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शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

अपीलों का जिन्न

उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं कि अब हम इन लोक सूचना अधिकारियों का कुछ नहीं कर सकते। यह हताशा सूचना के राज्य के सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने बनारस में सूचना अधिकार पर आधरित कार्यक्रम में व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हरेक आयुक्त 30 से लेकर 100 केस रोज़ाना सुनता है लेकिन इसके बावजूद लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को राज्य सूचना आयोग में जाना पड़ता है। जिससे आयोग का काम लगातार बढ़ता जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर लोक सूचना अधिकारियों की यह हिम्मत बढ़ाई किसने है? सूचना न देने वाले अधिकारियों पर ज़ुर्माना न लगाना और सूचना आयोग में आम नागरिकों के को डांटना डपटना किसने किया था? इस पर अगर लोक सूचना अधिकारियों का नहीं तो क्या राज्य के आम नागरिकों का हौसला बढे़गा?

रेगिंग में आगे

उत्तर प्रदेश के कालेजों से रैगिंग की सबसे ज्यादा शिकायतें आई हैं। मानव संसाधन मन्त्रालय द्वारा 20 जून 2009 को रैगिंग की शिकायत दर्ज करने के लिए एक हेल्पलाईन शुरू की गई थी। सूचना के अधिकार के तहत सहारनपुर निवासी कुश कालरा द्वारा निकाली जानकारी से पता चलता है कि कुल मिलाकर 658 शिकायतें दर्ज हुई हैं इसमें से सबसे ज्यादा 131 मामले उत्तर प्रदेश से हैं। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल से 86 शिकायतें हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश (65), उड़ीसा (60) और कर्नाटक (31) आते हैं। मणिपुर शायद सबसे दूरस्त है या फिर वहां रैगिंग की प्रवृत्ति कम है। वहां से केवल एक शिकायत दर्ज हुई। 
प्राप्त सूचना से यह भी पता चलता है कि सबसे ज्यादा (333) रैगिंग की शिकायतें इंजीनियरिंग कालेजों से मिलीं। मेडिकल कालेजों से 71 शिकायतें मिलीं। पोलिटेकनिक कालेजों से 59 शिकायतें मिलीं।

झारखण्ड सूचना विहीन आयोग

झारखण्ड राज्य सूचना आयोग अपने ही दफ्तर  में काम कर रहे अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन और खर्चे की जानकारी देने से बच रहा है। हज़ारीबाग निवासी गणेश कुमार वर्मा (सीटू) ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राज्य सूचना आयोग से पूछा था कि `मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, अवर सचिव को कितना वेतन मिलता है, तथा इनके वेतन, वाहन, ड्राईवर, यात्रा, आवास एवं फोन पर कितना कितना पैसा खर्च हुआ है´। पहले तो आयोग के लोक सूचना अधिकारी ने गणेश वर्मा को चिट्ठी लिखी कि मांगी गई सूचना 953 पृष्ठों में है, अत: 1896 रुपए जमा करके सूचना ले लें। लेकिन जब गणेश वर्मा ने पैसे जमा कराने चाहे तो आयोग के कार्यालय ने पैसे लेने से भी मना कर दिया और आज तक उन्हें सूचना भी नहीं दी गई है।

20 दिन में नई मार्कशीट

झारखण्ड में सरायकेला ज़िले की निवासी अनु पाणी ने तमिलनाड़ु के विनायका मिशन विश्विद्यालय से एम.फिल (इतिहास) की परीक्षा दी. अनु ने परीक्षा पास कर ली लेकिन अंक पत्र में उनके पिता का नाम गलत लिखा हुआ था। इसी शिकायत विश्वविद्यालय के जमशेदपुर स्थित अध्ययन केन्द्र से की गई, कोई एक्शन नहीं हुआ, कोलकाता स्थित मुख्य कार्यालय में की तो भी कुछ नहीं हुआ। डेढ़ साल बीतने पर अनु के भाई ए.सी.पाणी ने यूजीसी, विश्वविद्यालय के कुल सचिव तथा परीक्षा नियन्त्रक को पत्र लिखे लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला। हारकर पाणि ने सूचना के अधिकार के तहत यूजीसी तथा एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटीज़ से पूछा कि उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई है। सूचना के अधिकार का आवेदन मिलते ही यूजीसी हरकत में आ गया। उसने तुरन्त विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को नोटिस भेजा। सूचना अधिकार आवेदन दाखिल करने के 20 दिन के अन्दर जमशेदपुर के केन्द्र निदेशक ने अनु और उनके भाई को व्यक्तिगत रूप से बुलाकर नया अंक पत्र सौंपा।

ये है देश का भविष्य

बात शिक्षा पर भाषण देने की हो तो नेता हों या अफसर कोई पीछे नहीं रहेगा लेकिन देश के नेता या अफसर शिक्षा पर कर क्या रहे हैं इसकी बानगी बंगलोर से ली जा सकती है। शहर में नगर निगम के अधीन चल रहे 33 हाई स्कूलों में कुल मिलाकर 379 शिक्षकों की कमी है। कन्नड भाषा के शिक्षकों के 46 पद हैं पर कई साल से केवल 15 लोगों से काम चलाया जा रहा है। तमिल भाषा के 16 पदों में से सिर्फ एक पद पर शिक्षक नियुक्त हैं। `कला शिक्षक´ के 103 पदों में से सिर्फ 46 भरे हैं यानि 67 शिक्षकों की कमी है। भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित विषयों के लिए 92 में से सिर्फ 46 पद भरे हैं, जीव एवं वनस्पति विज्ञान के 27 शिक्षकों में से केवल 16 पद भरे हैं। 
संगीत शिक्षक के 7 पदों में से एक पर भी नियुक्ति नहीं हुई है। ड्राईंग-पेंटिंग के लिए 20 में से 5 पदों पर ही शिक्षक हैं। 
कहते हैं कि देश का भविष्य स्कूल की कक्षाओं में लिखा जाता है। लेकिन जहां तमाम अफसर और नेता भ्रष्टाचार कर अपना भविष्य संवारने में लगे हों वहां भला स्कूलों की चिन्ता कोई करे भी तो क्यों

नेताजी के साथ मज़ाक

रक्षा मन्त्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उसने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के `आज़ाद हिन्द फौज´ के इतिहास पर आधारित 60 साल पुरानी पुस्तक की पाण्डुलिपि उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। 23 जनवरी को जब देश नेताजी का 115 वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहा था, उसी सप्ताह में रक्षा मन्त्रालय ने तर्क दिया कि वह इस किताब को प्रकाशित करना चाहता है और इसे सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् कराने से `राज्य के आर्थिक हित को नुकसान पहुंचेगा। अत: यह सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् नहीं कराई जा सकती।
मामला आरटीआई आवेदक अनुज धर और चन्द्रचूढ़ घोष की ओर से दायर आरटीआई आवेदन से संबिन्ध्त है जिन्होंने पी.सी. गुप्ता की ओर से आज़ाद हिन्द फौज के इतिहास पर सरकार की ओर से लिखवाई पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति की मांग की थी। 
आवेदकों ने सूचना आयोग में शपथ पत्र दिया था कि वे इस पाण्डुलिपि का कोई कमर्शियल उपयोग नहीं करेंगे। इसके बाद केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम.एल. शर्मा ने रक्षा मन्त्रालय को पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। लेकिन यह आदेश मिलते ही अचानक 60 साल बाद रक्षा मन्त्रालय का इस पुस्तक से आर्थिक प्रेम जाग गया है और उससे अदालत में गुहार लगाई है कि उसे बचाया जाए।