उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के आयुक्त संजय यादव ने आरटीआई आवेदनकर्ता आशा भटनागर की अपील की सात सुनवाइयां करने के बाद भी मांगी गई सूचनाएं नहीं दिलाईं हैं। 25 अक्टूबर 2006 में आयोग में गए इस मामले में सूचना के बजाय हर बार एक नई तारीख मिल जाती है। आवेदनकर्ता करीब 70 वर्षीय हैं जिन्हें हर बार सुनवाई के लिए दिल्ली से लखनउ जाना पड़ता है, जिनकी आयोग में जाने की हिम्मत भी अब जवाब देने लगी है।
दरअसल आशा भटनागर ने 1979 में उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद में 5 हजार रूपये में पठानपुरा स्कीम, सुल्तानपुर के तहत प्लॉट का पंजीकरण कराया था जो 26 बरस गुजर जाने के बाद भी नहीं मिला। प्लॉट न मिलने की वजह जानने के लिए ही आशा भटनागर ने 22 जुलाई 2006 को आरटीआई आवेदन दाखिल कर उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद से पूछा कि क्या यह स्कीम अब भी लागू है या नहीं। आवेदन में यह भी पूछा कि क्या स्कीम के तहत नोएडा, गाजियाबाद आदि स्थानों में प्लॉट मिल सकता है।
तय समय सीमा के अंदर न तो परिषद के लोक सूचना अधिकारी ने जवाब दिया और न ही अपीलीय अधिकारी ने। इस संबंध में संपत्ति प्रबंधक की तरफ से 6 अक्टूबर 2006 को एक पत्र अवश्य मिला जिसमें आधी अधूरी सूचनाएं थीं। मामला अन्तत: आयोग में गया लेकिन वहां भी सूचना आयुक्त संजय यादव ने मामले को लटकाए रखा। 15 मई 2008 को आयुक्त द्वारा दी गई सुनवाई के तारीख में आवेदक तो पहुंच गए लेकिन खुद सूचना आयुक्त संजय यादव गैरहाजिर हो गए। आवेदनकर्ता ने अब सूचना प्राप्त होने की आस छोड़ दी है और अगली सुनवाई में न जाने पर विचार कर रहे हैं। देखने वाली बात यह है कि जब सूचना आयुक्त का रवैया ही इस तरह का है तो लोक सूचना अधिकारियों से क्या उम्मीद की जाए।
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