पृष्ठ

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की झूठ की पोल खुली

महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह पिछले कुछ महीनों से किसी न किसी कारण से लगातार विवादों में घिरे रहे हैं। अब नया विवाद यह है कि उन्होंने अपने चुनाव घोषणा पत्र में गलत जानकारी दी है। इंटर की परीक्षा में फेल होने के बावजूद अपने चुनाव घोषणा पत्र में उन्होंने बताया है कि वो स्नातक हैं। इस बात का खुलासा हुआ है सूचना के अधिकार से। 
कृपाशंकर सिंह ने 1994 और 1999 के विधानसभा चुनावों में दिये गये घोषणा पत्र में बताया है कि उन्होंने विज्ञान से स्नातक किया है लेकिन 2004 के चुनाव के दौरान दिये गये घोषणा पत्र में कहा है कि उन्होंने 1969 में जय हिन्द इंटर कॉलेज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश से इंटर पास करने के बाद आगे पढ़ाई नहीं की। आरटीआई कार्यकता संजय तिवारी ने जब जय हिन्द इंटर कॉलेज के लोक सूचना अधिकारी से इस सम्बंध् में सूचना मांगी तो उन्हें बताया गया कि कॉलेज के रिकॉर्ड के अनुसार कृपाशंकर सिंह इंटर की परीक्षा में फेल हैं।

कुल कितने भ्रष्ट?


आर्मी ने भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे अधिकारियों से सम्बंधित सूचना आरटीआई के तहत देने से मना कर दिया है। एक आवेदक ने आरटीआई के तहत आर्मी से सूचना मांगी थी कि ब्रिग्रेडियर और उससे ऊपर के उन अधिकारीयों का विवरण दें जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के अरोपों की जांच चल रही है या पूरी हो चुकी हो। आर्मी ने सूचना देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि मांगी गई जानकारी को इतना ज्यादा है कि उसे इक्ट्ठा करना सम्भव नहीं है। साथ ही लोक सूचना अधिकारी का यह भी कहना है कि भ्रष्टाचार के अरोपों से घिरे अधिकारीयों की सूचना से किसी तरह का जनहित नहीं जुड़ा है इसलिए भी यह सूचना नहीं दी जा सकती है। 

एम्स: 70 सीटें खाली पडी हैं

इस वर्ष एम्स के पी.जी. कोर्स में प्रवेश लेने वाले लगभग 30% छात्र बीच सत्र में नामांकन रद्द करा कर किसी और संस्था में चले गये। जिसके कारण इस हाई प्रोफाइल संस्था की 70 सीटें खाली रह गईं। सूचना के अधिकार के तहत यह जाकारी एम्स प्रशासन ने दी है। 
पिछले तीन सालों में 138 छात्रों ने एम्स का पी.जी. कोर्स प्रवेश लेने के बाद छोड़ा है। 2010 में 240 छात्रों ने प्रवेश लिया जिसमें से 70 छोड़ कर चले गये। 2009 में 180 में से 37 और 2008 में 160 में से 31 छात्रों ने एम्स छोड़ कर किसी और संस्था में प्रवेश लिया। 
इतनी सीटें खाली रहने के बावजूद भी इस वर्ष जुलाई में एम्स प्रशासन ने बिना कोई कारण बताये ओपन काउंसलिंग पर रोक लगा दिया। अब कोई एम्स प्रशासन से यह पूछे कि उनके इस फैसले से करदाताओं का जो लाखों रूपया बर्बाद हो रहा उसकी भरपाई कौन करेगा?

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

सूचना अधिकार इस्तेमाल करने वालों को समाज का सलाम

दूसरे राष्ट्रीय सूचना के अधिकार पुरस्कार के लिए पांच नागरिक ऐसे नागरिकों को चुना गया है जिन्होंने सूचना के अधिकार के तहत न सिर्फ सूचनाएं निकलवाईं बल्कि उन पर आगे काम भी किया। इसके अलावा लोकसूचना अधिकारी की श्रेणी में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के ब्लॉक डवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) प्रदीप कुमार को पुरस्कृत किया जाएगा। उन्होंने लोक सूचना अधिकारी रहते तमाम आवेदनों के सही और पूरी सूचना आवेदकों को उपलब्ध् कराई। उनके पास सूचना मांगने वाले आवेदकों में से सिर्फ एक आवेदक को प्रथम अपील तक जाना पड़ा था।
इस बार सूचना अधिकार का इस्तेमाल कर अपने अखबार-पत्रिकाओं के लिए खोजी पत्रकारिता करने वाले वाले पत्रकारों के लिए भी पुरस्कार रखा गया है। आउटलुक पत्रिका के पत्रकार सैकत दत्ता को ज्यूरी ने इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। सैकत दत्ता ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ 2500 करोड़ के चावल निर्यात घोटाले का पर्दाफाश किया बल्कि उसके पीछे लगकर इसे मुकाम तक पहुंचाया। आज इसका साज़िशकर्ता जेल में है और मामले की सीबीआई जांच चल रही है। 
इसके अलावा ज्यूरी ने दस ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी नागरिक सम्मान देने का फैसला लिया जिनके लोग पिछले दिनों इसलिए मारे गए क्योंकि वे सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। इन सब लोगों के परिवारों को सम्मान के साथ साथ एक-एक लाख रुपए की राशि भी भेंट की जाएगी। 

इन्हें मिलेगा सम्मान 
नागरिक श्रेणी
विनीता कामटे, महाराष्ट्र
मनोज करवार्सा , हरियाणा
रमेश वर्मा, हरियाणा
राजन घटे, गोवा
अतहर शम्सी, उत्तर प्रदेश

पत्रकार श्रेणी
सैकत दत्ता, आउटलुक पत्रिका

पीआईओ श्रेणी 
प्रदीप कुमार, बीडीओ, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश

विशेष सम्मान मरणोपरान्त 
अमित जेठवा, गुजरात
दत्ता पाटिल, महाराष्ट्र 
सतीश शेट्टी, महाराष्ट्र
विट्ठल गिटे, महाराष्ट्र
सोला रंगा राव, आंध्र प्रदेश
शशिधर मिश्रा, बिहार
बिसराम लक्ष्मण, गुजरात
वेंकटेश , कर्नाटक
ललित मेहता, झारखण्ड
कामेश्वर यादव, झारखण्ड

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

सोने के नहीं होते स्वर्ण पदक

कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर सूचना मांगने के कई आवेदन डाले गए. इनमें से बहुत से आवेदनों को तो अफसर इधर से उधर भेज रहे हैं. आयोजन समिति के पास दाखिल एक आवेदन के पहले खेल मंत्रालय भेज दिया जाता है. खेल मंत्रालय वापस इसे आयोजन समिति को भेज रहा है. चूहे बिल्ली के इस खेल के बाद भी कुछ सूचना निकल कर सामने आ रही है जिस पर आगे जांच किए जाने की ज़रूरत है. जैसे -

चिकित्सा: 15 दिन में 15 करोड़ खर्च
- कॉमनवेल्थ गेम्स में एक चिकित्सा केंद्र बनाया गया था. यहां कुल 3665 लोगों को  चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई और इस पर कुल 14,99,79,200 रुपया खर्च किया गया. यानि 15 दिन चले सेंटर पर प्रति मरीज़ पर करीब 50 हज़ार रुपए खर्च हुए. इनमें से 46 मरीजों को जीबी पंत अस्पताल में भी रैफर किया गया. 15 दिन में हुए इस खर्चे का हिसाब भी निकाला जाना चाहिए. मरीजों को देखे जाने के रजिस्टर को भी देखना होगा.

-  आयोजन समिति का कहना है कि खेलों के  उदघाटन व समापन समारोह पर अलग अलग खर्च बताना संभव नहीं है लेकिन दोनों समारोहों पर कुल 225 करोड़ 43 लाख रुपए खर्च हुए.

सोने के नहीं होते स्वर्ण पदक
- इसी तरह अगर आप सोच रहे हैं कि खेलों में सोने के तमगे वाकई सोने के होतें हैं तो आपकी जानकारी इस खबर को पढ़कर बढ़ सकती है. कॉमनवेल्थ के दौरान सोने के पदक 5539 रुपए में और चांदी के पदक 4800 रुपए में खरीदे गए. वैसे कुल मिलाकर सोने चांदी और  कांस्य के पदकों की खरीद पर 81 लाख रुपए खर्च किए गए.

शुंगलू समिति के पास कोई अधिकार नहीं

प्रधानमंत्री कार्यालय ने मान लिया है कि कॉमनवेल्थ में हुई गड़बड़ी की जांच के लिए जो शुंगलू कमेटी बनाइ गई उसका अधिकार और कार्यक्षेत्र तय नहीं है. देश भर में मचे हो हल्ले के बाद प्रधानमंत्री ने बड़े जोर शोर से शुंगलू कमेटी के गठन का ऐलान किया था. लेकिन अभी तक उसका अधिकार और कार्य क्षेत्र तय नहीं है. सूचना के अधिकार कानून के तहत दाखिल एक आवेदन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय से जो जवाब मिला है उसकी फाईल नोटिंग्स से यह खुलासा हुआ है. फाईल नोटिंग्स में लिखा है कि इस बारे में अभी केबिनेट सचिव से सलाह मांगी गई है. फाईल नोटिंग में आगे लिखा गया है कि इस समिति को सीबीआई, सीवीसी, ईडी. या सीएजी. को अधिकार एवं ताकत देने वाले कानूनों से भी कोई अधिकार नहीं प्राप्त है.
ऐसे में यह समिति देश की आंख में जांच की धूल झोंकने के अलावा क्या काम कर सकती है.


गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

पांच सालों में कहां पहुंचा है सूचना का अधिकार !

सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को लागू हुए पांच साल हो चुके हैं। पिछले पांच सालों में इस कानून का लाभ खेत में काम करने वाले किसान से लेकर सत्ता के गलियारे में बैठे बडे बडे नेताओं और अधिकारियों सभी ने अपने अपने तरीके उठाया है। आरटीआई का इस्तेमाल करके जहां एक ओर लोगों ने अपने राशन कार्ड और पासपोर्ट बिना रिश्वत दिये बनवाये वहीं दूसरी ओर कॉमनवेल्थ गेम और आदर्श सोसाइटी जैसे बडे घोटालों का भांड़ाफोड भी किया। लेकिन ऐसा नहीं है कि आरटीआई के इस्तेमाल करने वालो को केवल सफलता ही मिल रही है। पांच सालों में कई ऐसे मौके आये है जब कभी सरकार की ओर से कानून में संशोधन करके इसे कमजोर करने की कोशिश की गई तो कभी जिन लोगों का भाण्डाफोड हुआ उन्होंने आरटीआई इस्तेमाल करने वाले लोगों को धमका कर रोकने की कोशिश की और जब वो नहीं माने तो हत्या तक करवा दी। इसी साल पीछले ग्यारह महिनों 10 से भी ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।

1992 से अब तक हुए बड़े घोटाले


भ्रष्टाचार का समाधान
-मनीष सिसोदिया
ऊपर दिए गए घोटालों की यह लिस्ट और भी बढ़ाई जा सकती है। और हम सब जानते हैं कि यह बहुत लंबी है। लेकिन यहां मकसद वह सब दोहराना नहीं बल्कि समाधान पर विचार करना है। दरअसल जैसे ही कोई घोटाला सामने आता है तो कुछ जुमले चल निकलते हैं यथा- भारत घोटालों का लोकतन्त्र बन चुका है, भ्रष्टाचार हमारा सामाजिक चरित्र बन चुका है... 'सब के सब चोर हैं'...  'इस देश का कुछ नहीं हो सकता'... 'हर आदमी अपने अपने स्तर पर चोर है'... 'तभी तो चोर नेता चुने जाते हैं'... आदि आदि... और इन सबके बीच असली मुद्दा दबा दिया जाता है कि मर्ज की दवा क्या है। वस्तुत: तो इस शोर में यह सवाल भी दब जाता है कि मर्ज क्या है।
मर्ज और दवा की बात करें तो भ्रष्टाचार की घटना के मूल में जाकर विश्लेषण करना पड़ेगा. भ्रष्टाचार को लेकर हमारे देश में दो कारण चर्चा में बने रहते हैं- 
  • व्यवस्था यानि शासन में खामी है: देश के तमाम नेता, अफसर भ्रष्ट हो गए हैं, और इनके साथ साथ जज, वकील और पत्रकार भी भ्रष्ट हो गए हैं अत: किसी का कुछ नहीं बिगड़ता।
  • व्यक्ति में खामी है: देश का लगभग हर आदमी अपने कार्य व्यवहार में ईमानदारी नहीं बरत रहा जिसे आचरण या चरित्र कहकर समझाया जाता है। 
आज़ादी के बाद जितने भी आन्दोलन चले हैं, सुधार के कार्यक्रम चले हैं वे कुल मिलाकर व्यवस्था सुधार (बदलाव) या व्यक्ति सुधार पर केन्द्रित रहे हैं। अधिकांशत: ये दोनों धाराएं एक दूसरे से अलग अलग भी चली हैं। ``व्यवस्था बदलाव´´ या ``व्यक्ति-सुधार´´ अभियानों से जुड़े लोग प्राय एक दूसरे के प्रयासों का उपहास उड़ाते देखे जा सकते हैं। 

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

सेना में पारदर्शिता के लिए आगे आएं

-मनीष सिसोदिया

आदर्श और सुखना घोटालों ने सेना में भ्रष्टाचार के गम्भीर संकेत दिए हैं। नेता, अफसर, जज, पत्रकार... शायद इनके भ्रष्ट होने की हमें आदत पड़ गई है... और इन सबका भ्रष्ट होना शायद हमें इतना प्रभावित न कर पाए जितना सेना में भ्रष्टाचार कर सकता है। अगर सेना भ्रष्ट हो गई तो इस देश में रहने वालों का क्या हश्र होगा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन जैसे पड़ोसी या फिर अमेरिका जैसे जैकाल मुल्क हमारा क्या हश्र बनाएंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
लेकिन आदर्श घोटाले की रोशनी में देखें तो हमारी सेना में भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है। जलसेना की ज़मीन पर 31 मंज़िला इमारत बनकर खड़ी हो जाती है, थलसेना अध्यक्ष महाराष्ट्र के निवासी होने का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाते हैं, अपनी तन्ख्वाह 15 हज़ार रुपए से नीचे बताते हैं और कारगिल के शहीदों की विधवाओं के नाम बने फ्रलैट अपने नाम करा लेते हैं. इसी रोशनी में सेना के कुछ और घोटालों पर रोशनी डालते चलते हैं -