सिंगूर में टाटा मोटर्स की लखटकिया कार फैक्ट्री के लिए भूमि अधिग्रहण को जायज ठहराते वक्त राज्य सरकार ने कहा था कि इस फैक्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से लोगों को रोजगार प्रदान किया जाएगा। लेकिन हाल ही में राज्य श्रम निदेशालय ने कहा है कि टाटा मोटर्स लिमिटेड ने अब तक फैक्ट्री में रोजगार के लिए हुगली के किसी भी रोजगार कार्यालय को खबर नहीं की है। साथ ही आधिकारिक रूप से यह सूचना भी दी गई कि सिंगूर की लघु कार फैक्ट्री में प्रत्यक्ष रूप से बडे़ पैमाने पर रोजगार नहीं दिया जा जाएगा। यह खुलासा सूचना के अधिकार के तहत दायर एक कार फैक्ट्री में रोजगार के लिए निदेशालय से नहीं हुआ संपर्क से हुआ हैै। यह अजीZ इंडियन सोसाइटी ऑफ फंडामेंटल एंड हयुमन राइट्स के संयोजक सलिल कापत ने दायर की थी। श्री कापत ने श्रम निदेशालय से अपनी आरटीआई अजीZ में पूछा था कि क्या टाटा मोटर्स लिमिटेड ने निदेशालय से फैक्ट्री में स्थानीय लोगों की नियुक्तियों की प्रक्रिया के संबंध में संपर्क किया है। उन्होंने अपनी अजीZ में निदेशालय से प्रश्न किया कि क्या टाटा मोटर्स ने सिंगूर की लघु कार फैक्ट्री में व्यक्तिगत नियुक्तियों के लिए रोजगार कार्यालयों से संपर्क किया है। श्रम निदेशालय के डिप्टी डायरेक्टर ने अजीZ का जवाब देते हुए कहा है कि टाटा मोटर्स लिमिटेड ने अब तक हुगली जिले के किसी भी रोजगार कार्यालय में नौकरियों के लिए संपर्क नहीं साधा है।
शुक्रवार, 24 अगस्त 2012
सोमवार, 21 मार्च 2011
सीबीआई आरटीआई से बाहर होना चाहती है
सीबीआई ने कार्मिक विभाग से अपील की है कि उसे आरटीआई के दायरे से बाहर कर दिया जाये। इसके पीछे सीबीआई का तर्क है कि आरटीआई के तहत ऐसे आवेदनों की संख्या तेजी से बढ़ी है जिसमें लोग बन्द चुके या कोर्ट में चार्जसीट दाखील हो चुके मामलों की फाईल नोटिंग मांग रहे हैं। इसके कारण सीबीआई की रोजमर्रा के काम पर प्रभाव पड रहा है। साथ ही सीबीआई एक मामला एक फाईल की नीति पर काम करती है। ऐसे में जांच अधिकारी किसी मामले में अपनी बात लिखने से बच रहे है जिससे जांच की निष्पक्षता प्रभावित होती है।
ऐसा नहीं है कि सीबीआई यह कोशिश पहली बार कर रही हो। आरटीआई क़ानून लागू होने के बाद से ही वह इससे बाहर होने की कोशिश कर रही है। सबसे पहले सीबीआई के पुर्व निदेशक अश्विनी कुमार ने सरकार को पत्रा लिखकर यह मामला उटाया था और अब उनके उत्तराधिकारी ए.पी.सिंहा ने कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर अपील की है कि उन्हें आरटीआई के दायर से बाहर किया जाये। सूत्रों के अनुसार कार्मिक विभाग ने सीबीआई निदेशक के इस अपील पर क़ानून मन्त्रालय से सलाह भी मांगी है।
बीएमसी से गायब हुई फाईलें
मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी होने के साथ साथ अब भूमी और भवन घोटाले की राजधानी भी बनती जा रही है। बृहद मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) के कार्यालय से बान्द्रा, खार और सान्ताक्रुज जैसे इलोकों की 74 बिल्डिंगों की फईले गायब हो गई हैं। इन फाईलों में बिल्डिंग बनाने के लिए दी गई अनुमती से लेकर उनके नक्कशे, कंप्लीशन सर्टिफिकेट और इनमें रह रहे लोगों के पंजीकरण एवं हस्तान्तरण प्रमाण पत्र जैसे महत्वपूर्ण कागजात थें। आरटीआई कार्यकर्ता आफताब सिद्दीकी ने ये सरी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत निकाला है।
आफताब का कहना है कि जो सूचनाएं मिली उससे पता चला है इन 74 बिल्डिंगों में रहने वाले निवासियों में कौन वैद्य है और कौन अवैद्य इसका पता लगाना बीएमसी के लिए सम्भव नहीं है।
बिना मांगे मिलेगा विकास कार्यों का हिसाब
दिल्ली के लोगों को उनके विधायकों और निगम पार्षदों द्वारा कराये गये विकास कार्यों की जानाकरी बिना मांगे मिलेगी। केन्द्रीया सूचना आयुक्त शैलेष गाँधी ने दिल्ली सरकार और नगर निगम को आदेश दिया है कि 15 मार्च से पहले दिल्ली के सभी विधायकों और निगम पार्षदों द्वारा उनके फण्ड से कराये गये सभी कार्यों का पूरा विवरण सम्बंधित वार्ड में एक बोर्ड पर लिख कर लगाया जाये।
शैलेष गाँधी ने इस आदेश में कहा है कि बोर्ड पर सभी कार्यों का नाम, उसके लिए स्वीकत राशि, कार्य आरम्भ और समाप्त होने की तिथि, भुगतान की गई राशि और टेकेदार का नाम आदि अवश्य शामिल हों। साथ ही ये सारी सूचना हिन्दी में होगी और हर साल इसे अपडेट किया जायेगा।
पाईप लाईन घोटाला
गुजरात के राजकोट ज़िले के विरावल गांव के निवासी रायाभाई जापडीया ने आरटीआई की सहायता से अपने गांव में पीने के पानी की सप्लाई के लिए बिछाई गई पाईप लाईन में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया है। पानी की कमी से जुझा रहे विरावल गांव के लोगों के लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2008 में सराकार ने वहां पाईप लाईन विछाया। लेकिन अधिकारियों और टेकेदार की मिलीभगत से पाईल लाईन सही तरीके से नहीं बिछाई गई। जिसका नुकसान गांव वालों को उटाना पड़ रहा है। रायाभाई ने जून 2008 में ही आरटीआई के तहत इस पाईप लाईन से सम्बंधित सूचनाएं मांगी लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया। जब यह मामला गुजरात सूचना अयोग में गया तो आयोग के आदेश के बाद अधिकारियों की मौजुदगी में रायाभाई ने पूरी परियोजना का निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद पता चला कि सरकारी रिकॉर्ड में तो 2.9 किलो मीटर लिखा था लेकिन वास्तव में सिर्फ 1.5 किलो मीटर ही बिछाई गई। रिकॉर्ड के अनुसार पाईप लाईन की गहराई .90 मीटर होनी चाहिए थी जबकि वास्तव में यह .23 से .55 मीटर तक की थी।रायाभाई ने इसकी शिकायत सम्बंधित विभाग के अधिकारियों को कर दिया है और उनका कहना है कि आरटीआई से मिली सूचना दोषी अधिकारियों और टेकेदार को दण्ड दिलाने में करगर साबित होगा।
आरटीआई के जवाब में धमकी मिली
बाहरी दिल्ली के एक निवासी ने जब सूचना के अधिकार कानून के तहत इण्डियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) से जानकारी मांगी तो उन्हें धमकाया गया। आवेदक ने केन्द्रीय सूचना आयोग से शिकायत कर मामले की जांच कराने की मांग की है। कादीपुर कुशक निवासी विकास कुमार ने इलाके में रसोई गैस की किल्लत को लेकर दो महीने पहले इण्डियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसी) से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। उन्होंने बताया कि उन पर आवेदन वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाने लगा। आरोप है कि इसके लिए आइओसी के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक के कहने पर क्षेत्रीय अधिकारी प्रेम सखूजा ने उससे मिलकर आरटीआई वापस लेने के लिए दबाव बनाया था। लेकिन इसके लिए वह तैयार नहीं हुए। इसके बाद आईओसी द्वारा उन्हें आधी-अधूरी जानकारी देते हुए प्रति पेज दो रुपये के हिसाब से 108 रुपये का ड्राफ्ट जमा कराने को कहा गया। जिसे उन्होंने दो फरवरी को स्पीड पोस्ट के माध्यम से आईओसी को भेज दिया। लेकिन चार फरवरी को उनके मोबाइल पर फोन नंबर 23352390 से एक धमकी भरी काल आई। कॉल करने वाले ने बताया कि वह पुलिस मुख्यालय से बोल रहा है। उक्त व्यक्ति ने कहा कि तुम आरटीआई लगाकर अधिकारियों को ब्लैकमेल करते हो, तुम्हारे खिलाफ यिकायत आई है। अपनी आरटीआई वापस ले लो, वरना पूरी जिन्दगी जेल में कटेगी। उसी दिन 23318508 नंबर से एक फोन इसी सन्दर्भ में आरटीआई लगाने वाले नत्थूपुरा निवासी किशन अत्री के पास भी आया। फोन करने वाले शख्स ने उसे भी धमकाया ओर आरटीआई वापस लेने के लिए कहा। विकास ने बताया कि दोनों नंबरों के बारे में पता करने मालूम हुआ कि दोनों ही फोन नंबर आईटीओ स्थित सेल्स टैक्स के कार्यालय का है। इस बारे में आईओसी के क्षेत्रीय अधिकारी प्रेम सखूजा का कहना था कि उन्होंने आरटीआई वापस लेने के लिए कहा था, ताकि विभाग के अधिकारियों को जवाब देने में समय न बर्बाद करना पड़े। उन्होंने बताया कि उन्होंने आवेदक से मिलकर समस्याओं के निराकरण का आश्वासन भी दिया था, लेकिन आवेदक तैयार नहीं हुए। उन्होंने धमकी देने या दिलवाने की बातों से इंकार किया है।
शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011
अपीलों का जिन्न
उत्तर प्रदेश में राज्य सूचना आयोग ने एक तरह से हाथ खड़े कर दिए हैं कि अब हम इन लोक सूचना अधिकारियों का कुछ नहीं कर सकते। यह हताशा सूचना के राज्य के सूचना आयुक्त वीरेन्द्र सक्सेना ने बनारस में सूचना अधिकार पर आधरित कार्यक्रम में व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में हरेक आयुक्त 30 से लेकर 100 केस रोज़ाना सुनता है लेकिन इसके बावजूद लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को राज्य सूचना आयोग में जाना पड़ता है। जिससे आयोग का काम लगातार बढ़ता जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर लोक सूचना अधिकारियों की यह हिम्मत बढ़ाई किसने है? सूचना न देने वाले अधिकारियों पर ज़ुर्माना न लगाना और सूचना आयोग में आम नागरिकों के को डांटना डपटना किसने किया था? इस पर अगर लोक सूचना अधिकारियों का नहीं तो क्या राज्य के आम नागरिकों का हौसला बढे़गा?
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