इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म कंपनी (आईआरसीटीसी) लिमिटेड ने दिल्ली के दया प्रकाश शुक्ला का टिकट रद्दीकरण का पैसा दो साल तक लटकाए रखा लेकिन उन्होंने जैसे ही सूचना के अधिकार के जरिए इसका कारण जानना चाहा, पैसा मिल गया। दया प्रकाश शुक्ला ने 7 जुलाई 2006 को टिकट बुक किया था और उसी दिन शाम को टिकट रद्द करवा दिया था। टिकट रद्द कराने के बाद वे इंतजार करते रहे कि आईआरसीटीसी उनका पैसा वापस लौटाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अन्तत: उन्होंने अपना पैसा वापस पाने के लिए 1 दिसंबर 2008 को सूचना के अधिकार का सहारा लिया। आरटीआई आवेदन ने असर दिखाया और आईआरसीटीसी हरकत में आया। इसका नतीजा यह निकला कि शीघ्र ही आवेदक को आईआरसीटीसी से बकाया राशि मिल गई।
आवेदक ने सवाल ही कुछ ऐसे पूछे थे जो अधिकारियों के लिए सिरदर्द बन गए। आवेदक ने टिकट वापसी के अपने आवेदन पर की गई कार्रवाई की दैनिक प्रगति रिपोर्ट के अलावा उन अधिकारियों के नाम आदि की जानकारी भी पूछी थी जो इस लापरवाही के प्रति उत्तरदायी थे। साथ ही यह जानकारी भी मांगी कि अपना काम ठीक से न करने पर इन अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी? हालांकि आवेदन में पूछे गए अधिकांश सवालों के जवाब तो नहीं मिले, लेकिन आवेदक का पैसा वापस करके आईआरसीटीसी ने अपना पिंड छुड़ाने को कोशिश की। अपना काम हो जाने के बावजूद आवेदनकर्ता अब अपने सवालों के जवाब पाने के लिए आयोग में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
aap(avadak) to mahan hain .apki mahanta ka to koi jawab nahi hai. aapne kuchh rupyon ki khatir shayad bahut sa dhan kharch kar diya .bahut sara samay barbad kar diya.bahut sare kam ko chhoda hoga. ak aam admi ke baska aisa karn muskil lagta hai.
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