घूस मत दो, सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करो। इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में रहने वाले मुजीबुर्र रहमान काम करते हैं और लोगों के रफके हुए जायज काम करवाने में मदद करते हैं। सूचना का अधिकार कानून लागू होने के बाद से ही मुजीबुर्र को इसकी ताकत का एहसास हो गया था और तभी से इन्होंने इस कानून का जनहित में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। इनके आवेदनों का ही असर था कि अनेक लोगों के रुके हुए पेंशन मिले। बरसों से तिकड़मबाजी के जरिए अपने पसंदीदा स्थान पर पोस्टिंग का मजा ले रहे अधिकारियों के तबादले हुए। आवासीय क्वार्टर का व्यवसायिक इस्तेमाल कर रहे लोगों को नोटिस जारी हुआ और व्यवसायिक इस्तेमाल बंद हुआ।
कोल इंडिया की सहायक कंपनी साउथ इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड में काम करने वाले मुजीबुर्र अपनी कंपनी की तानाशाही के खिलाफ ही खम ठोंककर खडे़ हो गए। दरअसल कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने हेतु प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के लिए धन इकट्ठा करती है और इसके लिए वह अपने कर्मचारियों की आय का एक हिस्सा काटती है। इसी क्रम में 42 करोड़ रुपये एकत्रित हुए लेकिन इसमें से 30 करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचाए गए। मुजीबुर्र ने आरटीआई डालकर पीएमओ, कोल इंडिया और साउथ इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड से इस संबंध में सूचनाएं मांगी लेकिन कहीं से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला। अंत में केन्द्रीय सूचना आयोग के निर्णय के बाद कोल इंडिया को 12 करोड़ की जगह ब्याज सहित 15 करोड़ की राशि प्रधानमंत्री कार्यालय भेजनी पड़ी। मुजीबुर्र इसे सूचना के अधिकार की सबसे बड़ी जीत मानते हैं।
हालांकि यह सब मुजीबुर के लिए इतना आसान नहीं रहा। सूचना मांगने पर उन्हें अपनी ही कंपनी के निदेशक की तरफ से अनेक बार धमकियाँ भी मिलीं, फ़िर भी वे विचलित नहीं हुए। सूचना के अधिकार पर यकीन किया और डटे रहे। ऐसे सूचना के सिपाही को हमारा सलाम।
(अपना पन्ना में प्रकाशित)
बधाई लेकिन धारा 4 और 5 का क्या ?क्या इस बारे में कुछ नही6 किया जाना चाहिए?
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