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सोमवार, 6 जुलाई 2009

स्टेट गेस्ट हाउस के नाम पर..

एक आकड़े के मुताबिक हरेक साल जाड़े के मौसम में लगभग 2000 लोग ठंड की वजह से मर जाते हैं। वजह इन लोगों के पास सर छुपाने की छत नहीं होना। 2001 की जनगणना के हिसाब से देश में 4 लाख 47 हज़ार 5 सौ 22 ऐसे परिवार है, जिनके पास अपना कहने को घर नहीं। दूसरी ओर इसी देश के नीति-नियंताओं के लिए बने सरकारी गेस्ट हाउस पर सलाना करोड़ों रुपये का खर्च आता है। सूचना का अधिकार कानून के इस्तेमाल से मिले दस्तावेज के मुताबिक दिल्ली में स्थित विभिन्न राज्यों के स्टेट गेस्ट हाउस के रख-रखाव पर ही जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये बहा दिए जाते हैं। और इतने के बाद भी कुछ ऐसे मंत्री या मुख्यमंत्री है जिन्हें इन अतिथि गृहों में रुकना नहीं भाता। सो, उनके लिए पांच सितारा होटल की भी बुकिंग की जाती है।
आरटीआई के तहत उपलब्ध कराए गए दस्तावेज के मुताबिक, बिहार भवन और बिहार निवास के रख-रखाव पर, वित्तीय वर्ष 2006-07 में लगभग डेढ़ करोड़ (१४४००८७०) रुपयें व्यय हुए हैं। वही उत्तर प्रदेश भवन और उत्तर प्रदेश सदन पर उपरोक्त वित्तीय वर्ष में 75 लाख 75हज़ार 6 सौ 70 रुपये का खर्च आया। जबकि झारखंड सरकार का अपना कोई भवन नहीं है(2006-07 के दौरान) इसलिए ये किराए पर चलता है। और किराए के तौर पर 8 लाख 73 हज़ार 4 सौ 60 रुपये प्रति माह भुगतान किया जाता है। यानि एक वित्तीय वर्ष का किराया ही सिर्फ 1 करोड़ रुपये से ज्यादा। और सबसे दिलचस्प जवाब तो पंजाब सरकार का रहा जिसके मुताबिक पंजाब भवन के वार्षिक रख-रखाव का हिसाब-किताब उन्हें नहीं मालूम।
देश की राजनीतिक सत्ता का केंद्र है, दिल्ली। सो, लगभग सभी राजनैतिक दलों, राज्य सरकारों, उनके मंत्रियों और अधिकारियों का दिल्ली आना-जाना लगा रहता है। और यहां इन लोगों के ठहरने के लिए बकायदा हरेक राज्य सरकार का अपना राजकीय अतिथि गृह भी (स्टेट गेस्ट हाउस) है। आरटीआई कानून के तहत बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और झारखंड राज्य सरकारों से उपरोक्त गेस्ट हाउस के संबंध में कुछ जानकारी मांगी गई थी। जैसे 01-01-2007 से 10-11-2007 के बीच कितने मंत्रियों, मुख्यमंत्री , राज्यपाल, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इत्यादि अपने दिल्ली प्रवास के दौरान स्टेट गेस्ट हाउस में न रुक कर होटलों या निजी संस्थानों में ठहरे हैं और इसके लिए राज्य सरकार को अलग से भुगतान करना पड़ा हो। इसके साथ ही स्टेट गेस्ट हाउस के सलाना खर्च (रख-रखाव) के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
झारखंड
बिहार से अलग हो कर अस्तित्व में आए झारखंड का नवंबर 2007 तक दिल्ली में अपना कोई गेस्ट हाउस नहीं था। इसलिए यह किराये पर चल रही था। किराये के तौर पर प्रति माह लगभग 9 लाख (८७३४६०) की दर से भुगतान किया जाता था। लेकिन झारखंड के मंत्रियों, मुख्यमंत्री और राज्यपाल महोदय को शायद किराये के मकान में ठहरना अच्छा नहीं लगता था। तभी इन महानुभावों के दिल्ली प्रवास के दौरान (01-01-2007 से 01-11-2007 के बीच) उन्हें होटलों और निजी संस्थानों में ठहराने पर 34 लाख रुपये खर्च किए गए। इन महानुभावों में राज्य के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी, झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित 11 वरिष्ठ मंत्रीगण भी शामिल थे। इन मंत्रियों के दिल्ली दौरे पर नज़र डालें तो पता चलता है कि 11 महीनें में 11 मंत्री, 61 बार दिल्ली प्रवास पर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गई सूचना (सूचना कानून के तहत) के मुताबिक 01-01-2007 से 01-11-2007 के बीच यूपी भवन और यूपी सदन के अलावा कहीं भी किसी मंत्री या मुख्यमंत्री या अधिकारी को उनके दिल्ली प्रवास के दौरान नहीं ठहराया गया। हां, जहां यूपी सदन के सलाना रख-रखाव पर 56 लाख (लगभग) रुपयें का खर्च आया वहीं यूपी भवन के उपर ये खर्च 20 लाख रुपये का था। लेकिन सबसे दिलचस्प मामला रहा मंत्रियों के दिल्ली दौरों का। 11 महीने में 16 मंत्रियों ने मिलकर 125 बार दिल्ली प्रवास का लुत्फ़ उठाया।

बिहार
बिहार सरकार ने उपरोक्त सूचना एकत्र करने के लिए इस आरटीआई आवेदन को सरकार के सभी विभाग में भेज दिया था। लगभग 5 विभागों और उच्च न्यायालय की तरपफ से सीधे भेजी गई सूचना के मुताबिक सम्बंधित विभाग के मंत्री या अधिकारी अपने दिल्ली प्रवास दौरे पर हमेशा बिहार भवन/निवास में ही रूके हैं। हालांकि अभी भी अन्य कई विभागों से सूचना नहीं आ सकी है।

पंजाब
और सबसे दिलचस्प जवाब रहा पंजाब सरकार का जिसके मुताबिक राज्य सरकार की तरफ से दिल्ली दौरे पर गए किसी भी अधिकारी या मंत्री को निजी संस्थानों या होटलों में ठहरने की इजाजत नहीं है और न ही इसके लिए उन्हें कोई भत्ता दिया जाता है। लेकिन पंजाब सरकार को ये नहीं मालूम है कि दिल्ली स्थित पंजाब भवन के वार्षिक रख-रखाव पर राज्य सरकार को कितना खर्च करना पड़ता है।

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