- जिसकी अध्यक्ष सोनियां गाँधी हैं, वही सोनिया गाँधी जिन्हें देश में सूचना के अधिकार को लागू करने का श्रेय दिया जाता है,
- जिसकी प्रबन्ध् समिति में योजना आयोग के उपाध्यक्ष, गृह मंत्री जैसे लोग हैं,
- जिसका दफ्तर सरकार द्वारा एक अन्य संस्था को प्रदत्त खरबों रुपए की ज़मीन पर चल रहा है, और उस संस्था को दी जाने वाली तमाम सुविधाओं का फायदा उठा रहा है,
- जिसके अरबों रुपए के बजट में से 4 फीसदी जनता के दिए गए टैक्स से आता है,
- जिसके बनाने की घोषणा केन्द्रीय वित्त मंत्री ने अपने बजटीय भाषण में की थी,
- जिसके चलाने के लिए सरकार ने 100 करोड़ रुपए का एक कोष भी बनाया था,
- जिसके भवन निर्माण का खर्च शहरी विकास मन्त्रालय ने उठाया,
- जिसे कई अन्य प्रकार से भी कर, बिल आदि में छूट प्राप्त है,
- राजीव गाँधी के सपनों को पूरा करने का काम कर रही है,
- बच्चों, महिलाओं और दूसरे वंचित तबकों के कल्याण के लिए सैकड़ों योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाता है।
वह राजीव गाँधी फाउण्डेशन संस्था सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आती है। संस्था के अधिकारी तो सूचना के अधिकार के आवेदनों को खारिज करते ही रहे हैं अब केन्द्रीय सूचना आयोग के तीन आयुक्तों की पीठ ने भी एक आदेश में इस पर मोहर लगा दी है कि यह संस्था सूचना अधिकार कानून के दायरे से बाहर है।
शानमुगा पात्रों ने सूचना के अधिकार कानून के तहत संस्था से उसकी परियोजनाओं के बारे में जानकारी मागी थी। सूचना आयुक्त एम.एम. अंसारी, एम.एल.शर्मा और सत्यानन्द मिश्रा की एक पूर्ण पीठ ने उनकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि सूचना मांगे जाने के लिए किसी संस्था पर सरकार का परोक्ष या प्रत्यक्ष वित्तीय पोशण ज़रूरी है। आयोग ने कहा कि न तो सरकार का इस संस्था पर मालिकाना हक है और न ही यह सरकार से नियन्त्रित है। इसकी कमाई में महज़ चार फीसदी ही सरकार के पास से आता है अत: इसे वित्तीय सहायता पाने वाली संस्था में भी नहीं रखा जा सकता। पात्रों का तर्क था कि फाउण्डेशन को काफी मात्रा में सरकारी पैसा मिलता है अत: इसे सूचना के अधिकार के दायरे में आना चाहिए। लेकिन आयोग ने इन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया।
सवाल यह है कि क्या केन्द्रीय सूचना आयोग में बैठे आयुक्तों ने ``10 जनपथ´´ के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी (वफादारी) निभाई है। आखिर वहां बैठे कई लोगों की नियुक्ति ``10 जनपथ´´ यानि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की मेहरबानी से ही हुई थी।