उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं कि अब हम इन लोक सूचना अधिकारियों का कुछ नहीं कर सकते। यह हताशा सूचना के राज्य के सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने बनारस में सूचना अधिकार पर आधरित कार्यक्रम में व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हरेक आयुक्त 30 से लेकर 100 केस रोज़ाना सुनता है लेकिन इसके बावजूद लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को राज्य सूचना आयोग में जाना पड़ता है। जिससे आयोग का काम लगातार बढ़ता जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर लोक सूचना अधिकारियों की यह हिम्मत बढ़ाई किसने है? सूचना न देने वाले अधिकारियों पर ज़ुर्माना न लगाना और सूचना आयोग में आम नागरिकों के को डांटना डपटना किसने किया था? इस पर अगर लोक सूचना अधिकारियों का नहीं तो क्या राज्य के आम नागरिकों का हौसला बढे़गा?