मंहगी लक्जरी कारों में घूमने वाले पुणे पिंपरी-चिंचवाड़ निगम अधिकारियों को अब 4 लाख से अधिक कीमत की गाड़ी नहीं मिलेगी। सिर्फ़ महापौर और उपमहापौर ही 6 लाख तक की गाड़ी में घूम सकेगें। यानि अब तक मारूति इस्टीम में सफर करने वाले उपमहापौर को एम्बेसडर गाड़ी से ही काम चलाना होगा। पिछले साल महाराष्ट्र उच्च न्यायालय की पफटकार के बाद राज्य सरकार ने स्थानीय निकायों के अधिकारियों के वाहनों के संबंध में यह दिशानिर्देष जारी किए हैं। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर आरटीआई अर्जी के जवाब में निगम ने यह जानकारी दी है।
आरटीआई से यह जानकारी भी मिली है कि पुणे की पिंपरी-चिंचवाड नगर निगम के अधिकारियों के 63 वाहनों का सालाना ईंधन और मरम्मत खर्च करीब एक करोड़ रूपये है। अधिकारियों के इन वाहनों के ईंध्न पर 74 लाख और मरम्मत पर 26 लाख का खर्चा होता है। इन वाहनों के 63 चालकों का औसत वेतन करीब दस हजार है, जो खर्चों में पर्याप्त वृद्धि करता है। इसके अलावा पंजीकरण और आरटीओ से सम्बंधित खर्चे भी निगम को ही वहन करने पड़ते हैं।
नए दिशानिर्देषों को बताते हुए निगम सचिव शरद काले ने कहा है कि हर अधिकारी प्रतिमाह 150 लीटर तक ईंधन इस्तेमाल कर सकते है। हालांकि सभी लोगों के लिए ईंधन खर्च समान नहीं है। महापौर को सालाना साढ़े तीन लाख मूल्य तक के ईंधन के इस्तेमाल की अनुमति है, जबकि उप महापौर ढाई लाख रूपये तक वाहनों के ईंधन पर खर्च कर सकते हैं। इसके अलावा स्टेंडिंग कमेटी के चेयरमेन 3 लाख, सतारूढ़ दल के नेता २.50 लाख और विपक्ष के नेता भी २.50 लाख तक ईंध्न पर खर्च कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस राशि के अतिरिक्त एक पैसा भी अधिकारियों को नहीं मिलेगा।
जनता के पैसों को पानी की तरह बहाने वाले अधिकारियों पर लगाई गई यह लगाम कहां तक कारगर होगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि यदि इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया तो निगम फिर इसी ढर्रे पर लौट आएगा और जनता की मेहनत का पैसा इसी तरह बहता रहेगा।
आरटीआई से यह जानकारी भी मिली है कि पुणे की पिंपरी-चिंचवाड नगर निगम के अधिकारियों के 63 वाहनों का सालाना ईंधन और मरम्मत खर्च करीब एक करोड़ रूपये है। अधिकारियों के इन वाहनों के ईंध्न पर 74 लाख और मरम्मत पर 26 लाख का खर्चा होता है। इन वाहनों के 63 चालकों का औसत वेतन करीब दस हजार है, जो खर्चों में पर्याप्त वृद्धि करता है। इसके अलावा पंजीकरण और आरटीओ से सम्बंधित खर्चे भी निगम को ही वहन करने पड़ते हैं।
नए दिशानिर्देषों को बताते हुए निगम सचिव शरद काले ने कहा है कि हर अधिकारी प्रतिमाह 150 लीटर तक ईंधन इस्तेमाल कर सकते है। हालांकि सभी लोगों के लिए ईंधन खर्च समान नहीं है। महापौर को सालाना साढ़े तीन लाख मूल्य तक के ईंधन के इस्तेमाल की अनुमति है, जबकि उप महापौर ढाई लाख रूपये तक वाहनों के ईंधन पर खर्च कर सकते हैं। इसके अलावा स्टेंडिंग कमेटी के चेयरमेन 3 लाख, सतारूढ़ दल के नेता २.50 लाख और विपक्ष के नेता भी २.50 लाख तक ईंध्न पर खर्च कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस राशि के अतिरिक्त एक पैसा भी अधिकारियों को नहीं मिलेगा।
जनता के पैसों को पानी की तरह बहाने वाले अधिकारियों पर लगाई गई यह लगाम कहां तक कारगर होगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि यदि इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया तो निगम फिर इसी ढर्रे पर लौट आएगा और जनता की मेहनत का पैसा इसी तरह बहता रहेगा।
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