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सोमवार, 6 दिसंबर 2010

सेना में पारदर्शिता के लिए आगे आएं

-मनीष सिसोदिया

आदर्श और सुखना घोटालों ने सेना में भ्रष्टाचार के गम्भीर संकेत दिए हैं। नेता, अफसर, जज, पत्रकार... शायद इनके भ्रष्ट होने की हमें आदत पड़ गई है... और इन सबका भ्रष्ट होना शायद हमें इतना प्रभावित न कर पाए जितना सेना में भ्रष्टाचार कर सकता है। अगर सेना भ्रष्ट हो गई तो इस देश में रहने वालों का क्या हश्र होगा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन जैसे पड़ोसी या फिर अमेरिका जैसे जैकाल मुल्क हमारा क्या हश्र बनाएंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
लेकिन आदर्श घोटाले की रोशनी में देखें तो हमारी सेना में भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है। जलसेना की ज़मीन पर 31 मंज़िला इमारत बनकर खड़ी हो जाती है, थलसेना अध्यक्ष महाराष्ट्र के निवासी होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाते हैं, अपनी तन्ख्वाह 15 हज़ार रुपए से नीचे बताते हैं और कारगिल के शहीदों की विधवाओं के नाम बने फ्रलैट अपने नाम करा लेते हैं. इसी रोशनी में सेना के कुछ और घोटालों पर रोशनी डालते चलते हैं -


2006 : सैन्य कोटे के लिए आवंटित शराब को खुले बाज़ार में बेचने के मामले में कार्ट ऑफ इन्क्वायरी ने मेजर जनरल इकबाल सिंह, चार ब्रिगेडियर और दूसरे सात अफसरों को दोषी ठहराया था।

2006 : में ही जम्मू कश्मीर में तैनात सैनिकों के लिए सूखी खाद्य सामिग्री की कुछ विशेष चीज़ों की खरीद में घोटाले के लिए लेफ्टिनेंट जनरल सुरेन्द्र साहनी, दो ब्रिगेडियर और आठ अफसर दोषी ठहराए गए।

2007 : में लद्दाख में तैनात जवानों के लिए फ्रोजेन मीट के ठेके में अनियमितता के लिए लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. दहिया, ब्रिगेडियर बिश्नोई और तीन दूसरे अफसरों को दोषी ठहराया गया।

2009 : में आयुध् विभाग का का कोई प्रमुख नहीं था क्योंकि इस पद के काबिल तीनों अफसरों पर रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। आरोप पत्र के अनुसार हुए मे.जन.. ए.के. कपूर के पास सेना में शामिल होते वक्त 1971 में 41,000/- रुपए की संपत्ति थी लेकिन 2007 में उनके पास 5.5 करोड़ की अचल संपत्ति थी।

2006-2008 : कॉलेज आफ मेटेलियल मेनेजमेंट, जबलपुर के मुखिया रहे मेजर जनरल अनिल स्वरूप को संयुक्त राष्ट्र में शांइति अभियान में भेजी गई यूनिट के लिए खरीददारी में अनियमितता बरतने के लिए दोषी पाया गया। जो जनरेटर बाज़ार में 7 लाख में उपलब्ध् थे उन्हें 15 लाख में खरीदा गया। 200 रुपए की कीमत वाली केबल्स को 2000 रुपए में खरीदा गया। अनुमान के मुताबिक यह लूट करीब 100 करोड़ की थी।

ये घटनाएं तो सिर्फ बानगियां भर है। जब हमने सूचना के अधिकार के तहत लद्दाख में तैनात सैनिकों को भेजे जाने वाले राशन, जैकेट और जूते की गुणवत्ता के बारे में सवाल पूछे तो ये कहते हुए खारिज कर दिया गया कि यह मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती। देश की सुरक्षा के नाम पर सेना में गुपचुप बहुत कुछ चल रहा है। तहलका पत्रिका में हाल में प्रकाशित एक खास रिपोर्ट के अनुसार-
असली घोटाला तो खरीद में होता है। इसमें सबसे उपर आता है आपूर्ति विभाग जो 13 लाख जवानों के लिए रसद सप्लाई का काम देखता है। एक जवान के खाने पर अगर 100 रुपए रोज़ाना भी खर्च किए जाते हैं तो पूरी सेना में हर रोज़ 13 करोड़ का खर्च तो सिर्फ खाद्य खरीद का होता है। अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि यहां हेरफेर की कितनी गुंजाईश है।

इसी तरह आयुध् विभाग, जो हथियारों की सप्लाई करता है इसका सालाना बजट 8000 से 10,000 करोड़ रुपए है।

आपूर्ति और आयुध् विभाग के बाद है मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस। इसका सलाना बजट 10,000 से 20,000 करोड़ रहता है।
सेना के एक अधिकारी का कहना है कि हर चेक साईन पर एक से तीन प्रतिशत का कमीशन तय है। इसी तरह हर डील साईन पर करप्शन है। और सवाल सिर्फ यह नहीं है कि क्या हो रहा है। असली सवाल तो यह है कि क्या होने वाला है। तहलका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत अगले चार-पांच साल में करीब सवा दो लाख करोड़ रुपए रक्षा सौदों पर खर्च करने वाला है। रक्षा से जुड़ी बड़ी कंपनियां अपने अपने देशों के नेताओं के साथ दिल्ली के चक्कर काटने लगी हैं। कई भारतीय कंपनियां भी इस बजट पर अपना बिज़नेस टिकाए बैठी हैं। इसी तरह देश के कई बड़े नेता, अफसर, ठेकेदार और दलाल इसमें संभावनाएं तलाश ही रहे हैं।
इस लेख का मकसद सेना की छवि को खराब करना या सैनिकों का मनोबल कम करना नहीं है। क्योंकि सेना के जवान और अफसर जब सरहद पर, या कहीं और भी, जान जोखिम में डाल कर खड़े होते हैं तो उसकी कीमत न तो उन्हें मिल रही सेलरी होती है न इस नौकरी में मिले सुख सुविधाएं। वह एक जज्बे के तहत खड़ा होता है और देश की सुरक्षा जज्बे का मामला है और इस जज्बे की कहीं कोई कीमत हो नहीं सकती। और यह जज्बा है जो आज भी हमें एक सुरक्षित मुल्क बने रहने का भरोसा देता है।

नेताओं और अफसरों से तो उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे इस जज्बे की कद्र करेंगे। इस जज्बे की कद्र करते हुए हमें सेना को और सैनिकों को भ्रष्टाचार से बचाना है। इसके लिए देश के अधिक से अधिक लोगों को सूचना का अधिकार इस्तेमाल करना होगा। खुद सैनिकों से बात करके ऐसे मुद्दों पर सूचना मांगनी होगी जहां भ्रष्टाचार है या इसकी संभावनाएं हैं। और ऐसा इसलिए नहीं करना है कि हमें अपनी सेना में भ्रष्टाचार उजागर करना है। बल्कि इसलिए करना है कि नेता, अफसरों और दलालों को सन्देश जा सके कि सेना में उनकी घुसपैठ को लेकर देश का आम आदमी सक्रिय है। सचेत है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह कैसे नेता हैं, यह कैसी सरकार है, जहाँ भी घपले के विरुद्ध आवाज उठी वहीँ आयोग सूचना की जानकारी पर प्रतिबंध लगा देती है। किसके फायदे के लिए, इस मामले में यह पाबंदी सोनिया जी के फायदे के लिए लगी है या जनता के फायदे के लिये? फिर भी सब कुछ शांति पूर्वक चल रहा है। कारण? इस देश में पृथ्वीराज चौहान, सुभाष, भगत सिंह एवं देश पर शहीद होने वाले क्रांतिकारी, महात्मा गाँधी, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, अटल जी एवं चंद और महान नेता गिनती के हैं लेकिन जय चंद जैसे लोगों की भरमार है। अब फर्क सिर्फ इतना है पहले विदेशियों के आधीन थे और अब चंद विदेशी और भ्रष्ट स्वदेशियों के गुलाम हैं।

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  2. यह कैसे नेता हैं, यह कैसी सरकार है, जहाँ भी घपले के विरुद्ध आवाज उठी वहीँ आयोग सूचना की जानकारी पर प्रतिबंध लगा देती है। किसके फायदे के लिए, इस मामले में यह पाबंदी सोनिया जी के फायदे के लिए लगी है या जनता के फायदे के लिये? फिर भी सब कुछ शांति पूर्वक चल रहा है। कारण? इस देश में पृथ्वीराज चौहान, सुभाष, भगत सिंह एवं देश पर शहीद होने वाले क्रांतिकारी, महात्मा गाँधी, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, अटल जी एवं चंद और महान नेता गिनती के हैं लेकिन जय चंद जैसे लोगों की भरमार है। अब फर्क सिर्फ इतना है पहले विदेशियों के आधीन थे और अब चंद विदेशी और भ्रष्ट स्वदेशियों के गुलाम हैं।

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