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सोमवार, 6 जुलाई 2009

संसदीय विशेषाधिकार का पेंच

नीरज कुमार
अमेरिका से एटमी डील के विवाद के दौरान यूपीए सरकार को जब सदन में विश्वास मत हासिल करना था, उसके कुछ घंटे पहले सदन में भारत के संसदीय इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना घटित हुई। भाजपा के तीन सांसदों ने सदन में नोटों की गडि्डयां लहराते हुए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर यह आरोप लगाया कि यह नोट उन्हें सरकार के पक्ष में विश्वास मत के दौरान वोट देने के लिए घूस के रूप में मिले हैं जिसे एक मीडिया चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन के दौरान अपने कैमरे में कैद कर लिया था और उसे लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी को सौं दिया था। अरविंद केजरीवाल एवं मनीष सिसोदिया समेत कई लोगों ने जब सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके वीडियो टेप्स सार्वजनिक करने की मांग की तो लोकसभा ने मना कर दिया लोकसभा ने बताया कि वीडियो टेप अभी संसदीय समिति के पास हैं और जांच की प्रक्रिया चल रही है। जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक इस सूचना के दिए जाने से धरा 8 (१)(सी) का उल्लंघन होता है। इस धारा में बताया गया है कि ऐसी सूचना जिसके सार्वजनिक किए जाने से संसद या किसी राज्य के विधानमंडल के विशेषाधिकार का हनन होता है, उसे सूचना के अधिकार के तहत दिए जाने से रोका जा सकता है।

ऐसा ही एक मामला जिनमें वर्तमान केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने महाराष्ट्र के सामान्य प्रशासनिक विभाग से मुख्यमंत्री राहत कोष में मुंबई ट्रेन धमाकों के बाद प्राप्त अनुदानों के खर्चों का ब्यौरा मांगा था। सूचना यह कहकर देने से खारिज कर दी गई कि मुख्यमंत्री राहत कोष एक निजी ट्रस्ट है और कानून के दायरे में नहीं आता। जबकि शैलेष का मानना था कि राहत कोष एक पब्लिक बॉडी है और आयकर छूट का लाभ उठाती है। मुख्यमंत्री जनता का सेवक होता है इसलिए इस सूचना के दिए जाने से विधानमंडल के विशेषाधिकारों का हनन नहीं होता है।
एक मासिक पत्रिका से जुडे़ रमेश तिवारी ने उत्तर प्रदेश के स्पीकर और स्टेट असेंबली के सचिव के पास एक आवेदन किया था। आवेदन के माध्यम से यह जानना चाहा था कि क्या कोई लेजिसलेटर अपने आप से कोई सरकारी ठेका ले सकता है और यदि ऐसा ठेका लिया गया है तो क्या ऐसे सदस्य की असेंबली से सदस्यता रद्द की जा सकती है?

असेम्बली से रमेश को जब कोई जवाब नहीं मिला तो मामले को उन्होंने उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष प्रस्तुत किया। आयोग के तात्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त एम ए खान ने स्पीकर और सचिव को सूचना के अधिकार कानून के तहत नोटिस जारी कर दिए। नोटिस पाते ही सबसे पहले तो रमेश का आवेदन खारिज कर दिया और उसके बाद असेंबली में एक रेजोल्यूशन पास किया गया जिसके माध्यम से सूचना आयोग को चेतावनी दी गई कि आयोग का इस मामले में कोई लेना देना नहीं है और इस तरह की सूचना मांगे जाने से और आयोग द्वारा नोटिस भेजे जाने से विधानमंडल के विशेषाधिकार का हनन होता है। आयोग को आगे से ऐसे मामलों में सावधान रहने की चेतावनी दी गई।

राहुल विभूषण ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड और तीन सांसदों के बीच हुए पत्र व्यवहार की प्रतिलिपि मांगी थी। दरअसल एक रिटेल आउटलेट (पेट्रोल पंप ) को अनुबंधों की शर्तों का उल्लंघन करने के कारण बंद कर दिया गया था। इस पेट्रोल पंप को दोबारा खुलवाने के लिए तीन सांसदों ने पेट्रोलियम मंत्री को पत्र लिखा था। राहुल ने इस पत्र के जवाब की प्रतिलिपि मांगी थी जिसे यह कहकर देने से मना कर दिया गया कि इसे दिए जाने से संसद के विशेषाधिकारों को हनन होता है। आयोग में सुनवाई के दौरान आयुक्त ने माना कि सांसद द्वारा लिखे गए पत्र का संसद या संसदीय कार्रवाई से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है और इस सूचना के सार्वजनिक किए जाने से संसद के किसी विशेषाधिकार का कोई हनन नहीं होता है। आयुक्त ने मांगी गई सूचना को 15 कार्यदिवस में आवेदक को सौंपे जाने का आदेश दिया।

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