पृष्ठ

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

आरटीआई के एक आवेदन से दिल्ली के कंज्यूमर कोर्ट को मिला टाइपिस्ट

-मोहित गोयल
मैं हमेशा सुनता था कि हमारे देश के न्यायालयों में न्याय की जगह तरीख़ मिलती है लेकिन डेढ़ साल पहले मुझे यह समझ में आया कि ऐसा क्यों कहते हैं। मेरा एक केस शालीमार बाग ज़िला कंज्यूमर फोरम में पिछले डेढ़ साल से चल रहा है, जब भी सुनवाई के लिए जाता हूं एक नई तारीख दे दी जाती है। मैंने जब वहां आये लोगों से बात की तो पता चला कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है। पिछले दो सालों से यहां अधिकतर मुकदमों में तारीख़ ही दी जा रही है। छानबीन करने पर पता चला कि इसका मुख्य कारण है टाइपिस्ट की कमी। कोर्ट के ही एक कर्मचारी ने बताया कि इस कोर्ट के लिए सरकार की तरफ से दो टाइपिस्ट स्वीकृत है परन्तु पिछले डेढ़ साल से एक ही टाइपिस्ट के भरोसे ही यहां काम चल रहा।
जब मैं अगली तारीख पर सुनवाई के लिए पहुंचा तो देखा कि जज साहब किसी वकील की बहस से परेशान हो कर कह रहे थे कि आप चाहे तो इस कोर्ट की कामकाज़ की शिकायत स्टेट फोरम को कर सकते है। जब मैंने जज साहब से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि उनके कार्यालय से कई बार स्टेट कंज्यूमर फोरम को लिखा जा चुका है लेकिन कोई कार्यवाई नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि असल में स्टेट फोरम की भी इसमें गलती नहीं है वहां से भी कई पत्र फूड सप्लाई कंज्यूमर फोरम को लिखे गये हैं पर फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। केवल एकमात्र टाइपिस्ट के भरोसे कोर्ट का काम तेजी से नहीं चल पा रहा है और सारे मुकदमे लंबित होते जा रहे हैं।

कोर्ट की हालत देखने के बाद मैंने सूचना का अधिकार के सहारे सूचना निकालने का मन बनाया। मई, 2010 में पहले फूड सप्लाई कंज्यूमर अफेयर विभाग में एक आरटीआई का आवेदन दायर किया। जिसमें शालीमार बाग डिस्ट्रक कंज्यूमर कोर्ट में टाइपिस्ट की नियुक्ति में हो रहे विलंब के कारणों का ब्यौरा मांगा तथा उन अधिकारियों के नाम मांगे जो की इस विलंब के लिए ज़िम्मेदार हैं। जैसा कि मैं पहले से उम्मिद कर रहा था आरटीआई का स्पष्ट जवाब नहीं आया। इसके बाद प्रथम अपील की लेकिन वहां से भी सही जवाब न मिलने पर जुलाई, 2010 में केन्द्रीय सूचना आयोग के पास दूसरी अपील दायर की। इसके साथ ही एक अन्य आवेदन कर टाइपिस्ट की नियुक्ति न होने बारे में कई और प्रश्न भी पूछ लिए।
आरटीआई डालने के पन्द्रह दिन के अन्दर मुझे फोरम के एक वकील ने बताया की दूसरा टाइपिस्ट फॉरम में आ गया है। अब इसे केन्द्रीय सूचना आयोग में की गई अपील का दबाव माने या मेरे नये आवेदन का असर लेकिन जो काम पिछले डेढ़ साल से नहीं हो पा रहा था वो केवल पन्द्रह दिनों में कर दिया। हालांकि अभी तक मुझे सूचनाएं नहीं मिली हैं लेकिन जब भी कोर्ट में जाता हूं वहां तेजी से काम होते हुए देख कर मन को सुकून मिलता है।

1 टिप्पणी: