पृष्ठ

मंगलवार, 5 मई 2009

देश और समाज की समस्याओं के प्रति कितनी गंभीर है हमारी शिक्षा व्यवस्था?

मनीष सिसोदिया

देश भले ही भ्रष्टाचार और आतंकवाद की विकराल समस्याओं से जूझ रहा हो लेकिन देश की शिक्षा व्यवस्था यह ज़रूरी नहीं मानती कि आने वाली पीढ़ियों को इन दोनों समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाने में उसकी भी कोई भूमिका है। सूचना के अधिकार के तहत दाखिल आवेदनों के जवाब में शिक्षा व्यवस्था का भावी समाज के प्रति यह गैर ज़िम्मेदाराना रुख सामने आया है।
भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय देश के लोगों के शिक्षित होने की दिशा और दशा तय करने का दावा करता है। करीब छह महीने पहले इस मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई थी कि इन दोनों समस्याओं के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए और आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ जनमानस तैयार करने के मकसद से देश की शिक्षण संस्थाओं में विभिन्न स्तर पर पाठयक्रमों में क्या कुछ पाठ जोड़े गए हैं। मंत्रालय ने इन आवेदनों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को अग्रसित कर दिया। यूजीसी ने तो एक लाइन में लिखकर दे दिया कि उच्च शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में उसकी कोई भूमिका नहीं है।
दूसरी तरफ एनसीईआरटी ने दोनों आवेदनों के जवाब में बताया है कि उसके पाठ्यक्रम में भ्रष्टाचार या आतंकवाद के बारे में कोई विशेष पाठ नहीं है। गौरतलब है कि एनसीईआरटी का नया पाठ्यक्रम 2005 में ही लागू हुआ है। इस नए पाठ्यक्रम में देश की दो सबसे बड़ी समस्याओं के प्रति आने वाली पीढ़ियों को संवेदनशील बनाने का कितना ध्यान रखा गया है यह खुद एनसीईआरटी के जवाब से देखा जा सकता है -

आतंकवाद
6 अक्टूबर 2008 को दाखिल सूचना अधिकार आवेदन का जवाब अपील/शिकायत आदि दाखिल करने और सूचना आयोग का कड़ा नोटिस मिलने के बाद दिया है।
जवाब में एनसीईआरटी ने लिखा है कि 2005 के पाठ्यक्रम के आधर पर तैयार पाठ्यपुस्तकों में आतंकवाद पर कोई विशेष पाठ हमारी पुस्तकों में नहीं है `....हालांकि इनमें भारत की अखंडता और विश्व शांति पर मंडराते खतरे के रूप में आतंकवाद को रेखांकित किया गया है। राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विजुअल एलीमेंट्स के माध्यम से आतंकवाद की चर्चा की गई है।´
एनसीईआरटी का यह दावा सकून देने वाला हो सकता था लेकिन सूचना के अधिकार के इस आवेदन का जवाब देते हुए पाठ्यपुस्तकों के उन हिस्सों की फोटोकॉपी प्रदान की गई हैं जिन पाठों के आधर पर एनसीईआरटी ने उपरोक्त दावा किया है। एक नज़र जवाब के उस हिस्से पर भी।
• भारत की अखंड्ता को बनाए रखने और आने वाली पीढ़ियों को आतंकवाद के प्रति संजीदा करने की कोशिश में पढ़ाए जा रहे पाठों में एनसीईआरटी ने पहला पाठ कक्षा 11 की पुस्तक का उपलब्ध कराया है। यह पाठ (पृष्ठ संख्या ११६) संसद में कानून पास होने की प्रक्रिया के बारे में है और बताता है कि किस तरह कुछ कानून यथा लोक पाल बिल अभी अधर में लटका है, 2002 में आतंकवाद रोधी कानून 2002 राज्य सभा में खारिज हो गया था। यहां पर आतंकवाद शब्द को एनसीईआरटी ने पीले मार्कर पेन से रेखांकित कर दिया है।
• इसके अगले पृष्ठ में संचार माध्यमों के लाभ हानि पर बात करते हुए लिखा गया है कि एक तरफ सामाजिक कार्यकर्ता आदिवासी संस्कृति और जंगल जैसे मुद्दों पर दुनिया भर से संपर्क करने में इनका लाभ ले रहे हैं वही अपराधी और आतंकवादी भी इससे अपना नेटवर्क फैलाते हैं। (यह पृष्ठ आतंकवाद के बारे में नहीं बल्कि इंटरनेट के फायदे नुकसान के बारे में है)
• अगले पन्ने में अधिकारों की बात करते हुए ज़िक्र आता है कि क्या आतंकवाद से पीड़ित एक देश को किसी दूसरे देश के नागरिक अधिकारों का हनन करना चाहिए? यहां भी आतंक वाद शब्द आया है, शायद इसीलिए इस पृष्ठ की फोटोकापी सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध कराई गई है।
• इसके आगे के पन्ने में भी इंटरनेट के उपयोग पर चर्चा है जिसमें लिखा है कि इंटरनेट के विभिन्न पहलू हैं जिसमें एक तरफ संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं इसका इस्तेमाल बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए करती हैं वहीं आतंकवादी इसका इस्तेमाल अपना नेटवर्क बढ़ाने में करते हैं।
• इसके बाद शंति (पीस) पर एक पाठ है जिसकी पहली ही लाइन में आतंकवाद शब्द आया है इसलिए एनसीईआरटी ने अपने दावे में इसे भी शमिल कर लिया है। इस पाठ में दुनिया भर में अशांति के माहौल पर चर्चा हुई है जैसे कि रवांडा के हालात भारत पाकिस्तान के हालात आदि। यहां पर दुनिया में बढ़ते आतंकवाद के बारे में कुछ चर्चा है। इस पाठ में आगे आतंकवाद के खतरों पर चर्चा है, जिसमें वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आदि हमलों का ज़िक्र है।

• इसी तरह कक्षा 12 की पुस्तकों में जहां जहां भी आतंकवाद शब्द ढूंढने से मिलता है उस उस पृष्ठ की फोटोकापी उपलब्ध करा दी गई है। इसमें भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले और भारत पाकिस्तान तनाव का ज़िक्र है।
• इसी पुस्तक के कुछ अन्य पृष्ठों की फोटोकॉपी भी उपलब्ध कराई गई है जिसमें मुख्यत: संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों और आतंकवाद को एक राजनैतिक हिंसा के रूप में परिभाषित किया गया है।

• हैरानी की बात है कि पुस्तक में जितनी चर्चा अमेरिका, विश्व सुरक्षा आदि पर खतरे को लेकर है उसके मुकाबले भारतीय संदर्भ में आतंकवाद को हल्के ढंग से पेश किया गया है। आतंकवाद के मूल को समझने, इसके बढ़ने के कारणों और भारतीय परिप्रेक्ष्य में संभावित समाधानों का तो ज़िक्र भी नहीं है।

• 12 वीं की पुस्तक में ही आगे सुरक्षा नीतियों की समीक्षा की गई है। इसकी भी फोटोकॉपी उपलब्ध कराई गई है।

गौरतलब है कि यह सब फोटोकॉपी यह कहते हुए दी गई हैं कि आने वाली पीढ़ियों को आतंकवाद के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा व्यवस्था क्या पढ़ा रही है? कितनी ज़िम्मेदारी निभा रही है? सूचना के अधिकार के तहत आवेदन में यही जानकारी मांगी गई थी।


भ्रष्टाचार
इसी प्रकार सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगते हुए एक आवेदन यह भी डाला गया था कि आने वाली पीढ़ियों को भ्रष्टाचार के प्रति जागरूक करने के लिए शिक्षा व्यवस्था क्या ज़िम्मेदारी निभा रही है? पाठ्यक्रम में क्या सामग्री इस आशय के साथ जोड़ी गई है। यह आवेदन 16 अक्टूबर को डाला गया था। इसका जवाब भी इधर -उधर घूमते हुए सूचना आयोग के नोटिस के बाद एनसीईआरटी से प्राप्त हुआ। यहां भी यही कहानी है। कक्षा 9 से कक्षा 12 तक की पुस्तकों के कुछ अध्यायों की सूची। उसके बाद उनकी फोटोकॉपी।
• फोटोकॉपी सेट के पहले ही पन्ने पर एक जगह `करप्ट´ शब्द आया है। पूरा वाक्य इस प्रकार है, `....... इन जांचों से पता चला है कि पिनोशे (चिली का पूर्व तानाशाह) न सिर्फ क्रूर था बल्कि भ्रष्ट भी था..... प्रदान की गई फोटोकापी में करप्ट (भ्रष्ट) शब्द को रेखांकित किया गया है। चिली में लोकतंत्र पर एक पैराग्राफ में आया एक वाक्य `पिनोशे एक भ्रष्ट शासक था।´ सिर्फ यह वाक्य किस प्रकार बच्चों को भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील बनाता है और कैसे इसे पढ़कर बच्चों के मन में यह भावना जागेगी कि भ्रष्टाचार एक गलत बात है और उसे बड़ा होकर भ्रष्ट नहीं बनना चाहिए.... क्या एनसीईआरटी को इस बात का जवाब नहीं देना चाहिए?
• इसी के अगले पृष्ठ पर पोलैंड के लोकतंत्र पर चर्चा के दौरान भ्रष्टाचार शब्द आया है। (सरकार में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन ने शासकों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी) यहां भी पूरे पृष्ठ पर इस एक अकेले शब्द को हरे पेन से रेखांकित कर दिया है।
• इसके अगले पन्ने पर लोकतंत्र पर एक क्लास में चर्चा के दौरान एक चार जगह भ्रष्टाचार शब्द आया है। उसे भी उपरोक्त प्रकार से रेखांकित किया गया है।
• इसी तरह अगले पन्ने पर लोकतंत्र पर सवाल उठाते हुए फ़िर एकबार भ्रष्टाचार शब्द आता है जिसे रेखांकित कर उसकी फोटोकापी प्रदान कराई गई है।
• इसी तरह एक पृष्ठ पर वाक्य आया है कि सेना देश का सबसे अनुशासित और भ्रष्टाचार मुक्त विभाग है। इस पृष्ठ को भी उपरोक्त सवालों के जवाब में सूचना देते हुए उपलब्ध करवाया गया है।
• अगले पन्ने पर नागरिक समूह बनाने पर चर्चा है जिसमें एक वाक्य आता है कि नागरिक, प्रदूषण और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर अभियान चलाने के लिए भी समूह बना सकते हैं।

यहां सवाल सिर्फ सूचना के अधिकार का नहीं है। सूचना तो प्रदान कर ही दी गई है, भले ही अपील और आयोग के नोटिस के बाद मिली हो। सवाल है कि देश को चलाने के लिए अरबों रुपए खर्च कर चल रही शिक्षा व्यवस्था किस प्रकार कल के नागरिक तैयार कर रही है। क्या यह कहने से कि पिनोशे एक भ्रष्ट आदमी था। हम बच्चों को भ्रष्टाचार के खतरे के प्रति संवेदनशील बनाते हुए यह उम्मीद कर सकते हैं कि इसे पढ़ने वाला बच्चा जब नागरिक बनकर आगे आएगा तो वह भ्रष्ट नहीं बनेगा, रिश्वत नहीं लेगा देगा। जिस देश की व्यवस्था को भ्रष्टाचार का घुन लगा हो उस देश की शिक्षा व्यवस्था यह कहकर अपनी पीठ ठोक रही है कि हमारे पाठ्यक्रम में नैतिकता के महत्व पर ज़रूर दिया गया है। वह भी उपरोक्त अध्यायों के दम पर!
यही स्थिति आतंकवाद के मामले में है। देश पिछले कई दशक से आतंकवाद से जूझ रहा है। हमारा रक्षा-सुरक्षा बजट बढ़ रहा है। हम हथियारों के बड़े खरीददार बनते जा रहे हैं। सुरक्षा के कड़े से कड़े नियम बना रहे हैं लेकिन फ़िर भी यह समस्या बढ़ी ही है। अभी तो नामी गिरामी शिक्षा संस्थानों से निकले युवाओं को भी आतंकवाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। लेकिन शिक्षा व्यवस्था में लगे लोग उपरोक्त पाठ्यक्रम के बल पर अपनी पीठ थपथपाने में लगे हैं।
देश को आगे ले जाने वाल शिक्षा कैसी होगी इसकी ज़िम्मेदारी हमने शिक्षा व्यवस्था को दी है। और खुद एनसीईआरटी के जवाब से तथा उसके जवाब से उभरे तथ्यों से सवाल यह उभरता है कि क्या यह ज़िम्मेदारी ठीक से निभाई जा रही है? समाज में बढ़ती समस्याएं, बढ़ता आतंकवाद और भ्रष्टाचार तो कम से कम इसका जवाब नहीं में दे रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें