिया गया। नियम के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति के तहत केवल क्लर्क या चपरासी स्तर की नौकरी दी जा सकती है। लेकिन इस मामले में सीधे मुख्यमंत्री ने दखल दिया और तमाम नियम कायदों को ताक पर रख दिया गया।
मण्डी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रणबीर सिंह चौहान ने सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल करते हुए इस मामले का खुलासा किया है। मामला इस तरह है कि 2007 में सतर्कता विभाग के ज़िला अटॉर्नी श्री रविन्द्र धैल्टा की मृत्यू 9 पफरवरी 2007 को हो गई थी। 5 मार्च 2007 को उनके पुत्र विकास धैल्टा ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए सीधे मुख्यमंत्री के पास आवेदन किया। दिलचस्प बात यह है कि 13 जुलाई 2007 को इस हिमाचल की केबिनेट ने भी पास कर दिया और 13 सितम्बर 2007 को विकास धैल्टा को बाकायदा अतिरिक्त ज़िला अटॉर्नी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। गौरतलब है कि यह एक क्लास-1 पद है और नियमत: क्लास 1 या क्लास -2 पद पर किसी की नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर नहीं की जा सकती। नियम के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति केवल क्लास-3 या क्लास-4 के पदों पर की जा सकती है।
इसके साथ ही अनुकंपा नियुक्ति उस परिवार के आश्रितों को दी जाती है जिनका कोई अन्य सदस्य सरकारी नौकरी में न हो। लेकिन यहां तो स्वर्गीय रवीन्द्र धैल्टा की पत्नी भी आईपीएच विभाग में सहायक के पद पर कार्यरत हैं। प्राप्त सूचना के मुताबिक विकास धैल्टा ने मुख्यमंत्री के पास लिखे आवेदन में दावा किया था कि पिता की मृत्यू के बाद अपनी मां, दादी और बहन के लालन पालन की ज़िम्मेदारी उनके कंधे पर आ पड़ी है अत: उन्हें अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जाए। आम तौर पर इस तरह के आवेदनों पर फैसला लेने में सरकारी विभाग 8-10 साल लगा देते हैं लेकिन इस मामले में नियुक्ति विभाग, गृह विभाग और वित्त विभाग ने कुछ ही महीनों में सारी कार्रवाई पूरी कर विकास की नियुक्ति भी करवा दी। यहां तक कि चुनाव आचार संहिता लगने के चलते नियुक्ति के लिए चुनाव आयोग से मंजूरी लेने का काम भी आनन फानन में पूरा कर लिया गया।
इतना ही नहीं जिस पद पर विकास की नियुक्ति की गई है उस पद के लिए कम से कम 2 साल का वकालत का अनुभव ज़रूरी है लेकिन विकास ने अपने आवेदन में ही बताया था कि उसने आठ महीने पहले ही अपनी एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की है। साथ ही विकास ने अपनी पारिवारिक आय 3 लाख 52 हज़ार रुपए बताई थी जोकि अनुकंपा नियुक्ति के लिए तय सीमा से कहीं अधिक है।
यह भी जानना दिलचस्प है कि इसी तरह के एक मामले में रोहिणी शर्मा को सरकार यह लिखकर दे चुकी है कि अनुकंपा नियुक्ति केवल क्लास-3 व 4 के पदों पर ही की जा सकती है। रोहिणी के पिता अमर प्रकाश शर्मा किन्नौर में ज़िला अटॉर्नी थे और उनकी असमय मृत्यू के उपरान्त रोहिणी ने अतिरिक्त ज़िला अटॉर्नी के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। लेकिन सरकार ने उन्हें नियम का हवाला देते हुए इस पद पर नियुक्ति देने से साफ मना कर दिया था।
प्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति का एक अनूठा मामला सामने आया है जहां एक अधिकारी की मृत्यू के बाद उनके पुत्र को सीधे अधिकारी बना दिया गया। नियम के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति के तहत केवल क्लर्क या चपरासी स्तर की नौकरी दी जा सकती है। लेकिन इस मामले में सीधे मुख्यमंत्री ने दखल दिया और तमाम नियम कायदों को ताक पर रख दिया गया।
मण्डी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता रणबीर सिंह चौहान ने सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल करते हुए इस मामले का खुलासा किया है। मामला इस तरह है कि 2007 में सतर्कता विभाग के ज़िला अटॉर्नी श्री रविन्द्र धैल्टा की मृत्यू 9 पफरवरी 2007 को हो गई थी। 5 मार्च 2007 को उनके पुत्र विकास धैल्टा ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए सीधे मुख्यमंत्री के पास आवेदन किया। दिलचस्प बात यह है कि 13 जुलाई 2007 को इस हिमाचल की केबिनेट ने भी पास कर दिया और 13 सितम्बर 2007 को विकास धैल्टा को बाकायदा अतिरिक्त ज़िला अटॉर्नी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। गौरतलब है कि यह एक क्लास-1 पद है और नियमत: क्लास 1 या क्लास -2 पद पर किसी की नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर नहीं की जा सकती। नियम के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति केवल क्लास-3 या क्लास-4 के पदों पर की जा सकती है।
इसके साथ ही अनुकंपा नियुक्ति उस परिवार के आश्रितों को दी जाती है जिनका कोई अन्य सदस्य सरकारी नौकरी में न हो। लेकिन यहां तो स्वर्गीय रवीन्द्र धैल्टा की पत्नी भी आईपीएच विभाग में सहायक के पद पर कार्यरत हैं। प्राप्त सूचना के मुताबिक विकास धैल्टा ने मुख्यमंत्री के पास लिखे आवेदन में दावा किया था कि पिता की मृत्यू के बाद अपनी मां, दादी और बहन के लालन पालन की ज़िम्मेदारी उनके कंधे पर आ पड़ी है अत: उन्हें अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जाए। आम तौर पर इस तरह के आवेदनों पर फैसला लेने में सरकारी विभाग 8-10 साल लगा देते हैं लेकिन इस मामले में नियुक्ति विभाग, गृह विभाग और वित्त विभाग ने कुछ ही महीनों में सारी कार्रवाई पूरी कर विकास की नियुक्ति भी करवा दी। यहां तक कि चुनाव आचार संहिता लगने के चलते नियुक्ति के लिए चुनाव आयोग से मंजूरी लेने का काम भी आनन फानन में पूरा कर लिया गया।
इतना ही नहीं जिस पद पर विकास की नियुक्ति की गई है उस पद के लिए कम से कम 2 साल का वकालत का अनुभव ज़रूरी है लेकिन विकास ने अपने आवेदन में ही बताया था कि उसने आठ महीने पहले ही अपनी एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की है। साथ ही विकास ने अपनी पारिवारिक आय 3 लाख 52 हज़ार रुपए बताई थी जोकि अनुकंपा नियुक्ति के लिए तय सीमा से कहीं अधिक है।
यह भी जानना दिलचस्प है कि इसी तरह के एक मामले में रोहिणी शर्मा को सरकार यह लिखकर दे चुकी है कि अनुकंपा नियुक्ति केवल क्लास-3 व 4 के पदों पर ही की जा सकती है। रोहिणी के पिता अमर प्रकाश शर्मा किन्नौर में ज़िला अटॉर्नी थे और उनकी असमय मृत्यू के उपरान्त रोहिणी ने अतिरिक्त ज़िला अटॉर्नी के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। लेकिन सरकार ने उन्हें नियम का हवाला देते हुए इस पद पर नियुक्ति देने से साफ मना कर दिया था।
1 टिप्पणी:
Very Nice मुख्यमंत्री की नियुक्ति कौन करता है? प्रधानमंत्री का वेतन कितना है? Nice Think.
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