जम्मू कश्मीर में पुराने सूचना के अधिकार कानून को बदलकर नए कानून को लागू हुए पांच महीने हो गए हैं लेकिन इस कानून के तहत सूचनाएं लेना लोगों के लिए अब भी टेढ़ी खीर बना हुआ है। राज्य में न तो लोगों को और न ही अधिकारियों को इस कानून की जानकारी है। जम्मू कश्मीर आरटीआई मूवमेंट के संयोजक डॉ. मुजफ्फर रजा भट्ट बताते हैं कि अधिकारी इस कानून के तहत आवेदन ही नहीं लेते, जो लेते हैं उन्हें ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। उनका कहना है कि हमने बीएसएनएल, जम्मू-कश्मीर प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (जेकेपीसीसी), डायरेक्टोरेट ऑफ स्टेट मोटर गैराज, सेटलमेंट कमीशन ऑफिस , चीफ कंजरवेटर ऑफ फोरेस्ट ऑफिस से जनहित में सूचनाएं लेनी चाही लेकिन वहां अब तो लोक सूचना अधिकारी ही नियुक्त नहीं किए गए हैं। जबकि कानून बनने के सौ दिन में अधिकारी नियुक्त हो जाने चाहिए। दूसरी तरफ राज्य सरकार ने भी इस कानून के प्रचार-प्रसार के लिए कुछ नहीं किया है। कुछ चुनिंदा कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी तो नियुक्त हैं लेकिन वे सूचनाएं देने में तनिक भी गंभीर नहीं हैं। राज्य में जब कानून बना था तो राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को खूब वाहवाही मिली थी। अपने चुनावी घोषणा पत्रा में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सूचना के अधिकार की बात की थी। और सत्ता में आने के बाद उन्होंने पुराने कानून का बदलकर नया कानून लागू भी करवाया। बताया जा रहा था कि राज्य का यह कानून केन्द्रीय आरटीआई कानून से भी अधिक प्रभावशाली है। जम्मू-कश्मीर के आरटीआई एक्ट में पहली बार किसी राज्य सूचना आयोग के लिए अपीलों और शिकायतों के निपटारे के लिए समय सीमा तय की गई। इन तमाम बातों के होते हुए भी कानून में कई खामियां रह गईं जिन्हें दूर करने की कोशिश नहीं की गई। स्थिति यह है कि राज्य में अब तक आयोग के लिए सूचना आयुक्तों का चयन भी नहीं हो पाया है और यह मामला अभी आधार में ही लटका हुआ है। कानून में कुछ ऐसे प्रावधन भी हैं जो इसे आम और गरीब आदमी की पहुंच से दूर करते हैं। मसलन, आरटीआई आवेदन शुल्क के रूप में 50 रुपये और सूचना लेने के लिए 10 प्रति पेज निर्धारित किया गया है। जबकि केन्द्रीय कानून में यह शुल्क क्रमश: 10 रुपये और 2 रुपये है। बीपीएल कार्डधरकों के लिए भी नि:शुल्क सूचना का कोई प्रावधान नहीं है। दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए भी शुल्क निर्धरित किया गया है। ऐसे में आरटीआई कार्यकर्ताओं को सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेयता के कथनों पर संदेश होने लगा है।
अपना पन्ना में प्रकाशित
पहले तो मैं यह जानकर बडी खुश हूं कि यह साईट सूचना के अधिकारों की जानकारी देकर लोगों में जनजागृति का सुंदर और जरुरी कार्य कर रही है इसके लिए कबीर जी को बधाई!
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